दिमाग में गड़बड़ी से पैरों में तकलीफ Publish Date : 12/08/2024
दिमाग में गड़बड़ी से पैरों में तकलीफ
डॉ0 दिव्यांशु सेंगर एवं मुकेश शर्मां
जो लोग पैरों की तकलीफ से परेशान रहते हैं, उन्हें अपने दिमाग की जांच करानी चाहिए। न्यूरो साइंसेज रिसर्व आस्ट्रेलिया के एक शोध अध्ययन के मुताबिक दिमागी गड़बड़ी से पैरों में तकलीफ हो सकती है। शोध के अनुसार शारीरिक गतिविधियों का नियंत्रण दिमाग से होता है। जब दिमाग का यह भाग काम करना बंद कर देता है तब पैरों में पीड़ा, उत्तेजना एवं तकलीफ होती है। शोध के अनुसार बीस व्यक्तियों में से एक व्यक्ति इस तरह की तकलीफ से परेशान रहता है। ऐसे लोग रात को ठीक प्रकार से सो नहीं पाते हैं। यह परेशानी वंशानुगत रूप से आगे चलती रहती है।
शाकाहार भोजन से भी मिलता है प्रोटीन
प्रोटीन शरीर के लिए एक प्रमुख खाद्य पदार्थ है। मांसपेशियों के ठोस भाग में पांचवां हिस्सा प्रोटीन का ही भरा हुआ है। मस्तिष्क से लेकर गुर्दे, हृदय आदि तक सभी महत्त्वपूर्ण अवयव प्रोटीन से ही भरे हैं। उसका संतुलन सही रहने से शरीर ठीक तरह सक्षम बना रहता है और कमी पड़ने पर शरीर की वृद्धि रूक जाती देह सूखने लगती है, रोग प्रतिरोधक क्षमता घट जाती है, अधिक परिश्रम नहीं हो पाता तथा मृत्यु और बुढ़ापे का संदेह जल्दी ही सामने उपस्थित होता है।
प्रोटीन की दृष्टि से इन दिनों अण्डे खाने का रिवाज बढ़ रहा है। समझा जाता है कि उसमें इस तत्व की अधिकता होने से वह अधिक लाभदायक रहेगा लेकिन लोग यह भूल जाते हैं कि यह जितना लाभदायक दिखता है, असल में वैसा है नहीं पाचन को दृष्टि से वह काफी कठिन पड़ता है। भारत जैसे गर्म देशों में तो यह पेट में जाते ही सड़ने लगता है और पित्त पैदा करता है। तेल में उबाले और भुने हुए अंडों के समान दुष्पाच्य शायद हो और कोई पकवान होता हो। उसमें जितना पीलापन होता है, उसी को कुछ उपयुक्तता समझी जा सकती है। सफेदी वाला अंश तो हानि के अतिरिक्त और कुछ करता ही नहीं।
मांस में पाया जाने वाला प्रोटीन उन खनिजों और लवणों से रहित होता है, जिसकी शरीर को नितान्त आवश्यकता रहती है। आमतौर से मांसाहारी लोग मांस ही पकाकर खाते हैं। उनमें खनिजों और लवणों की उपयुक्त मात्र न होने से उस खाद्य को अपूर्ण एवं घटिया प्रोटीन वर्ग में ही सम्मिलित किया जा सकता है। मांसाहारी खाय विशेषणकर्ताओं ने उस प्रकार की आदत वालों को केवल गुर्दे, मूत्र, यंत्र, द मस्तिष्क और क्लोम यंत्र खाने को कहा है और मांसपेशियां न खाने की सलाह दी है जबकि प्रचलन के अनुसार वे अवश्य अस्वादिष्ट होने के कारण आमतौर से फेंक ही दिये जाते हैं।
जिन अवयवों को पुष्टिकर बताया जाता है, उनमें एक और विपत्ति जुड़ी रहती है दूरिक एसिड की अधिकता। यह तत्व शरीर के भीतर जमा होकर गठिया, मूत्र रोग, रक्त विकार जैसे अनेक रोग उत्पन्न करता है। मांस अम्लधर्मी पदार्थ है। यह आंतों में जाकर सड़न पैदा करता है। प्राणिज प्रोटीन की प्रशंसा उसमें पाये जाने वाले विटामिन 'ए' के आधार पर की जाती है। यह तत्व दूध में प्रचुरतापूर्वक पाया जाता है।
मांस की तुलना में छेना, पनीर, दही आदि कहीं अच्छे हैं मांस से तो सोयाबीन ही कहीं अधिक बेहतर है। उसमें कैल्शियम, फास्फोरस, लोहा, विटामिन ए, बी. डी. ई. बसा आदि तत्व इतने रहते हैं। जितने मांस में भी नहीं होते। मांसाहार का स्थान सोयाबीन पूरी तरह ले सकता है। एक दिन भिगोकर फुलावा हुआ अथवा अंकुरित किया हुआ सोयाबीन तो और भी अधिक गुणकारी बन जाता है वरन कई दृष्टि से वह अधिक उपयुक्त भी है। दूधजन्य पदार्थों का प्रोटीन 95 प्रतिशत तक पच जाता है जबकि मांस का प्रोटीन आधा भी नहीं पच पाता है।
सामान्य दालें भी यदि फुलाकर या अंकुरित करके बिना छिलका उतारे भाप के सहारे, मंदी आग पर पकाकर खायी जाएं तो वे भी प्रोटीन की आवश्यकता पूरी करती हैं। दुष्याच्य तो उन्हें हमारी त्रुटिपूर्ण पकाने की प्रक्रिया बनाती है, जिसमें छिलके उतारना तथा तेज आग के सहारे पकाने और छीक बगार देने, मसाले तथा पी आदि भरकर स्वादिष्ट बनाने पर अधिक ध्यान दिया जाता है।
लेखक: डॉ0 दिव्यांशु सेंगर, प्यारे लाल शर्मां, जिला चिकित्सालय मेरठ मे मेडिकल ऑफिसर हैं।