दुनिया भर में घने बादलों संग लंबी दूरी तय कर रहे हैं जीवाणु      Publish Date : 08/05/2023

                                                      दुनिया भर में घने बादलों संग लंबी दूरी तय कर रहे हैं जीवाणु

आसमान में काले और घने बादल अक्सर अपने साथ बारिश लेकर आते हैं, लेकिन अभी नए अध्ययन में दावा किया गया है कि बादल अपने साथ ऐसे बैक्टीरिया (जीवाणु) को दूर तक लेकर जा रहे हैं। जिन पर दवाओं का कोई असर नहीं होता है।

शोधकर्ताओं के अनुसार यह बैक्टीरिया आमतौर पर पत्तियों या मिट्टी में वनस्पति की सतह पर रहते हैं, लेकिन अब बादल दवा प्रतिरोधी बैक्टीरिया को लंबी दूरी तक तय कर रहे हैं। यह अध्ययन कनाडा के लावल विश्वविद्यालय और मध्य फ्रांस में क्लियर मोंटेग्ने विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने किया है।

इस अध्ययन के नेतृत्वकर्ता फ्लोरेंट रॉसी ने कहा कि जांच में पाया गया कि जीवाणु हवा द्वारा वायुमंडल में जाते हैं और फिर बादल में रहकर पूरी दुनिया में कहीं भी जा सकते हैं। इस शोध का निष्कर्ष साइंस ऑफ द टोटल एनवायरमेंट जनरल में प्रकाशित किया गया है।

प्रति मिलीलीटर में 8000 बैक्टीरिया रहते हैं मौजूद

शोधकर्ताओं ने सितंबर, 2019 और अक्टूबर 2021 के बीच मध्य प्रांत स्थित सुषुप्त ज्वालामुखी पुए डे डोम समिट के पास समुद्र तल से करीब 4000 फीट (1465 मीटर) की ऊंचाई पर स्थित एक वायुमंडलीय अनुसंधान स्टेशन से नमूने लिए। जांच के बाद शोधकर्ताओं को ज्ञात हुआ कि क्लाउड वाटर के प्रत्येक 1 मिलीलीटर में 330 से लेकर 30 हजार तक ज्यादा जीवाणु थे। यानी औसतन हर मिलीलीटर में करीब 8000 बैक्टीरिया उपलब्ध हैं।

5 से 50 प्रतिशत तक जीवाणु ही होते हैं सक्रिय

जांच में वैज्ञानिकों ने जीवाणु में एंटीबायोटिक प्रतिरोधी पाए जाने के प्रकारों को भी पहचान की है। अध्ययन में एंटीबायोटिक प्रतिरोधी जीवाणुओं के वातावरण के प्रसार से स्वास्थ्य प्रभावों पर कोई निष्कर्ष नहीं दिया गया, लेकिन यह अनुमान जताया गया है कि केवल पांच से 50 प्रतिशत जीवाणु ही संभावित रूप से सक्रिय हो सकते हैं।

मानव पर जोखिम कम होने की संभावना

स्वास्थ्य खतरे को लेकर शोधकर्ता रॉसी ने बताया कि ऐसी बारिश से मानव स्वास्थ्य जोखिम कम होने की संभावना है। उन्होंने तर्क दिया, ऐसे जीवाणुओं के लिए वातावरण बहुत तनावपूर्ण है और उनमें से अधिकांश पर्यावरणीय जीवाणु थे, लिहाजा बारिश में भीगने से इनके जरिए बीमारी फैलने का खतरा नहीं है।

जीवाणु अर्थात बैक्टीरिया खुद को विकसित कर लेते हैं

जब बैक्टीरिया एंटीबायोटिक दवाओं के संपर्क में आते हैं तो वे पीढ़ी दर पीढ़ी यह उन दवाओं के प्रति अपनी प्रतिरोधक क्षमता को और अधिक विकसित कर लेते हैं। स्वास्थ्य अधिकारियों के अनुसार यह दुनिया भर में चिंता का विषय बना हुआ है।

3 वर्ष पूर्व समुद्र तल के नीचे मिला था जीवाणु

र्व्ष 2020 में हिंद महासागर में स्थित चट्टानों से वैज्ञानिकों ने नमूने लिए थे। जांच में इन चट्टानों पर कई बैक्टीरिया मिले थे। होल ओशनोग्राफिक इंसटीट्यूसन के वैज्ञानिक और चीन के टोंगजी विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने यह शोध किया था।

 

मानसिक स्वास्थ्य विकारों से जुड़े हैं रक्त के माइक्रो आर एन ए

शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में बताया कि मानसिक स्वास्थ्य विकार से जुड़े रक्त के माइक्रो आर एन ए बायो-मार्कर के रूप में कार्य कर सकते हैं। शोधकर्ताओं ने न्यूरॉन्स और अन्य तंत्रिका तंत्र कोशिकाओं सहित शरीर में अधिकांश कोशिकाओं द्वारा उत्पादित एक्स्ट्रा सेलुलर वेसकल्स (ईवीएस) में माइक्रो आर एन ए का विश्लेषण किया है और उन्हें मानसिक स्वास्थ्य विकारों से सम्बद्व पाया है।

शोधकर्ताओं ने कहा कि यह अध्ययन भविष्य में मानसिक स्वास्थ्य विकार के जल्द उपचार का मार्ग प्रशस्त करता है। ब्राजील की फेडरल यूनिवर्सिटी ऑफ साओ के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया अध्ययन ट्रांसलेशनल साइकिएट्री जनरल में प्रकाशित हुआ है।

शोध टीम ने अध्ययन के लिए 116 प्रतिभागियों के साइकाएट्रिक डिसऑर्डर्स इन चाइल्डहुड (ब्राजीलियन हाई रिस्क कोहर्ट स्टडी के सैंपल का विश्लेषण किया। 3 साल के अंतराल पर किशोरावस्था और प्रारंभिक अवस्था में रक्त के नमूनों के दो सेट एकत्र किए गए।

शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला कि माइक्रो आर एन ए ने छोटे ट्रांसक्रिएट हैं जो संदेशवाहक आर एन ए को लक्षित करते हैं और एक साथ कई जीनों की अभिव्यक्ति को नियंत्रित करते हैं।

लैपटॉप का अधिक प्रयोग से सिर दर्द होने पर कैसे बचे

लैपटॉप और मोबाइल के जैसे गैजेट्स का अधिक उपयोग करने वाले लोगों में साइबर सिकनेस की समस्या पैदा होने लगती है। साइबर सिकनेस के अन्तर्गत, सेंट्रल नर्वस सिस्टम की कार्यप्रणाली को समझने में दिक्कत आती है। लंबे समय तक स्क्रीन के साथ चिपके रहने से आंखों में चुभन, चक्कर आना, उल्टी और सिरदर्द के जैसी शिकायत होने लगती है।

एक शोध के अनुसार ऐसे लोगों लोगों को संगीत सुनने से लाभ मिलता है और इसके कारण चक्कर आना, उल्टी और सिरदर्द जैसी समस्याओं में कमी देखी गई है। यह शोध यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग में किया गया। इसमें 22 से 36 वर्ष तक आयु वर्ग के व्यक्तियों को शामिल किया गया था। साइबर सिग्नस का मस्तक पर प्रभाव, पढ़ने की गति एवं प्रतिक्रिया देने के समय के संबंध की जानकारी पर कई चरणों में शोध किए गए।

ऐसे व्यक्तियों लिए वर्चुअल माहौल पैदा किया गया, जहाँ उन्हें रोलर कोस्टर राइड के 3 चरणों को पूरा करना था। साइबर सीखने जैसे हालात पैदा किए गए। प्रत्येक राइड के बाद लक्षणों को लेकर इसकी जांच की गई तथा उसके उपरांत देखा गया कि संगीत कुछ सुनने से इसमें सहायता मिलती है और सिरदर्द जैसी समस्याओं को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

विश्वास ही बेहतर जीवन का प्रतीक

मानवीय जीवन में बहुत से रिश्ते हैं जो जिंदगी के अलग अलग पड़ाव पर देखने को मिलते हैं इन्हीं में से रिश्ता शादी का होता है जो एक ऐसा रिश्ता जो किसी के साथ जन्म-जन्मांतर के लिए बनता है। पति पत्नी का रिश्ता बाकी सभी रिश्तो से अलग और खास होता है क्योंकि पति पत्नी एक दूसरे का हर सुख दुख में एक दूसरे का साथ निभाते हैं।

इस रिश्ते की सबसे खास बात तो यह है कि जितना यह सम्बन्ध मजबूत होता है, उतना ही नाजुक भी होता है। इस रिश्ते को बहुत सावधानी और प्यार से समझाना पड़ता है क्योंकि इस रिश्ते में कभी कभी छोटी सी लापरवाही भी आपको एक दूसरे से अलग कर देती है। ऐसे में आपको शुरुआत से ही अपने रिश्ते की नींव को मजबूत बनाए रखने की कोशिश करनी चाहिए।

अपनी बोली पर हमेशा रखें ध्यान हर घर में नोक-झोंक तो होती रहती है, पति पत्नी का रिश्ता भी बड़ा मीठा होता है। ऐसे में छोटी सी नोकझोंक के रिश्ते में होती ही रहती है, लेकिन इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि आप गुस्से में अपना आपा खो दें और अपने पार्टनर को कुछ ऐसा बोल दे जो आपको बिल्कुल नहीं बोलना चाहिए।

इसलिए हमेशा अपने गुस्से पर कंट्रोल करना चाहिए और मधुर भाषा का प्रयोग करें जब भी गुस्सा आए तो उस पर संयम से कंट्रोल करें।

कम्युनिकेशन बहुत जरूरी है

गलतफहमियां और कम्युनिकेशन गैप किसी भी रिश्ते को खराब कर सकता है, इसलिए आपको हमेशा इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि पार्टनर के साथ कम्युनिकेशन में कभी कमी ना हो अपने रिश्ते को स्ट्रांग बनाने के लिए अपने पार्टनर से कोई भी जरूरी बात ना छुपाए और जितनी भी नाराजगी क्यों ना हो आप दोनों को बात करना बंद नहीं करना चाहिए।

गर्मी का मौसम दिमागी बीमारियों के लिए भारी

जैसे ही गर्मी का मौसम शुरू हुआ मानसिक बीमारियों के लक्षणों एवं मानसिक रोगियों के स्वभाव में परिवर्तन आने लगता है। मानसिक रोगियों के लिए एक्सट्रीम टेंपरेचर जैसे ज्यादा सर्दी या ज्यादा गर्मी दोनों ही खतरनाक होते हैं क्योंकि ज्यादातर लोगों में बीमारी की शुरुआत इन्हीं मौसम में होती है या फिर जो मरीज ठीक हो जाते हैं या फिर दवाई से उनके लक्षण कंट्रोल हो जाते हैं।

गर्मी शुरू होते ही बीमारी परेशान करने लगती है अगर इस मौसम में बात करें तो सबसे ज्यादा मरीज कौन सी बीमारी के होते हैं तो इसमें सबसे ज्यादा मरीज सरदर्द माइग्रेन के होते हैं क्योंकि माइग्रेन में तेज धूप सबसे ज्यादा खतरनाक होती है एवं पानी की भी कमी होती है जिसकी वजह से माइग्रेन के अटैक बढ़ जाते हैं।

इसके अलावा या तो मरीज बहुत ही उत्तेजित अवस्था में होते हैं जैसे बहुत गुस्साए तोड़फोड़ एवं मारपीट करना या फिर बहुत ही ज्यादा डिप्रेशन की अवस्था जैसे खाना पीना बंद कर देना, बात ना करना एवं लेटे रहना इस मौसम में सुसाइडध्आत्महत्या की केस भी बढ़ जाते हैं क्योंकि व्यक्ति के अंदर सहन-शक्ति कम हो जाती हैं।

इसलिए जरूरत इस बात की है कि यदि इस मौसम में आपको सिरदर्द या अन्य कोई समस्या हो तो अपने निकटतम डॉक्टर से जाकर सलाह ले जिससे कि समय रहते समस्या पर कंट्रोल किया जा सके।

विश्व में मधुमेह के मरीजों की संख्या पोषक आहार ना खाने से बढ़ी

एक अध्ययन में बताया गया है कि भोजन में साबुत अनाज जैसे पोषक आहार ना होने से वर्ष 2018 में टाइप 2 मधुमेह के 1.41 करोड़ से अधिक मामले पाए गए। यह वैश्विक स्तर पर नए मामलों में 70 प्रशतिशत से अधिक का प्रतिनिधित्व करते हैं।

शोध का निष्कर्ष जनरल नेचर मैं प्रकाशित हुआ है। अध्ययन में 1990 से 2018 तक के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया। इससे ज्ञात हुा गया कि कौन से आहार का सेवन करने से टाइप टू डायबिटीज और मधुमेह के मरीज बढ़ सकते हैं। अध्ययन में 30 सबसे अधिक आबादी वाले देशों में भारत, इंडोनेशिया और नाइजीरिया में अस्वस्थ कर भोजन से संबंधित टाइप टू डायबिटीज के सबसे कम मामले थे। 

जिन 11 आहार कारकों का पर विचार किया गया उनमें से तीन का टाइप टू डायबिटीज की बढ़ती वैश्विक घटनाओं में बहुत बड़ा योगदान रहा। इनमें साबुत अनाज का पर्याप्त सेवन रिफाइंड चावल और गेहूं की अधिकता और प्रोसेस मांस का अधिक सेवन इसके कारण देखे गए।