केला, आम और पपीता आदि फलों को वैज्ञानिक विधि से पकाने की तकनीक      Publish Date : 14/09/2024

केला, आम और पपीता आदि फलों को वैज्ञानिक विधि से पकाने की तकनीक

                                                                                                                                                                     डॉ आर एस सेंगर

आज की भागती, दौड़ती जिंदगी में हमारे पास न तो खाने का सही समय है और न ही सोने का कोई निश्चित समय। पैसा कमाने की इस अंधी दौड़ में हम शायद भूल चुके हैं कि हमारी सेहत के लिए क्या उचित है और क्या नहीं। पिज्ज़ा और बर्गर संस्कृति के इस दौर में हम प्रकृति से काफी दूर होते जा रहे हैं। हम भूल गए हैं कि सेहत से बढ़कर कोई खजाना नहीं, क्योंकि जीवन के चार सुखों में सबसे पहला सुख निरोगी काया ही होता है। इस भेड़ चाल में हम कई तनावों और चिताओं से घिरे रहते हैं, जो अन्य कई बीमारियों को निमंत्रण देता है।

                                                                

ऐसा शायद इस वजह से कि हमें यह उचित प्रकार से ज्ञात नहीं है कि कहां और कैसे स्वस्थ का खजाना छिपा हुआ है। अपने घर पर ही हम फलों और सब्जियों के माध्यम से रोगों को स्वयं से दूर रख सकते हैं। अब बात यदि फलों की की जाए तो बाजार में बिकने वाले पके हुए फल देखने में जितने सुंदर लगते हैं, खाने में यह उतने ही स्वादिष्ट भी होते हैं, लेकिन कई बार इन फलों की पौष्टिकता पर सवाल उठते रहे हैं।

सबसे ज्यादा आशंका फलों को पकाने के लिए इस्तेमाल होने वाले रसायनों को लेकर व्यक्त की जाती है। इस समस्या को दूर करने के लिए बेंगलुरु के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ हॉर्टिकल्चर रिसर्च के वैज्ञानिकों ने फलों को पकाने की एक नई विधि विकसित की है। इस विधि से विभन्न प्रकार के फलों जैसे केला, आम और पपीता आदि को पकने पर उनकी पौष्टिकता और स्वाद पर कोई प्रतिकूल असर नहीं पड़ता है। इस विधि से फल चारों ओर से एक जैसे ही पकतें है, जिससे उनका स्वाद भी और अधिक बढ़ जाता है।

फल पकाने की तकनीकी

                                                                        

फल पकाने की इस तकनीकी को बेंगलुरु के इंडियन इंस्टीट्यूट आफ हॉर्टिकल्चर रिसर्च के वैज्ञानिकों के द्वारा विकसित किया गया है। संस्थान के प्रमुख वैज्ञानिक और पोस्ट हार्वेस्ट तकनीकी विभाग के प्रमुख डॉक्टर सी के नारायण के अनुसार इस तकनीकी को यूनिफार्म बुक रिपेनिंग सिस्टम नाम दिया गया है। इसमें बड़ी मात्रा में फलों को कम समय में एक समान रूप से पकाया जा सकता है। इस विधि से पपीता, आम और केले आदि फलों को अच्छी तरह से पकाया जा सकता है।

देश में इन तीनों फलों का भारी उत्पादन और खपत होती है तथा उनकी मांग भी तेजी से बढ़ती जा रही है। ऐसे में यदि इन फलों को रासायनिक विधि से न पकाया जाए तो शायद स्वास्थ्य के लिए यह काफी लाभकारी हो सिद्व हो सकते हैं।

फल पकाने की विधि

इस तकनीकी के अंतर्गत एक छोटे से स्थान पर पॉलिथीन का चैंबर बनाया जाता है, जिसको चारों ओर से एयर टाईट बंद करके उसके अंदर एथिलीन गैस छोड़ दी जाती है। यह गैस ही है जो इन फलों को पकाने का काम करती है।

ऐसा चैंबर बनाने के लिए सबसे पहले 2 मीटर लंबाई, चौड़ाई और ऊंचाई का एक ढांचा पतले प्लास्टिक पाइप की सहायता से बना लेते हैं और इसके बाद उसको कम घनत्व वाली पॉलिथीन से तीन तरफ से पूरी तरह से ढक देते है। इस चेंबर में ही फलों को पकने के लिए रखा जाता है। चैंबर को एक तरफ से खुला छोड़कर उसके अंदर एथिलीन गैस प्रवाहित कराई जाती है।

एथिलीन गैस बनने के लिए तरल रूप में वितरण और दाने के रूप में सोडियम हाइड्रोक्साइड नाम के केमिकल्स को एक साथ मिलाया जाता है। इससे एथिलीन गैस निकलती है, इसके साथ उस चेंबर में बैटरी से चलने वाला एक छोटा पंखा चला देते हैं जिससे गैस पूरी तरह से पूरे चैम्बर में एकसमान फैल जाती है। इसके बाद चैंबर को चौथी तरफ से भी पूरी तरह ढककर बंद कर देते हैं। फलों को इस चेंबर में 8 घंटे तक रखने के बाद बाहर निकाल लेते हैं और कुछ दिनों तक पकने के लिए फलों को बाहर रखा जाता है।

इस चैंबर में एक साथ कई कुंतल फलों को पकाया जा सकता है। आम को पकाने के लिए चेंबर के भीतर पी एमपी3, गैस में कुछ घंटे तक रखना होता है। इसके बाद आम को पकाने के लिए 5 दिन बाहर रखने होते हैं। सामान विधि से आम को पकने में करीब एक दिन का समय लगता है। इसी तरह केले के गुच्छो को पकाने के लिए एक इथरिंग गैस के बीच चैंबर में 8 घंटे रखने होते हैं। इसके बाद चार दिन बाहर रखने होते हैं। जबकि पपीते 8 घंटे चैंबर में रखने के बाद 4 दिन तक बाहर रखने होते हैं। इस विधि में एक कुंतल फल को पकाने में काफी कम समय लगता है।

इसके अलावा अब कोल्ड स्टोर के चैंबर बड़े-बड़े बना लिए जाते हैं। इन चैंबरों में आसानी से केला, पपीता और आम को पकाया जा रहा है। जहां पर एथिलीन गैस को इस्तेमाल किया जाता है। उसके बाद इस कॉल्ड चैंबर को माइनस डिग्री सेंटीग्रेड तक सीमित कर दिया जाता है, जिससे फल आसानी से और जल्दी पककऱ तैयार हो जाते हैं। भारत के बहुत से शहरों में इस तरह की सुविधा अब उपलब्ध हो चुकी है।

यूनिफॉर्म बल्क रिपेनिंग सिस्टम के क्या है फायदे

                                                                             

इस तकनीकी का सबसे विशेष लाभ यह है कि इसकी सहायता से कम लागत और कम समय में बेहतर गुणवत्ता के साथ अधिक फलों को पकाया जा सकता हैं। अभी फलों को पकाने के लिए व्यापारिक कैल्शियम कार्बाइड का उपयोग करते हैं। हालांकि, इस तकनीक को अब देश में पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया गया है। इस विधि से फलों को पकाने से फलों की क्वालिटी और स्वाद बेहतर रहता है। फलों को वैज्ञानिक तकनीकीे से पकाने का मौजूदा तरीका काफी खर्चीला होता है, इसमें कम से कम 1 लाख रुपए की लागत में एक सबसे छोटा चौंबर तैयार होता है, जिसमें कम से कम 1 टन फलों को आसानी से पकाया जा सकता है। कारोबारी और किसानों दोनों के लिए ही यह तकनीक बेहद उपयोगी है। इसमें छोटे से स्थान और कम लागत में व्यापारी आसानी से फलों को पका सकते हैं।

जितना स्थान इस तकनीकी में चाहिए होता है उतना स्थान तो लोग अपने घरों में भी आसानी से निकाल सकते हैं। साथ ही साथ इस विधि से फलों को पकाना भी काफी आसान है। इस तकनीकी से एक कुंतल फल को पकाने में काफी कम लागत आती है। डॉक्टर नारायण का कहना है कि फलों को पकाने के लिए कैल्शियम कार्बाइड जिस तरह से इस्तेमाल किया जाता है वह वैज्ञानिक रूप से बिलकुल ही गलत है। इस तरह पके फल खाने से डायरिया और उल्टी आदि की बीमारी होने का खतरा बना रहता है और यही वह वजह है कि अब इस केमिकल को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया गया है।

इसके बावजूद भी कई फल व्यापारी ऐसे हैं जो आज भी इसका प्रयोग धडल्ले से कर रहे हैं। संस्थान ने छोटे कारोबारी और किसाने की जरूरत को ध्यान में रखते हुए, छोटे आकार के चैम्बर में फलों को वैज्ञानिक विधि से पकाने की तकनीक तैयार की है, जो अब धीरे-धीरे काफी पॉपुलर होती जा रही है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।