प्रदूषण से मुकाबले के लिए मजबूत करें अपने फेफड़े      Publish Date : 27/11/2024

             प्रदूषण से मुकाबले के लिए मजबूत करें अपने फेफड़े

                                                                                                                             डॉ0 दिव्यांशु सेंगर एवं मुकेश शर्मा

आजकल राजधानी दिल्ली के सहित कई शहर गैस चेंबर सरीखे दिख रहे हैं। प्रदूषित हवा श्वसन तंत्र पर हमला कर रही है। सूक्ष्म कण फेफड़े में समाहित हो रहे और खतरनाक कण रक्त में घुलकर पूरे शरीर की रासायनिक प्रक्रिया में बदलाव कर रहे हैं। कैसे करें इससे अपना बचाव-

                                                     

ऐसे तो क्रॉनिक आब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) के लिए धूमपान और बायोमास ईंधन प्रमुख कारक होते हैं, परंतु मौसम का यह दौर मरीजों के लिए दोहरी चुनौती बन रहा है। इंडोर पॉल्युशन (आंतरिक प्रदूषण) के साथ-साथ आउटडोर पॉल्युशन से भी सामना करना पड़ रहा है। ऐसे लोगों को सदीं भर सतर्क रहने की जरूरत है। आवश्यक दवा के साथ-साथ यदि फेफड़ों के व्यायाम की आदत डाल लें तो वह बेहतर महसूस करेंगे।

वायु प्रदूषण फेफड़ों के साथ-साथ प्रत्येक अंग को कुप्रभावित करता है। इसके सूक्ष्म कण (पीएम 2.5) श्वसन प्रक्रिया के जरिये फेफड़ों और रक्तप्रवाह में प्रवेश कर जाते हैं। इससे फेफड़ों की वायु थैलियों (एल्वियोली) में सूक्ष्म कण पहुंचने, से फेफड़ों में सूजन, ऑक्सीडेटिव तनाव और ऊतकों की क्षति होने का भी खतरा बढ़ जाता है। सीओपीडी रोगियों के वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से फेफड़ों की कार्यक्षमता में गिरावट आने लगती है और लक्षण गंभीर हो जाते हैं। ऐसे में मरीज की जान जाने का खतरा भी हो सकता है।

कैंसर का खतरा: सीओपीडी बीमारी व्यक्ति की सामान्य श्वसन प्रक्रिया में बाधा खड़ी करती है। इसमें व्यक्ति को सांस लेने में कठिनाई, खांसी, बलगम, गले से सीटी बजने के जैसी दिक्कतें महसूस होती हैं। सही समय पर उपचार नहीं लेने पर समस्या बढ़ती है। साथ ही, हृदय रोग, निमोनिया, फेफड़ों के कैंसर समेत अन्य विकारों का जोखिम भी बढ़ जाता है।

                                                              

बचाव के लिए टीका लगवाएं, मास्क पहनकर निकलें: सीओपीडी के मरीज को बीड़ी-सिगरेट का प्रयोग करना बंद कर देना चाहिए। घरों में कंडे, उपले और लकड़ी आदि को जलाने के स्थान पर एलपीजी गैस एवं अन्य स्वच्छ ईंधन का प्रयोग अधिक करें। फेफड़े में संक्रमण का जोखिम कम करने के लिए फ्लू और निमोनिया का टीकाकरण समय रहते ही करवाना चाहिए।

आक्सीजन की कमी कर देता है प्रदूषण रू प्रदूषण के कण से श्वसन मार्ग और फेफड़ों में सूजन हो जाती है। प्रतिरक्षा तंत्र कमजोर पड़ जाता है। साथ ही रक्त की आक्सीजन वाहक क्षमता भी प्रभावित होती है।

प्रदूषण से हार्ट अटैक का खतरा: प्रदूषण के चलते वातावरण में पीएम 10, पीएम 2.5, पीएम 0.1 की अधिकता बनी हुई है। इससे अनेक बीमारियों खासकर, हार्ट अटैक, अस्थमा अटैक और कैंसर आदि का खतरा बढ़ जाता है। वहीं स्किन और आंखों की एलर्जी भी हो सकती है।

वेंटीलेटर पर रहे मरीज व गर्भवती भी रखें ध्यान: कोविड-19 पीड़ित कई मरीज वेंटीलेटर पर रह चुके हैं। ऐसे में उनके फेफड़ों में फाइब्रोसिस होने की आशंका होती है। सीओपीडी के मरीजों के फेफड़े कमजोर होते हैं। ब्लैक फंगस का प्रकोप भी देखा गया है। इन मरीजों के साथ-साथ बुजुर्ग व गर्भवती महिलाओं को भी सतर्क रहने की आवश्यकता है।

घर में रहकर कर सकते हैं यह व्यायाम

श्वसन व्यायाम (ब्रीदिंग एक्सरसाइज): इससे फेफड़ों को आक्सीजन लेने में मदद मिलती है। साथ ही, उनकी कार्यक्षमता बढ़ती है और आक्सीजन अन्य अंगों तक पहुंचाने में मदद मिलती है। हृदय के लिए भी यह एक्सरसाइज बहुत अच्छी रहती है।

रिब स्ट्रेच: यह एक्सरसाइज फेफड़े के लिए लाभदायक होती है। इस एक्सरसाइज में जैसे ही आप सांस अंदर लें और बाहर छोड़ें, वैसे ही आपकी पसलियां खुलती और सिकुडती हैं।

कार्डियो एक्सरसाइज: यह एक्सरसाइज फेफड़ों को मजबूत बनाने व उनकी कार्यक्षमता को बढ़ाने में लाभदायक होती है। स्वस्थ फेफड़ों के लिए रोजाना 30-40 मिनट कार्डियो एक्सरसाइज करना चाहिए।

                                                                 

डब्ल्यूएचओ के अनुसार, प्रदूषण से हर साल 38 लाख लोग अपनी जान गंवा देते है। इसमें 27-27 प्रतिशत निमोनिया व हृदय रोग, 18 प्रतिशत स्ट्रोक, 20 प्रतिशत सीओपीडी व आठ प्रतिशत फेफड़ों के कैंसर से ग्रस्त लोगों मौतें होती है।

अपने फेफड़े रखें फिट

  • इस समय बाहर व्यायाम करने के स्थान पर अपने घर में ही व्यायाम और योग करना अच्छा रहता है।
  • स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज, डायफ्राम एक्सरसाइज, एरोबिक एक्सरसाइज, डीप ब्रीदिंग एक्सरसाइज फेफाड़े के लिए लाभदायक होती है। ये फेकड़ों की ताकत को बढ़ाती हैं।
  • सुपाच्य व पौष्टिक आहार का सेवन करें। बासी या देर से रखा हुआ भोजन करने से बचें।
  • गर्म पानी की भाप लेते रहें। इससे गले में संक्रमण से राहत मिलती है।
  • इन्हेलर और दवाएं बंद न करें और समय पर डाक्टर को जरूर दिखाए।

इम्युनिटी को बनाएं रखें दुरुस्त

  • लहसुन में एंटीबायोटिक तत्व होते हैं, अतः इसका सेवन नियमित रूप से करते रहें।
  • मशरूम का सेवन करने से श्वेत स्वत कणिकाएं बनती है।
  • गाजर-चुकंदर से लाल रक्त कणिकाओं की संख्या में वृद्धि होती है।
  • हरी सब्जियों का सेवन करना विटामिन्स और प्रोटीन के निर्माण में मददगार होता है।
  • फुल प्लांट सब्जी- पालक, सोया और बथुआ आदि का सेवन अधिक से अधिक करें।
  • ग्रीन टी एंटीआक्सीडेंट होती है, जो छोटी आंत के बैड बैक्टीरिया को मारती है।
  • सेब, अंगूर, अनार, पपीता, संतरा आदि मौसमी फलों में प्रचुर मात्रा में विटामिन पाए जाते हैं।
  • अंजीर में फाइबर मैग्नीज, पोटैशियम होता है। इसका एंटी आक्सीडेंट शुगर लेवल को नियंत्रित रखता है।
  • दिन भर मे पांच लीटर पानी पिए। कोल्ड ड्रिंक, फास्ट फूड, जंक फूड खाने से परहेज करें और अल्कोहल का सेवन करने से यथासंभव बचें।

लेखक: डॉ0 दिव्यांशु सेंगर, प्यारे लाल शर्मां, जिला चिकित्सालय मेरठ मे मेडिकल ऑफिसर हैं।