बदन दर्द की होम्योपैथिक उपचार एवं उसकी कुछ चुनिंदा दवाईयाँ Publish Date : 18/04/2023
बदन दर्द की होम्योपैथिक उपचार एवं उसकी कुछ चुनिंदा दवाईयाँ
डॉ0 आर. एस. सेंगर एवं मुकेश शर्मा
किसी भी प्रकार के दर्द की शुरूआत तब होती है जबकि प्रभावित हिस्सा किसी असुविधा एवं चोट लगने के कारण हमारे मस्तिष्क तक सन्देश भेजता है। शरीर में दर्द का होना एक प्रकार का लक्षण ही होता है, जो कि विभिन्न प्रकार की अन्तर्निहीत स्थितियों के चलते होना सम्भव है। बदन दर्द के कुछ सामान्य कारण इस प्रकार से हो सकते हैं-
- शरीर की मांसपेशियों, हड्डियों, जोड़ों, स्नयुबंधन (लिगामेन्ट्स), टेंडन या नसों में किसी प्रकार की चोट के पहुँचने के कारण।
- शरीर की मुद्रा अर्थात बॉडी पॉश्चर का सही न होना अथवा एक ही स्थिति में लम्बे समय तक बने रहना।
- डिसमेनेरिया जैसे पीरियड्स के दौरान दर्द का होना, जो महिलाओं के दर्द का सामान्य कारणों में से एक होता है।
- फाइब्रोमायल्जिया- यह एक प्रकार का विकार होता है जिसके अन्तर्गत थकान, नींद, याददाश्त और मनोदशा से सम्बन्धित परेशानियों के चलते प्रभावित व्यक्ति की मांसपेशियों एवं हड्डियों में दर्द होता है।
- गठिया वात।
- सर्दी और फ्लू, टायफाईड, टीबी तथा अन्य अनेक स्थितियों में बदन दर्द, थकान एवं कमजोरी आदि के अनुभव होने का कारण बनते हैं।
परम्परागत रूप से, शरीर के दर्द के उपचार के अन्तर्गत अंतर्निहीत स्थितियों का प्रबन्धन किया जाना शामिल होता है। इसके उपचार के लिए अक्सर दर्द-निवारक, मांसपेशियों को रिलेक्स प्रदान करने वाली, डिप्रेशन अवरोधी एवं विटामिन्स की डोज को पूरी करने वाली दवाईयों का सेवन मरीजों को करया जाता है।
बदन दर्द में होम्योपैथिक दवाईयों का एक विशेष स्थान है, यह दवाईयाँ न केवल मरीज के व्यक्तिगत लक्षणों को ठीक कर उसे राहत पहुँचाती हैं, अपितु व्यक्ति की रोग-प्रतिरोधक क्षमता में भी पर्याप्त सुधार करने में सक्षम होती हैं। यह सीधे-सीधे अंतर्निहीत कारणों को प्रभावित करती हैं, क्योंकि होम्योपैथिक दवाईयों का निर्धारण करने से पूर्व प्रभावित व्यक्ति की आयु, उसकी मानसिक स्थिति एवं शारीरिक स्थितियों की भी जाँच की जाती है।
यही कारण है कि भले ही दो व्यक्तियों की परेशानियाँ अथवा बीमारियाँ एक समान हो, परन्तु उनकी होम्योपैथिक दवाईयाँ कभी भी एक जैसी नही होती हैं। अतः इसका सटीक उपचार कराने के लिए किसी अनुभवी होम्योपैथिक के चिकित्सक से इसके बारे में परामर्श अवश्य ही करना चाहिए।
शरीर में होने वाले दर्द में राहत प्रदान करने के लिए होम्योपैथिक की कुछ चुनिंदा दवाईयों में वेराट्रम एल्बम, स्ट्रिचनिनम प्यूरम, रूटा ग्रेविओलेंस, रस टॉक्सीकोर्डेड्रॉन, रैग्नस कैलीफोर्निका, रेननक्यूलस बलबोसस, जेल्सेमियम सेम्पराविरेन्स, डल्कामारा, मैग्नीशियम फॉस, कैपरम मेटालिकम, सिमिसीफ्यूगा रेसीमोसा, ब्रायोनिया एल्बा, आर्निका मोन्टाना तथा एकोनिटम नेपेलस आदि को प्रमुख रूप से मरीज के लक्षणों के आधार पर चुना जाता है।
बदन दर्द की होम्योपैथिक दवा-
दोंस्तों, हम अब हम बदन दर्द से सम्बन्धित, उपयोग में लायी जाने वाली कुछ चयनित होम्योपैथिक दवाओं के बारे में चर्चा करने जा रहे हैं-
1. वेराट्रम एल्बम
सामान्य नामः व्हाईट हेलेबोर
लक्षणः होम्योपैथी की इस दवा का उपयोग मुख्य रूप से कमजोरी, मतली एवं उल्टी आदि के साथ ही हाथ-पैरों में ऐंठन आदि के उपचार के लिए किया जाता है और इस दवा के माध्यम से निम्न लक्षणों का प्रबन्धन भी किया जा सकता है-
- प्रभावित व्यक्ति के जोड़ों में दर्द होता है, जो कि स्पर्श करने से बढ़ जाता है।
- मरीज को उसकी पिंड़ली में ऐंठन महसूस होती है।
- प्रभावित पुरूष/महिला को बहुत अधिक उल्टियाँ तथा कमजोरी होती है।
- मरीज के पेट में ठंड़क तथा ऐठन होती है।
- मरीज को उसका पेट सदैव खाली ही लगता है।
- मरीज के पेट में निरंतर ऐंठन रहती है।
- मरीज अचानक ही बेहोश हो जाता है और उसे अचानक ही दर्द होता है।
उपरोक्त लक्षण ठण्ड़ एवं रात्री काल में और अधिक बिगड़ जाते हैं, जबकि गरमी और चलने-फिरने के दौरान इनमें कुछ राहत मिलती है।
2. स्ट्रिचनिनम प्यूरम
सामान्य नामः एल्कालॉइड ऑफ नक्स वोमिका
लक्षणः होम्योपैथी की इस दवा का उपयोग मांसपेशियों की अकडन, ऐंठन और अचानक से दर्द, जो कि एक विशेष समय अंतराल पर बार-बार होता रहता है, के उपचार के लिए प्रभावी हैं। इसके साथ ही इस दवा के माध्यम से निम्न लक्षणों का प्रबन्धन भी किया जाता है-
- इस दवा के रोगी के जोड़ों, भुजाओं तथा उसकी टाँगों में अकडन होती है।
- पीड़ित के हाथ एवं पैरों में ऐंठन के जैसा दर्द रहता है।
- मरीज की रीढ़ की हड्डी में झटकों के साथ दर्द होता है।
- पीड़ित व्यक्ति की गर्दन के पीछे वाले भाग में दर्द होता हैं।
- रोगी की पीठ में अकड़न रहती है।
- रोगी की मांसपेशियों में दर्द रहता है और उसे उल्टियाँ भी होती हैं।
- रोगी की छाती की मांसपेशियों में दबाव और दर्द होता है।
यह लक्षण प्रातः काल, दर्द युक्त भाग को छूने और भोजन के बाद बिगड़ जाते हैं जबकि पीठ के बल लेटने से इन लक्षणों में राहत प्राप्त होती है।
3. रूटा ग्रेविओलेंस
सामान्य नामः रूबिटरवार्ट
लक्षणः होम्योपैथी में इस दवा का उपयोग तनाव, मोच एवं गम्भीर रूप से कमजोरी आदि का बेहतरीन प्रबन्धन के लिए किया जाता है, जो बदन दर्द के उपचार में भी बेहतर कार्य करती है तथा निम्न लक्षणों के उत्पन्न होने पर भी इसका उपयोग किया जा सकता है-
- रोगी को उसके सीने में जकड़न का अनुभव होता है।
- मोटे एवं पीले बलगम वाली खाँसी आती है।
- पैरों को खींचते समय रोगी की जाँघों में दर्द का होना।
- रोगी की गर्दन के पिछले हिस्से तथा पीठ के निचले भाग में दर्द होता है।
- रोगी की पीठ में होने वाला ऐसा दर्द जो कि पैरों की ओर गति करता है।
ठण्ड़े मौसम और लेटने के साथ ही इन लक्षणों में वृद्वि होती है।
4. रस-टॉक्सीकोर्डेड्रोन
सामान्य नामः पॉईजन आईवी
लक्षणः टाइफाइड तथा गठिया के जैसी अंतर्निहीत स्थितियों के चलते होने वाले दर्द के उपचार के लिए इस होम्योपैथी दवाई का उपयोग किया जाता है, क्योंकि इसे होम्योपैथी की दर्द निवारक औषधी के रूप में भी मान्यता प्राप्त है। इसके अतिरिक्त निम्न लक्षणों के प्रबन्धन में भी इस दवा का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है-
- जोड़ों की सूजन में
- रोगी के टेंडन और लिगामेन्ट्स में फटने के जैसे दर्द का होना
- रूक-रूक कर बुखार का होना तथा बेचैनी का अनुभव करना
- गर्दन के पिछले तथा कमर के निचले भाग में दर्द और ऐंठन या अकड़न का होना
- हाथ और पैरों में सुन्नपन का होना।
- रोगी थक जाने के बाद काँपने लगता है।
- रोगी के घुटनों के जोड़ो को छूने पर उसे उनमें दर्द का अहसास होता है।
रात में, सोते समय, मानसून एवं बारिश के मौसम में यह लक्षण बिगड़ जाते हैं जबकि रोगी के चलने, अपनी स्थिति (पोजीशन) में परिवर्तन, गरम एवं शुष्क मौसम या किसी हाथ अथवा पैर को स्टैच करने के साथ ही इन लक्षणों में कुछ सुधार होता है।
5. रैम्नस कैलीफोर्निका
सामान्य नामः कैलीफोर्निया कॉफी ट्री
लक्षणः होम्योपैथी की यह दवाई डिसमेनोरिया के कारण होने वाले दर्द तथा मांसपेशियों के दर्द में काफी प्रभावशाली है। यह दवा जोड़ों की सूजन तथा गठिया के उपचार के साथ ही साथ निम्न लक्षणों के प्रबन्धन में भी इसका उपयोग किया जा सकता है-
- मरीज को बेचैनी तथा चिड़चिड़ापन होता है।
- हाथ-तथा पैरों की क्रियाओं पर रोगी को नियन्त्रण करना मुशिकल हो जाता है।
उपरोक्त लक्षण शाम के समय बिगड़ जाते हैं।
6. रेननक्यूलस बलबोसस
सामान्य नामः बटरकप
लक्षणः होम्योपैथी की यह दवाई मुख्य रूप से मांसपेशियों पर कार्य करती है तथा निम्नलिखित लक्ष्णों के दिखाई देने पर भी इसका उपयोग किया जाता है-
- पेट पर दबाव पड़ने से दर्द का बढ़ना
- रोगी की छाती में दर्द होना
- रोगी में चिड़चिड़ापन तथा उसके माथे में दर्द होना।
- रोगी के सीने मे जलन होना
- मरीज के कन्धों की मांसपेशियों में दर्द होना।
खुली हवा में रहने, शाम के समय, बरसात तथा तूफानी मौसम के अन्तर्गत यह लक्षण विकृत हो जाते हैं।
7. जेल्सेमियम सेम्परविरेन्स
सामान्य नामः येलो जैस्मिन
लक्षणः होम्योपैथी इस दवाई का प्रभाव तंत्रिका तन्त्र पर दिखाई देता है जिसके कारण यह दवाई लकवा के साथ-साथ निम्नलिखित लक्षणों के प्रबन्धन में भी सहायता करती है-
- मांसपेशियों की कमजोरी।
- रोगी में कँपकपीं तथा सुस्ती के भाव की उपस्थिति।
- मरीज की पीठ में ठण्ड़ लगती है।
- रोगी को बेहेशी के साथ बुखार एवं चक्करों का आना।
- मांसपेशियों पर नियन्त्रण की कमी तथा बाजुओं और टाँगो में कमजोरी का आना।
- पीरियड्स के दौरान होने वाला दर्द जो कि रोगी की पीठ से होकर उसके कूल्हों तक पहुँचता है।
- रोगी की पीठ में हल्का-हल्का दर्द रहता है।
- रोगी शीघ्रता के साथ ही थक जाता है।
जब रोगी अपने लक्षणों के बारे में विचार करता है तो यह लक्षण बिगड़ जाते हैं। इसके साथ ही नम अथवा फॉगी अर्थात धुन्धला मौसम, धूम्रपान, कुछ निश्चित् भावनाएं, उत्तेजित होना या कोई बुरी खबर के द्वारा भी यह लक्षण खराब हो सकते हैं। जबकि रोगी के मुक्त वायु (खुली हवा) में रहने और उसके आगे की ओर झुकने से यह लक्षण कुछ बेहतर हो सकते हैं।
8. डल्कामारा
सामान्य नामः बिटर-स्वीट
लक्षणः होम्योपैथी की यह दवा जोड़, लिगामेण्ट, हड्डियों, मांसपेशियों तथा टेंडन आदि की सूजन को ठीक करने के लिए एक प्रभावी दवा होने के साथ ही यह निम्नलिखित लक्षणों का प्रबन्धन भी सुचारू रूप से करती है-
- रोगी अपने पूरे शरीर में जलन का अनुभव करता है।
- रोगी की गर्दन में अकडन रहती है।
उपरोक्त लक्षण उमस भरे मौसम, बरसात तथा रात के समय अधिक विकृत हो जाते हैं जबकि बाहरी गरमी और चलने-फिरने से इन लक्षणों कुछ सुधार आ जाता है।
9. मैग्नीशियम फॉस्फोरिकम
सामान्य नामः फॉस्फेट ऑफ मैग्नीशिया
लक्षणः होम्योपैथी की यह दवा इन्फ्लूएंजा, शारीरिक तथा मानसिक बेचैनी एवं रोगी के आंतरिक अंगों में जलन की अनुभूति आदि के प्रबन्धन में एक प्रभावी औषधि है। इसके साथ इसका उपयोग निम्नलिखित लक्षणों के प्रबन्धन में भी किया जाता रहा है-
- रोगी की पीठ में दर्द, अकड़न एवं सुन्नपन आदि का होना।
- पीड़ित के अण्ड़ाश्य/गर्भाश्य में तीव्र दर्द की अनुभूति होना।
- पीड़ित व्यक्ति के जोड़ों में सूजन एवं दर्द का होना।
- रोगी के घुटनों में अकड़न होना।
- रोगी बेचैन रहता है।
- रोगी के सिर में जलन का अहसास रहता है।
गरम कमरे, शाम और रात के समय, धूम्रपान करने, संगीत सुनने और ठण्ड़ी एवं शुष्क हवाओं के सर्म्पक में रहने से यह लक्षण बिगड़ जाते हैं, जबकि गरमी के कारण इन लक्षणों में कुछ सुधार आता है।
10. कैपरम मेटालिकम
लक्षणः यह होम्योपैथी दवाई विशेष रूप से ऐंठन तथा सविराम दर्द के उपचार में अति उपयोगी सिद्व होती है। इसके अतिरिक्त निम्नलिखित लक्षणों का प्रबन्धन भी यह सर्वश्रेष्ठ तरीके से करती है-
- मांसपेशियों की फड़कन।
- हथेलियों तथा पिण्ड़लियों में ऐंठन।
- मतली, उल्टी एवं दस्तों का होना।
- रोगी के पेट में ऐंठन तथा नसों में दर्द होता है।
उल्टी होने के बाद, पीरियड्स से पूर्व तथा दर्द वाले भाग को छूने से यह लक्षण और अधिक बिगड़ जाते हैं जबकि रोगी ठण्ड़ा पानी पीने और पसीना आने के बाद स्वयं को बेहतर मसूस करता है।
11. सिमिसीफ्यूगा रेसीमोसा
सामान्य नामः ब्लैक स्नेक-रूट
लक्षणः दर्द से राहत प्रदान करने और उसके उपचार के लिए इस होम्योपैथी दवाई का कोई विकल्प नही है और इसके साथ ही इन लक्षणों के प्रबन्धन में भी यह दवा उपयोगी है-
- रोगी की गर्दन एवं पीठ में संकुचन अथवा दबाव होना।
- रोगी के हाथ तथा पैरों में दर्द का होना।
- रोगी की मांसपेशियों में दर्द होना।
- रोगी के हाथ तथा पैरों में खिंचाव वाला दर्द।
- स्त्री के पीरियड्स के दौरान उसकी श्रोणी में दर्द होना।
- स्त्री के पीरियड्स से पूर्व तथा बाद में दर्द का होना।
उपरोक्त लक्षणों में सुबह के समय, पीरियड्स के दौरान अधिक खराबी आती है जबकि भोजन करने के बाद और गर्मी के सर्म्पक में आने के बाद इनमें कुछ सुधार आता है।
12. ब्रॉयोनिया एल्बा
सामान्य नामः वाईल्ड हॉप्स
लक्षणः होम्योपैथी की इस दवा का उपयोग मुख्य रूप से चुभन वाले दर्द और माँस के फटने के जैसे दर्द के उपचार के लिए किया जाता है। जबकि यह ब्रायोनिया के दर्द आराम करने से बेहतर हो जाते हैं और इस दवा का उपयोग निम्नलिखित लक्षणों के दौरान भी किया जाता है-
- शारीरिक कमजोरी
- बेहद चिड़चिड़ापन
- पीरियड्स के पूर्व तथा पश्चात् दर्द होना।
- श्रोणी एवं पेट वाले हिस्से में दर्द
- रोगी की पीठ तथा गर्दन के पिछले हिस्से में दर्द एवं अकड़न
- जोड़ों की सूजन
- जोड़ों में चुभने के जैसा तथा मांस फटने के जैसा दर्द होना
- पेट को स्पर्श करने पर दर्द होना
भोजन करने के उपरांत तथा प्रभावित हिस्सें को स्पर्श करने के बाद यह लक्षण बिगड़ जाते हैं और आराम करने तथा दर्द वाले हिस्से की तरफ से लेटने पर इन लक्षणों में थोड़ी-बहुत राहत प्राप्त होती है।
13. आर्निका मोन्टाना
सामान्य नामः लीपर्ड बेन
लक्षणः होम्योपैथी के अन्तर्गत इस दवाई से इन्फ्लूएन्जा, चोट, किसी अंग का सामान्य से अधिक उपयोग करना और तनाव के लक्षणों का बेहतर प्रबन्धन किया जाता है। इसके अतिरिक्त इसके माध्यम से इन लक्षणों का भी बेहतर प्रबन्धन किया जा सकता है-
- भुजा तथा टाँगों में मोच और डिसलोकेशन की समस्या के होने का अहसास
- श्रोणी में दर्द का उठना
- सिर में गर्मी के साथ बुखार का आना।
- रोगी को अपनी पसलियों के नीचे की ओर चुभन वाला दर्द महसूस होता है।
- महिलाओं में प्रसव के बाद भी जननांगों में दर्द का बने रहना
- चोट के बाद स्तनों में सूजन
आराम करने, नम मौसम में, हल्का सा छूने पर और ठण्ड़े मौसम में यह लक्षण अधिक विकृत हो सकते हैं। जबकि सिर को नीचा करने और लेटने से इन लक्षणों में सुधार होता है।
14. एकोनाइटम नेपेलस
सामान्य नामः मॉन्कशूड
लक्षणः किसी भी प्रकार की सूजन के प्रबन्धन के लिए मॉन्कशूड एक प्रभावी उपाय होता है, और इसका उपयोग निम्नलिखित स्थितियों के दौरान भी किया जा सकता है-
- शरीर के विभिन्न आन्तरिक अंगों में जलन होना।
- रोगी अत्यन्त बेचैनी अनुभव करता है।
- रोगी की पीठ में सुन्नपन, दर्द एवं अकड़न होना।
- रोगी भुजाओं और टाँगों का सुन्न हो जाना, झुनझुनी और तीव्र दर्द होना।
शाम के समय और रात में, गर्म वातावरण में, प्रभावित हिस्से की ओर से लेटने और करने से यह लक्षण और अधिक खराब हो जाते हैं, जबकि खुली हवा के सम्पर्क में रहने पर इन लक्षणों में सुधार होता है।
बदन दर्द की होम्योपैथिक दवा से सम्बन्धित कुछ विशेष टिप्स
बदन दर्द आज की सबसे आम शिकायतों में से एक है, यह हम सभी को कभी न कभी अवश्य होती है जिसमें चिकत्सीय परामर्श की आवश्यकता भी होती है जो कई अन्तर्निहीत स्थितियों के कारण से हो सकती है।
आमतौर पर, इस समस्या का प्रबन्धन परम्परागत दवाओं के अन्तर्गत भी किया जा सकता है, जो किसी चिकित्सक के द्वारा भी लिखी जा सकती हैं अन्यथा इन्हें आप अपने नजदीकी किसी मेडिकल स्टोर से खरीद सकते हैं।
इनके अन्तर्गत, पेन किलर, एन्टी डिप्रेंसेंट और मसल रिलैक्समेन्ट से सम्बन्धित दवाएं शामिल होती हैं। परन्तु इन दवाओं के कुछ दुष्प्रभाव या साइड इफ्ेक्ट्स भी हो सकते हैं और इन दुष्प्रभावों से बचने के लिए आप होम्योपैथिक दवाओं का सेवन कर सकते हैं।
होम्योपैथिक दवाएं प्राकृतिक उत्पादों से बनाई जाने के कारण इनका कोई दुष्प्रभाव भी नही होता है और सुरक्षित तथा प्रभावशाली माना जाता है। इसके साथ ही यह दवाईयाँ सम्बन्धित लक्षणों के साथ ही साथ सम्पूर्ण शरीर को रोगमुक्त करती हैं।
विशेषः मुकेश शर्मा होम्योपैथी के एक अच्छे जानकार हैं जो पिछले लगभग 25 वर्षों से इस क्षेत्र में कार्य कर रहे हे। होम्योपैथी के उपचार के दौरान रोग के कारणों को दूर कर रोगी को ठीक किया जाता है। इसलिए होम्योपैथी में प्रत्येक रोगी की दवा, दवा की पोटेंसी तथा उसकी डोज आदि का निर्धारण रोगी की शारीरिक और उसकी मानसिक अवस्था के अनुसार अलग-अलग होती है। अतः बिना किसी होम्योपैथी के एक्सपर्ट की सलाह के बिना किसी भी दवा सेवन कदापि न करें।
इसमें ऐसा भी हो सकता है कि आपकी दवा कोई और भी हो सकती है और कोई दवा आपको फायदा देने के स्थान पर नुकसान भी कर सकती है। अतः बिना चिकित्सीय परामर्श के किसी भी दवा का सेवन न करें।
डिसक्लेमरः प्रस्तुत लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं।