कोलन अर्थात बड़ी आंत में सूजन आना यानी अल्सरेटिव कोलाइटिस      Publish Date : 03/08/2023

                                                            कोलन अर्थात बड़ी आंत में सूजन आना यानी अल्सरेटिव कोलाइटिस

                                                                  

क्या होता है अल्सरेटिव कोलाइटिस

जैसा कि इस बीमारी के नाम से ही पता चलता है, अल्सरेटिव कोलाइटिस एक गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल बीमारी है जो कोलन अथवा बड़ी आंत और मलाशय में अल्सर का कारण बनती है। यह बीमारी, बड़ी आंत और मलाशय की परत की सूजन का कारण बनती है और इसलिए इसे आंत्र सूजन रोग के रूप में भी जाना जाता है। इससे पहले कि हम अल्सरेटिव कोलाइटिस के उपचार में काम आने वाली होम्योपैथिक दवाओं के बारे में बात करें, इससे पहले समझते हैं इस बीमारी को थोड़ा बेहतर तरीके से।

अल्सरेटिव कोलाइटिस से प्रभावित होने वाले लोग

                                                                   

हालाँकि इस बीमारी के बारे में अभी तक कोई बहुत अधिक जागरूकता नहीं है, जबकि यह काफी आम है और यह बीमारी बूढ़े लोगों की तुलना में युवाओं को अधिक प्रभावित करती है। वास्तव में, यह 15-35 वर्ष की आयु वर्ग में सबसे अधिक होने वाला रोग है। वहीं दूसरी ओर यह सबसे अधिक 50-70 आयु वर्ग में होती है। उपर्युक्त आयु समूहों के लिए इस प्राथमिकता के कारण को कम समझा गया है।

अल्सरेटिव कोलाइटिस आंतों पर क्या प्रभाव डालता है?

अल्सरेटिव कोलाइटिस आंतों के एक बड़े हिस्से को प्रभावित कर सकता है। अल्सर सतही या गहरा भी हो सकता है और यह इस परेशानी की गंभीरता पर निर्भर करता है। कुछ रोगियों में, अल्सर मलाशय में शुरू होते हैं और फिर धीरे-धीरे यह पूरी बड़ी आंत में फैल जाता हैं। तो कुछ और रोगियों में, प्रसार एक समान या एक साथ हो सकता है जो मलाशय और बड़ी आंत दोनों एक ही समय में हो सकता हैं। रोगी को अनुभव होने वाले सभी लक्षण मोटे तौर पर इसी अल्सरेशन के कारण होते हैं।

अल्सरेटिव कोलाइटिस के कारण

                                                     

चिकित्सा विज्ञान के सभी शोध और प्रगति अल्सरेटिव कोलाइटिस के सटीक कारणों पर पर्याप्त रूप से प्रकाश डालने में असमर्थ रहे हैं। तनाव को एक बड़े सहायक कारक के रूप में पहचाना गया है, हालांकि यह कुछ लोगों को क्यों प्रभावित करता है और दूसरों को क्यों नहीं, यह भी अभी तक कम ही समझा गया है। अल्सरेटिव कोलाइटिस का पारिवारिक इतिहास उन लोगों को अधिक प्रभावित करता है, जिनका पारिवारिक इतिहास भी समान नहीं होता है।

विभिन्न मरीजों में यह देखा गया है कि जिन लोगों की रोग-प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है, उन पर उन लोगों की तुलना में अधिक प्रभाव पड़ने की संभावना होती है जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बेहतर होती है। कोई भी और कारक जो किसी व्यक्ति की प्रतिरक्षा में कमी का कारण बनता है, इस बीमारी के लक्षणों में वृद्धि का कारण बनता है।

अल्सरेटिव कोलाइटिस के लक्षण

                                                      

  • मल की आवृत्ति सामान्य से बहुत अधिक होती है और रोगी को शौच के लिए कई बार जाना पड़ता है, अर्थात रोगी जब भी कुछ खाता या पीता है, तो उसे मल त्यागने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
  • पेट में ऐंठन वाला दर्द एक अन्य लक्षण है और इसके बाद लगभग हमेशा मल त्यागने की इच्छा होती है।
  • मल में अक्सर रक्त और श्लेष्मा मौजूद होते हैं, हालांकि यह आवश्यक नहीं है कि यह दोनों एक ही समय में मौजूद हों।
  • मल की स्थिरता पानी से लेकर अर्ध-ठोस तक भिन्न हो सकती है और मल में अक्सर अपचित भोजन के कण भी होते हैं।
  • लगातार दस्त और रक्त और श्लेष्मा की हानि से पानी और इलेक्ट्रोलाइट्स की हानि होती है।
  • रोगी को कमजोरी, निर्जलीकरण की शिकायत होती है और प्रायः रोगियों के वजन में भी कमी देखी जाती है।
  • एनीमिया अर्थात रक्ताल्पता लगभग निरंतर साथ रहने वाला एक प्रमुख रोग होता है।
  • अल्सरेटिव कोलाइटिस के रोगियों की शुष्क त्वचा और धँसी हुई आँखें आम तौर पर देखी जाती हैं।
  • कुछ रोगियों को गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल लक्षणों के साथ लंबे समय तक बुखार भी रह सकता है।

अल्सरेटिव कोलाइटिस के बचाव के लिए क्या करें और क्या न करें

                                                             

  • ऐसी कोई भी चीज़ और वह हर चीज़ जो इस बीमारी को बढ़ाती है, उससे बचना चाहिए।
  • यह ज्ञात है कि धूम्रपान और शराब से समस्या और बढ़ जाती है, इसलिए धूम्रपान और शराब से बचना ही सबसे अच्छा उपाय है।
  • तले हुए भोजन, जंक फूड, मसालेदार भोजन और बहुत अधिक वसा वाले भोजन से भी बचना चाहिए क्योंकि रोगी का पाचन तंत्र इन चीजों को सहन करने में असमर्थ होता है।
  • यह भी देखा गया है कि दूध और अन्य डेयरी उत्पाद भी इस समस्या को बढ़ा देते हैं।
  • एक बार में पेट भर खाने के बजाय थोड़े-थोड़े अंतराल पर थोड़ा-थोड़ा भोजन करना सबसे अच्छे उपायों में से एक है।
  • पानी का सेवन हर समय अच्छा होना चाहिए और नियमित रूप से ओआरएस लेने की सलाह दी जाती है क्योंकि पानी और इलेक्ट्रोलाइट्स की कमी को पूरा करने की तत्काल आवश्यकता होती है।

अल्सरेटिव कोलाइटिस का उपचार

अल्सरेटिव कोलाइटिस का उपचार करना किसी भी डॉक्टर के लिए एक चुनौती है। ऐसा इस रोग की प्रकृति के कारण होता है। यह एक पुरानी सूजन संबंधी बीमारी है तो इससे आंतों में मौजूद अल्सर को सही होने में समय लगता है। कठिनाई इसलिए आती है क्योंकि आंतों को दिन-रात काम करना पड़ता है जिससे उन्हें आराम करने का समय नहीं मिल पाता है। फ्रैक्चर या चोट लगने पर हम अपने पैरों को आराम दे सकते हैं लेकिन हमारे शरीर के कुछ अंग ऐसे हैं जो कि आराम नहीं कर सकते। जैसे कि हमारे दिल, फेफड़े और आंत को 24 घंटे ही काम करना पड़ता है।

इससे शरीर के इन अंगों में मौजूद किसी भी समस्या का उपचार करना मुश्किल होता है। बहुत कुछ कहा और किया गया है, सूजन प्रक्रिया को ऐसी चीजें खाने से मदद मिल सकती है, जो हल्की हों और पाचन तंत्र पर बहुत अधिक दबाव न डालती हों।

अल्सरेटिव कोलाइटिस का एलोपैथिक उपचार और इसके साइड इफ्ेक्ट्स

आमतौर पर एलोपैथिक चिकित्सा प्रणाली के अन्तर्गत दी जाने वाली बहुत अधिक सूजन-रोधी दवाएं लेने से भी लंबे समय में कोई विशेष लाभ नहीं हो पाता है। अधिकतर गंभीर मामलों में एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति में स्टेरॉयड भी दिया जाता है। जो मानव की प्रतिरक्षा प्रणाली पर दबाव बनाते हैं और सूजन की प्रक्रिया को रोकते हैं जबकि इस दृष्टिकोण की अपनी एक सीमा होती है।

स्टेरॉयड के लंबे समय तक सेवन करने के अपने दुष्प्रभाव भी होते हैं और इसलिए इनका उपयोग लम्बे समय तक नहीं किया जा सकता और यही कारण है कि मरीज़ स्टेरॉयड के कुछ विकल्प तलाशते हैं, और यहीं से होम्योपैथी की शुरूआत होती है।

अल्सरेटिव कोलाइटिस में सहायता के लिए होम्योपैथी

होम्योपैथी चिकित्सा पद्वति से अल्सरेटिव कोलाइटिस का उपचार कराने का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह प्रकृति में हल्का होता है और शरीर की प्राकृतिक प्रतिरक्षा को दुरूस्त करता है। यह शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली की जिम्मेदारी है कि वह इसे हर तरह के नुकसान से बचा कर रखे, फिर चाहे वह बैक्टीरिया से हो या वायरस से या किसी अन्य बीमारी से। यह किसी भी समय होने वाली शारीरिक क्षति की मरम्मत में भी मदद करता है।

होम्योपैथिक दवाएं शरीर की प्राकृतिक प्रतिरक्षा को मजबूत करने में मदद करती हैं जिससे कि वह अपने प्राकृतिक कार्यों को अधिक कुशल तरीके से सम्पादित कर सके।

अल्सरेटिव कोलाइटिस उपचार हेतु होम्योपैथी की कुछ सर्वश्रेष्ठ दवाएं

प्रत्येक रोगी के लिए लक्षण आधारित दृष्टिकोण के आधार पर ही होम्योपैथी चिकित्सा प्रणाली के अन्तर्गत उपचार का निर्णय किया जाता है। इसे ध्यान में रखते हुए, यह किसी के लिए आश्चर्य की बात नहीं होनी चाहिए कि विभिन्न होम्योपैथिक दवाएं ऐसी हैं जिनका उपयोग अल्सरेटिव कोलाइटिस के उपचार दौरान किया जाता है। फिर भी यह कहते हुए कि कुछ दवाएं ऐसी हैं जिनका संकेत अक्सर दिया जाता है। मेरे अनुभव में, ये होम्योपैथिक दवाएं अल्सरेटिव कोलाइटिस के इलाज में काफी कारगर सिद्व पाई गई हैं।

अल्सरेटिव कोलाइटिस के लिए सर्वश्रेष्ठ होम्योपैथिक दवाएं-

                                                                              

  • नक्स वोमिका- उच्च जीवनचर्या के कारण अल्सरेटिव कोलाइटिस के लिए सबसे अधिक संस्तुत की जाने एक अच्छी होम्योपैथिक दवाई।
  • फॉस्फोरस - यदि रोगी को ठंडे पानी की बढ़ती प्यास के साथ अल्सरेटिव कोलाइटिस का एक सबसे अच्छा उपचार।
  • बैप्टीशिया - जब रोगी को निम्न श्रेणी के बुखार के साथ अल्सरेटिव कोलाइटिस हो तो उसके प्रबन्धन के लिए सबसे अच्छी दवाओं में से एक दवा।
  • आर्सेनिक एल्बम- चिंता और बेचौनी के साथ अल्सरेटिव कोलाइटिस के उपचार में प्रयोग की जाने वाली सबसे अच्छी होम्योपैथिक दवा।
  • मर्क सोल - रक्त और टेनेसमस के साथ अल्सरेटिव कोलाइटिस के लिए सबसे अच्छी दवाओं में से एक।
  • एलोए सोकोट्रिना – Normaly लोग इसको सोकोट्रिन एलोए कहते हैं और इसका अधिकतर उपयोग पेचिश के ट्रीटमेंट में किया जाता है लेकिन इसके अलावा भी यह दवा दस्त लगना, शौच में बलगम आना, पेट भरा हुआ सा लगना, मलाशय में जलन का अनुभव होना और पेट में दर्द जैसी समस्याओं में भी इस दवा को दिया जा सकता है ।

गर्म मौसम में या आहार लेने के बाद इन लक्षणों की तीव्रता बढ़ जाती है जबकि ठंडे मौसम में इन Symptoms में सुधार देखने को मिलता है।

  • वेराट्रम एल्बम – व्हाइट हेलबोर के नाम से मशहूर यह दवा शारीरिक कमजोरी को दूर करने के लिए किया जाता है लेकिन इसके अलावा भी आप इसको पेट की ऐठन, दर्द, आंतो के संक्रमण, बार – बार उल्टी होना और ठंड के साथ आने वाले बुखार में इस दवा को दिया जाता है।

यह लक्षण ठंडे वातावरण और मौसम में बढ़ने लगते हैं जबकि गर्म मौसम में कम होने लगते हैं ।

  • पोडोफाइलिनम

इस दवा को पाचन तंत्र में होने वाली सुजन के इलाज के लिए लिया जाता है ये दवा छोटी आंत, मलाशय और लिवर पर तेजी से काम कर के समस्या का निदान करती है ।

इन सब के अतिरिक्त यह दवा पाचन से जुड़ी दूसरी समस्याओं जैसे- दस्त, पेचिश और खट्टी डकार जैसी समस्याओं में भी कारगर है ।

  • बैप्टीशिया टिंक्टोरिआ

यह दवा उन बच्चों की दी जाती है जो बदबूदार मल और इचिंग की समस्या से ग्रसित हैं क्रोनिक बैक्टीरियल इंफेक्शन के कारण, इसके अलावा यह दूसरी समस्याओं के उपचार में भी उपयोगी है ।

  • बलाडोना

इस दवा का Use दर्द और जलन से जुड़ी समस्याओं के ट्रीटमेंट में किया जाता है इसके अतिरिक्त पेट में दर्द, जलन, सूजन, तीव्र बुखार, और भूख में कमी जैसी दिक्कतों में भी इसका उपयोग किया जाता है ।

  • एकोनिटम नेपेलस

इस होम्योपैथिक दवा को बुखार और बैचेनी की समस्या में बहुत कारगर माना जाता है । पाचन की सूजन, पेट में ऐठन, तेज प्यास और पानी की तरह दस्त जैसी समस्या में कारगर माना जाता है ।

  • 7. ब्रायोनिया अल्बा
  • ब्रायोनिया अल्बा का इस्तेमाल गैस्ट्रिक और सूजन से रीलेटेड बिमारीयों के उपचार और बिहोशी की समस्या में किया जाता है ।