पृष्ठ भाग में दर्द का मर्ज      Publish Date : 23/03/2024

                                  पृष्ठ भाग में दर्द का मर्ज

                                                                                                                                                              डॉ0 दिव्यांशु सेंगर एवं मुकेश शर्मा

पृष्ठ भाग में दर्द अर्थात बैक-पेन की समस्या इन दिनों साधारण बात हो गई है। किशोरावस्था से वृद्धावस्था तक के व्यक्ति इससे पीड़ित होते जा रहे हैं। 15-16 वर्ष से 70-75 वर्ष की आयु तक के मरीज पीड़ित होकर उपचार कराने सामने आ रहे हैं। हालात यह है कि हर दस में से एक व्यक्ति इससे पीड़ित है। बच्चे, युवा, बड़े एवं वृद्ध सब बैक पेन से परेशान हैं। इस पृष्ठ भाग में दर्द की अनदेखी करने पर और भी कई रोग उपज कर सामने आ रहे हैं।

कारण

                                                          

उपयुक्त विश्राम का अभाव एवं श्रम विहीन जीवन शैली इसका मुल्य कारण है मोटापा, सोने, बैठने, खड़े होने एवं चलने का गलत तरीका यह स्थिति ला रहा है। रीढ़ की हड्डियों में अनावश्यक एवं अत्यधिक खिंचाव दबाव भी व्यक्ति को बैक पेन की ओर ले जाता है। रीढ़ की हड्डियों में आर्थराइटिस, डिस्क प्रोलेप्स, कमर की मांसपेशियों में अत्यधिक खिंचाव, स्पांडिलाइटिस, रीढ़ की हड्डियों में चोट, महिलाओं को अनियमित मासिक धर्म जैसे कारण इस दर्द के जनक हैं।

लक्षण

                                            

शरीर के किसी भाग में दर्द कभी कभार होना सामान्य बात है किंतु यदि यह दर्द बार-बार व लगातार हो, तब पीड़ित को योग्य चिकित्सक से उपचार कराना आवश्यक हो जाता है। पृष्ठभाग में दर्द की शुरूआत कमर के पिछले हिस्से से होती है जो समय बीतने के साथ बढ़ती जाती है, आगे पैरों में दर्द, अकड़न, जलन, झुनझुनी, सुन्नपन, पैर की उंगलियों में दर्द, सवेरे उठते समय शरीर में जकड ? आदि की शिकायत होने लगती है। पृष्ठभाग के एक्सरे के बाद हड्डियों की वास्तविक स्थिति का पता चलता है। ऐसे मरीजों की हड्डियों में गेप कम या ज्यादा दिखता है।

उपचार

                                                             

पृष्ठभाग में लगातार दर्द हो तो उसकी अनदेखी आगे चलकर अधिक घातक सिद्ध हो सकती है। चिकित्सक एक्सरे देखकर निदान सुझाते हैं। दर्दनाशक दवाएं तत्काल लाभ अवश्य पहुंचाती हैं किंतु यह न तो इसका स्थाई इलाज है और न ही दवा का अधिक सेवन निरापद है क्योंकि दर्द रोधी सभी दवाएं प्रतिक्रि या स्वरूप अन्य परेशानियां बढ़ा देती हैं। उपयुक्त विश्राम एवं फिजियोथेरेपी से ही इसका सही निदान होता है। इस विधि में पानी, बर्फ, लेजर, अल्ट्रावायलेट, एस. डब्ल्यू डी से सिंकाई की जाती है। एक्सरसाइज से कमर को बलशाली बनाया जाता है। ट्रेक्शन देकर हड्डियों के बीच का अंतर सही किया जाता है। आगे चलकर यह दर्द फिर न हो, इसके लिए उपयुक्त जीवन शैली एवं जीवन चर्चा जरूरी है।

क्या करें, क्या न करें

-दो सप्ताह से अधिक बेड रेस्ट न करें। लंबे समय से पीड़ित होने पर बेड रेस्ट जरूरी नहीं है। सामान्य जीवन अपनाना अच्छा है क्योंकि लंबे बेड रेस्ट से अन्य परेशानी बढ़ सकती है।

-विश्राम अवस्था में गर्म टावेल से सिकाई करें। कड़े बिस्तर पर सोएं।

-कमर के ऊपर भाग को हल्का सा सामने रखें।

-शरीर का भार एड़ियों पर अधिक डालें। शरीर को सही स्थिति में रखकर भारी वजन के सामान को उठाएं। स्टूल या कुर्सी पर फैलकर बैठें।

-गाड़ी चलाते समय अपने को थोड़ा सामने की ओर व्यवस्थित कर लें। कमर में सीट बेल्ट एवं दुपहिया में लंबर बेल्ट का उपयोग करें।

करवट लेते समय जांघों और घुटनों को थोड़ा मोड़ लें।

- विस्तर छोड़ते समय किनारे आकर करवट लें व उठें पेट के बल न सोएं।

- वॉश बेसिन का उपयोग अधिक झुक कर न करें।

-प्लेटफार्म सोल वाले जूते चप्पल पहनें कोमल गद्दों का उपयोग न करें।

लेखकः डॉ0 दिव्यांशु सेंगर, प्यारे लाल शर्मा जिला अस्पताल मेरठ में मेडिकल ऑफिसर हैं।