आइए मनाएं प्रदूषण मुक्त और सुरक्षित दीपावली      Publish Date : 15/10/2024

             आइए मनाएं प्रदूषण मुक्त और सुरक्षित दीपावली

                                                                                                                                               डॉ0 दिव्यांशु सेंगर एवं मुकेश शर्मा

अपनी सेहत का रखें विशेष ध्यान

                                                                

दीपावली खुशियों और रोशनी का त्योहार है, जो हमारे देश में उत्साह के साथ बड़े पैमाने पर मनाया जाने वाला पर्व है। बावजूद इसके दीपावली के दौरान छोड़े जाने वाले पटाखे पर्यावरण के साथ लोगों के स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं। दीपावली के दौरान पटाखों और आतिशबाजी के कारण वायु प्रदूषण सुरक्षित मानक से 5 से 8 गुना अधिक हो जाता है, जबकि ध्वनि प्रदूषण का स्तर तीन गुना तक हो जाता है।

इसके निहीत कारणों को समझें

                                                                

हम जानते हैं कि वायु प्रदूषण मुख्य रूप से उद्योगों, मोटर वाहनों से निकलने वाले धुएं और थर्मा-इलेक्ट्रिक पॉवर प्लांट के कारण होता है। इसके साथ बॉयोमास जैसे कंडे के आदि के जलने से वातावरण में छोड़े गए पार्टिकुलेटमैटर (पीएम) भी वायु प्रदूषण के कारण बनते हैं। गौरतलब है कि पार्टिकुलेटमैटर के साथ खतरनाक गैसों (जैसे नाइट्रोजन डाई-ऑक्साइड, सल्फर डाई आक्साइड और ओजोन) आदि का मिश्रण भी शामिल होता है।

वायु प्रदूषण के कारण 2.5 माइक्रॉन से कम अल्ट्रा-फाइन कणों का स्तर बढ़ रहा है, जो फेफड़ों के अंदर तक भी जा सकता है। यह स्थिति गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं पैदा कर सकती है।

इंडोर वायु प्रदूषण ग्रामीण इलाकों में बहुत अधिकता से होता है, क्योंकि अभी भी काफी लोग खाना पकाने और गर्मी पाने के लिए पारंपरिक जैव-पदाथों जैसे गोबर से निर्मित कंडों आदि पर ही निर्भर रहते हैं और रोशनी के लिए कैरोसीन या अन्य तरल के ईंधन पर निर्भर होते हैं।

विषैली गैसों का प्रभाव

                                                      

दीपावली पर हर वर्ष अरबों रुपए के पटाखे चलाए जाते हैं। इससे वातावरण प्रदूषित होता है। पटाखों के चलने से जहरीली गैसें सल्फर डाई=ऑक्साइड, नाइट्रोजन मोनो-ऑक्साइड, कार्बन मोनो-ऑक्साइड और कार्बन डाई-ऑक्साइड आदि निकलती है। इनका वातावरण में 6 से 8 घंटे तक प्रभाव रहता है। प्रदूषित वातावरण में रहने से फेफड़ों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इससे फेफड़ों में विकार आ जाता है और हमारे फेफड़े कमजोर हो जाते हैं। वायु प्रदूषण दमा और पहले से मौजूद सांस की बीमारी के बिगड़ने, फेफड़े के कैंसर और सीओपीडी (क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज) का कारण भी बन सकता है।

दीपावली के दौरान बड़े पैमाने पर आतिशबाजी चलाए जाने के कारण दमा, एलर्जी, ब्रॉन्काइटिस और निमोनिया जैसी स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा काफी हद तक बढ़ जाता है। दीपावली के समय अल्ट्रा-फाइनपार्टिकुलेटमैटर (पीएम 2.5) की मात्रा 1000 माइक्रोग्राम/एम३ तक पहुंच जाती है, जो इसकी सुरक्षित मात्रा (60 माइक्रोग्राम/एमङ) से कई गुना अधिक है। सुबह और शाम को यह मात्रा और अधिक रहती है, जो सुबह टहलने वाले, जॉगिंग करने वाले, स्कूल जाने वाले बच्चों और बुजुर्ग लोगों को अधिक नुकसान पहुंचाती है।

आमतौर पर हम बच्चों को सांप वाला पटाखा (एक काले रंग की गोली जिसे जलाने से सांप की आकृति बनती है), फुलझड़ी, चकरी और अनार आदि को जलाने से नहीं रोकते हैं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि यह तेज आवाज नहीं करते हैं, लेकिन यह सब भी अन्य पटाखों की तरह ही वायु प्रदूषण तो करते ही हैं इसलिए यह भी हानिकारक ही होते हैं।

ध्वनि प्रदूषण भी होता है हानिकारक

                                                                      

दीपावली के अवसर पर छोड़े जाने वाले पटाखों की आवाज काफी ध्वनि प्रदूषण फैलाती है। दीपावली में इस्तेमाल किए जाने वाले बड़े बम से 100 डेसिबल (ध्वनि के मापन की इकाई) की आवाज गूंजती है। गौरतलब है कि 50 डेसिबल से तेज आवाज के स्तर को मनुष्य के लिए हानिकारक माना जाता है। इस प्रकार पटाखों की तेज आवाज से व्यक्ति बहरा भी हो सकता है और हृदय के मरीजों में दिल का दौरा पड़ने की संभावनाएं भी काफी हद तक बढ़ जाती है।

पटाखे जलाने के दौरान बहुत से लोगों के जल जाने की सूचनाएं अक्सर आती रहती है। एक अनुमान के अनुसार हर वर्ष पटाखों के लिए 350 टन कागज का इस्तेमाल किया जाता है, जो लगभग 20 हजार वृक्षों की कटाई से प्राप्त होता है। ऐसे में प्रदूषण रहित दीपावली मनाना ही समय की सबसे बड़ी मांग है।

गत वर्ष दिल्ली में वायु प्रदूषण की मात्रा बहुत बढ़ गई थी। पीएम 2.5 का स्तर 700 माइक्रोग्राम/एम3 (डब्ल्यूएचओ के मानक से 29 गुना अधिक) हो गया था। दिल्ली के आस-पास के क्षेत्रों में ओपन फोल्ड बर्निंग की वजह से पार्टीकुलेट प्रदूषण और बढ़ गया था। इसी वजह से सुप्रीम कोर्ट ने हाल में ही दिल्ली-एनसीआर में दीवाली पर पटाखों की बिक्री पर रोक लगाई है।

सार्थक सुझाव

                                                              

  • अगर आपको दमा या सांस से संबंधित समस्या है तो घर के अंदर ही रहें। धुएं से बचने का प्रयास करें। आपको यदि बाहर जाना ही है, तो अपनी दवाएं साथ रखें और मास्क लगाएं। पटाखों का इस्तेमाल न करें। ध्यान रखें, पटाखा, फुलझड़ी, चकरी और अनार आदि भी सेहत के लिए नुकसानदेह है।
  • घर में साफ-सफाई के दौरान बेकार सामान इधर-उधर न फेंकें।
  • यदि आपको फेफड़ों की बीमारी है, तो फ्लू और निमोनिया से बचाव का टीका लगवाएं।
  • धूम्रपान न करें और पैसिव स्मोकिंग से भी बचें।
  • बॉयोमास और जीवाश्म ईंधन को खुले में न जलाएं।
  • खाना बनाने के लिए एलपीजी का प्रयोग करें।

लेखक: डॉ0 दिव्यांशु सेंगर, प्यारे लाल शर्मां, जिला चिकित्सालय मेरठ मे मेडिकल ऑफिसर हैं।