जल संरक्षण केवल एक नीति ही नही बल्कि यह एक पुण्य का काम है Publish Date : 14/09/2024
जल संरक्षण केवल एक नीति ही नही बल्कि यह एक पुण्य का काम है
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
पिछले दिनों देश के प्रधानमंत्री ने जल संरक्षण की महत्वता पर जोर देते हुए कहा कि जल-संरक्ष्ण नीति केवल एक नीतिभर ही नही है अपितु यह एक प्रयास और उससे भी अधिक एक पुण्य का कार्य है। इस कार्य में जल संचय, जनभागीदारी अभियान पानी का पहला पैमाना होगा, जिसके आधार पर ही आने वाली पीढ़ियां हमारा मूल्यांकन करेंगी। इस योजना के अन्तर्गत रिड्यूस, रियूज, रिचार्ज और रिसाइक्लिंग के मंत्र को अपनाना होगा।
इसके लिए कहा जा सकता है कि पानी तब ही बच सकेगा जब हम पानी की बर्बादी को रोकें, इसका व्यय कम किया जाए, दोबारा से इसे उपयोग किया जाए, अपने जल स्रोतों का पुनर्भरण किया जाए और दूषित जल को स्वच्छ किया जा सके। भारी बाढ़ के चलते गुजरात भी एक बहुत बड़े संकट का सामना कर रहा है क्योंकि इससे पहले कभी इतनी बारिश राज्य में नही देखी गई है। इसलिए यहां के सरकारी विभाग भी इस प्रकार की स्थिति से निपटने के लिए तैयार नही थे। गुजरात में आरम्भ किए गए जल संचय और जन भागीदारी अभियान के तहत इस राज्य में जल संरक्षण हेतु 24 हजार से अधिक संरचनाओं का निर्माण किया जाएगा। जल मात्र एक संसाधन मात्र ही नही अपितु यह जीवन और मानवता का आधार है।
अतः जल संरक्षण हमारे सुरक्षित भविष्य के लिए हमारे संकल्पों में सर्वोपरी स्थान पर होना चाहिए। पर्यावरण और जल संरक्षण की आवश्यकता को देखते हुए कहा जा सकता है कि हमारे देश में दुनिया का केवल चार प्रतिशत पेयजल ही उपलब्ध है। हमारे यहां अनेक बड़ी नदियां अवश्य हैं परन्तु बावजूद इसके हमारा एक बहुत बड़ा भैगोलिक क्षेत्र जल से वंचित हैं और तेजी से भूजल का स्तर नीचे जा रहा है। इस प्रकार से देखा जा तो पानी की कमी और जलवायु परिवर्तन के लोगों का जीवन काफी अस्त व्यस्त हो रहा है।
उपरोक्त चुनौतिपूर्ण परिस्थियिों के उपरांत भी केवल भारत ही एकमात्र देश है जिसमें अपने और विश्व जल संकट से पार पाने की क्षमता है। क्योंकि जल और पर्यावरण का संरक्षण करना हमारे लिए कोई किताबी बात नही है, बल्कि यह हमारी परंपरागत और साँस्कृतिक चेतना का भी आधार रहा है। हमारे लिए जल एक देवता है, नदियां देवी हैं और सरोवर ईश्वर के धम हैं। हममें जल संचय और जल दान और सेवा करने के सर्वोच्च भाव विद्यमान हैं।
अतः कहा जा सकता है कि जल एवं पर्यावरण संरक्षण का मूलमंत्र हमें विरासत में हमारे पूर्वजों से मिला है। लेकिन अब हममें से अधिकतर लोग यह भूल चुके हैं। हमें अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए जल एवं पर्यारण संक्षण पर उचित और समय रहते ही ध्यान देने की परम आवश्यकता है। तब ही हम मौजूदा जल एवं पर्यावरण संकट से स्वयं अपना और पूरे विश्व का बचाव करने में सक्षम होंगे।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।