गर्मी के दिनों में तबीयत खराब होने का खतरा दुगना होता है Publish Date : 23/05/2024
गर्मी के दिनों में तबीयत खराब होने का खतरा दुगना होता है
डॉ0 दिव्यांशु सेंगर एवं मुकेश शर्मा
अत्यधिक तापमान हार्ट, किडनी, लीवर, फेफड़े और हृदय की कोशिकाओं को करता है प्रभावित - डॉक्टर दिव्यांशु सेंगर मेडिकल ऑफिसर प्यारेलाल हॉस्पिटल मेरठ।
गर्मी अपना प्रचंड रूप इन दोनों लोगों को दिखा रही है और गर्मी में लगातार बढ़ोतरी होती जा रही है। तापमान के बढ़ने के कारण लोगों के स्वास्थ्य पर भी विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। इसके चलते गर्मी के दिनों में लोगों की तबीयत खराब होने की आशंका भी अधिक बढ़ जाती है। हाल ही में किए गए एक नए अध्ययन में पाया गया है कि सबसे अधिक गर्म दिनों में शुगर और ब्लड प्रेशर जैसे मेटाबॉलिक विकारों और मोटापे से पीड़ित लोगों के लिए अस्पताल में भर्ती होने का जोखिम लगभग दुगना हो जाता है।
डॉ0 दिव्यांशु सेंगर ने बताया कि इस शोध का निष्कर्ष एनवायरमेंटल हेल्थ प्रोस्पेक्टस जनरल में प्रकाशित हाल ही में प्रकाशित किया गया है। शोधकर्ताओं ने स्पेन में एक दशक से अधिक समय से गर्मियों के दौरान उच्च तापमान के चलते अस्पताल में भर्ती होने वाले लोगों का विश्लेषण किया है। डॉ0 दिव्यांशु सेंगर ने बताया कि शोध में पाया गया है कि अत्यधिक गर्मी ने उक्त स्थितियों से पीड़ित होने वाले लोगों को सबसे अधिक प्रभावित किया।
उदाहरण के लिए मोटापे से ग्रस्त लोगों में गर्मी की कमी की प्रतिक्रिया कम कुशलता से काम करती है क्योंकि उनके शरीर में बाशा एक इंसुलेटर के रूप में कार्य करता है और इससे वह गर्मी संबंधी विकारों के प्रति अधिक संवेदनशील बन जाते हैं। वैश्विक स्वास्थ्य के लिए बार्सिलोना संस्थान के एक शोधकर्ता ने कहा कि वायु प्रदूषण के उच्च स्तर से डायबिटीज सहित इन स्थितियों वाले लोगों के लिए अस्पताल में भर्ती होने का जोखिम काफी अधिक बढ़ जाता है।
डॉक्टर दिव्यांशु सेंगर ने बताया देश में लगातार बढ़ता तापमान सेहत के लिए भी खतरनाक साबित हो रहा है। ऐसे में तापमान के 42 डिग्री सेल्सियस के पार पहुंचते ही दिल और दिमाग के अलावा हार्ट, किडनी, फेफड़े, लीवर, और पेनक्रियाज की कोशिकाएं नष्ट होने लगती है और इसी के चलते मरीज की जान का जोखिम बढ़ जाता है।
शुगर और हृदय के रोगियों के लिए कुछ ज्यादा ही खतरा बढ़ जाता है। डॉ सेंगर ने बताया कि अत्यधिक गर्मी के कारण चक्कर आना, बेहोशी या फिर आंखों में जलन महसूस करने जैसी परेशानियां का सामना करना पड़ता है। किस तापमान में शरीर का कौन सा अंग सबसे पहले प्रभावित हो सकता है, इसके बारे में तत्वों पर आधारित सूचना एकत्र करने के उद्देश्य से कई रिपोर्ट तैयार की जा रही हैं जिनको सरकार द्वारा निकट भविष्य में साझा किया जा सकता है।
गर्मी में यह लक्षण दिखाई दें तो रहे सतर्क
भटकाव या भ्रम चिड़चिड़ापन द्वारा या कान लाल या शुष्क त्वचा, बहुत तेज सिर दर्द, चक्कर या बेहोशी, मांसपेशियों में ऐंठन, उल्टी की शिकायत और दिल की तेज धड़कन जैसे संकेत दिखाई दे सकते हैं और तत्काल इलाज की जरूरत पड़ सकती है। 10 साल तक के बच्चों को लेकर भी इस तरह के संकेतों के बारे में बताया है, जिनमें भोजन से इनकार करना, पेशाब न आना, आंखों में सूजन या लालपन, सुस्ती या दौरे पडना आदि शामिल होते है।
42 डिग्री सेल्सियस तापमान से ऊपर होने पर नसों में जमने लगते हैं खून के थक्के
रिपोर्ट के अनुसार 40 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक तापमान पर बीमार व्यक्ति की नसों में खून के थक्के जमना शुरू हो जाता है। छोटी नसों में खून के छोटे-छोटे थक्के बनने की यह प्रक्रिया सबसे पहले दिमाग और फिर हार्टं के अलावा किडनी, लीवर और फेफड़ों को भी प्रभावित करने लगती है। अत्यधिक गर्मी का एक और सबसे गंभीर रोग रैबडोमोयोलिसिस है, जिसके तहत मांसपेशियों के ऊतक टूट कर खून में हानिकारक प्रोटीन के रूप में मिलने लगते हैं।
अत्यधिक गर्मी का प्रभाव दिमाग और फिर हृदय पर भी दिखता है
सबसे पहले गर्मी का असर इंसान के दिमाग पर पड़ता है। इसलिए 27 तरीकों में पहला स्थान मस्तिष्क को दिया जाता है जो सीधे तौर पर गर्मी की चपेट में आने पर स्टॉक या फिर हीट स्ट्रेस का संकेत देता है। इसके बाद दूसरे स्थान पर हृदय फिर हार्ट, किडनी, लीवर और पेनक्रियाज पर असर पड़ता है।
जब शरीर का तापमान कोशिका की थर्मल सहनशीलता से अधिक होने लगता है तो ऐसी स्थिति को हीट साइटोटाक्सीसिटी कहा जाता है, जिसकी वजह से पेनक्रियाज को छोड़कर बाकी सभी 6 अंगों को नुकसान होने लगता है और ऐसी स्थिति में मरीज की मृत्यु की आशंका भी बढ़ जाती है। इसी तरह जब तापमान बढ़ने के कारण रक्तचाप बढ़ता है तो पेनक्रियाज पर भी इसका असर होता है, जो शुगर के स्तर को बढ़ा देता है। इसलिए इन दोनों सतर्क रहने की आवश्यकता होती है।
डॉक्टर दिव्यांशु सेंगर ने बताया कि जब सबसे ज्यादा तापमान रहता है तो शुगर और रक्तचाप के मरीजों को अस्पतालों में भर्ती करने का जोखिम दुगना हो जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि बाहरी तापमान जब शरीर के तापमान की तुलना में अधिक होता है तो पसीना आने लगता है यह सीधे तौर पर ब्लड प्रेशर और हृदय गति को बढ़ा देता है। गर्म दिनों में पुरुषों में लू के कारण अस्पताल में भर्ती होने का जोखिम अधिक होता है जबकि महिलाओं में संक्रामक हार्माेनल एवं बच्चों में श्वसन या मूत्र रोगों के कारण अस्पताल में भर्ती होने का जोखिम बढ़ जाता है।
अत्यधिक गर्मी के कारण किसी व्यक्ति के अस्पताल में भर्ती होने का खतरा बढ़ने वाली अन्य स्थितियों गुर्दे की विफलता, पथरी और मूत्र पथ संक्रमण आदि है। गर्मी की वजह से यह भी संभव है कि संक्रमण से लड़ने के लिए रक्त में निकलने वाले रसायन पूरे शरीर में सूजन पैदा कर सकते हैं।
लेखक: डॉ0 दिव्यांशु सेंगर, प्यारे लाल शर्मा जिला अस्पताल मेरठ में मेडिकल ऑफिसर हैं।