मधुमेह रोगियों के लिए नॉन न्यूट्रिटिय स्वीटनर्स बेहतर      Publish Date : 16/08/2024

               मधुमेह रोगियों के लिए नॉन न्यूट्रिटिय स्वीटनर्स बेहतर

                                                                                                                                           डॉ0 दिव्यांशु सेंगर एवं मुकेश शर्मा

                                                                

एक शोध में यह बात सामने आई है कि कॉफी और चाय जैसे दैनिक पेय पदार्थों में शुगर (सुक्रोज) के बदले बड़ी मात्रा में नॉन-न्यूट्रिटिय स्वीटनर्स का उपयोग करने से एचबीएसी के स्तर (शुगर लेवल) जैसे ग्लाइसेमिक मार्करों पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है। चेन्नई स्थित मद्रास डायबिटीज रिसर्च फाउंडेशन (एमडीआरएफ) द्वारा किए गए अध्ययन से पता चला है कि जिन लोगों ने पेलेट, तरल या पाउडर के रूप में सुलोज का उपयोग किया, उनके शरीर के वजन (बीडब्ल्यू), कमर की परिधि (डब्ल्यूसी) और बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) में भी थोड़ा सुधार हुआ।

एमडीआरएफ के अध्यक्ष और अध्ययन का नेतृत्व करने वाले वरिष्ठ मधुमेह विशेषज्ञ डॉ. वी. मोहन ने कहा, इससे कैलोरी को कम करने के साथ डाइट को बेहतर बनाने में मदद मिलती है। चाय और कॉफी जैसे दैनिक पेय पदार्थों में नॉन-न्यूट्रिटिय स्वीटनर्स के उपयोग से परदा होता है। यह बेरेपी पत्रिका में प्रकाशित शोध का उद्देश्य एशिया और भारतीयों में कॉफी/चाय में टेबल शुगर (सुक्रोज) के स्थान पर नॉन-न्यूट्रिटिय स्वीटनर्स सुक्रोज के उपयोग के प्रभाव का पता लगाना था। रैंडमाइन्ड कंट्रोल्ड ट्रायल (आरसीटी) ने 12 सप्ताह तक मधुमेह से पीड़ित 179 भारतीयों की जांच की, जिन्हें दो समूहों में विभाजित किया गया, जिनमें इंटरवेंशन और कंट्रोल शामिल थे।

                                                                  

(इंटरवेंशन) समूह में, कॉफी या चाय में अतिरिक्त कालोज- आधारित स्वीटनर से बदला गया। जबकि नियंत्रण समूह (कंट्रोल) में, प्रतिभागियों ने पहले की तरह टेवल शुगर (सुक्रोज) का उपयोग जारी रखा 12 सप्ताह के शोष के अंत में समूहों के बीच एचबीएसी के स्तर में कोई महत्वपूर्ण परिवर्तन नहीं पाया गया।

                                                                      

हालांकि बीएमआई यानी बाँडी मास इंडेक्स, कमर को परिधि और औसत शारीरिक वजन में अनुकूल परिवर्तन देखे गए। हस्तक्षेप समूह में औसत वजन में कमी 0.3 किलोग्राम थी, समानांतर रूप से बीएमआई में 0.1 किलोग्राम मील की कमी आई और कमर की परिधि में -0.9 सेमी की कमी आई। पिछले वर्ष विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने शारीरिक वजन को नियंत्रित करने के लिए टेवल शुगर (सुक्रोज) का उपयोग करने के विरुद्ध चेतावनी दी थी। डॉ. मोहन ने कहा इस प्रकार यह शोध भारत के लिए बहुत प्रासंगिक है क्योंकि भारतीयों की आहार संबंधी आदते दुनिया के बाकी हिस्सों की तुलना में काफी भिन्न हैं। कॉफी और चाय में अतिरिक्त चीनी का उपयोग इन पेय पदार्थों को भारतीयों के बीच चीनी सेवन का संभावित दैनिक सेहत बनाता है।

इसके अलावा भारत में कुल खपत भी बहुत अधिक है, जिससे मधुमेह का खतरा बढ़ जाता है। डॉ. मोहन ने कहा कि कालोज की सुरक्षा और प्रभाव पर और अधिक शोष किए जा रहे हैं।

लेखक: डॉ0 दिव्यांशु सेंगर, प्यारे लाल शर्मां, जिला चिकित्सालय मेरठ मे मेडिकल ऑफिसर हैं।