लगातार बढ़ता खतरा हेपेटाइटिस का बरतें सावधानियाँ      Publish Date : 30/07/2024

               लगातार बढ़ता खतरा हेपेटाइटिस का बरतें सावधानियाँ

                                                                                                                                                            डॉ0 दिव्यांशु सेगर एवं मुकेश शर्मां

समय है हेपेटाइटिस के खिलाफ लड़ने का

                                                              

मुसाहिद हुसैन, मोदीपुरम विश्व स्वास्थ्य संगठन ‘डब्ल्यूएचओ’ ने चेतावनी दी है कि हेपेटाइटिस बी और सी का खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है और इससे रोजाना दुनिया भर में 35000 मौतें हो रही है। रविवार को पूरे विश्व में हेपेटाइटिस दिवस के रूप में मनाया गया। इसके लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि अब हेपेटाइटिस के विरूद्व लड़ने का समय आ गया है। इस साल इसकी थीम भी कार्रवाई का ‘‘वक्त आया’’ रखी गई है। रविवार को दक्षिण एशिया के देशों से वायरल हेपेटाइटिस बी और सी की रोकथाम, टीकाकरण और रोग की पहचान और इसका उपचार तक सभी लोगो तक पहुंचा देने की कोशिश को तुरंत बढ़ाने के लिए कहा गया है।

संगठन के अनुसार रोकथाम और इलाज के बाद भी यह पुराने संक्रमण तेजी से गंभीर बीमारियों सहित लिवर कैंसर और सिरोसिस से मौत की वजह बन रहे हैं। मौजूदा वक्त में लिवर, कैंसर दक्षिण पूर्व एशिया में कैंसर से होने वाली मौत की चौथी सबसे बड़ी वजह है। पुरुषों में कैंसर से होने वाली मौत की दूसरी सबसे आम वजह भी यही है। वहीं, लगभग 75 प्रतिशत लिवर सोराईंसिस का स्थाई तौर पर क्षतिग्रस्त होना हेपेटाइटिस बी और सी संक्रमण की वजह से होता है। इस क्षेत्र में 2022 वायरल हेपेटाइटिस बी और सी से पीड़ित 7.05 करोड़ लोग हैं।

हेपेटाइटिस सी जिसको काला पीलिया भी कहते है। यह एक संक्रामक रोग है। जो हेपेटाइटिस सी वायरस एचसीवी की वजह से होता है और यकृत को प्रभावित करता है।

किन करणों से होती है यह बीमारी

  • दूषित सिरिंज का उपयोग करना।
  • दूषित रेजर या टूथब्रश का इस्तेमाल करना।
  • दूषित रक्तदान, अंगदान या लंबे समय तक डायलिसिस द्वारा।
  • असुरक्षित यौन संबंध बनाना।
  • दूषित सूई से टैटू बनवाना या एक्यूपंक्चर करवाना।
  • सेविंग करते समय दूषित रेजर से कट जाने के कारण।

हेपेटाइटिस को कैसे पहचाने

                                                               

मरीज को हेपेटाइटिस की समस्या होने पर डायरिया, थकान, भूख न लगना, उल्टी होना, पेट में दर्द होना, दिल घबराना, मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द रहना, वजन अचानक से कम होना, सिर दर्द रहना, चक्कर आना, यूरिन का रंग गहरा होना, मल का रंग पीला हो जाना, त्वचा, आंखों के सफेद भाग और मरीज की जीभ का रंग पीला पड़ जाना आदि लक्षण पीलिया में दिखाई देते है।

कैसे बचे हेपेटाइटिस से ?

  • साफ-सफाई का रखे विशेष ध्यान।
  • अपने टूथब्रश और रेजर किसी के साथ साझा न करें।
  • शराब का सेवन न करें या अत्यंत कम मात्रा में करें।
  • विशेष रूप से टॉयलेट में जाने के बाद सफाई का ध्यान रखें।
  • कभी इंजेक्शन की जरूरत पड़े तो दूषित सिरिंज का उपयोग न करें।

30 करोड़ से ज्यादा लोग है पीड़ित इस बीमारी से

                                                                       

दुनिया भर में 25.5 करोड़ लोग हेपेटाइटिस बी और 5 करोड़ लोग हेपेटाइटिस सी से ग्रस्त हैं। हेपेटाइटिस बी से ग्रस्त केवल 2.5 प्रतिशत मरीजों में वर्षं 2022 में रोग की पहचान की गई थी और इनमें से केवल 3.5 पतिशत मरीजो को ही उपचारा मिल सका था। हेपेटाइटिस और तपेदिक साल 2022 के संचारी रोगों में कोविड-19 के बाद होने वाली मौत की अहम वजह रहे। वर्ष 2022 में लगभग 13 लाख लोगों ने वायरल हेपेटाइटिस से जान गवाई। यह तपेदिक से होने वाली मौतों के बराबर है।

जल्द जांच और इलाज से ही किया जा सकता है बचाव

                                                                             

यदि हेपेटाइटिस बी और सी से कोई मरीज ग्रसित है तो जल्द से जल्द इलाज शुरू करना चाहिए। हमारे देश में वायरल हेपिटाइटिस को रोकने निदान करने और इसका इलाज करने के लिए तकनीकी ज्ञान और उपकरण भी उपलब्ध है। हमें प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा स्तर पर समुदायों को सामान सेवाएं देने में कोशिशें में तेजी लाने की जरूरत है। जल्द जांच और इलाज से हेपेटाइटिस बी को सिरोसिस और कैंसर पैदा करने से रोका जा सकता है।

कोई भी ऐसा  कार्य या गतिविधि, जिससे खून से खून का संपर्क होने की संभावना है संक्रमण का संभावित स्रोत हो सकता है। अगर सावधानी बरतें तो हेपेटाइटिस से बचे रह सकते हैं।

सही समय पर इलाज और देखभाल से यह ठीक हो जाता है। इस बीमारी का पता शुरू में नहीं लग पाता है, इस कारण यह जानलेवा हो जाती है। लेकिन अब इसकी जांच की सुविधा सब जगह पर उपलब्ध हैं।

तीन माह तक इसकी दवाइयां खानी पड़ती है, फिर जांच होती है सही होने पर दवाइयां बंद कर दी जाती हैं, नहीं तो दवाइयां अगले तीन माह के लिए जारी रखी जाती है।

लेखक: डा. दिव्यांशु सेंगर, मेडिकल ऑफिसर प्यारेलाल हॉस्पिटल मेरठ।