
पीले तरबूज की खेती करने की वैज्ञानिक विधि Publish Date : 30/03/2025
पीले तरबूज की खेती करने की वैज्ञानिक विधि
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 वर्षा रानी
किसानों के द्वारा आधुनिक कृषि तकनीकों का उपयोग और उचित देखभाल करने से पीले तरबूत की खेती उनके लिए लाभकारी व्यवसाय बन सकती है। भारत में किसान गर्मियों के मौसम की शुरूआत में बड़े पैमाने पर पीले तरबूज की खेती करते हैं, क्योंकि गर्मियों में बाजारों में तरबूज की मांग काफी रहती है। उचित तकनीकों को अपनाकर बड़े पैमाने पर पीले तरबूज का उत्पादन करने से यह एक लाभकारी व्यवसाय बन सकता है। पीले तरबूज की खेती वर्तमान में किसानों की बीच एक चर्चा का विषय बनी हुई है, क्योंकि तरबूज की इस किस्म का किसानों को अच्छा मूल्य प्राप्त होता है।
पीले तरबूज की खेती के लिए उचित समय
पीले तरबूज की बुवाई करने का सबसे उत्तम समय फरवरी और मार्च का महीना होता है, जिससे गर्मियों में इसकी अच्छी फसल प्राप्त होने लगती है। दूसरी फसलों की अपेक्षा तरबूज की खेती करने में कम समय, कम खाद और पानी की आवश्यता होती है।
गर्मी के मौसम में लोग डिहाइड्रेशन की समस्या से बचने के लिए लोग अधिक मात्रा में तरबूज का सेवन करते है, जिसके चलते इस समय इसकी मांग बहुत अच्छी रहती है और किसानों को भी पर्याप्त मुनाफा प्राप्त होता है।
कैसे करें खेत को तैयार
पीले तरबूज की खेती करने के लिए सबसे पहले खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए जिससे कि खेत में मौजूद खरपतवार और कीट आदि सब नष्ट हो जाएं। इसके बाद खेत में मिट्टी के बड़े ढेलों को तोड़ने और खेत को समतल बनाने के लिए हैरो का उपयोग किया जाता है।
उपयुक्त जलवायु एवं मृदा
पीले तरबूज की खेती करने के लिए गर्म जलवायु के साथ मध्यम आर्द्रता युक्त क्षेत्र सबसे उत्तम रहता है। इसकी अच्छी पैदावार के लिए रेतीली और दोमट मृदा को सबसे अच्छा माना जाता है। इसके साथ ही पीले तरबूज के फल के उत्तम विकास के लिए 25 से 32 डिग्री सेल्सियस का तापमान उचित माना जाता है।
कैसे करें नर्सरी की तैयारी
पीले तरबूज की नर्सरी 200 गेज मोटाई, 10 से.मी. व्यास और 15 से.मी. ऊँचाई वाले पॉलीबैग्स में तैयार की जा सकती है। इन बैगों में काली मिट्टी, बालू तथा गोबर की खाद को 1:1:1 के अनुपात में भर लिया जाता है। हलांकि, इसके पौधों को उगाने के लिए ट्रे का उपयोग भी किया जा सकता है, जिसमें 98 कोशिकाएं होनी चाहिए। लगभग 12 दिन के पौधों का रोपण मुख्य खेत में किया जा सकता है।
बुवाई करने की विधि
ड्रिप सिंचाई प्रणाली की ट्यूबों को प्रत्येक क्यारी के केन्द्र में बिछाकर 8-12 घंटे तक निरंतर पानी देना चाहिए। पीले तरबूज की बुवाई से पूर्व खरपतवारनाशी पेंडीमिथालिन 250 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए। पीले तरबूज के लिए 1.2 मीटर चौड़ी और 30 से.मी गहरी क्यारियां बनानी चाहिए। पीले तरबूज के पौधों को 60 से.मी. की दूरी पर बनाए गए गड्ढों में रोप दिया जाता है।
आवश्यक खाद एवं पोषक तत्व प्रबन्धन
खेत की अंतिम जुताई से पहले 8 टन अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद डालकर जुताई करते समय उसे अच्छी तरह से खेती की मिट्टी में मिला देना चाहिए। इसके साथ ही 1 कि.ग्रा. एजोस्पिरिलम और फॉस्फोबैक्टीरिया, 50 कि.ग्रा. एफवाईएम और 40 कि.ग्रा. नीम केक मिला देना चाहिए।
इसके उपरांत जब फसल 10-12 दिन की हो जाती है, तो उसमें 22 कि.ग्रा. फॉस्फोरस, 22 कि.ग्रा. यूरिया और 22 कि.ग्रा. पोटाश की मात्रा को खेत में दिया जाता है। उक्त पोषक तत्व फर्टिगेशन प्रणाली के द्वारा भी प्रदान किए जा सकते हैं।
सिंचाई प्रणाली
ड्रिप सिंचाई के माध्यम से मुख और उप-मुख्य पाइप स्थापित कर इनलाइन लेट्रल ट्यूबों को 1.5 मीटर की दूरी पर व्यवस्थित किया जाता है। पार्श्व ट्यूबों में 60 से.मी. और 50 से.मी. के अंतराल पर क्रमशः 4 एलपीएच और 3.5 एलपीएच की क्षमता वाले ड्रिपर्स का उपयोग किया जाता है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।