ब्लू लाइट वाकई खतरनाक है? Publish Date : 04/10/2024
ब्लू लाइट वाकई खतरनाक है?
डॉ0 दिव्यांशु सेंगर एवं मुकेश शर्मा
ब्लू लाइट के संपर्क में ज्यादा देर तक न रहने का सबसे अच्छा तरीका है कि कुछ समय के बाद एक छोटा सा ब्रेक लेते रहें और अपने स्क्रीन टाइम सीमित करें। प्रकाश से निकलने वाली हानिकारक किरणों (ब्लूलाइट) को चश्मे की मदद से सीधे आंखों तक पहुंचने से रोका जा सकता है। इससे आंखों पर दबाव कम पड़ता है। मोबाइल और लैपटॉप आदि की स्क्रीन में शॉर्ट वेवलैथ लाइट होती है, जिससे अत्यधिक ऊर्जा निकलती है। इस रोशनी के संपर्क में आ जाने से हमारी आंखें खराब होती हैं।
अप्रत्यक्ष रूप से सूर्य का प्रकाश सामान्य स्क्रीन से 25 गुना अधिक ब्लू-लाइट उत्पन्न करती है और प्रत्यक्ष सूर्य का प्रकाश 250 गुना तक अधिक ब्लू-लाइट उत्पन्न करता है। ब्लू-लाइट शरीर में बनने वाले प्राकृतिक मेलाटोनिन उत्पादन को दबा सकती है। रात को सोने से पहले अगर आप काफी समय स्क्रीन के सामने गुजारते हैं तो इससे आपको सोने में मुश्किलें आ सकती है।
ब्लू-लाइट को रोकने वाले चश्मे प्रकाश तरंगों को परावर्तित करने का काम करते है, ताकि वे हमारी आखों तक न पहुंच पाएं। इनके लेंस पर कोटिंग या फिल्टर लगा होता है, जो प्रकाश के नीले स्पेक्ट्रम को प्रतिबिंबित करता है, ताकि उसे रोका जा सके। अधिक ऊर्जा युक्त ब्लू-लाइट जब आंखों के रेटिना से टकराती है तो यह मस्तिष्क में कोशिकाओं को उत्तेजित करती है।
ब्लू-लाइट से आंखो को बचाने के लिए अपने स्क्रीन टाइम को सीमित करें। लगभग हर 20 मिनट में आंखों को आराम देने के लिए 20 कम से कम सेकंड तक 20 फीट दूर स्थित किसी चीज को देखें। इससे बचने के लिए आप ब्लू-फिल्टर वाले चश्मे को भी प्रयोग में ले सकते हैं।
लेखक: डॉ0 दिव्यांशु सेंगर, प्यारे लाल शर्मां, जिला चिकित्सालय मेरठ मे मेडिकल ऑफिसर हैं।