लो ब्लड प्रेशर का होम्योपैथिक उपचार Publish Date : 24/11/2023
लो ब्लड प्रेशर का होम्योपैथिक उपचार
डा0 आर. एस. सेंगर एवं मुकेश शर्मा
ब्लड-प्रेशर नापते समय सदैव दो अंकों का उपयोग किया जाता है। जिनमें से पहले अंक का अर्थ होता है सिस्टोलिक प्रेशर, यानि कि जब दिल के द्वारा शरीर में रक्त को पम्प किया जा रहा होता है तो उस समय बनने वाला प्रेशर तथा दूसरे अंक का अर्थ होता है, डायस्टोलिक प्रेशर अर्थात रक्त पम्प हुए बिना बनने वाला प्रेशर। 120/80 mmHg प्रेशर को Normal Blood Pressure कहते हैं। जब 90 से कम सिस्टोलिक प्रेशर तथा 60 से कम डायस्टोलिक प्रेशर हो तो इसे लो Low Blood Pressure कहते हैं। ब्लड प्रेशर के लो होने के विभिन्न कारण हो सकते हैं, जैसेअधिक समय तक खड़े रहना, शरीर में पानी की कमी, गर्मी एवं मदिरा पान करना आदि। इसके साथ ही यह किसी चिकित्सीय समस्या के कारण भी हो सकता है, जैसे रक्ताल्पता, पौषण में कमी अथवा हाइपरवैटिलेशन इत्यादि।
लो-ब्लड प्रेशर के लक्षणः
लो-बीपी के आमतौर पर यह लक्षण होते हैं- बेहोशी, चक्कर आन, पसीना आना, थकान एवं सोचने में अधिक समय लगना। वृद्व व्यक्तियों में लो-ब्लड प्रेशर के कारण उनमें डिमेशिया का खतरा बढ़ जाता है। दिल एवं रक्तवाहिकाओं से सम्बन्धित समस्याओं के उपचार के लिए होम्योपैथिकी एक शानदार विकल्प है और चूँकि लो-बीपी भी इसी श्रेणी के अन्तर्गत आता हक् इसलिए बीपी के लो हो जाने पर होम्योपैथिक दवाओं को बहुत कम मात्रा में दिया जाता है, जो प्रभावकारी सिद्व होती हैं। इनमें से कुछ दवाईयाँ जैसे- जेल्सीमियम (Gelsemium), विसकम एल्बम (Viscum Album),, ग्लोनाईन (Glonine), एवं नेट्रम म्यूरिएअिकम (Natrum Muriaticum) आदि।
लो-बीपी का उपचार होम्योपैथिक में केसे किया जाता है-
लो-बीपी के लिए होम्योपैथिक उपचार को बहुत ही सुरक्षित माना जाता है। तनाव एवं विभिन्न पर्यावरणीय कारकों के कारण शरीर की कोशिकाओं तक खनिज पदर्थों के पहुँचने में बाधाएं आती हैं, जिसके कारण ब्लड-प्रेशर कम होने की समस्या उत्पनन हे जाती है। होम्योपैथिक दवाओं से शरीर के ठीक होने की क्षमताओं में वृद्वि होती है, जिससे रोगी का मेटाबोलिज्म अच्छा होता है तथा शरीर में व्याप्त विषैले पदार्थ बाहर निकल जाते हैं जिसके कारण ब्लड-प्रेशर का स्तर सामान्य बना रहता है।
लो-बीपी के उपचार के लिए कुछ चयनित होम्योपैथिक दवाओं का विवरण उनके लक्षणों के साथ-
वैसे तो लो-बीपी के लिए होम्योपैथी की बहुत सी दवाओं का उपयोग किया जाता है। यह दवाईयाँ पहले रोगी की मितली एवं चक्कर आने के जैसी समस्याओं को ठीक करती हैं जिससे कि रोगी अपने दैनिक कार्यों को बिन किसी समस्या के पूरा सकने में समर्थ हो सकें। इसके बाद यह दवाईयाँ शरीर के रक्त-संचार को नियमित करती हैं, जिससे यह रोग पूरी तरह से ठीक हो जाता है। इसी प्रकार की कुछ दवाईयों का विवरण नीचे दिया जा रहा है-
जेल्सीमियम (Gelsemium)
सामान्य नामः येलो जैस्मीन (Yellow Jasmin)
लक्षणः नीचे लिखित लक्षणों का अनुभव करने वाले रोगियों के लिए तथा इन लक्षणों को ठीक करने के लिए इस दवा का उपयोग किया जाता है-
- सुस्ती आना, चक्कर आना, मंदता और ब्लड़-प्रेशर के कम होने के कारण शरीर में कम्पन होना।
- हल्का सिरदर्द, जो कि सर के पिछले भाग में अधिक होता है।
- आँखों का भारी होना, जिसके कारण रोगी की पलकें बार-बार झपकती रहती हैं।
- बहुत अधिक कमजोरी के उपरांत भी रोगी को प्यास नही लगती है।
- रोगी बहुत धीरे-धीरे साँस लेता है।
- रोगी को बुखार भी रहता है।
- कमजोरी के कारण रोगी के शरीर में इतना अधिक कम्पन होता है कि रोगी को पकड़ कर रखना पड़ता है।
विसकम एल्बम (Viscum Album)
सामान्य नामः मिसलटो (Milttetoe)
लक्षणः लो-बीपी में विसकम एल्बम का उपयोग सर्वाधिक किया जाता है जो निम्न लक्षणों के अनुभव करने पर निर्धारित की जाती है-
- रोगी की नब्ज का बहुत मन्द होना।
- कान बजना और रोगी को अनुभव होता है कि उसके कान बन्द हैं।
- रोगी को साँस लेने में परेशानी का अनुभव होता है जिसके कारण उसे बार-बार खाँसी की समस्या होती है।
- रोगी को अपनी छाती में भारीपन का अनुभव होता है जेसे कि उसकी छाती पर कोई भारी सामन रखा हो।
- रोगी के दिल की धड़कने भी तेज हो जाती हैं।
ग्लोनॉइन (Glonoine)
सामान्य नामः नाइट्रोग्लिसरन (Nitroglycerine)
लक्षण जब रोगी नीचे दिये गये लक्षणों का अनुभव करे तो ग्नोनॉइन नामक होम्योपैथिक दावई का निर्धारण किया जाता है-
- चक्करों के साथ सिर में भारीपन का होना।
- रोगी के सिर में नस फड़कने के जैसा दर्द होता है और पूरे शरीर में फड़कन अनुभव होती है।
- आमतौर पर अधिक तापमान होने अथवा अधिक गर्मी के कारण सिरदर्द होना।
-- सर के भारी होने के उपरांत भी सर को तकिए पर नही रख पाना।
- शाम की अपेक्षा प्रातः काल तथा दोपहर में सरदर्द का बढ़ जाना यानि अधिक सिरदर्द का होना।
- सिर के बायी ओर होने वाला सिरदर्द।
- रोगी के बैठे रनिे अथवा लेटे रहने के बाद जब रोगी एकदम साीधा खड़ा होता है तो उसका सिर चकराने लगता है।
- लो-बीपी के साथ साँस लेने में परेशानी का अनुभव और रोगी के दिल की धड़कन भी बढ़ जाया करती हैं।
नैट्रम म्यूरीएटिकम (Natrum Muriaticum)
सामान्य नामः क्लोराइड आफ सोडियम (Chloride of Sodium)
लक्षणः यह होम्योपैथिक दवाई ब्लड-प्रेशर को सामान्य रखने तथा थायराईड का उपचार करने में बहुत अच्छा कार्य करती है। आमतौर पर यह दवाई स्कूल जाने वाली लड़कियों को होने वाले सिरदर्द के उपचार के लिए प्रयोग की जाती है, इसके साथ नीचे दिए गऐ लक्षणों में इसका उपयोग बहुत लाभ प्रदान करता है-
- बहुत ही तीव्र सिरदर्द, जिससे यह महसूस होता है कि सिर में कोई हथौड़े मार रहा है।
- इसके लक्षण प्रातःकाल में अधिक गम्भीर होते हैं।
- सिरदर्द की समस्या लग्बे समय होती है।
- लो-ब्लड-प्रेशर होने के कारण रोगी की नमक खाने की इच्छा होती है।
- साइनस, जिसमें चेहरे में जमाव का अनुभव होता है।
- अत्याधिक कमजोरी का अनुभव करना।
- मस्तिष्क में उलझन होना, नजर दोष से सम्बन्धित समस्याएं रोगी को अक्षर भागते हुए नजर आते हैं और उसे सीाी वस्तुओं के आकार टेढ़े-मेढ़ें नजर आते हैं।
कार्बो-वैजीटेबिलिस (Carbo Vegetables)
सामान्य नामः वेजीटेबल चारकोल (Vegetable Charcole)
लक्षणः इस दवा का मोटे एवं आलसी लोगों के लि अत्यन्त लाभदायक है और इन लक्षणों में भी इसका उपयोग किया जाता है-
- कार्बोवेज के रोगी को ऐसा अनुभव होता कि जैसे उसका रक्त संचरण कम हो गया हो या यह बिल्कुल ही बन्द हो गया है।
- रोगी का शरीर नीला एवं ठंड़ा पड़ जाता है और ऐसा सम्भवतः पानी की कमी के कारण होता है।
- कार्बोवेज का रोगी अत्याधिक कमजोरी अनुभव करता है।
- इसके रोगी की नब्ज भी बहुत धीरे-धीरे चलती है।
- कार्बोवेज के रोगियो में बार-बार बीमार पड़ने की प्रवृत्ति पाई जाती है।
- कान बहने के साथ ही रोगी का सिर घूमता है।
- कार्बोवेज के रोगी को मतली का अनुभव होता है।
चायना अफिसिनैलिस (Chaina Officinalis)
सामान्य नामः आयरन (Iorn)
लक्षणः ऐसे रोगी जिनके शरीर में पानी एवं रक्त की कमी अर्थात एनीमिया के कारण लो-ब्लड-प्रेशर की समस्या उत्पन्न हो जाती है यह दवाई ऐसे रोगियों के लिए बहुत कारगर है। यह दवाई लम्बी चलने वाली बीमारियों में विशेष रूप से लाभप्रद होती है और निम्नलिखित लक्षणों के पकट होने पर यह दवा निर्धारित की जाती है-
- चायना का रोगी अत्याधिक कमजोरी एवं उदासी का अनुभव करता है।
- खोपड़ी के फटने जैसा बहुत तीव्र सिरदर्द।
- रोगी को अपने सिर में अजीब-सी भावनाएं अनुभव होती है, मानों खोपड़ी के अन्दर मस्तिष्क आगे-पीछे बज रहा हो।
- रोगी को गर्दन की रक्त-वाहिनियों में तीव्र फड़कन का अनुभव होता है।
- ताजी हवा में जाने के बाद इसके लक्षण अधिक बिगड़ जाते हैं।
- चलते समय रोगी का सिर घूमता है।
- रोगी में प्रकाश के प्रति संवेदनशीलता अथवा असहनीयता होती है।
फेरम मेटालिकम (Ferrum Metalicum)
सामान्य नामः आयरन (Iron)
लक्षणः ऐसे रोगी जो थोड़ा-सा काम करके ही थक जाते हैं होम्योपैथिक की यह दवाई ऐसे लोगों को शीघ्र लाभ देती है। साथ ही यह दवा इन लक्षणों में भी प्रयोग की जाती है-
- जब रोगी को रक्ताल्पता यानि एनिमिया हो, जिसके कारण रोगी को लो-ब्लड-प्रेशर की समस्या का समाना करना पड़ता है।
- रोगी के चेहरे एवं उसकी त्वचा का रंग फीका पड़ जाता है।
- रोगी को कमजोरी का अनुभव केवल बातचीत करने के दौरान ही होता है।
- रोगी के चेहरे पर गुलाबीपन, जिसके कारण वह बिल्कुल स्वस्थ प्रतीत होता है, परन्तु हीमोग्लोबिन का टेस्ट कराने पर उसमें हीमोग्लोबिन का स्तर कम आता है।
- बहते हुए पानी को देखकर सिर का चकराना तथा सिर का बहुत अधिक चकराना।
- रोगी के सिर में हथौड़े मारने जैसा दर्द जो कि सिर के पिछले भाग में अधिक होता है इसके साथ सिर में बहुत ज्यादा दर्द होना।
- रोगी अपने सिर में अकड़न भी अनुभव करता है।
- गला बैठने के साथ ही सांसा लने में भी परेशानियों का अनुभव करना।
होम्योपैथी के उपचार के दौरान रोगी के खान-पान एवं जीवन-शेल्ी में आवश्यक परिवर्तनः
होम्योपैथी का उपचार लेने के दौरान रोगी को कुछ तथ्यों का विशेष रूप से ध्यान रखने की सलाह दी जाती है, जिनका विवरण नीचे दिया जा रहा है-
लो-ब्लड-प्रेशर के रोगियों को क्या करना चाहिए-
- लो-ब्लड-प्रेशर जैसे एक्यूट रोगों के बारे में यह जानना बेहद महत्वपूर्ण है कि रोगी के शरीर को किस चीज की आवश्यकता है। ऐसी स्थिति में यदि रोगी का मन कुछ खाने को कर रहा है, तो उसे वही चीज खाने को दी जानी चाहिए क्योंकि ऐसा करने से उसे कुछ देर के लिए आराम का अनुभव होगा और वह स्वयं को बेहतर अनुभव करेगा।
- किसी भी प्रकार की बीमारी में रोगी को शारीरिक व मानसिक रूप से परी तरह से आराम देना बहुत आवश्यक होता है ताकि वह जल्दी ठीक हो सके।
लो-ब्लड-प्रेशर के रोगियों को क्या नही करना चाहिए-
- होम्योपैथिक दवाओं का सेवन बहुत ही कम मात्रा में किया जाता है, इसलिए विभिनन प्रकार के खान-पान तथा अन्य आदतों का प्रभाच इन दवाओं के असर को कम कर सकता है। इसी के कारण रोगियों को होम्योपैथिक उपचार लेते समय औषधीय तथा तीव्र सुगन्ध वाली खाने-पीने की वस्तुओं से दूर रहना चाहिए जैसे कि कॉफी, अधिक मसालेदार खाना तथा जड़ी बूटि इत्यादि।
- होम्योपैथिक दवाओं पर आपके आस-पसा के वातावरण का प्रभाव भी पड़ सकता है, इसलिए आपको इन दवाओं को सीणी धूंप के सर्म्पक में आने से बचाना चाहिए। इसके अतिरिक्त इन दवाओं के आस’-पास तीव्र सुगन्ध वाली वस्तुओं को भी नही रखना चाहिए, क्योकि ये दवाओं के प्रभाव को प्रभावित कर सकती हैं।
- लो-बीपी के रोगी को किसी भी प्रकार के शारीरिक एवं मानसिक तनाव से बचना चाहिए क्योंकि यह उनकी बेहोशी का कारण बन सकता है।
विशेषः मुकेश शर्मा होम्योपैथी के एक अच्छे जानकार हैं जो पिछले लगभग 25 वर्षों से इस क्षेत्र में कार्य कर रहे हे। होम्योपैथी के उपचार के दौरान रोग के कारणों को दूर कर रोगी को ठीक किया जाता है। इसलिए होम्योपैथी में प्रत्येक रोगी की दवा, दवा की पोटेंसी तथा उसकी डोज आदि का निर्धारण रोगी की शारीरिक और उसकी मानसिक अवस्था के अनुसार अलग-अलग होती है। अतः बिना किसी होम्योपैथी के एक्सपर्ट की सलाह के बिना किसी भी दवा सेवन कदापि न करें।
ऐसा भी हो सकता है कि आपकी दवा कोई और भी हो सकती है और कोई दवा आपको फायदा देने के स्थान पर नुकसान भी कर सकती है। अतः बिना चिकित्सीय परामर्श के किसी भी दवा का सेवन न करें।
डिसक्लेमरः प्रस्तुत लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखकगण के अपने हैं।