आधुनिक तकनीकों के सम्बन्ध में पक्ष एवं विपक्ष Publish Date : 05/02/2024
आधुनिक तकनीकों के सम्बन्ध में पक्ष एवं विपक्ष
डॉ0 आर. एस. सेंगर एवं मुकेश शर्मा
पक्ष
तकनीक बनाम रोजगार: नए-नए क्षेत्रों में लोगों को काम मिलेगा
यह कोई नई बात नहीं है। जब-जब तकनीक की दुनिया बदलती है तो उसके नकारात्मक प्रभाव की ही ज्यादा चर्चा की जाती है। इससे परोक्ष रूप से उस तकनीक के प्रति भय पैदा किया जाता है, ताकि उसकी तरफ लोग ज्यादा आकर्षित न हो सकें। मगर नियति कभी बदल सकती है क्या? आज जिस युग में हम सांस है, उसमें प्रौद्योगिकियों से बचकर नहीं रहा जा सकता। ऐसा नहीं हो सकता कि हम शुतुरमुर्ग की तरह रेत में अपनी आंखें और मुंह को गड़ा लें और यह मान लें कि चलो, तूफान गुजर गया। एआई के मामले में भी कुछ ऐसा ही है। इसे हम कतई नजरंदाज नहीं कर सकते।
कहा तो यह जा रहा है कि एआई से बेरोजगारी में बढ़ोतरी होगी। यह डर आज का नहीं है। याद कीजिए, जब भारत में कंप्यूटर युग की शुरुआत हुई थी तब भी यही कहा गया था कि इन मशीनों के आने के बाद मानव हाथ बेकार हो जाएंगे। मगर ऐसा हुआ क्या? नहीं, बल्कि आज भी हाथों से काम किए जा रहे हैं और कंप्यूटर अपनी जगह काम कर रहे हैं। अलबत्ता, कंप्यूटर के आने से हमारा काम आसान हो गया। अब हम पहले की अपेक्षा कहीं अधिक कुशलता से काम करने लगे हैं। हमारी क्षमताएं भी बढ़ गई है और कम समय में हम अधिक जिम्मेदारी का निर्वहन करने लगे हैं।
आज तो कंप्यूटर के बिना मानव जीवन की कल्पना तक नहीं की जा सकती। एआई के मामले में भी यही होगा। इससे अगर कुछ नौकरियां जाएंगी, तो रोजगार के कई नए दरवाजे भी खुलेंगे। क्योंकि मशीनें कभी भी इतनी ताकतवर नहीं हो सकतीं कि वे इंसानों को ही अपने अधीन कर लें।
मशीनों को संचालित करने के लिए इंसानी दिमाग की ही जरूरत होगी, इसलिए एआई की निगरानी जैसे कामों में नए रोजगारों का सृजन होगा। आज एआई जैसी नई प्रौद्योगिकियों को नकारने से बेहतर तो यह होगा कि हम इनको अपना हमराह बना लें। यदि हम इनके साथ मिलकर काम करेंगे, तो हमारी क्षमताओं में कहीं अधिक निखार आएगा और हम कहीं अधिक जवाबदेह बन सकेंगे। कोई भी तकनीक मानव को कभी भी नुकसान नहीं पहुंचाती। वैसे भी, एआई से मानव विकास की उन्नति के काम लिए जाएंगे, न कि अवनति के।
इसलिए इससे डरने की जरूरत नहीं है। नौकरियों के जाने या बेरोजगारी के बढ़ने जैसे आंकलन इसीलिए पेश किए जाते हैं, ताकि ऐसी तकनीकों की राह रोकी जा सके। मगर ऐसा शायद ही होगा। वैसे भी, एआई का अब हम कुछ हद तक इस्तेमाल करने ही लगे हैं। यह हमारी जिंदगी का हिस्सा बन चुकी है। अब वक्त है, इसके अधिकाधिक इस्तेमाल करने का, ताकि हम कहीं अधिक बेहतर बन सकें।
बेरोजगारी का अहम कारण बनती नई तकनीकें
विपक्ष
अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों ने मानव जीवन को आरामदायक और आसान तो बना दिया है, परन्तु इसने बहुत सारे लोगों के हाथों से काम भी छीन लिया है। आज यदि दुनिया भर में बेरोजगारी एक बड़ी समस्या बनकर उभरी है, तो इसके एक बड़े कारण के रूप में आधुनिक तकनीकें भी है। अब इन तकनीकी आविष्कारों का नकारात्मक प्रभाव रोजगार पर भी व्यापक रूप से पड़ रहा है।
अपने देश में ही पहले जिस काम को आठ-दस मजदूर मिलकर किया करते थे, उसे नई तकनीक आने से महज चंद मिनटों में मशीनों से किया जाने लगा है। यह स्थिति तब है, जब भारत में इन मशीनों का निर्माण काफी कम होता है, अमूमन हम इनको आयात ही करते हैं। ऐसे में, क्या इन नई-नई तकनीक को रोजगार के लिए अभिशाप नहीं माना जाना चाहिए?
एआई, यानी कृत्रिम बुद्धिमत्ता (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) इसका ज्वलंत उदाहरण है। यह तकनीक किस तरह से रोजगार पर भारी पड़ सकती है, इसका आकलन अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भी किया है। इस आंकलन के अनुसार, यह तकनीक विश्व में कुल मिलाकर 40 प्रतिशत तक नौकरियों को समाप्त कर सकती है। कुछ समय पहले अमेरिका के मैकेंजी ग्लोबल इंस्टीट्यूट ने भी अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि एआई से अमेरिका में रोजगार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
इस रिपोर्ट में बताया गया था कि वर्ष 2030 तक यह प्रौद्योगिकी वहां कई लोगों को बेरोजगार कर सकती है। केवल इतना ही नहीं, इस तकनीक के माध्यम से पुरुषों के मुकाबले महिलाओं को ज्यादा नुकसान होने की आशंका भी जताई गई थी। बेशक, परिवर्तन प्रकृति का नियम है, पर यह जरूरी नहीं कि कोई परिवर्तन हर किसी के लिए लाभदायक ही हो, इसलिए एआई के पक्ष में तर्क गढ़ना बंद कर देना चाहिए।
असल में एआई एक ऐसी प्रौद्योगिकी है, जो कंप्यूटर प्रोग्राम के द्वारा तैयार की जाती, जिसका उद्देश्य इंसानों के काम को सरल बनाना है। ऐसे में यह स्वाभाविक है कि इस कवायद में यह मानव के हाथों से उसका काम भी छीन लेगी। अपने देश में यह कितना असर डालेगी, इसका तो फिलहाल कोई आकलन उपलब्ध नहीं है, लेकिन यदि हम इसकी तरफ बढ़ते हैं, तो यह बेरोजगारों के जख्म पर नमक छिड़कने जैसा ही होगा, क्योंकि इससे छोटे- मोटे कामगारों पर ही अधिक असर पड़ेगा।
वैसे भी, अपने देश में गरीबों की संख्या कम नहीं है। बड़ी मुश्किल से हम उनको गरीबी रेखा से ऊपर ला पा रहें हैं। ऐसे में, उनके हाथों से जब उनका काम ही छिन जाएगा तो इससे हम अपने लिए चुनौतियों को ही बढ़ाएंगे। हालांकि, इसका अर्थ यह नहीं है कि हमें मशीनों पर भरोसा नहीं करना चाहिए। परन्तु हमें इन मशीनों का इस्तेमाल इस प्रकार से करना होगा चाहिए कि वे हमेशा इंसान की मदद करें, न कि उनकी मुश्किलें को बढ़ाएं।
लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।