जिमीकंद की खेती की उन्नत तकनीकी      Publish Date : 24/02/2023

सभी जड़ वाली फसलों में जिमीकंद का एक महत्वपूर्ण स्थान है, जिसे सूरन ओल् या कंद भी कहते हैं। इसकी भण्डारण गुणवत्ता भी उत्तम होती है, जिमिकन्द का उपयोग अचार बनाने में किया जाता हैं तथा इसके चूर्ण का उपयोग वात रोगों तथा उदर संबंधी विकारों में लाभदायक होता है। इसकी खेती मुख्य रूप से गुजरात तथा महाराष्ट्र में की जाती है भारत के अतिरिक्त श्रीलंका तथा मलाया में भी इसकी खेती की जाती है।


 जिमिकन्द के लिए कैसी हो जलवायु
जिमीकंद एक समशीतोष्ण जलवायु की फसल है, पौधे की वनस्पतिक वृद्धि के लिए गर्म एवं तर जलवायु की आवश्यकता होती है। न्यूनतम या अधिकतम तापमान में अधिक अंतर होने से उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।


भूमि की तैयारी कैसे करें
जिमीकंद की फसल खेती के लिए अच्छे जल निकास वाली जीवाश्म युक्त दोमट भूमि को सर्वोत्तम माना जाता है। चिकनी एवं भारी मिट्टी में कन्दों का समुचित विकास नहीं हो पाता है। बुवाई के लिए खेत को मिट्टी पलटने वाले हल तथा देशी हल से जुताई कर के पाटा चलाकर मिट्टी को भुरभुरी बना लेते हैं। यदि भूमि समतल न हो तो क्यारियाँ छोटी-छोटी बनाते हैं।


कितनी मात्रा में डालें खाद एवं उर्वरक
जिमीकंद की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए 50 से 60 टन गोबर की सड़ी हुई खाद, 300 किलोग्राम यूरिया, 250 किलोग्राम सुपर फास्फेट तथा 150 किलोग्राम मयूरेट ऑफ पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए। गोबर की खाद बुवाई से 15 दिन पूर्व तथा एक तिहाई भाग यूरिया तथा फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा को बुवाई से पूर्व अंतिम जुताई के समय खेत में देना उचित रहता है। शेष बची हुई यूरिया का आधा भाग बुवाई के 50 दिन बाद तथा शेष आधा भाग 75 दिन बाद का टाॅप ड्रेसिंग के रूप में दिया जाना उचित रहता है।


बीज की मात्रा एवं उसकी बुवाई करने की विधि
जिमीकंद की बुवाई करने सबसे का उचित समय अप्रैल-मई होता है। किन्तु अनेक स्थानों पर इसकी बुवाई मई-जून में भी की जाती है। बुवाई के लिए 400 से 500 ग्राम वजन के कंद जिसमें दो आंखें हो सर्वोत्तम पाए गए हैं। इस प्रकार उचित प्रकार के कन्दों को लेकर 0.5 प्रतिशत एगलाल या 0.25ः ऐरेटाम्न के घोल में 10 मिनट तक डुबोकर उपचारित कर लेना उचित रहता है। लाइन से लाइन की दूरी 75 से 100 सेंटीमीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 45 से 60 सेंटीमीटर रखना चाहिए, यदि पानी लगने की संभावना हो तो बुवाई मेड़ बनाकर करनी चाहिए। इस प्रकार से बुवाई करने पर 45 से 50 कुंतल बीज प्रति हेक्टेयर की दर से आवश्यकता होती है।


जिमिकन्द की प्रमुख प्रजातियाँ 
जिमिकन्द की मुख्य रूप से 2 प्रजातियाँ हैं जो इसके खाद्य गुणों के आधार पर जानी जाती हैं। 
1.    च्रपरायन युक्त तथा 
2.    चरपरायन रहित
चरपरयन युकत प्रजातियों की उपज अधिक होती है किन्तु इनके कन्द के गूदे से गले में जलन उत्पन्न होती है जिसके कारण यह खाने के उपयुक्त नहीं होता है। इस कारण से इसका बाजार मूल्य भी अच्छा नहीं मिलता है। चरपरायन रहित प्रजातियों में ऑक्सलेट की मात्रा कम उपलब्ध होने के कारण गले में जलन पैदा नहीं होती है यह और खाने में भी स्वादिष्ट होती है। जिसके कारण इसका बाजार भाव भी अच्छा मिलता है। इसके कन्द के गूदे का रंग हल्का गुलाबी होता है। इसलिए अधिकतर किसान चरपरायन रहित जिमीकंद की खेती को प्राथमिकता देते हैं।


कितनी करें सिंचाई
समय-समय पर खेत की सिंचाई करते रहना आवश्यक है। यदि खेत में बुवाई के समय नमी कम हो तो सिंचाई कर देने पर अंकुरण शीघ्र एवं अच्छा होता है। गर्मी के दिनों में जब मौसम सूखा होता है तो उस समय 8 से 10 दिन के अंतर पर पानी देते रहना चाहिए। इसके साथ ही ध्यान रखें कि खेत में पानी एकत्र नहीं होने पाए।
 

कितनी करें निराई-गुड़ाई
जिमीकन्द की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए कम से कम 2 बार निराई गुड़ाई अवश्य ही करनी होती है। बुवाई के लगभग 50 दिन के बाद खरपतवार को निकालकर गुड़ाई करके मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए। खरपतवार को कम करने के लिए बुवाई के बाद सूखे पुआल, भूसा अथवा सूखी पत्तियों को अवरोधक परत के रूप में प्रयोग किया जाता हैं, क्योंकि इससे नमी अधिक समय तक सुरक्षित बनी रहती है।


खुदाई करने का उचित समय
जिमिकन्द की खुदाई करने का समय, इसकी प्रजाति एवं बुवाई के समय पर निर्भर करता है। जिमीकन्द की फसल 10 महीने में खुदाई के लिए तैयार हो जाती है। जिमिकन्द की खुदाई के लिए दिसंबर और जनवरी का महीना सबसे अच्छा माना जाता है।जब जिमिकन्द की पत्तियाँ पील पड़ना शुरू हो जाए तो यह फसल तैयार होने का संकेत होता है। खुदाई के कम से कम 15 दिन पहले से ही सिंचाई बन्द कर देनी चाहिए। फावड़ा या खुरपी की मदद से खुदाई करके कन्दों को छाया में सुखाकर रखना चाहिए। जिमिकन्द का भण्ड़ारण 10 डिग्री सेल्सियस पर अधिक समय तक किया जा सकता है।

लेखक सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रोद्योगिक विश्वविद्यालय, मोदीपुरम, मेरठ के जैव प्रौद्योगिकी विभागाध्यक्ष तथा एक वरिष्ठ वैज्ञानिक हैं तथा लेख में प्रस्तुत विचार उनके स्वयं के हैं।