
आंवला के प्रमुख कीट एवं रोग और उनका नियंत्रण Publish Date : 30/01/2025
आंवला के प्रमुख कीट एवं रोग और उनका नियंत्रण
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 वर्षा रानी
मृदुल सड़नः आंवलें में यह रोग दिसंबर के माह से लेकर फरवरी माह तक अधिकता से देखा जाता है। रोग से संक्रमित भाग पर जलासिक्त भूरे रंग का धब्बा बन जाता है। यह धब्बा आंवलें के पूरे फल को लगभग 8 दिन में कवर कर उसके आकार को विकृत कर देता है। आंवला का यह रोग परिपक्व तथा अपरिपक्व दोनों ही प्रकार के फलों को प्रभावित करता है, परन्तु परिपक्व फलों में इस रोग का प्रकोप अधिक देखा जाता है।
अतः फलों की तुड़ाई करने के बाद आंवले के फलों को डाइफोलेटान 0.15 प्रतिशत, डाइथेन एम-45 अथवा बाविस्टीन 0.1 प्रतिशत से उपचारित कर भंड़ारित करने से रोग की रोकथाम की जा सकती है।
गुठली भेदकः आंवला का यह कीट जून माह से लंकर जनवरी तक क्रियाशील रहता है। इस कीट के अंड़े आंवले के फल में एक छोटा सा गड्ढ़ा बनाकर फल की बाहरी सतह से अंदर प्रवेश करते हैं। इसका लार्वा निकलने के बाद फल के गूदे से होता हुआ गुठली को छेइता हुआ फल के अंदर चला जाता है और फल की बीजों को खाकर उसे पूर्णतया नष्ट कर देता है। इस कीट का प्रकोप आंवले की देशी और बनारसी, दोनों ही प्रजातियों पर समान रूप से देखा गया है।
अधिक प्रकोप होने पर 0.2 प्रतिशत कार्बेरिल या 0.04 प्रतिशत मोनोक्रोटोफॉस या 0.05 प्रतिशत क्वीनॉलफॉस का छिड़काव जब आंवले के फलों का आकार मटर के दाने के बराबर हो की अवस्था पर कर देना चाहिए और यदि आवश्यकता हो तो इसका दूसरा छिड़काव 15 दिन के अंतराल पर कर देना चाहिए।
बाग में गुड़ाई करें और थाले बनाएं। आंवला के पौधे के लिए 10 कि.ग्रा. गोबर/कम्पोस्ट की खाद, 100 ग्राम नाइट्रोजन, 50 ग्राम फॉस्फेट और 75 ग्राम पोटाश देना आवश्यक है। दस वर्ष या इससे अधिक आयु के पौधों में इस मात्रा को बढ़ाकर 100 कि.ग्रा. गोर/कम्पोस्ट की खाद, 1 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 500 ग्राम फॉस्फेट और 750 ग्राम पोटाश का प्रयोग करना चाहिए। दी गई इस मात्रा में से पूरा फॉस्फोरस और आधी नाईट्रोजन तथा आधी पोटाश का प्रयोग जनवरी माह में ही कर देना चाहिए।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।