रेशम उद्योग या सेरीकल्चर: अरण्डी रेशम का उत्पादन      Publish Date : 07/02/2025

           रेशम उद्योग या सेरीकल्चर: अरण्डी रेशम का उत्पादन

                                                                                                                                       प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

अरण्डी रेशम का उत्पादन

रेशम कीट पालन से अतिरिक्त आय अरंडी बोने के दो माह बाद पत्तों की उपलब्धता हो जाती है। तब उस पर रेशम कीट पालन किया जाता है। रेशम कीट पत्तों से ही अपना भोजन लेता है। अरंडी के पत्ते और कोई भी जानवर नहीं खाता ह्रै। एकमात्र रेशम कीटों का भोजन होने से यह सुरक्षित रहते हैं। एक एकड़ खेत में अरंडी के पत्तों पर 14000 रेशम के कीट पाले जा सकते हैं। एक कीट रेशम बनाने में 25 दिन का समय लेता है। इस प्रकार अपने पूरे जीवन काल में एक अरंडी पौधे से तीन बार रेशम कीट पालन किया जाता है। एक एकड़ खेत में पाले गये रेशम कीट से 21 किग्रा. रेशम ककून प्राप्त होता है।

अरण्डी रेशम कीट का परिचय

                                                              

रेशम कीट-फाइलोसेमिया रिसिनी बाइसोड एवं फाइलोसेमिया सिन्थिया।

भोज्य वृक्ष

अरण्डी रेशम कीट मुख्य रूप से रिसिनस कम्यूनिस अरण्डी अथवा हेटरोपेनेक्स फ्रेग्रेन्स कसेरू की पत्तियां खाता है।

अरण्डी बागान तैयार करने की विधि एवं रख-रखाव

  • ऊँची, समतल अथवा ढलान भूमि, जहाँ जल का रूकाव न हो, का चयन।
  • बुआई, पौध लगाने हेतु उपयुक्त  समय है।
  • भूमि को 2-3 बार 20-25 सेन्टीमीटर गहराई तक जुताई करना चाहिए।
  • 20x25x25 सेमी का 1-1 मीटर के अन्तराल पर गडढे खोदना चाहिए।
  • एक एकड़ भूमि में अरण्डी के 10,000 पौधे रोपित किये जा सकते है, जिनसे वर्ष में 10 मीट्रिक टन पत्ती प्राप्त की जा सकती है।
  • गड्ढों में 1 ग्राम एण्डोफिलएम-45 का मिश्रण 10 ग्राम लिन्डेन पाउडर तथा 3-4 किग्रा सूखी सडी गोबर की खाद प्रति गड्ढ़े की दर से प्रयोग कर मिट्टी के साथ अच्छी तरह मिला देना चाहिए।
  • वर्षा वाले दिन 20-25 सेमी के अन्तराल पर गड्ढों में स्वस्थ तरूणा पौधे/अंकुरित बीज रोपित करने चाहिए।
  • आवश्यकतानुसार निराई/गुड़ाई करनी चाहिए।
  • प्रत्येक वर्ष, मानसून पूर्व 10 टन प्रति हेक्टेयर की दर से सड़ी खाद एक बार चार किलो (0.5 घनफुट) प्रति पौधा प्रयोग करना चाहिए।
  • 125:75:25 के अनुपात में नाइट्रोजन, फासफोरस व पोटाश दो खुराकों में प्रयोग करना चाहिए।
  • कवक व फफूंदी जनित बीमारियों को रोकने के लिये 10 ग्राम लिन्डेन पाउडर रासायनिक खाद/ गोबर खाद के प्रयोग के समय प्रति पौध करना चाहिए।
  • ‘‘रोगर’’ 0.2 प्रतिशत/0.05 ‘‘डेमीक्रॉन’’ /0.07 प्रतिशत,:ःनुवान’’ तथा 0.01 प्रतिशत एण्डोफिलएम-45 (1000-1200 लीटर) प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 2-3 बार 10-15 दिन के अन्तराल पर पीड़क व बीमारियों से बचने के लिये छिड़काव करना चाहिए।

कीटपालन

                                                         

  • कीटपालन प्रारम्भ करने के पूर्व 3 दिन पूर्व 2 प्रतिशत फार्मलीन घोल से कीटपालन कक्ष का विशुद्धीकरण करना चाहिए।
  • कीटपालन उपकरण जैसे लकड़ी की ट्रे, पत्ती संग्रह करने की डोलची,  टोकरी का 2 प्रतिशत फार्मलीन घोल से विशुद्धीकरण करना चाहिए।
  • कीटपालन के अन्य उपकरणों को 5 प्रतिशत क्लोरीनेटेड चूने में 10 मिनट डुबाकर विशद्धीकरण करना चाहिए।
  • कीटपालन कक्ष में सभी दरारों व सुराखों को बन्द करना चाहिए ताकि पीड़ृक जन्तुओं के आगमन को रोका जा सके। खिड़की दरवाजों व रोशनदानों को वायु के खुले आवागमन के लिये खुला रखना चाहिए।
  • कीटपालन कक्ष में आवश्यक उचित तापमान, आर्द्रता व स्वस्थ वातावरण बनाये रखना चाहिए।
  • रेशम कीट के अण्डों को 26 डिग्री सेन्टीग्रेड तापमान व 80 प्रतिशत आर्द्रता पर निषेचन हेतु रखना चाहिए।
  • प्रस्फुटन के 48 घण्टे पूर्व अण्डों को काले कपड़े से ढक कर रखना चाहिए और प्रस्फुटन तिथि वाले दिन सुबह अण्डों पर प्रकाश डालना चाहिए।
  • अण्डे प्रायः ग्रीष्म काल में 8-10 दिन में तथा शरद काल में 12-15 दिन में प्रस्फुटित होते है।
  • कीड़ों को मुलायम सरस पत्ती पर ब्रश करना चाहिए।
  • केवल दो दिन में प्रस्फुटित हुये कीड़ों को ही कीटपालन हेतु रखना चाहिए। ब्रशिंग के समय मुलायम पंख का प्रयोग करना चाहिए ताकि कीड़ो को कोई हानि न हो।
  • प्रथम से तृतीय अवस्था तक के कीड़ों को ही कीटपालन हेतु सेन्टीग्रेड तथा आद्रता 80-90 प्रतिशत होनी चाहिए।
  • कीड़ों को ताजी पत्ती दिन में चार बार खिलानी चाहिए।
  • प्रत्येक अवस्था के मोल्ट के पूर्व एक बार शैय्या की सफाई करनी चाहिए तथा मोल्ट के समय पत्ती नहीं देनी चाहिए।
  • अधिक गर्म व शीत से कीड़ों को बचाना चाहिए।
  • चतुर्थ व पंचम अवस्था के दौरान तापमान 25-26 डिग्री सेन्टीग्रेट व आद्रता 70-80 प्रतिशत होनी चाहिए।
  • अर्द्धपक्व व पूर्ण परिपक्व पत्तियाँ क्रमश: चतुर्थ व पंचम अवस्था के कीड़ों को खिलानी चाहिए तथा पाँच बार दिन में पत्तियाँ देनी चाहिए तथा प्रत्येक दिन शैयया की सफाई करनी चाहिए। पंचम अवस्था में 80-82 प्रतिशत पत्ती कीड़ों द्वारा खाई जाती हैं। अतः पत्ती की कमी नहीं पड़नी चाहिए।
  • अरण्डी रेशम कीटपालन के दौरान शैय्या में क्षमता से अधिक कीड़े नहीं रखने चाहिए।
  • कमजोर, जख्मी, रोग ग्रस्त, असमान वृद्धि वाले कीड़ों को छाँट कर दो प्रतिशत फार्मलीन के घोल में डालकर जमीन में दबा देना चाहिए अथवा जला देना चाहिए।
  • कीड़ों की स्पिनिंग प्रारम्भ होने के पूर्व जाली, स्टैण्ड, पुराना अखबार इत्यादि को माउण्टिंग हेतु तैयार रखना चाहिए। 150 कीड़े प्रति जाली (माउन्टेज) के हिसाब से माउन्ट कराना चाहिए।
  • माउन्टिंग के बाद ग्रीष्म में 5-6 दिन के बाद व शरद में 8-9 दिन बाद कोयों की तुड़ाई करनी। चाहिए। खराब व अच्छे कोये को अलग-अलग रखना चाहिए।

अरण्डी कीटपालन का आर्थिक विश्लेषण

  • प्रति एकड़ 8x3 फिट के अन्तराल हेतु 2 किग्रा अरण्डी बीज आवश्यक होता है।
  • एक एकड़ में 2000 अण्डी के पौधे मिर्च की अन्तरफसल लगा सकते है।
  • 2000 अरण्डी पौधो से 5000 कि.ग्रा. पत्तियाँ प्राप्त होती है।
  • 5000 कि.ग्रा. पत्ती का 20 प्रतिशत अर्थात 1000 कि.ग्रा. का उपयोग रेशम कीटपालन में किया जा सकता है, जिससे अरण्डी बीज उत्पादन प्रभावित नहीं होगा।
  • वर्ष में अरण्डी रेशम कीटपालन की 3-4 फसलें आसानी से ली जा सकती हैं।
  • अरण्डी रेशम कीटपालन कार्य 25 दिन में सामान्यतः पूर्ण हो जाता है।
  • अरण्डी के एक डी०एफ०एल० में प्रायः 300 अण्डे होते है जिनसे लगभग 240 कीड़े प्रस्फुटित होकर सामान्य स्थिति में 200 कोया तक बनाते हैं।
  • एक डी०एफ०एल० के कीटपालन में 10 कि.ग्रा. लगभग अण्डी पत्ती की खपत होती है। 1000 किग्रा अरण्डी के पत्तों से 100 डी०एफ०एल० कीड़े पाले जा सकते हैं।
  • 100 डी०एफ०एल० से लगभग 60 कि.ग्रा. अरण्डी कोया प्राप्त होगा।
  • 60 कि.ग्रा. रेशम में से, 10 कि.ग्रा. प्यूपा रहित कोया तथा 50 कि.ग्रा. प्यूपा सामान्यतरू प्राप्त होता है।
  • 10 कि.ग्रा. कोये का मूल्य रू० 600.00 प्रति कि.ग्रा. की दर से रू० 6000.00 प्राप्त होगा।
  • 50 कि.ग्रा. प्यूपा का मूल्य रू० 50.00 प्रति कि.ग्रा. की दर से रू०  2500.00 प्राप्त होगा।
  • 10 कि.ग्रा. प्यूपा रहित कोया (शैल) से 8 कि.ग्रा. रेशम धागा प्राप्त होगा।
  • 8 कि.ग्रा. रेशम धागे का मूल्य रू० 1000.00 प्रति कि.ग्रा. की दर से रू० 8000.00 प्राप्त होगा।
  • एक एकड़ से लगभग 5 कुन्तल अरण्डी बीज प्राप्त होगा, जिसका मूल्य रू० 1500.00 प्रति कुन्तल की दर से रू० 7500.00 प्राप्त होगा।
  • मिर्च की अर्न्तफसल से एक एकड़ में लगभग 10 कुन्टल मिर्च का उत्पादन होगा। जिसका मूल्य रू० 1000.00 प्रति कुन्तल की दर से रू० 10,000.00 प्राप्त होगा।

इस प्रकार एक एकड़ अरण्डी की खेती से सकल आय का आगणन निम्नवत हैः-

(अ)   अण्डी रेशम कोया से     रू० 6,000.00

(ब)   प्यूपा बिक्री से          रू० 2,500.00

(स)   अण्डी के बीज से            रू० 7,500.00

(ग)   मिर्च उत्पादन से        रू० 10,000.00

   कुल                रू० 26,000.00

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।