अब स्वदेशी तकनीक से चीनी मिलें कम करेंगी अपने ईंधन की खपत Publish Date : 23/01/2024
अब स्वदेशी तकनीक से चीनी मिलें कम करेंगी अपने ईंधन की खपत
डॉ0 आर. एस. सेंगर
राष्ट्रीय शर्करा संस्थान में विकसित तकनीक विदेश के मुकाबले बेहद किफायती
राष्ट्रीय शर्करा संस्थान (एनएसआई) के द्वारा चीनी मिलों में ऊर्जा संरक्षण की स्वदेशी तकनीक को विकसित किया गया है। इसमें भाप को कंप्रेस कर, कम ईंधन के उपयोग से अधिक उत्पादन किया जा सकता है। इससे मिल में ईंधन के तौर पर प्रयुक्त होने वाली खोई (पेराई के बाद गन्ने का अवशेष) की खपत करीब आधी ही रह जाएगी। जिससे ईंधन के जलने से होने वाला प्रदूषण कम होगा और अतिरिक्त खोई की बिक्री से मिल का लाभ भी बढ़ेगा।
शुगर टेक्नालाजिस्ट एसोसिएशन ऑफ इंडिया के इसी माह तिरुवनंतपुरम में हुए राष्ट्रीय सम्मेलन में मैकेनिकल वेपर रिकंप्रेशन तकनीक विकसित करने के लिए एनएसआई के निदेशक प्रो नरेन्द्र मोहन और विज्ञानियों महेन्द्र यादव व प्रताप सिंह को स्वर्ण पदक दिया गया है।
विज्ञानी महेन्द्र यादव के अनुसार मैकेनिकल वेपर रिकंप्रेसर (एमवीआर) एक ऐसा उपकरण है, जिससे चीनी उत्पादन में व्यर्थ हो जाने वाली ऊर्जा का प्रयोग करना संभव होगा। अभी तक उच्च दबाव वाली वाष्प ऊर्जा का ही प्रयोग होता आया है और कम दबाव वाली भाप बाहर निकाल दी जाती है।
खोई का व्यावसायिक उपयोग बढ़ा
गन्ने की खोई का उपयोग अब पर्यावरण अनुकूल बोर्ड और क्रॉकरी के निर्माण में भी किया जा रहा है। एनएसआइ ने कुछ समय पहले इसके लिए एक तकनीक विकसित की है। खोई से तैयार होने वाले कप-प्लेट और भोजन वाल का उत्पादन भी कई कंपनियां कर रही है जिसके चलते प्लास्टिक के बर्तनों से होने वाला प्रदूषण भी कम होगा। बोर्ड तैयार करने में खोई का प्रयोग होने से पेड़ों की कटान पर भी रोक लगेगी जो प्रकृति संरक्षण में अहम है।
‘‘एमवीआर तकनीक के प्रयोग से चीनी मिलों को करीब दोगुनी खोई मिलेगी। इससे चीनी मिलों को खोई बेचकर अतिरिक्त आय होगी और ईंधन की खपत कम होने से प्रदूषण में भी कभी आएगी।’’
-प्रो. नरेन्द्र मोहन निदेशक
लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।