
आम के बौर के लिए घातक हैं यह रोग Publish Date : 15/03/2025
आम के बौर के लिए घातक हैं यह रोग
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी
मार्च के महीने में 25-35°C तापमान और अधिक आर्द्रता के मौसम में पाउडर फफूंदी और बौर झुलसा जैसे रोग आम के बौर को कुप्रभावित कर उत्पादन में भारी गिरावट उत्पन्न सकती हैं। उचित समय का समुचित नियंत्रण कर आम के इन रोगों से बचा जा सकता है अन्यथा पेड़ पर फल नहीं बन पाते हैं।
आम के बागों में यह समय बौर आने का होता हैं, लेकिन इसके लिए जरूरी है कि आम के वृक्ष पर आने वाला यह बौर अधिक से अधिक फल में परिवर्तित हो सके। इसके लिए आम के बौर का उचित प्रबंधन करना आवश्यक होता है, क्योंकि मार्च के महीने में 25-35°C तापमान और अधिक आर्द्रता वाले मौसम में पाउडर फफूंदी और बौर झुलसा जैसे रोग आम को नुकसान कर उत्पादन में भारी गिरावट का कारण बन सकते हैं। अतः यह आवश्यक है कि उचित समय पर रोग नियंत्रण करें तो इस समस्या से बचा जा सकता है।
सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, मोदीपुरम, मेरठ के प्रोफेसर आर. एस. सेंगर के अनुसार, आम के बौर फूल खिलने से पहले और फल के मटर के आकार तक पहुंचने की अवस्था के बीच में बाग की विशेष रूप से उचित देखभाल करने की आवश्यकता होती है। आम में यह फंगस रोग बहुत तेजी के साथ फैलता है। इस आम के इस रोग के चलते आम की उपज बहुत अधिक प्रभावित हो सकती है, जिससे उपज और गुणवत्ता दोनों कुप्रभावित होती है।
आम में इस रोग पर रखें कड़ी नजर
पाउडर फफूंदी आम के फूल और छोटे फलों को प्रभावित करने वाली एक पाउडरी मिल्डयू प्रमुख फफूंद जनित बीमारी है। इस रोग के लगने पर बौर पर सफेद पाउडर के जैसी संरचना दिखाई देने लगती है। फंफूद का यह पाउडर आम के फूलों को ढक लेता है, जिससे परागण और फल बनने की प्रक्रिया कुप्रभावित होती है और कई बार तो इस रोग के चलते आम के फूल पूरी तरह ही नष्ट हो जाते हैं और इससे फल नहीं बन पाते हैं।
कई बार छोटे फल संक्रमित हो जाते हैं और वे विकृत होकर नीचे गिर जाते हैं। यह रोग बादल छाए रहने और अधिक नमी की स्थिति में अधिक तेजी से फैलता है।
यदि आपके बाग में यह रोग लग गया तो रोग से प्रभावित बौर को प्रारंभिक अवस्था में ही हटा देना चाहिए। साथ ही इस रोग की रोकथाम के लिए सल्फर (Liquid Sulphur)/1 मिली प्रति लीटर पानी में घोलकर इसका छिड़काव करें, अथवा हेक्साकोनाज़ोल, प्रोपिकोनाज़ोल, फ्लुसिलासोल या माइकोलैबुटानिल में से किसी एक दवा को 1 मिली प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें और दो सप्ताह के अंतराल पर छिड़काव जारी रखें। जब तक कि फल पूरी तरह से विकसित न हो जाएं। पूरी तरह फूल खिल जाने के बाद सल्फर पाउडर का छिड़काव नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह तेज धूप में बौर को जलाने कारण भी बन सकता है।
आम के बौर को झुलसा देता है यह रोग
डॉ0 सेंगर ने बतया कि आम के बौर को प्रभावित करने वाली झुलसा एक गंभीर रोग है, जो एक फफूंद के कारण होती है. इस रोग के लगने के बाद बौर के डंठल का रंग हरे से लाल-भूरे रंग में बदल जाता है. प्रभावित बौर सूखने लगते हैं और गिर जाते हैं. फूलों पर काले धब्बे बनने लगते हैं, जिससे परागण प्रभावित होता है और फलन कम हो जाता है. संक्रमित फूल और छोटे फल भूरे होकर झड़ जाते हैं.
इस रोग का ऐसे करें रोकथाम
संक्रमित फूलों और शाखाओं की छंटाई कर नष्ट कर देना चाहिए. इसकी रोकथाम के लिए हेक्साकोनाज़ोल प्रोपिकोनाज़ोल अथवा फ्लुसिलासोल में किसी एक दवा की 1 मिली मात्रा को प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें. या बायोफंजीसाइड जैसे ट्राइकोडर्मा इस्तेमाल कर सकते हैं. यह दवा रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में सहायक होती है।
इस बात का खास खयाल रखें
परागण प्रक्रिया के दौरान किसी भी कीटनाशक दवा का छिड़काव नहीं करना चाहिए। इससे परागण में सहायक कीट मधुमक्खियां, आदि भी नष्ट हो सकते हैं, जिससे फल बनने की दर में कमी आ सकती है। आंम के बाग में उच्च दबाव छिड़काव उपकरणों का उपयोग करें, इससे कवकनाशक पूरे वृक्ष पर समान रूप से फैलेगा।
एक ही प्रकार के सिस्टमिक फंगीसाइड का अधिक उपयोग करने से रोगजनक फफूंद उसके प्रति प्रतिरोधकता विकसित कर सकते हैं, जिससे यह प्रभावी नहीं रहेगा। आम उत्पादन को बढ़ाने और रोगों से बचाव के लिए सतर्क रहना जरूरी है। इससे आम की अधिक उपज और गुणवत्ता दोनों को बेहतर बना सकते हैं।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।