पौष्टिक और हल्का होता है बेसन का चीला नाश्ते में करें शामिल      Publish Date : 01/04/2024

         पौष्टिक और हल्का होता है बेसन का चीला नाश्ते में करें शामिल

                                                                                                                                                                    डॉ0 आर. एस. सेंगर

बेसन में वसा और चने का आटा होता है, जो कि प्रोटीन से भरपूर होता है। यह डायबिटीज के रोगियों के लिए भी अच्छा रहता है। सुबह के नाश्ते में यदि इसको शामिल कर लिया जाए तो मधुमेह रोगियों के लिए काफी लाभदायक होता है। बेसन का चीला बनाने में धनिया एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसमें भरपूर मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट, विटामिन ए और विटामिन सी उपलब्ध होता है, जो हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करता है। इसमें अच्छी मात्रा में आयरन होता है और यह रक्त में लाल रक्त कोशिकाओं के उत्पादन को बनाए रखने में मदद करता है।

                                                                    

धनिया में कोलेस्ट्रॉल कम होता है और यह मध्यम आय वर्ग वाले लोगों के लिए अच्छा है। हालांकि इस व्यंजन को बनाने में आमतौर पर मूंगफली के तेल का उपयोग नहीं किया जाता है जबकि यह एक अच्छा विकल्प हो सकता है। क्योंकि इसमें ओमेगा 3 फैटी एसिड होता है। चीला बनाने के लिए आप मूंगफली के तेल की जगह एवं कोंदो के तेल या नारियल तेल भी चुन सकते हैं। बेसन में ढेर सारा अच्छा वसा और चने का आटा होता है, जो प्रोटीन से भरपूर होता है।

                                                                 

इसमें सॉलिड या फोलिक एसिड उच्च मात्रा में होता है, जो शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं के साथ-साथ सफेद रक्त कोशिकाओं के विकास में भी सहायक होता है। यदि इसके पोषण संबंधी लेवल को बनाए रखना चाहते हैं तो घर से बाहर बेसन का चीला खाने से बचें। खासकर बाजार में तो बिलकुल ना खाएं अपितु इसे अपने घर पर ही बनवा कर खाएं तो यह सेहत के लिए अच्छा रहता है।

बेसन का चीला कार्बाेहाइड्रेट से भरपूर होता है, जो ऊर्जा प्रदान करता है और वजन को कम करने के लिए यह एक सर्वश्रेष्ठ आहार में माना जाता है। यदि संतुलित आहार में बेसन को शामिल किया जाए तो जरूरी पोषक तत्व मिलते हैं। इसलिए कोशिश यह करनी चाहिए कि सुबह के नाश्ते के वक्त हफ्ते में दो या तीन दिन बेसन के चीले का उपयोग किया जा सकता है।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।