केले की आधुनिक खेती Publish Date : 20/08/2024
केले की आधुनिक खेती
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी
देश में खेती का ट्रेंड लगातार बदलते जा रहा है। अब किसान पारंपरिक को छोड़कर नगदी फसलों की खेती करने पर फोकस कर रहे हैं। नगदी फसलों में केला की खेती बड़े पैमाने पर की जा रही है। उत्तर प्रदेश के किसान भी अब धान और गेहूं को छोड़कर बड़े पैमाने पर केला की खेती करने लगे हैं।
बाजार में केले की डिमांड पूरे साल रहती है और इसकी कीमत भी अच्छी मिल जाती है। केले की अधिक पैदावार के लिए किसानों को केले की अच्छी किस्म का चयन करना बेहद जरूरी है। केले में कुछ ऐसी किस्मे हैं, जिसकी खेती कर किसाल लाखों में मुनाफा कमा सकते हैं।
केले की अर्च्छीं किस्म है जी-9
वैसे तो देश में केले की विभिन्न किस्में उपलब्ध है और किसान इनकी खेती भी कर रहे हैं। केले की खेती के दौरान क्षेत्र विशेष की जलवायु का ध्यान रखना बेहद जरूरी होता है। किसान केले की रोवेस्टा, बत्तीसा, जी-9 किस्म, बसराई, पूवन और न्याली जैसी अन्य किस्मों की खेती कर सकते हैं। वहीं बाराबंकी जिले के कई किसान केले की खेती से जमकर मुनाफा कमा रहे हैं। उन्हीं किसान में से एक हैं मंजिठा गांव के रहने वाले विमल कुमार, केले की खेती से यह किसान भाईं अच्छी कमाई कर रहे हैं। विमल केले की खेती से सालाना 4 लाख तक की कमाई कर रहे हैं। किसान विमल कुमार ने बताया वैसे तो वह केले की खेती पिछले 12-15 सालों से करते आ रहे हैं। इस समय एक एकड़ से ज्यादा की जमीन पर केला लगा है, जो जी 9 वैरायटी का केला है।
एक बीघे से 50 से 60 क्विंटल तक निकलता है केला
किसान विमल ने इसके बारे में बताया कि जी 9 किस्म के केले का स्वाद अन्य किस्मों की अपेक्षा ज्यादा मीठा होता है। साधारण केले की अपेक्षा यह किस्म पकने में कम समय लेती है और इसमें रोगों का प्रकोप भी बहुत कम रहता है। यदि इस किस्म का पौधा बाहर से मंगवाते हैं, तो यह 15 से 16 रुपये में मिलता है। एक बीघे से 50 से 60 क्विंटल तक केला निकलता है, जबकि एक बीघे में 15 से 20 हजार रुपए की लागत आती है और मुनाफा लगभग तीन से चार लाख रूपये तक का हो जाता है। इसकी खेती करना भी बेहद आसान है। पहले खेत की गहरी जुताई कर खेत समतल किया जाता है। इसके बाद खेत में तीन-चार फीट की दूरी पर गड्ढे खोद करके उनमें केले के पौधों को लगाया जाता है।
केले के पौधों को लगाने के बाद इसकी सिंचाई कर देते हैं। जब पौधा थोड़ा बड़ा होने लगता है, तब इसमें कीटनाशक दवाइयां व खाद का छिड़काव कर दिया जाता है। वहीं 14 से 15 महीने में यह फसल तैयार हो जाती है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।