कविता : भारत की गरिमामयी धरती Publish Date : 07/01/2024
कविता : भारत की गरिमामयी धरती
सभी नदियों में यहाँ पर
बह रहा जल एक है,
शशि दिवाकर कर रहे
जिस भूमि का अभिषेक हैं।
जल रही फिर आज क्यों ?
कश्मीर की घाटी ।
एक है जब देश की माटी।
जल पांच नदियों का
जहाँ पंजाब कहलाया,
एकता का भूमि से
संदेश जिस आया।
हो रही है क्यों लहू से ?
लाल वह माटी।
एक है जब देश की माटी।
एक हैं मानव सभी,
जिस देश ने गाया,
शत्रु को भी देश ने
जिस सदा अपनाया।
बट रही क्यों आज पग-पग ?
पूज्य वह माटी।
एक है जब देश की माटी।
जा रहा क्यों आज बाँटा ?
भू-गगन सारा;
हो रहा क्यों रक्त मीठा
और है खारा ?
भूमि लाशों से यहाँ क्यों ?
जा रही पाटी।
एक है जब देश की माटी।
प्रण करो पंजाब से,
आसाम तक हम एक हैं,
काश्मीर से कन्याकुमारी,
तक सदा हम एक हैं।
अब नहीं फिर से बटेगी ?
देश की माटी।
एक है जब देश की माटी।
प्रस्तुति: प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।