बचपन में की गई उपेक्षा, जीवन भर के लिए बन सकती है परेशानी का कारण Publish Date : 14/04/2024
बचपन में की गई उपेक्षा, जीवन भर के लिए बन सकती है परेशानी का कारण
Dr. Divyanshu Sengar and Mukesh Sharma
छोटे बच्चों के कोमल मन पर आपके द्वारा किए गए किसी भी व्यवहार का गहरा असर पड़ता है, इस बात का हमेशा याद रखना चाहिए। कई लोग उनके नटखटपन पर बिना सोचे समझे उन्हें डाटना शुरू कर देते हैं और बच्चे उनका गुस्सा देखकर सहम जाता है और वह उस शख्स से कटा कटा सा रहने लगते है। कभी-कभी यह भी देखा गया है कि घर में की गई उपेक्षा का शिकार भी बच्चे होते रहते है।
बड़े बुजुर्ग समझ नहीं पाते कि बच्चों के मस्तिष्क पर इसका कितने लंबे समय तक असर पड़ सकता है। हाल ही में किए गए एक शोध में सामने आया है कि गलत तरीके से किया गया व्यवहार बच्चों को जीवन भर भी परेशान कर सकता है। इससे मानसिक और बच्चे की सृजन के साथ ही उसकी प्रतिरोधक क्षमता तक पर प्रभाव पड़ सकता है। यह अध्ययन ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी आफ कैंब्रिज के शोधकर्ताओं के द्वारा किया गया है।
शोधकर्ताओं ने अपने इस शोध के लिए करीब 21,000 लोगों के दिमाग की एमआरआई रिपोर्ट का अध्ययन किया। अध्ययन में 40 से 70 वर्ष की अयु तक के लोगों के आंकड़ों को शामिल किया गया था। इसमें उनकी बीएमआईसी, रिएक्टिव प्रोटीन के स्तर और बचपन में हुए बुरे व्यवहार संबंधी जानकारी की विस्तृत समीक्षा की गई और उनको शामिल किया गया था।
यह शोद्य ‘‘द प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ़ साइंसेज’’ नामक पत्रिका में प्रकाशित किया गया है। इसमें कहा गया है कि हम सभी लोगों को इस बात का ध्यान रखना है कि जो बच्चे अपने बचपन को व्यतीत कर रहे हैं, उनको कोई ऐसी बात ना कहें और ना ही उनकी इस प्रकार की उपेक्षा करें जो जीवन भर उनकी परेशानी का कारण बन सके।
बच्चों के कोमल मन पर गोबाईल के प्रभाव
विश्व स्वास्थ्य संगठन के द्वारा स्मार्टफोन तकनीक का अधिक उपयोग करने वाले बच्चों से जुड़े जोखिमों को भी अब पहचानना शुरू कर दिया गया है। संगठन के प्रारंभिक सुझाव बता रहे हैं कि दो से चार वर्ष के बच्चों को एक दिन में एक घंटा, चार वर्ष से अधिक उम्र वाले बच्चों को सिर्फ दो घंटे फोन उपयोग करना ही उचित रहता है। एक शोध के अनुसार सात से सोलह साल के अधिकांश बच्चे जिन्होंने स्मार्टफोन में अधिक समय बिताया था, तिरछी नजर की शिकायत के तौर पर देखा जा रहा है।
बच्चों को फोन देने से उनका मानसिक विकास तेजी से होगा और यह आम है कि छोटे बच्चा, बड़ों को ज्ञान ग्रहण करने में शीघ्र समर्थ हो सकेगा। डॉ. अशोक कुमार के अनुसार अपने बड़ों को देखकर ही बच्चे अब मोबाइल के आदी हो रहे हैं। बच्चों में मोबाइल के उपयोग करने की प्रवृत्ति जिस तरह बढ़ रही है, वह अपने आप में चिंताजनक है। मनोवैज्ञानिक आधार पर माना जाता है कि मोबाइल फोन के अधिक इस्तेमाल से बच्चों के स्वास्थ्य पर खराब असर पड़ रहा है। फोन के अंदर से रेडियेशन की तरंग बच्चों के साथ साथ सबके लिए हानिकारक है।
इससे बच्चों को तंत्रिका तंत्र प्रभावित होने लगती है और धीरे-धीरे उनके द्वारा किए जाने वाले कार्यों की क्षमता घटने लगती है जैसे उनका हंसना, बोलना, चलना, घूमना, खेलना आदि। स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने विभिन्न परीक्षणों पश्चात बताया है कि मोबाइल फोन का यह रेडिएशन कैंसर की नींव भी रख रहा है। इसके साथ ही एक अन्य महत्वपूर्ण प्रभाव देखा जा रहा है कि ऐसे बच्चों के मानसिक विकास में रुकावट उत्पन्न हो रही है। मोबाइल में हर समय व्यस्त रहने वाले बच्चे न तो पारिवारिक माहौल में सही ढंग से घुल-मिल पाते हैं, और न ही वे सामाजिक क्रियाकलाप से जुड़ पाते हैं। लगातार फोन के व्यवहार रहने से बच्चों में सिर दर्द की शिकायतें अब आम हो रही है, और उनकी आंखों पर चश्मे भी जल्द ही चढ़ने लगे हैं।
वर्तमान समय का सबसे प्रमुख सवाल यह है कि आखिर बच्चों की इस मोबाइल लत के पीछे कारण क्या हैं। आम तौर पर देखा जा रहा है कि अधिकांश माता-पिता अपने बच्चे को अधिक प्यार-दुलार के चलते हर सुविधा से लैस करने की चाहत में जरा भी कंजूसी नहीं करना चाहते। इसी कमजोरी के कारण बच्चे को पहले तो खिलौने के रूप में यह मिलता है, और बाद में यह उनकी लत बन जाती है। दूसरा कारण यह है कि जब बच्चा बाल हठ से रोना-धोना मचाता है तो माता-पिता उसे फोन देकर फुसलाने की तरकीब रचते हैं। फोन में चलत दृश्यों की चंचलता बच्चे का रोना तुरंत बंद कर देती है, और वह उसी में मगन हो जाता है।
कई बार खाना खिलाने के लालच में बच्चों को फोन देना भी लत का एक प्रमाण है। ऐसे में कुछ बच्चे तो फोन स्क्रीन पर कोई खेल या कार्टून आदि को देखते हुए ही खाना खाने के अभ्यस्त हो जाते हैं। कुछ माता-पिता सोचते हैं कि बच्चे के हाथ में मोबाइल फोन दे देने से बच्चे का मानसिक विकास तेजी होगा और इससे बच्चा ज्ञान ग्रहण करने में जल्द ही समर्थ हो सकेगा।
जबकि सात वर्ष से 16 वर्ष की आयु के बच्चे जिनका अपना अधिकांश समय स्मार्ट फोन पर ही व्यतीत होता रहा था उनमें तिरछी नजर की त्रुटि के साथ ही मोटापे के भी शिकार देखने को मिले। देश में मोबाइल फोन में लिप्त बच्चों से सम्बन्धित तीन सर्वेक्षणों के आंकड़े काफी चौंकाने वाले दृष्टिगोचर हुए हैं। मोबाइल की लत के चलते बच्चों में मोटापे की अप्रत्याशित रूप से वृद्धि हो रही है। वर्तमान में करीब एक करोड़ पेतालीस लाख बच्चे इसके शिकार हैं जबकि वर्ल्ड ओबेसिटी फेडरेशन का कथन है कि वर्ष 2030 तक 2.8 करोड़ बच्चे (5-17 वर्ष) मोटापे की बीमारी से पीड़ित हो सकते हैं।
दूसरी चिताजनक समस्या बच्चों को नींद की है जिसके आंकड़े बता रहे हैं कि 63% किशोरवय के बच्चे अब दस घंटे की जगह मात्र 6 घंटे सो पा रहे हैं। अध्ययन के अनुसार इसका कारण मोबाइल फोन के अधिक इस्तेमाल के साथ पढ़ाई का तनाव, अवसाद और पारिवारिक समस्या भी पाई गई है। इन विकट परिस्थितियों से देश के नौनिहालों को कैसे रास्ते पर लाया जाए यह भी विचार किया जाना चाहिए। इसका सबसे मुख्य उपाय तो यह है कि बच्चे के माता- पिता स्वयं मोबाइल फोन का कम से कम उपयोग करें और वह भी बच्चों की दृष्टि से दूर ही करें।
बच्चों को स्कूल समय के बाद आउटडोर गेम में संलग्न करने से उनकी अभिरुचि जागृत होगी जो उनके शारीरिक विकास में भी सहायक हो सकेगी। उन्हे अपने हमउम्र के बच्चों के साथ मिलने-जुलने का अवसर मिलेगा जिससे हमारे बच्चे सामाजिक बंधन में बंध सकेंगे।
इसके अलावा बच्चों को नृत्य, संगीत, और फिजिकल गेम्स की ओर भी प्रेरित कर उनके रूटीन को सही दिशा में लाया जा सकता है। हालांकि सावधानी के रूप में अभिभावक यह जरूर करे कि किसी भी सूरत में बच्चों के मन को बहलाने के लिए फोन उन्हें न दें। फोन की जगह खिलीने या पुस्तक देकर उनकी जिद्द को दूर किया जा सकता है। पहले बच्चों को नानी दादी रात में सोते समय प्रेरक कहानियाँ सुनाकर सुलाती थीं, जो कि वर्तमान में संभव नहीं है, लेकिन बच्चों की प्रकृति और उनकी अभिरुचि आदि का अध्ययन करके, आधुनिक कथा कहानियों से उनका मन बहलाया जा सकता है। दिन प्रतिदिन विज्ञान के हर क्षेत्र में प्रगति की रस्तार तीव्र हो रही है। संभव है कि भविष्य में वर्तमान काल के संवाद के अनोखे अंग मोबाइल की जगह किसी अन्य विकल्प का आविष्कार भी हो जाए।
विज्ञान ने निर्माण के गुण से संबंधित अधिक से अधिक उपकरणों को जनमानस के हित में प्रस्तुत किया है जबकि प्रत्येक अनुसंधान के साधन में प्रतिकूल असर भी छिपे होते हैं। ऐसे में जरूरत इस बात की है कि हम मोबाइल फोन के सकारात्मक पक्ष से अपने को स्वयं जोड़ते हुए और बच्चों को भी समुचित वातावरण उपलब्ध कराएं जिससे कि किशोरों के कोमल मन-मस्तिष्क का भटकाव होने स डॉ. अशोक कुमार से रोका जा सके।
लेखकः डॉ0 दिव्यांशु सेंगर, प्यारे लाल शर्मा जिला अस्पताल मेरठ में मेडिकल ऑफिसर हैं।