श्रीराम की जल समाधि Publish Date : 06/01/2024
श्रीराम की जल समाधि
(1)
जाकर महान सत्य सामने था
कैसे मान सकते थे इसे झूठ रामवेद
होकर गिरे वेदना से भूमि पर
कूल सरित हुए जटाजूट राघवेद
सुश्री के स्वयंवर के सभी रूप आने लगे
याद करने लगे वो चित्रकूट राघवेन्द्र
तेरे बिन आपका है जीवन मे व्यर्थ अब
कड़कर के रोने लगे फूट-फूट राघवेन्द्र
(2)
कमल नयन के दयाम्बु थे तुहिन तुल्य
रसना ये सिया के ही भिन्न-भिन्न नाम थे
प्रिया के वियोग में यों पीले पीले दीखते थे
लगता था शरद की फूली हुई शाम थे
आज मर्यादा पुरुषोत्तम योगी नहीं थे
व्यथित वियोगी, ले वियोग परिणाम वे
सिया के निमित्त प्राण त्यागने को उद्यत थे
जान की न चाह बस जानकी के राम थे
(3)
प्राण थे पहेली और सांस थी समस्या
बना जीवन जटिल, कोई जिसका न हल था
सारी सृष्टि स्वप्न सीधी सीता मात्र सत्य रूप
उस क्षण यही बस चिन्तन प्रबल था
राघव को दुखी देख सूर्य देव भी रोने लगे
अम्बर भी वेदना से व्याकुल विकल था
सरयू की धार बीच पग रखा राम ने तो
चूमकर चरण धन्य सरयू का जल था
(4)
भक्ति भावना से भींच राघव के चरणों को
बार बार धोने लगी सरयू की लहरें
घुटनों को चूम-चूम मेखला सी घूम-घूम
कटि को भिगोने लगी सरयू की लहरें
नाभि को नमन कर, सीने पर सिर धर
सुध बुध खोने लगी सरयू की लहरें
शीश की शिखा से खेल पहले तो हँस पड़ी
किन्तु फिर रोने लगी सरयू की लहरें।