कविता :भारत ही भगवान Publish Date : 22/01/2024
कविता: भारत ही भगवान
भारत ही भगवान है
वह माटी मुझको प्यारी है
चंदन उस की धूल है,
बरगद जहाँ छांह देता है
गहता बांह बबूल है।
सागर-सा संतोष जहां
पर्वत-सी अडिग उठान है,
धरती-सी है क्षमा आग-सा
असन्तोष अभिमान है।
ऐसा देश-देवता मेरा-
भावुक भोला नाथ है,
जिस का जल का ज्वाला का
अमृत का विष का साथ है।
गंगा बहती है सिर पर तो-
पैरों पर पायोध है,
माथे पर चन्द्रमा सुशीतल
भृकुटि बंक में क्रोध है।
शान्त सदा शिव आशुतोष है
मेरा देव उदार है,
प्रलयंकर शंकर है, विषधर
सर्पों का श्रृंगार है।
ऐसा औघड़ -दानी पल में
करता कभी निहाल है,
कभी रमाता भस्म पहनता
कभी मुंड की माल है।
उत्तर उसका आसमान है-
तो दक्षिण पाताल है, पश्चिम सायंकाल अगर तो
पूर्व प्रातः काल है।
देश-काल दोनो दो पग हैं।
तो ऊँची-नीची चाल है,
समतल कहीं तो उछाल कहीं पर-
और कहीं पर ढाल है।
यह समुद्र में सेतु बांध
पानी पाथर से पाट कर-
चलता जाता किरणें पी कर-
और चाँदनी चाट कर।
कितने कल्प पड़ गए पीछे
बलि के छल की छांव से।
कितने युग नए गए सृजन के
महाप्रलय के पांव से।
कितने मास वास में बीते
कितने पक्ष-विपक्ष में,
कितने दिन गिन गए व्यथा में
जुड़, परोक्ष-प्रत्यक्ष में।
लेकिन जिसकी झुकी न गरदन
रोग और तलवार से,
सीना तनता गया दिनों-दिन
बारूदी बौछार से।
बलखाती आजानु भुजाएं
बनती रही बलिष्ठ हैं,
पैर प्रमाण-धर्म पर दृढ़ हैं
हाथ कर्म से क्लिष्ट है।
देश-गान मेरा यह जिसके
पग की प्रतिध्वनि मात्र है,
मेरा महादेव मेरी लेखनी
और मसि-पात्र है।
स्याही के दो बूंद दान कर
कुछ बन जाते धन्य हैं,
अपना सिर-सर्वस्व चढ़ाते
बलि हो जाते अन्य है।
उनके ही बलिदान, प्राण के
आच्छादन हैं छन्द हैं,
आतप के आगे शहीद के
सूर्य-चन्द्र भी मन्द हैं।
अमर शहीदों की समाधि के
जिस पर चढ़ते फूल हैं,
वह देवता विराट कि जिसके
जो अनिष्ट अनुकुल है।
वह विराट-देवता कि जिस का
हिन्द-महानद गान है,
यह विराट देवता कि जिसका
जटा मुकुट हिमवान् है।
वह विराट देवता हमारा
जिस पर अपिंत प्राण है,
भावुक भक्त, भयंकर-भैरव,
भारत ही भगवान् है।
प्रस्तुति: प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।