
केले के कचरे से कमाई Publish Date : 05/03/2025
केले के कचरे से कमाई
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं अन्य
बिहार के तीन युवा उद्यमियों ने यह साबित कर दिया है कि छोटे कदम भी बड़े बदलाव ला सकते है।. जब युवा अपनी शिक्षा और कौशल का उपयोग समाज के कल्याण के लिए करते हैं, तो वे न केवल अपने लिए बल्कि पूरे समुदाय के लिए सकारात्मक परिवर्तन लेकर आते हैं. ‘तरुवर एग्रो’ नामक स्टार्टअप इस बात का उदाहरण है कि कैसे नवाचार को सतत विकास से जोड़ा जा सकता है, जिससे पर्यावरण और अर्थव्यवस्था दोनों को लाभ होता है।
भारत दुनिया में सबसे अधिक केले का उत्पादन करने वाला देश है, लेकिन इसकी फसल लेने के बाद बचने वाले 60 फीसदी जैविक अवशेष बेकार चले जाते हैं। इसी समस्या को अवसर में बदलने का काम बिहार के हाजीपुर के तीन युवा उद्यमियों- जगत कल्याण, सत्यम कुमार और नितीश वर्मा ने मिलकर किया। वर्ष 2021 में अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद, इन तीनों ने ‘तरुवर एग्रो’ की स्थापना की। यह स्टार्टअप केले के पेड़ों के कचरे से उपयोगी उत्पाद बनाकर न केवल करोड़ों की कमाई कर रहा है, बल्कि स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के अवसर भी सृजित कर रहा है।
करोड़ों की कमाई का जरिया बना केले का कचरा
जगत कल्याण, सत्यम कुमार और नितीश वर्मा ने दूसरे की नौकरी के बजाय अपने राज्य में ही स्वरोजगार शुरू करने का निर्णय लिया। उन्होंने देखा कि किसान केले की फसल उगाने में कड़ी मेहनत करते हैं, लेकिन फल काटने के बाद पेड़ को बेकार समझकर हटा देते हैं। इससे खेतों में बड़ी मात्रा में कचरा इकट्ठा हो जाता है, जिसे साफ करना किसानों के लिए मुश्किल हो जाता है।
तीनों युवाओं ने रिसर्च शुरू की और पाया कि केले के पेड़ों से निकलने वाला कचरा वास्तव में बहुत उपयोगी हो सकता है। उन्होंने केले के तनों से प्राकृतिक रेशे (फाइबर) निकालने की तकनीक सीखी और इसे विभिन्न उत्पादों में बदलने का तरीका अपनाया। इसके बाद, वर्ष 2021 में ‘तरूवर एग्रो’ की नींव रखी गई।
रोजगार का नया माध्यम बना केले का कचरा
तरुवर एग्रो केले के पेड़ों से प्राकृतिक रेशे निकालने और उन्हें विभिन्न उत्पादों में बदलने की तकनीक पर काम कर रहा है। इस स्टार्टअप की शुरुआत मात्र चार मजदूरों के साथ हुई थी, लेकिन आज इसके यूनिट में करीब 30 स्थायी और दैनिक मजदूर कार्यरत हैं, जिनमें महिलाओं की संख्या अधिक है। तरुवर एग्रो द्वारा बनाए जाने वाले प्रमुख उत्पाद हस्तशिल्प, योगा मैट फोल्डर, टोकरियां, पेंटिंग, कुशन, कवर कोस्टर और अन्य उपयोगी सामान। इससे न केवल पर्यावरण की रक्षा हो रही है, बल्कि किसानों को अतिरिक्त आमदनी भी प्राप्त हो रही है।
किसानों को कैसे मिल रहा फायदा?
‘तरुवर एग्रो’के द्वारा केला किसानों के साथ साझेदारी की गई है। कंपनी किसानों को प्रति पेड़ 5 से 25 रुपये तक का भुगतान करती है, जिससे उन्हें केले के फल के अलावा पेड़ों के कचरे से भी आय होने लगी है। कई किसान बिना पैसे लिए ही अपने खेत का कचरा कंपनी को दे देते हैं, क्योंकि इससे उन्हें अपने खेत साफ करने में लगने वाले खर्च से राहत मिलती है। ‘तरुवर एग्रो’ का काम केवल फाइबर निकालने तक ही सीमित नहीं है।
उत्पादन के दौरान निकलने वाले गूदे (पल्प) को खाद (वर्मी-कंपोस्ट) में बदला जाता है, जिससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है। केले के पेड़ से एक प्राकृतिक तरल भी निकाला जाता है, जिसमें भरपूर मात्रा में पोषक और सूक्ष्म पोषक तत्व होते हैं और इसे जैविक खाद के रूप में बेचा जाता है।
कचरे के उत्पाद ने बाजार में पकड़ी रफ्तार
वर्ष 2022-23 के वित्तीय वर्ष में ‘तरुवर एग्रो’ ने 50 लाख रुपये का वार्षिक टर्नओवर हासिल किया और वर्तमान में, कंपनी हर महीने हजारों किलोग्राम केले के फाइबर का उपयोग कर रही है और अपने उत्पादों को ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों माध्यमों से बेच रही है। केरल, गुजरात, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, पंजाब, तमिलनाडु और मध्य प्रदेश आदि देश के विभिन्न राज्यों में अपने उत्पाद बेच रही है।
अब कंपनी अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी प्रवेश करने की योजना बना रही है। सत्यम कुमार, जो कंपनी के मार्केटिंग और सेल्स का काम संभालते हैं, बताते हैं, ‘हमने भारत में अच्छी बाजार पकड़ बना ली है और अब एक्सपोर्ट की तैयारी कर रहे हैं।’
कचरे से पैसे की कमाई और पर्यावरण सुरक्षा
‘तरुवर एग्रो’अब केवल बनाना फाइबर तक सीमित नहीं रही है, बल्कि यह स्टार्टअप अब ड्राई फ्रूट्स के क्षेत्र में भी काम कर रहा है। कंपनी आठ विभिन्न फ्लेवर के मखाने के उत्पाद तैयार कर रही है, जो बाजार में तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं।
वर्ष 2024 में कंपनी का सालाना टर्नओवर लगभग 1.50 करोड़ रुपये था। अगले वर्ष इसे 5-6 करोड़ रुपये तक पहुंचाने की योजना बनाई जा रही है। ‘तरुवर एग्रो’ में खास सबसे खास बात ये है कि स्थानीय किसानों को आर्थिक रूप से सशक्त बना रहा है। दूसरा, पर्यावरणीय स्थिरता और जैविक कृषि को बढ़ावा दे रहा है। फसल अवशेष प्रबंधन और पुनर्चक्रण का बेहतरीन उदाहरण पेश कर रहा है।
युवाओं की नई सोच से बिहार में आई नई बहार
जगत कल्याण, सत्यम कुमार और नितीश वर्मा जैसे युवा उद्यमियों ने यह साबित कर दिया है कि सही दिशा में प्रयास किया जाए, तो किसी भी कचरे को संसाधन में बदला जा सकता है। यह स्टार्टअप न केवल पर्यावरण संरक्षण में योगदान दे रहा है, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी मजबूत कर रहा है। आज के समय में जब पर्यावरण का मुद्दा इतना अधिक बढ़ रहा है, उस समय इस प्रकार का काम पर्यावरण को बचाने में बहुत सहायक सिद्ध हो रहा है। तरुवर एग्रो न केवल आर्थिक सफलता की ओर बढ़ रहा है, बल्कि पर्यावरण और समाज को भी सकारात्मक रूप से प्रभावित कर रहा है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।