खाँसी का होम्यौपैथिक इलाज      Publish Date : 02/05/2024

                           खाँसी का होम्यौपैथिक इलाज

                                                                                                                                                     डॉ0 राजीव सिंह एवं मुकेश शर्मा

                                                                

होम्योपैथी में खाँसी की चिकित्सा बहुत कठिन है। इसलिए, कुछ प्रकार की खाँसी का संक्षिप्त विवरण अनकी औषधियों के साथ निम्न तालिका में दिया जा रहा है-

खाँसी सोने से बढ़ती है, और रोगी बैठा रहता हैः-

1.   कोनियम  आपेक्ष वाली सूखी खाँसी, दिन-रात खाँसी आती है, फिर भी शाम और रात को कुछ ज्यादा ही बढ़ जाती है, रोगी का गला और छाती कुटकुटाती है, गर्भावस्था की खाँसी, बहुत देर खाँसनें के बाद थोड़ा सा बलगम निकलता है।

2.   हायोसियामस   रात की दम बाँधकर आने वाली खाँसी, साने के उपरांत भयानक खाँसी होती है, उठकर बैठ जाने पर थोड़ा सा आराम आता है, (गले की ललरी बढ़ जाने पर में, (एसिड-म्यूर) ।

3. छाती के बीच वाली हड्डी के निकट दाहिनी ओर सूजा गाढ़ने जैसा दर्द, दर्द कन्धें के निकट और पीठ तक फैलता है; लगातार खाँसी सवेरे के समय खाँसी में बहुत तेजी। सड़ी हुई बदबु के साथ कफ निकलने के साथ ही खाँसी, रोगी सो नही पाता है और पूरी की पूरी रात बैठा रहता है।

4.   सैगुनेरिया अम्ल रोग के कारण पैदा हुई खाँसी, खाँसी के साथ ही छाती में दर्द एवं ज्वाला, छाती का दाहिना भाग अधिक अक्राँत, हृूप खाँसी या इन्फ्लूएन्जा के बाद की खाँसी। प्रत्येक वर्ष सर्दी के मौसम में खाँसी का आगमन, गला कुटकुटाकर खाँसी, रात को सोने से खाँसी बहुत आती है, इस कारण रोगी उठकर बैठ जाने के लिए बाध्य हो जाता है, रोगी के ऊपर डकार एवं नीचे से अद्योवायु निकलती है।

5.   जिंकम मेट     स्वरभंग, अत्यन्त आपेक्षिक खाँसी, मीठी चीज खाने के बाद रोगी की खाँसी बढ़ जाती है, शिशु खाँसते समय अपने हाथ को अपने लिंग के ऊपर ले जाता है। छाती जकड़ जाती है। अगली हड्डी-हँसुली के पास ज्वाला, फेन जैसा जुकाम, सोये रहने से खाँसी बढ़ जाती है, जो कि उठकर बैठ जाने से कम हो जाती है (बैठे रहने से आराम-आर्स, लरेसि)।

     इनके के अतिरिक्त एण्टिम-आर्स, एरालिया, ग्रिण्डेलिया, नेट्रम सल्फ, फॉस्फोरस, पल्सेटिला, सैम्बुकस, स्पॉन्जिया तथा रिक्यूटा आदि दवाओं में भी सोने से खाँसी में वृद्वि और उठकर बैठ जाने से सामयिक उपशम के लक्षण प्राप्त होते हैं।

खाँसी में बैठने से वृद्वि तथा सोने से आराम-

6. केलकेरिया फॉस   शिशु का दम बन्द हो जाने जैसी आपक्षिक खाँसी, सोने से खाँसी कम होती है। गला बैठ जाता है और बाद में फेफड़ों के नीचे दर्द होता है।

7. कैली बाइक्रोम    खाँसी के कारण गले का बैठ जाना, धौं-धौं की आवाज के साथ खाँसी, आपेक्षिक खाँसी, पीले रंग का कफ अधिक परिमाण में निकलता है, कफ आठेदार, चटचटा, गला कुटकुटाकर खाँसी, नंगे बदल रहने से खाँसी बढ़ती है और खाँसी के साथ ही बीच वाली हड्डी में दर्द। अधिकाँशतः इस दवा में सोने से खाँसी के कम होने का लक्षण है। (रात में सोने से आराम-आर्जेण्टम मेट)

8.   सोरिनम   छमें की खाँसी, छाती में दद्र के साथ खाँसी, रात को साने से खाँसी में आराम।

9.   मैंगेनम-एसिटिकम   पुराना स्वरभंग, लैरिंग्स का ट्यूबरकुलेसिस, खाँसी शाम को बढ़ती है और रात को सोने से कम होती है। गले अर्थात लैरिंग्स में सूजा के गढ़ने जैसा दर्द जो कान तक जाता है।

10.  सिनापिस-नायग्रा त्ीव्र एवं दम वाली खाँसी, सोते ही खाँसी कम हो जाती है।

11.  यूपेटोरियम-पफ चित्त होकर सोने से खाँसी बढ़ती है जबकि किसी भी एक करवट सोने से खाँसी कम हो जाती है।

12.  नक्स-वोमिका  खाँसी चित्त होकर सोने से बढ़ती है जबकि पेट के बल सोने से कम होती है।

दाहिने बाजू से सोने पर खाँसी का बढ़ना- एमोन-म्यूर, एसिड़ बैंजोईक, मर्क-वाइवस, सेनेगा तथा स्टैनम। निरंतर खाँसी, खाँसी से आराम नही

13.  कॉस्टिकम कम हो या अधिक परन्तु खाँसी सदैव ही बनी रहती है बात करने तथा श्वास के छोड़ने के समय खाँसी बढ़ती है।

14.  इग्नेशिया  स्नायविक खाँसी, खाँसी जो सदैव ही बनी रहे, रोगी जितना भी खाँसता है, उसकी खाँसने की इच्छा उतनी ही बढ़ती है।

15.  मैन्था-पिपरेटा   उत्तेजक खाँसी, ठण्ड़ लगने से खाँसी, तम्बाकू पीने से खाँसी का बढ़ना।

16.  रिउमेक्स  गले में सुरसराहट के साथ खाँसी, ढाँस-सी खाँसी, दमें की खाँसी, रात को खाँसी बराबर होती है।

17.  स्ट्रिक्टा   अ्रगेजी में इस प्रकार की खाँसी को ‘‘मिनट-गन’’ (Minute Gun) खाँसी कहते हैं। यानि कि प्रति मिनट रोगी एक बार खाँसता है, दम के बाद भी निरंतर खाँसी तथा स्नायविक खाँसी में यह दवा उपकारी है। (कोरालियम में भी मिनट-गन खाँसी के लक्षण प्राप्त होते हैं)। 

हूप-खाँसी

     हूप-खाँसी में रोगी का चेहरा खाँसते-खाँसते नीला पड़ जाता है कोरालियम, कूप्रम, निफ्राइटिस, इपिकॉक, हर प्रकार की हूप-खाँसी में टिंग-पार्टूसिन 10 से लेकर 30-40 बूँदों तक की मात्रा में गरम दूध या पानी के साथ मिलाकर सेवन करने से बहुत लाभ होता है (यह एलोपैथी की एक पेटेण्ट दवा है), इस रोग में पार्टूसन 30 और 200 शक्ति भी लाभ करती है।

18.  एसिड-कार्बोलिक 6 शक्ति में हृूप-खाँसी की एक अच्छी दवाई है।

हूप-खाँसी में रक्तस्राव

19.  आर्निका   खाँसी के साथ ही नाक से काले रंग के खून का आना, आँखों से खून का जाना, (आँखें से पानी का जाना और केवल दिन में ही खाँसी -यूफ्रेसिया)।

20.  बेलाडोना  माथा खूब गरम, नाक या आँख से खून जाना।

21.  कौरेलियम-रूब्रम रह-रह कर खाँसी के कारण फिट का आना, चेहरे का नीला पड़ जाना, काँटेदार बलगम और बच्चा जो कुछ भी खाये उसकी ही कै कर देता है, कभी-कभी मुँह से भी खेन आता है (ड्रसेरा देखें)।

22.  क्रोटेलस   हृतपिण्ड की कमजोरी के साथ शारीरिक कमजोरी, रोगी का चेहरा नीला एवं सूजा हुआ दिखाई देता है, आँख, कान एवं मसूढ़ों से खून आता है (शरीर के प्रत्येक द्वार से खून का जाना-ड्रोसेरा)।

23.  ड्रोसेरा रोगी के नाक एवं मुख से खून निकलता है, खाँसी की तेजी से दम के बन्द होने होने के जैसा अहसास होता है। खाँसी के दौरान रोगी अपने दोनों हाथों से अपनी छाती को पकड़ लेता है (इस दवा की 30 शक्ति की एक मात्रा से अधिक नही देना चाहिए, इसकी एक मात्रा को देकर उसके बाद एक सप्ताह तक खाली चीनी देकर देखना चाहिए-हैनिमैन)।

इस दवाई के प्रयोग को लेकर अनेक मत है, किसी का कहना है कि 1x शक्ति को बार-बार देना चाहिए, तो किसी का कहना है कि इसे बेलाडोना के साथ पर्याय क्रम में देना चाहिए, इससे भी लाभ होता है।

24.  इपिकाक बीच-बीच में खाँसी दम बाँध लेती है, खाँसी के जोर से पखाना या कै भी हो जाती है, रोगी का चेहरा नीला दिखाई देता है, आँख, नाक तथा फेफड़ों से खून जाता है।

25.  ब्रोमियम  इस दवा की एक के बाद एक खुराक कम से कम 10-12 दिन तक देनी चाहिए।

26.  सिना     डॉक्टर लिलियेन्थल का कहना है कि हृूप-खाँसी में बालक बात करने और हिलने से भी डरे क्योंकि उसे खाँसी का दौरा आता है।

स्नायविक खाँसी

27.  एगैरिकस  एकाएक खाँसी का दौरा आता है, फिट् जैसा होता है एवं रक्त-स्राव होता है।

28.  एम्बाग्रिसिया   आपेक्षिक खाँसी, खाँसी का जोर अधिकत सुबह के समय ही होता है। कुछ डकारें आने के बाद खाँसी कुछ कम हो जाती है।

29.  चायना    सूखी खाँसी, खाँसी का दौरा, रोगी की छाती धड़धड़ाती है, रोगी कस कर कपड़ा नही पहन सकता।

30.  सिमिसिफिउगा  इस दवा का प्रधान लक्षण है कि रोगी जितनी बार बात करने की कोशिश करता है उतनी ही बार उसे खाँसी आती है, रोगी अपना गला सहलाए, सूखी-खाँसी जो कि रात को बढ़ जाती है।

31.  कॉफिया-क्रूडा    उद्वेग एवं अनिंद्रा के साथ खाँसी।

32.  लैकेसिस   स्त्रियों में ऋतु-काल के बन्द होने के समय की खाँसी।

33.  स्ट्रिक्टा   बिना किसी तकलीफ के हर समय खों-खों वाली खाँसी।

पाकस्थली में खराबी के कारण उत्पन्न होने वाली खाँसी- ब्रायोनिया, कोनियम, फाम्स्फोरस, एसिड-फॉस एवं रिउमेक्स।

बसरात अथवा गीली ऋतु वाली खाँसी

34.  कैल्केरिया-कार्ब  पानी में भीगने या नम स्थान पर रहने के कारण उससे होने वाले समस्त उपसर्गों का बढ़ना।

35.  डल्कामारा ठण्ड़ अथवा बरसात को मौसम आने के साथ ही खाँसी का बढ़ना।

36.  इपिकाक  शिशुओं का ब्राँको-न्यूमोनिया, गरम और वर्षा मिले मौसम में रोग का पैदा होना।

37.  नेट्रम-सल्फ बरसात के मौसम से और रात 3-4 बजे तक खाँसी में वृद्वि।

38.  रसटॉक्स  वर्षा ऋतु में खाँसी का बढ़ना।

सरल खाँसी और धड़धड़ी

                                                       

39.  एमोन-कार्ब छाती पर प्रचुर मात्रा में कफ में वृद्वि होने पर घड़घड़ाहट, परन्तु खाँसने पर कुछ नही निकलता यदि निकलता भी है तो वह बहुत मुश्किल से निकलता है। साँस की तकलीफ।

40.  एमोन-म्यूर रोगी के गले में घड़घड़ाहट के साथ कुछ अधिक मात्रा में बलगम का निकलना।

41.  एण्टिम-आर्स    घड़घड़ाहट के साथ सर्दी में अत्यन्त अवसन्नता, शरीर में ठण्ड़ा पसीना, किसी भी प्रकार का कोई दर्द नही।

42.  चेलीडोनियम    छाती पर घड़घड़ी वाली सर्दी, कफ बहुत कठिनाई से निकलता है, रोगी के दाहिने कन्धें में दर्द, चेहरा लाल, साँस को जोर से छोड़ता है।

43.  हिपर-सल्फ छाती कफ से भरी हुई, रोगी खाँसता है लेकिन आराम से कफ नही निकाल सकता, अधिक पसीना, ठण्ड़ी हवा के लगने से और अधिकतर सवेरे के समय ही खाँसी का बढ़ना।

44.  इपिकाक छाती में साँय-साँय की आवाज या जोर से घड़घड़ाहट, रोगी को कै होती है और कै के साथ ही बलगम निकलता है।

45.  मिफाइटिस हूप-खाँसी की तरह से आने वाली खाँसी, छाती में कफ की घड़घडाहट हाती है और साथ में कै भी होती हैं।

46.  मर्क-वाइवस    श्रात को बिछावन की गरमी और दाहिनी बाजू से सोने के दौरान खाँसी का बढ़ना, यदि एक बार खाँसे तो बार-बार खाँसी का झौका आये।

47.  सेनेगा    छाती पर कफ की घड़घड़ाहट, दाहिनी ओर का न्युमोनिया, छाती में खौंचा माने जैसा या गढ़ने जैसा दर्द, साँस खीचनें तथा खाँसने में तकलीफ और दर्द होता है।

48.  साइलिशिया    क्षय रोग की अन्तिम अवस्था जब फेफड़ों में मवाद पेदा हो गई हो, वृद्वजनों को हुआ ब्राँकोरिया, ढेर सारा बदबुदार बलगम निकलता है।

49.  स्कुइला   तरल घड़घड़ाहट की आपेक्षिक खाँसी, कफ सरलता के साथ नही निकलता है, छाती के दोनों ओर, विशेष रूप से बायीं ओर तेज दर्द।

50.  वेरेट्रम एल्बम   हमारे वृद्वजनों की ब्रोंकाइटिस, छाती में घड़घड़ की आवाज, खंखार थूक तक नही निकाल सकता, बहुत कमजोरी तथा अवसाद आदि।

छींक के साथ खाँसी

51.  बैडियागा  खाँसी के आते ही रोगी को छींक आने लगे।

52.  ब्रायोनिया  खाँसी के समय रोगी को दो बार छींक आती है।

53.  औसमियम सूत जैसा कफ मुँह के अन्दर रहता है, रोगी उसको बाहर निकालने की कोशिश करता है, खाँसी और कै हो जाए, लकिन रोगी कफ को खाँसकर नही निकाल सकता, इसके बाद ही छींक आती है और छींकनें के साथ ही रोगी का कफ निकल जाता है।

54.  स्कुइला   अत्यन्त खाँसी, रोगी की आँखों से पानी आता है और छींक भी आती है।

रोगी की आँखों से पानी गिरने के साथ ही खाँसी- एलियम सेपा, नेट्रम-म्यूर, यूफ्रेशिया, पल्सेटिला, सैबाडिला, स्कुइला आदि।

सविराम ज्वर के साथ खाँसी- ब्रायोनिया, यूपेटोरियम, पर्फो, लाइकोपोडियम, रसटॉक्स, एकोनाईट आदि।

तेज सिरदर्द के साथ खाँसी- ब्रायोनिया, कैप्सिकम, लाइकोपोडियम, नेट्रम-म्यूर एवं नक्सवोमिका।

अपच के साथ खाँसी- नक्सवोमिका, कोनियम।

खाँसी के साथ ही पेशाब का निकल जाना-

                                                       

55.  कॉस्टिकम सूखी और आक्षेप वाली खाँसी के दौरे के साथ ही पेशाब का निकल जाना।

56.  नेट्रम-म्यूर खाँसी के साथ ही पेशाब का निकल जाना और सिरदर्द।

57.  नक्सवोमिका    सुबह-सवेरे की खाँसी और उसके साथ ही अनजाने में पेशाब निकल जाना।

58.  फॉस्फोरस  तीव्र खाँसी के साथ अपने आप ही पेशाब का निकल जाना।

59.  स्कुईला   घड़घड़ाहट वाली खाँसी, छाती में कुछ चुभने के जैसा दर्द और अनजाने में ही बूँद-बूँद कर पेशाब का निकलना।

60.  वेरेट्रम एल्बम   हूप-खाँसी में खाँसने के साथ ही पेशाब का निकलना।

पहली नींद के बाद खाँसी का जोर- एगैरिकस, एरालिया, हायोसियामस और लैकेसिस।

आधी रात में खाँसी- आर्सेनिक, ड्रोसेरा, रिउमेक्स, सैग्युनेरिया, स्पॉन्जिया।

खाँसी रात में तीन बजे- एमोन-कार्ब, कैली-कार्ब और नेट्रम-सल्फ।

पहली नींद के खुलते ही खाँसी- सिनन, कॅक्युलस तथा सीपिया।

नींद के खुलने के बाद बिछावन छोड़ने से पूर्व तक की खाँसी- एम्ब्राग्रिशिया, कॉक्यूलस, कैली-बाइक्रोम, नक्सवोमिका एवं सीपिया।

खाँसी की साधारण वृद्वि-

दिन के समय- यूफ्रेश्यिा, रात में- कोकस, स्टैनम, रात 11 बजे- बेलाडोना, 3 से 5 बजे के बीच- कैली-कार्ब, एक नींद के बाद- लैकेसिस, सवेरे नींद खुलने के बाद- एल्युमीनियम, सोने से- कोनियम, ऐरालिया, एसिड नाइट्रिकम, हायोसियामस, टहलने से- मैरीनम, शीतकाल में- कोक्कस, बैराइटा-कार्ब, एसिड-नादट्रिकम, प्रतिवर्ष सदी्र में- पैट्रोलियम, सौरि, सैंगुनेरया, सर्द से गरम में जाने पर- एसिड-नाइट्रिकम, आर्जेण्टम, एण्टिम टार्ट, गरम से ठंड में जाने पर- कैली-कार्ब फॉस्फोरस, हिलने-डुलने से- ब्रायोनिया, तंज ठण्ड़ी साँस के खीचने पर- कोनियम, तेज साँस के छोड़ने पर- कॉस्टिकम, ठण्ड़ा पानी पीने से- स्पॉन्जिया, हँसनें या बात करने से- आर्जेण्टम, मैगनीशिया, हायोसियामस, जितना खाँसे उतनी ही और खाँसने की इच्छा- इग्नेशिया, नींद में खाँसी, लेकिन नींद आये- कैमोमिला, लैकेसिस, थोड़ी सी ही मेहनत से- कोब्रा, वंशानुगत क्षय रोग से खाँसी- एसिड-नाइट्रिकम, एसिड एक्जा, स्नान के बाद- एण्टिम क्रूड, स्नान के बाद- रिउक्टा, ड्रोसेरा, कैली-कार्ब, ब्रांकाइटिस निउमोनिया प्लुरिसी आदि होकर छाती के दोष में और पंरानी खाँसी में-बैसीलिनियम।

खाँसी में आराम-

                                                                  

बैठने से- हायोसियामस, आर्स, लरोसि सोने से- सोरिनियम, मैनिशिया, छाती को हाथ से दबाने पर- ब्रायोनिया, फॉस्फोरस, नैट्रम-सल्फ, ठण्ड़ा पानी पीने से- कॉस्टिकम, कूप्रम, एक हाथ से छाती तथा दूसरे हाथ से माथा पकड़नें से- ड्रोसेरा, गरम से- कैली-कार्ब, फॉस्फोरस, कैली-बाई उलटा सोने से- बैराइटा, मैड्रोडिन, ठण्ड़क से- कोक्कस, पल्सेटिला, धीरे-धीरे टहलने से- फेरू-फॉस।                                                                            

कफ का स्वाद- मीठा- स्टैनम, दुर्गन्ध- सैंग्युनेरिया, कैप्सिकम, फलेड्रिनम, खट्टा- कैल्केरिया फॉस, नमकीन- कैली आयोड़।                                                                                                                                                                          

समय और अवस्था के साथ खाँसी- रोगी का शरीर नीला व ठण्ड़ा पड़ जाए-लरोसि रोगी के होंठ नीले पड़ जाएं- डिजि छाती का दर्द पीठ तक जाने पर- फैलेड्रि, कैली बायोड, अनजाने में पेशाब निकल जाए- कॉस्टिकम, सेनेगा, छााती में दर्द होने पर- ब्रायोनिया, फासफोरस, हाथ-पैर तथा अन्य स्थानों पर दर्द होने पर- कैप्सिकम, कफ को थूक देने पर छाती में ज्वाला हो- कोक्कस, खायी गई चीज की कै होने पर- फेरम, मलद्वार में दर्द हो- लैकेसिस, पखाना या पेशाब निकल जाने पर- स्कुईला वासिला, दाहिने स्कैपुला में दर्द- चेलीडोनियम, डकार के आने पर- सैंग्युनेरिया।

लेखक: मुकेश शर्मा होम्योपैथी के एक अच्छे जानकार हैं जो पिछले लगभग 25 वर्षों से इस क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं। होम्योपैथी के उपचार के दौरान रोग के कारणों को दूर कर रोगी को ठीक किया जाता है। इसलिए होम्योपैथी में प्रत्येक रोगी की दवाए दवा की पोटेंसी तथा उसकी डोज आदि का निर्धारण रोगी की शारीरिक और उसकी मानसिक अवस्था के अनुसार अलग.अलग होती है। अतः बिना किसी होम्योपैथी के एक्सपर्ट की सलाह के बिना किसी भी दवा सेवन कदापि न करें।

डिसक्लेमरः प्रस्तुत लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं।