गुणों की खान आंवला लगायें Publish Date : 22/11/2024
गुणों की खान आंवला लगायें
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, डॉ0 वर्षा रानी एवं हिबिस्का दत्त
भारत में आंवला को व्यावसायिक स्तर पर उत्तर प्रदेश के कुछ जिलो जैसे प्रताप गढ़, आजमगढ़, सुलतानपुर, रायबरेली, वाराणसी, सीतापुर, बरेली और उद्दमसिंह नगर आदि में उगाया जाता है। आंवले की बागवानी पजाब, हरियाणा और राजस्थान आदि राज्यो में सफलतापूर्वक की जा सकती है। आवला, जिसका वानस्पतिक नाम इम्बालिका ऑर्फसिनेलिस है तथा यह यूफोरबिएसी कुल के अतर्गत वर्गीकृत किया गया है।
यह एक मध्यम ऊँचाई वाला वृक्ष है। इसके फल में विशेष औषधीय गुण होते हैं। आंवला अनेक रोगों, जैसे अतिसार, दस्त, पीलिया और कफ आदि में यह काफी लाभकारी माना जाता है। यह आख व पेट के लिये यह एक श्रेष्ठ औषधि है। यह स्याही, केश-रंगों, शैम्पू और केश तेल निर्माण में उपयोगी है। देश में इसका सबसे अच्छा उत्पाद च्यवनप्राश बहुत ही प्राचीन काल से उपयोग होता चला आ रहा है। अत: हर्बल उत्पाद के लिये भविष्य में इसका काफी महत्व बढ़ने की सभावनाएं है।
मिट्टी एवं जलवायु:- आंवला एक सहिष्णु फल है और यह हल्की अम्लीय से लेकर लवणीय, सोडियम युक्त मिट्टी में भी आसानी से उगाया जा सकता है। अधिक सोडियम युक्त मिट्टी में पौधे लगाने से पूर्व जिप्सम से उपचारित कर देना आवश्यक है। अधिक उपजाऊ भूमियों में इसकी वानस्पतिक वृद्धि अधिक तथा फलोत्पादन कम होता है।
अतः अधिक उपजाऊ भूमि में आंवाला लगान से बचना चाहिए। आंवला उष्ण जलवायु का वृक्ष है। इसे उपोष्ण और मृदु शीतोष्ण जलवायु में सफलतापूर्वक लगाया जा सकता है।
आंवला का नया बाग लगाना:- आंवला के कलमी पौधों को 6 से 10 मीटर की दूरी पर लगाया जा सकता है। इन पौधों के बीच की दूरियां, आंवले की किरम व स्थान आदि पर मुख्यतः निर्भर करती हैं। इसके लिये आप अपने नज़दीक के कृषि वैज्ञानिक से सलाह ले सकते हैं।
आंवले का बाग लगाने का उचित समय
पौधे लगाने का उचित समय फरवरी से मध्य अप्रैल तथा जून-जुलाई सर्वाधिक उपयुक्त है। यदि सिंचाई के साधन उपलब्ध हो जैसे ड्रिप/माइक्रो इरिगेशन पद्धति, तो फरवरी-मार्च में लगाना सबसे उपयुक्त माना गया है।
आंवले के पौधे लगाने के लिये 1 घनमीटर (1 मी 1 मी. 1 मी.) आकार के गड्ढे तैयार करने चाहिये। इन गड्ढ़ों में 15 दिनों के बाद गोबर की खाद तथा रासायनिक उर्वरक नजदीकी कृषि वैज्ञानिक की सलाह के अनुसार भरकर 15-20 दिनों बाद पौध रोपण कर देना चाहिये। अत्यधिक सोडियम युक्त मिट्टी में जिप्सम या पाइराइट का प्रयोग करना चाहिये। इसकी मात्रा जमीन के पी.एच. मान पर निर्भर करती है।
आंवले की किस्में:-
(अ) अगेती किस्में:-
1. बनारसीः- आंवले की इस किस्म के फल बडे, चपट अण्डाकार, हल्के पीले. मुलायम त्वचा वाले, मध्यम रेशा युक्त और पारभासी गूंदे से युक्त होते हैं। इसके फल आंवले का मुरब्बा बनाने के लिये उपयुक्त होते है। फल का औसतन भार 46.6 ग्राम प्रति फल होता है।
2. एन.ए.-9:- फल बडे (भार 47.5 ग्राम प्रति फल), चपटे चिकनी त्वचा वाले व हल्के पीले रंग के होते हैं। इसके फल का गूदा मध्यम रेशा युक्त, मुलायम और पारभासी होता है।
3. कृष्णा:- फल आकार मध्यम (भार 40 ग्राम प्रतिफल), चपटे, चिकनी त्वचा वाले व हल्के पीले रंग के तथा इसके फल संसाधन के लिये उपयुक्त होते हैं।
(ब) मध्यम समय में तैयार होने वाली किस्में:-
4. चकईयाः- फल (भार 35 ग्राम प्रति फल), चपटे, चिकनी त्वचा वाले दीर्घायत और हल्के हरे रंग के होते हैं।
5. कंचन:- फल (भार 32 ग्राम प्रतिफल), चपटे, दीर्घायत चिकनी त्वचा वाले तथा हल्का पीलापन लिये हरे रंग के होते हैं।
(स) पछेती किस्में:-
6. फ्रांसिसफल:- (भार 41.5 ग्राम प्रतिफल), अण्डाकार, चिकनी त्वचा वाले तथा पीलापन लिए हरे रंग के होते हैं।
7. एन.ए.-7:- इस प्रजाति का फल अत्यधिक क्षय रोग से प्रभावित नहीं होता है। इसके फल बडा (भार 47.5 ग्राम प्रतिफल), चपटे, अण्डाकार और चिकनी त्वचा वाले होते हैं।
फलन का समय:- कलमी आवला छः वर्ष की आयु से फल देने लगता है।
सिंचाईः- बरसात के मौसम में सिंचाई नहीं करनी पड़ती है, लेकिन जमीन में पानी के निकास की उत्तम व्यवस्था का होना आवश्यक है। यदि बरसात में पानी खड़ा रहा तो आंवले का पौधा सूख भी सकता है। नई कोपलें निकलने लगें तो 15 दिन के अंतर पर सिचाई करना आवश्यक है।
पोषण:- वृक्षों को 50 ग्राम नाइट्रोजन, 50 ग्राम फास्फोरस और 50 ग्राम पोटाश प्रति वर्ष प्रति वृक्ष देने से अच्छी उपज ली जा सकती है। सही प्रबंधन से हम आवलों से 50-60 वर्षों तक फलन प्राप्त कर सकते हैं।
आवले पर लगने वाले रोग व कीट तथा उनका उपचार:- आंवले में कीट एवं रोगों से बहुत भारी हानि नहीं होती, परन्तु इसकी उपज में कमी तथा फल की गुणवत्ता में कमी आ सकती हैं।
(क) वलय कीट:- यह कीट आंवले की पत्तियों पर गोल व अंडाकार लाल धब्बे बनते हैं।
(ख) पत्ती कीट:- जुलाई से सितंबर तक आंवले पत्तियों व फलों पर आता है।
(ग) फल विगलन रोग - अक्टूबर-नवंबर में पेड़ पर इस रोग का लक्षण दिखाई पडता है। इस रोग में फलो पर जल सिक्तक्षत बनते हैं। प्रभावित भाग बढ़ता जाता है और सुनहरे पीले रंग के पिन के सिरे के आकार के समान क्षत बनते हैं।
कवक रोग के लिये 0.2 प्रतिशत इंडोफिल या रीडोमिल का उपयोग किया जा सकता है।
कीट:- विटोंसाक्टाइटोफोरा की छोटी इल्लियां शाखा के शीर्ष भाग में छेद करके जुलाई, अगस्त तथा सितंबर के महीने में भीतर बैठ जाती हैं तथा प्रभावित शाखा पर संयुक्त गांठ बनती है।
रोग व कीट नियंत्रण के लिये स्थानीय पादप कीट व रोग विशेषज्ञ से सहायता ली जा सकती है।
उपज:- आंवला का एक पौधा 1.5-20 क्विंटल तक फल दे सकता है। अमी वर्तमान मूल्य 25-30 प्रति रुपये प्रति किलो की दर से बिक रहा है। इस तरह हम औसतन प्रति एकड 1.5-2 लाख रूपये कमा सकते हैं।
विपणन:- आंवला के फल को कहीं भी आसानी से भेजा जा सकता है तथा कुछ अधिक दिनों तक उचित तापमान पर भंडारित भी किया जा सकता है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।