आर्टिफिशियल शुगर बढ़ाती है डायबिटीज का खतरा Publish Date : 13/06/2023
आर्टिफिशियल शुगर बढ़ाती है डायबिटीज का खतरा
हम किसी मधुमेह के रोगी के बारे में बात करें या फिर अपने वजन को कम करने का प्रयास में डाइटिंग कर रहे किसी व्यक्ति के बारे में, इन दोनों ही प्रकार के लोगों की कुछ मीठा खाने की इच्छ का पूर्ति करता है नॉन-शुगर स्वीटनर (एनएसएस), जिन्हें ऑर्टिफिशियल शुगर के नाम से भी जाना जाता है।
आखिर क्या है ऑर्टिफिशियल शुगर
ऑर्टिफिशियल शुगर कुछ ऐसे रसायन होते हैं, जिनका स्वाद तो मीठा ही होता है, परन्तु इनमें साधारण चीनी की तरह से ग्लूकोज उपलब्ध नही होता है। ऑर्टिफिशियल शुगर को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के द्वारा इनको उपयोग करने के सम्बन्ध में हाल ही में एक चेतावनी जारी की गई है।
एक अध्ययन में सामने आया है कि बच्चों अथवा बड़ों का वजन कम करने के क्रम में इस प्रकार के स्वीटनर्स कोई विशेष फलदायी नही होते हैं, और इसके साथ ही ऑर्टिफिशियल शुगर के स्वास्थ्य पर विभिन्न विपरीत प्रभाव भी होते हैं।
वर्तमान में डब्ल्यूएचओ पूरी दुनिया में गैर-संचारी रोगों का खतरा कम करने के लिए खानपान की अच्छी आदतों को विकास करने की दिशा में प्रयास कर रहा है और यह दिशा-निर्देश भी उक्त प्रयास की एक हिस्सा है।
गम्भीर रोगों के खतरे में होती है वृद्वि
डब्ल्यूएचओ ने कहा है कि एनएसएस का उपयोग वजन को कम करने में बहुत सहायक नही है। इसके साथ ही यह डायबिटीज टाईप-टू एवं दिल की बीमारियों के खतरे में वृद्वि भी करते हैं, जबकि एनएसएस का प्रयोग करने से व्यस्कों में असमय मौत का खतरा भी अधिक होता है। डब्ल्यूएचओ में न्यूट्रिशन एंड फूड़ सेफ्टी डायरेक्टर फ्रांसेस्को ंब्रांका ने कहा कि ‘दिनचर्या में एनएसएस को शामिल करने से लम्बी अवधि में वजन कम करने कोई विशेष मदद नही मिलती है।
एनएसएस से किसी भी प्रकार का कोई पोषण प्राप्त नही होता है। अतः अच्छे स्वास्थ्य के लिए यह आवश्यक है कि लोग आरम्भ से ही कम मीठा प्रयोग करने की आदत डालें।’ डब्ल्यूएचओ के द्वारा यह चेतावनी मधुमेह के रोगियों के साथ-साथ अच्छे स्वास्थ्य वाले व्यक्तियों के लिए भी जारी की है।
ग्लूकोज के उपलब्ध नही होने के कारण लोग एनएसएस का प्रयोग बेहिचक करते हैं-
एनएसएस में न तो सामान्य चीनी की तरह से ग्लूकोज होता है और न ही इनमें कार्बोहाइड्रेट होता है। इसी कारण से इनका सेवन करने से ग्लूकोज का स्तर नही बढ़ता है और शरीर को कोई कैलोरी भी नही प्राप्त होती है, अतः ये आमतौर पर वजन के बढ़ने का कारण भी नही बनते हैं। एससल्फेम के, एस्पार्टेम, एडवांटेम, साइक्लेमेट्स, नियोटेम, सैचरिन एवं स्टेविया आदि का प्रयोग सामान्यतः एनएसएस के तौर पर ही किया जाता है।
ताजे खीरे के लड्डू
खीरे के लड्डू बनाने के लिए सबसे पहले खीरे को कद्दूकस कर लें और किसी पैन में घी को गर्म कर उसमें खीरे को अच्छी तरह से उसमें मिलाएं। मध्यम आंच पर 5 मिनट तक इसको ढ़ककर बीच-बीच में चलाते रहें और इसे पकाएं। इसके बाद इसमें चीनी एवं फूड कलर डालकर उसे मिला लें।
चीनी मिला लेने के बाद खीरा पानी छोड़ेगा, इसलिए इसे 20-25 मिनट तक चलाते हुए खीरे से निकले पानी के सूखने तक इसे पकाएं। खीरे के पानी को फुंक जाने के बाद गैस को बन्द कर दें।
इसके बाद इसमें गुलाब जल एवं ईलायची मिलाकर इसे ढंककर रख दें। इसके बाद जब यह पूरी तरह से ठण्डा हो जाए तो हाथ में थोड़ा सा घी लगाकर छोटे आकार के लड्डू बना लें और सेट होने के लिए कुछ देर के लिए फ्रिज में रख दें। इसके बाद फ्रिज से निकालकर ठण्ड़े-ठण्ड़े लड्डुओ का सेवन करे और कराएं।
मुम्बईया पाव भाजी
गाजर और आलू को छीलकर छोटे-छोटे टुकडों में काट लें। हरा धनिया, प्याज, अदरक और हरी मिर्च को बारीक काट लें और टमाटर एवं बीन्स को भी इसी में काट लें। एक फ्राई पैन में घी गर्म कर इसमें अदरक एवं प्याज को भून लें तथा समस्त सब्जियों एवं मसालों को इसमें डालकर 05 मिनट तक इसे भूनें।
नमक एवं पानी डालकर इसे पकाएं। सभी सब्जियों के अच्छी तरह से गल जाने के बाद उन्हे अच्छी तरह से मैश करें और धनिया एवं मिर्च आदि इसके ऊपर डालकर इसे एक ओर रख दें।
अब तवे पर घी लगाकर पाव को दानों ओर से अच्छी तरह से सेंक लें। अब पाव भाजी सर्व करने के लिए तैयार हैं। सर्व करते समय इन्हें मक्खन एवं लच्छेदार प्याज के साथ परोसें।
अब दूध ज्यादा पी रहे हैं हम और दुग्ध उत्पादन के मामले में भी हैं शीर्ष पर
एक समय ऐसा था कि जब भारत की गिनती दूध की कमी वाले देशों में हुआ करती थी, जबकि आज भारत दुनिया में सबसे बडा दुग्ध उत्पादक देश है। वैश्विक दुग्ध उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी 23 प्रतिशत की है।
दुग्ध उत्पादन में बढ़ोत्तरी होने के साथ ही भारत में अब दूध की प्रतिदिन और प्रतिव्यक्ति खपत में बढ़ोत्तरी दर्ज की जा रही है। वर्ष 1970 में जहाँ 107 ग्राम दूध प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन की दर से दूध की खपत थी, वहीं वर्ष 2022 में यह बढ़कर 444 ग्राम प्रतिदिन, प्रतिव्यक्ति तक पहुँच चुकी थी।
1950-60 के दशक में थी भारत में दूध की कमी
पशुपालन एवं डेयरी विभाग के आंकड़ों पर गौर की जाए तो 1950-60 के दशक में दूध के लिए भार दूध के आयात पर निर्भर था। इस समय के दौरान दुग्ध उत्पादन कई वर्षों तक लगातार कम होता रहा।
1960 के दशक में यह 1.64 प्रतिशत कम होकर दुग्ध उत्पादन की दर मात्र 1.15 प्रतिशत पर आ चुकी थी। वहीं वर्ष 1950-51 में देश में प्रतिव्यक्ति दुग्ध की खपत 124 ग्राम प्रतिदिन से कम होकर वर्ष 1970 में 107 ग्राम प्रतिव्यक्ति, प्रतिदिन रह गई थी। उस समय देश में 21 मिलियन टन से भी कम दूध का उत्पादन हो रहा था।
ऑपेरेशन फ्लड से मिला डेयरी उद्योग को बढ़ावा
वर्ष 1965 में देशभर में डेयरी सहकार समितियों के आनंद पैटर्न (स्थानीय डेरी प्रोडक्ट्स को बढ़ावा देने की मुहीम) के निमार्ण करने के समर्थन करने के लिए राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड की स्थापना की गई। ऑपरेशन फ्लड के माध्यम से इसे विभिन्न चरणों में लागू कर डेयरी उद्योग को पर्याप्त प्रोत्साहन दिया गयां वर्ष 1970 में एनडीडीबी के द्वारा सम्पूर्ण भारत में ऑपरेशन फ्लड के अन्तर्गत आनंद पैटर्न सहकारी समितियों को प्रोत्साहित किया गया।
दुनिया में दूध की आपूर्ति
उच्च
150 किलोग्राम प्रतिव्यक्ति, प्रतिवर्ष
अर्जेटीना, अर्मेनिया, ऑस्ट्रेलिया, कोस्टा रिका, यूरोप, इजराइल, किर्गिस्तान, मंगोलिया एवं उत्तरी अमेरिका में उच्च हैं।
मध्यम
30 से 150 किलोग्राम प्रतिव्यक्ति प्रतिवर्ष
भारत, जापान, केन्या, मैक्सिको, न्यूजीलैण्ड, पाकिस्तान, उत्तरी एवं दक्षिणी अफ्रीका, अधिकांश निकट पूर्व एवं अधिकांश लैटिन अमेरिका तथा कैरोबियन में मध्यम है।
कम
30 किलोग्राम प्रतिव्यक्ति, प्रतिवर्ष
ईरान, सेनेगल, वियतनाम, अधिकांश मध्य अफ्रीका तथा अधिकांश पूर्व एवं दक्षिण पूर्व एशियाा में कम है।
भारत में दुग्ध उत्पादन
1951 - 17 मिलियन टन
1961 - 20 मिलियन टन
1971 - 22 मिलियन टन
1981 - 31.6 मिलियन टन
1991 - 53.9 मिलियन टन
2001 - 80.6 मिलियन टन
2011 - 121.8 मिलियन टन
2021 - 210 मिलियन टन
2022 - 221.1 मिलियन टन