किसान ने खोजी स्वदेशी बीजों से 100 बेहतरीन फसल किस्में Publish Date : 01/09/2024
Successful Farmer: किसान ने खोजी स्वदेशी बीजों से 100 बेहतरीन फसल किस्में
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
देशी बीजों के प्रति अपने गहरे लगाव और समर्पण के चलते, एक किसान ने 30 वर्ष की कड़ी मेहनत के बाद 100 बेहतरीन फसल किस्मों की खोज कर डाली है। यह किसान, जिसने अपने जीवन को देशी बीजों के संरक्षण और संवर्धन के लिए समर्पित कर दिया, न केवल खुद के लिए बल्कि देशभर के किसानों के लिए एक प्रेरणास्त्रोत बन गया है। देशी बीजों के प्रति किसान का यह प्रेम न केवल उसके खुद के खेतों के लिए लाभदायक साबित हुआ है, बल्कि यह उन किसानों के लिए भी एक उदाहरण बन गया है जो पर्यावरण और कृषि के संरक्षण के प्रति समर्पित हैं।
जलवायु परिवर्तन के वर्तमान दौर में प्राकृतिक खेती और देशी बीजों का महत्व तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन यह कोई नई सोच नहीं है। देश में बहुत से किसान बहुत पहले से ही इन पद्धतियों को अपनाने लगे हुए थे और उन्होंने रासायनिक उर्वरकों और संकर बीजों के दुष्प्रभावों को समझते हुए ही लगभग 30 वर्ष पहले से ही स्वदेशी बीज और जैविक खेती की ओर रुख कर लिया था। ऐसे ही एक सजग और प्रगतिवादी सोच रखने वाले एक किसान हैं श्रीप्रकाश सिंह रघुवंशी, जो ‘‘अपनी खेती, अपना बीज, अपना खाद, अपना स्वाद’’ के नारे को बुलंद करने वाले एक प्रगतिशील किसान के रूप में जाने जाते हैं।
उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के तड़िया गांव के निवासी, 64 वर्षीय रघुवंशी ने केवल 8वीं कक्षा तक पढ़ाई की है, बल्कि उनका कृषि के प्रति समर्पण और खेती में स्वेदेशी बीजों और जैविक खेती में नवाचार से 30 वर्षों में 100 किस्मों की खोज करने के कारण उन्हें देशभर में प्रसिद्ध कर दिया है।
किसान से स्वदेशी बीज के प्रहरी बन चुके रघुवंशी
श्रीप्रकाश सिंह रघुवंशी पिछले 30 वर्षों से जैविक खेती और स्वदेशी बीजों की उन्नत किस्मों के विकास में लगे हुए हैं। उन्होंने गेहूं, धान, सरसों और अरहर जैसी प्रमुख फसलों की कई उन्नत किस्में तैयार की हैं, जिनसे जैविक खेती के माध्यम से रासायनिक खेती की तुलना में बेहतर पैदावार प्राप्त की जा सकती है। प्रकाश सिंह का कहना है कि उन्होंने प्राकृतिक रूप से बीज विकसित करने का हुनर अपने पिताजी से सीखा, जो प्राइमरी स्कूल के अध्यापक थे, लेकिन उन्नत किस्म की खेती किया करते थे। अपने पिताजी के मार्गदर्शन और प्रेरणा से ही उन्होंने कृषि में नवाचार की दिशा की ओर कदम बढ़ाया। बाद में उन्हें नई किस्में विकसित करने की प्रेरणा बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के पूर्व प्रोफेसर डॉ. महातिम सिंह से मिली। जिन्होंने उन्हें ऐसी किस्में विकसित करने के लिए प्रेरित किया जो किसानों की आय में व्यापक सुधार करने में सक्षम हों।
स्वदेशी बीजों से मिलेगी बेहतर पैदावार
रघुवंशी के द्वारा विकसित की गेहूं की ‘‘कुदरतश् किस्म’’, किस्म, जो वर्ष 1995 में उनके खेत में उगाई गई थी, उनकी सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक है। इसके बाद उन्होंने गेहूं की कुदरत-7, कुदरत-9 जैसी अन्य किस्में विकसित कीं। अब तक, उन्होंने गेहूं की लगभग 80, धान की 25 और दालों की 10 और सरसों की 3 से अधिक किस्में विकसित की हैं। इसके अलावा, उन्होंने सरसों, मटर और अन्य फसलों के 200 से अधिक स्वदेशी बीज भी संरक्षित किए हैं। उनकी उन्नत किस्में फसलों के प्रमुख कीटों और बीमारियों के प्रति प्रतिरोधी हैं और उनके बीज स्वादिष्ट और सुगंधित भी होते हैं।
गेहूं की उन्नत किस्मों की प्रति एकड़ उपज 15-27 क्विंटल के बीच होती है। धान की उन्नत किस्मों की उपज 15-30 क्विंटल प्रति एकड़ और अरहर की उन्नत किस्मों की उपज 10-15 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। कुदरत-9 गेहूं और अरहर की कुदरत -3 किस्मों को सरकार ने पंजीकृत किया है। रघुवंशी अपने खेतों पर धान, गेहूं और अरहर सहित कई फसलों में जैविक विधि से खेती करके अपने स्वदेशी बीजों से बंपर पैदावार ले रहे हैं। उन्होंने अपने घर पर एक बीज बैंक स्थापित किया है, जिसमें कई प्रकार के बीज संग्रहित करके रखे हैं।
बीज संरक्षण के लिए मिला पीएम मोदी का सहयोग
श्री प्रकाश रघुवंशी कहते हैं कि आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण उनके लिए इतनी बड़ी संख्या में इन किस्मों का संरक्षण करना चुनौतीपूर्ण हो रहा था। हालांकि ये प्रजातियां पोषण और उत्पादन की दृष्टि बेहद अच्छी हैं। इसलिए गेहूं की प्रजातियों को जर्मप्लाज्म संरक्षित करने के लिए उन्होंने प्रधानमंत्री से पत्र लिख कर अनुरोध किया कि वे अपनी अस्सी गेहूं की प्रजातियों को भारत सरकार को दान करना चाहते हैं। रघुवंशी के इस पत्र को संज्ञान में लेते हुए प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने गेहूं एवं मक्का अनुसंधान संस्थान, करनाल को एक पत्र भेजा। पत्र मिलने के बाद, करनाल से दो वैज्ञानिक वाराणसी श्रीप्रकाश रघुवंशी के फार्म पर पहुंचे और रघुवंशी ने कृषि वैज्ञानिकों को 31 गेहूं की प्रजातियां सौंप दी। शेष प्रजातियां अक्टूबर माह में बीज गोदाम खुलने पर सौंपी जाएंगी।
बारिश के मौसम में बीजों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए शेष प्रजातियों को बाद में दिया जाएगा। इन प्रजातियों में प्रमुख रूप से सूर्या 555, कुदरत अन्नपूर्णा, रघुवंशी 777, कुदरत 17, कुदरत 9 आदि शामिल हैं।
प्रकाश रघुवंशी का जैविक खेती का खास तरीका
रघुवंशी का जैविक खेती का तरीका भी बेहद खास है। वह बनारस के मंदिरों से मिलने वाले फूलों, मदार और धतूरा का उपयोग कर जैविक खाद तैयार करते हैं और अमृत जीवा नामक घोल का उपयोग फसलों की सुरक्षा और बीज शोधन के लिए करते हैं। उनका मानना है कि बीजों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए ग्रेडिंग और पैकिंग की व्यवस्था खुद करनी चाहिए। अपने संघर्षों के बावजूद, रघुवंशी ने कभी हार नहीं मानी और हमेशा किसानों को स्वदेशी बीजों का उपयोग करने और अपने बीजों को स्वयं विकसित करने के लिए प्रेरित करते रहे। उनके बीजदान अभियान ने उन्हें देशभर में उन्हें एक अलग पहचान दिलाई है और उन्हें राष्ट्रपति द्वारा लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड सहित कई पुरस्कारों से भी सम्मानित किया जा चुका है। श्रीप्रकाश सिंह रघुवंशी का जीवन और कार्य अन्य किसानों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।