खतरनाक है आँखों के प्रति लापरवाही Publish Date : 16/10/2024
खतरनाक है आँखों के प्रति लापरवाही
डॉ0 दिव्यांशु सेंगर एवं मुकेश शर्मा
काला मोतिया अर्थात ग्लूकोमा के सम्बन्ध में लोगों की धारणा है कि यह वृद्वावस्था में होने वाली एक आम बीमारी है, हालांकि, वास्तविकता इस सोच से कहीं अलग है। देखा जाए तो यह बात सही है कि एक किसी व्यक्ति को जब ग्लूकोमा हो जाता है तो इसे केवल नियंत्रित ही किया जा सकता है यह पूर्णतः ठीक नही किया जा सकता है। लेकिन यदि आरम्भ से ही सजगता बरती जाए तो इसे आगे बढ़ने से रोका जाना सम्भव होता है।
ग्लूकोमा के होने पर पर प्रभावित व्यक्ति की आँख के अंदर का दबाव यानी आईओपी- इंट्रा ऑक्यूलर प्रेशर सामान्य से अधिक हो जाता है और आँख के अंदर का बढ़ा हुआ यही दबाव आँख के अंदर वाले सेंसेटिव पार्ट अर्थात ऑप्टिक नर्व को हानि पहुँचाता है और यदि इसका सही समय पर उचित उपचार नही किया जाए तो इससे आँखों की रोशनी कम हो जाती है, जो अंत में पूरी तरह से ही चली जाती है। इस रोग में अधिकतर दोनों ही आँखे प्रभावित होती हैं।
किस प्रकार से होता है ग्लूकोमा
हमारी आँखों में एक तरल द्रव होता है, जिसका कार्य आँखों के अंदर के दबाव को संतुलित बनाना होता है। यह द्रव आँखों के अंदर के सेंसेटिव भाग के लिए अत्यंत आवश्यक होता है जो निरंतर बनता और बहता रहता है। आँख के दबाव को सही तरीके से मेंटेन करने के लिए यह आवश्यक है कि यह द्रव जिस रफ्तार से बनता है उसी रफ्तार से निष्काषित भी होता रहना चाहिए।
जब किसी कारणवश इस द्रव के बनने की रफ्तार बढ़ जाती है अथवा उके निष्काष्न में कोई बाधा उत्पन्न होने लगती है तो हमारी आँख के अंदर का दबाव बढ़ने लगता है और दबाव के बढ़ने के कारण आँख के अंदर के नर्व फाइबर्स धीरे-धीरे नष्ट होने लगते हैं। ऐसे नर्व फाइबर्स के माध्यम से प्रकाश आँखों के द्वारा हमारे मस्तिष्क में पहुंचता है।
नर्व फाइबर्स के नष्ट हो जाने से हमारी दृष्टि धीरे-धीरे कम होती चली जाती है और उचित उपचार नही मिलने पर दृटिहीनता की स्थिति उत्पन्न होने लगती है।
कितने प्रकार का होता है ग्लूकोमा
असल में ग्लूकोमा निम्न दो प्रकार का होता है-
1. ओपन एंगल ग्लूकोमा- सम्पूर्ण विश्व में इस प्रकार के ग्लूकोमा के मरीज सबसे अधिक देखने को मिलते हैं। इस प्रकार के ग्लूकोमा में मरीज को आँख में कोई दिक्कत महसूस नही होती है, बल्कि इससे धीरे-धीरे करके आँखों की रोशनी जाने लगती है। वस्तुतः इस रोग के आरम्भ में नेत्र की पेरिफेरल दृष्टि प्रभावित होती है कहने का अर्थ यह है कि इससे प्रभावित व्यक्ति को दूर का तो सब कुछ दिखाई देता है, परन्तु आसपास का उसे कुछ भी नजर नही आता है।
इसके मरीज को परेशानी उस समय होती है जब उसकी दूर की दृष्टि भी कम होने लगती है। अतः ओपन एंगल ग्लूकोमा की जांज के लिए मरीज को अपनी आँखों का नियमित रूप से परीक्षण कराना बहुत आवश्यक है। नियमित परीक्षण करवाने से ओपन एंगल ग्लूकोमा का पता इसकी शुरूआती अवस्था में होने पर इसे दवाईयों के माध्यम से ही नियंत्रित किया जा सकता है। ऐसा होने से आगे सर्जरी की आवश्यकता नही पड़ती है।
2. नैरो एंगल ग्लूकोमाः- ग्लूकोमा के इस प्रकारी के मरीज भारत में एक बड़ी संख्या में मौजूद हैं। इस रोग के लक्षणों में इसके मरीज की आँख में अचानक ही बहुत तीव्र पेन होता है, मरीज की आँखे लाल पड़ जाती हैं, रोशीन की ओर देखने पर मरीज को रोशनी के चारों ओर कलर्ड राउंड दिखाई देते हैं और उसकी आँख की दृष्टि में कमी आने लगती है।
ग्लूकोमा के इसी प्रकार में मरीज की आँखों बीच-बीच में दर्द हेाता है और धीरे-धीरे उसकी नजर कमजोर होने लगती हैं। इसके एक अन्य प्रकार में मरीज की आँखों में ओपन एंगल ग्लूकोमा की भाँति किसी प्रकार का कोई पेन नही होता है, लेकिन फिर भी मरीज की आँखों की रोशनी धीरे-धीरे कम होने लगती है। इस स्थिति को दवाओं से कंट्रोल कर पाना कठिन होता है। इसके उपचार हेतु लेजर अथवा सर्जरी की आवश्यकता पड़ती है।
ग्लूकोमा से बचने हेतु सावधानियां
यदि किसी मरीज की आँखें एक बार ग्लूकोमा की शिकार हो जाती हैं तो फिर उसकी कम हुई दृष्टि को वापस नही लाया जा सकता, अतः इसके नियंत्रण के लिए आँखों का नियमित रूप से परीक्षण करावाना बहुत आवश्यक होता है।
विशेष रूप से 40 वर्ष की आयु से अधिक आयु के सभी व्यक्तियों को सालभर में एकबार अपनी आँखों का एक बार परीक्षण अवश्य कराना चाहिए। इसके अतिरिक्त ग्लूकोमा के किसी भी लक्षण के नजर आने पर अविलम्ब किसी अच्छे नेत्र चिकित्सक से परामार्श करना चाहिए।
यदि आपके नेत्र चिकित्सक आपको बताते हैं कि आपका यह रोग दवाओं के माध्यम से ही कंट्रल किया जा सकता है तो इसके बाद भी लगातार आईओपी के स्तर की जांच कराकर इसकी मॉनिटरिंग करना अति आवश्यक होता है। अज्ञानता के चलते भी ग्लूकोमा की स्थिति खराब हो सकती है और स्थिति कंट्रोल में नही रहने के चलते फिर सर्जरी ही इसका एकमात्र समाधान हो सकता है।
किन लोगों में होता है अधिक रिस्क
आमतौर पर ग्लूकोमा किसी भी आयु वर्ग के व्यक्ति को होना सम्भव है, परन्तु फिर भी कुछ इस प्रकार के लोगों को अधिक रिस्क होता है-
- जिन लोगों की आयु 55 वर्ष से अधिक हो।
- जिन व्यक्तियों में ग्लूकोमा का पारीवारिक इतिहास रहा हो।
- व्यक्ति की आँख में किसी प्रकार की कोई चोट लगी हो।
- व्यक्ति की आँखों में बार-बार सूजन और लाली आने का इतिहास हो।
- स्टेरॉयड ड्रॉप्स का लम्बे समय तक किया गया उपयोग।
लेखकः डॉ0 दिव्यांशु सेंगर, प्यारे लाल शर्मा जिला अस्पताल मेरठ के मेडिकल ऑफिसर हैं।