भारतीय कृषि में कुशल जल-प्रबन्धन      Publish Date : 20/10/2024

                        भारतीय कृषि में कुशल जल-प्रबन्धन

                                                                                                                                                            प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

प्रत्येक वर्ष के 16 अक्टूबर को संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन के द्वारा विश्व खाद्व-दिवस के रूप में मनाया जाता है। जल-खाद्व सुरक्षा का आधार नामक थीम के अनुसार विश्व की जनसंख्या के पोषण में ताजें जल की विशेष भूमिका है और खाद्व-सुरक्षा की सनिश्चितता के लिए सक्रि और स्वास्थ्य जीवन के लिए उच्च गुणवत्ता से युक्त पर्याप्त भोजन नियमित रूप से प्राप्त होना अति आवशयक है।

खाद्यान्नों का उत्पादन और पानी की किल्लत

                                                                          

    जैसा कि सभी लोग जानते हैं कि धरती पर तीन चौथाई भाग सिर्फ और सिर्फ पानी ही है, परन्तु ताजे जल के रूप में बहुत ही कमा मात्रा उपलब्ध है। पानी की इसी उपलब्ध  मात्रा में से ही 70 प्रतिशत तक खाद्य उत्पादन के तहत प्रयोग किया जाता है। जैसे-जैसे जनसंख्या में बढ़ोत्तरी होगी, अनन की माँग भी उसी के अनुरूप बढ़ती जायेगी। विश्व खाद्य संगठन के अनुसार वर्ष 2030 में विश्व में 60 प्रतिशत अतिरिक्त भोजन की आवश्यकता होगी और अतिरिक्त अन्न की यह मात्रा सिंचित साधन सम्पन्न खेतों के माध्यम से ही परी होगी।

    विभिन्न देशों में पानी की बहुत कमी है। विश्व खाद्य संगठन के द्वारा 93 विकासशील देशों के अध्ययन से स्पष्ट है कि कई देश पानी का उपयोग बहुत तेजी के साथ रि रहे हैं और इस मामले में विश्व के 10 देश क्राँान्तिक अवस्था में हैं अर्थात यह देश अपने उपलब्ध जल-संसाधनों का 40 प्रतिशत से अधिक हिस्सा खेती-बाड़ी में उपयोग कर रहे हैं और अन्य 8 जल-दबाव से ग्रस्त हैं, जो 20 प्रतिशत तक जल का उपयोग कर रहे हैं। इसके साथ ही औद्योगिक एवं घरेलू खपत के लिए जल प्रतिस्पर्धा निरंतर बढ़ती जा रही है।

    विश्व खाद्य संगठन को विश्वास है कि भविष्य में खाद्य एवं जल की माँग के समाधान से कृषि उत्पादन और जल उपभोग की दक्षता में भी सुधार करना होगा। अच्छे बीज के प्रयोग से, मृदा की उर्वरता में वृद्वि कर तथा खेतों में जल प्रबन्धन के सुधार से किसान अधिक उपज प्राप्त कर सकेंगे। इस प्रकार बहुमूल्य जल से अधिक से अधिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

                                                                             

    जिन स्थानों पर्याप्त मात्रा में पानी उपलब्ध है, उन स्थानों में भी पानी की पहुँच एक समान नही है। उदाहरण के लि हमें अपनी महिलाओं पर अधि ध्यान केन्द्रित करना होगा, जिनकी संख्या विकासशील देशों के कृषकों में सर्वाधिक है और परम्परा के अनुसार भूमि की मलकियत एवं जल-प्रबन्धन में महिलाओं को शामिल नही किया जाता है।

    पानी का उपयोग सीमित मात्रा में ही किया जाना चाहिए, जिससे एक क्षेत्र में इसके अधिक उपयोग करने के चलते दसरे क्षत्र के लागों को इससे वंचित नही रहना पड़े। पर्यावरणीय दबाव भी कम से कम हो, जबकि बारानी खेती की तुलना में सिंचित खेती से दो से तीन गुना अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है, इसके लिए उचित जल निकास पर भी ध्यान देना होगा ताकि जल संभरता और खेती में लवणों के जमाव को रोका जा सके। इसके साथ ही कृषि को नगरपालिका और उद्योग से जल आपूर्ति के लिए प्रतिस्पर्धा भी करनी होगी, क्योंकि लगभग 20 प्रतिशत जल की आपूर्ति उद्योग धन्धों में तथा शेष 10 प्रतिशत जल की खपत नगरपालिकाओं के द्वारा जल आपूर्ति के रूप में की जाती है। इसलिए कृषि पर जल की दक्षतापूर्ण उपयोग का दबाव बढ़ता ही जाएगा और इसी के साथ जल की गुणवत्ता को भी बढ़ाना होगा।

    सिंचाई की प्रणालियों में भी व्यापक सुधार की आवश्यकता है, जैसे कि परम्परागत सिंचाई की प्रणालियाँ और छिड़काव सिंचाई में फसल की आवश्यकता से अधिक पानी की खपत होती है। टपक सिंचाई प्रणाली के जैसी दक्ष और क्षेत्रीय विधियों के माध्यम से पानी केवल पानी आवश्यकता वाले क्षेत्रों तक पहुँचता है, जिससे कृषि जल आपूर्ति और माँग के अन्तर को काफी कम किया जा सकता है। बारानी कृषि के अन्तर्गत अनिश्चित् पानी की उपलब्धता से सम्बन्धित कृषि क्रियाओं को अपनाने से लाभ प्राप्त होता है। छोटे-छोटे कूड़ों से लेकर बाँध तक जल एकत्रण स्रोत बनाकर किसान वर्षा जल को एकत्र कर उसका उपयोग फसलों की सिंचाई हेतु कर सकते हैं।

परम्परागत खेती की तुलना में टपक सिंचाई पद्वति का उपयोग कर उत्पादन भी दो से तीन गुणा तक बढ़ाया जा सकता है। अन्तर्राष्ट्रीय, राष्ट्रीय और स्थानीय स्तर पर कृषि जल उपयोग के लिए रणनीति बनानी आवश्यक हैं और जल के प्रमुख स्रोत देश की सीमा पार कर जाए तो अन्तर्राष्ट्रीय समझौते के द्वारा पानी का बंटवारा किया जाना चाहिए। इसके साथ ही जल प्रबन्धन को स्थानीय परम्पराओं को भी नीति निर्धारण में शामिल कर नियम बनाए जाने चाहिए।

                                                                         

    नई जल नीति हेतु पूँजी की आवश्यकता है और इसके लिए निवेश में आकर्षण के लिए सरकार को शर्तों का निर्धारण करना चाहिए। उन्नत जल प्रबन्धन तकनीकों का लाभ लेने के लिए गरीबों के लिए सुधार की नई एवं आकर्षक योजनाएं अधिक कारगर होगी। वर्तमान के विकास कार्यों के सबसे बड़े मुद्दों में से जल भी एक मुद्दा है। विश्व खाद्य दिवस का चयन जल-खद्य सुरक्षा का आधार सभी सरकारों, सभ्य समाज एवं विश्व समुदाय के लिए खाद्य-सुरक्षा के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए जल की आवश्यकता को पहिचाना गया है।

विश्व खाद्य-दिवस की गतिविधियाँ जल के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण संदेशों का प्रचार करने में भी सहायक होंगी-भूख की समस्या के प्रति जागरूकता और सभी के लिए खाद्य दीर्घावधि को सुनिश्चित् करना।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।