पौधों पर वायु प्रदूषकों का प्रभाव Publish Date : 30/11/2023
पौधों पर वायु प्रदूषकों का प्रभाव
डॉ0 आर. एस. सेंगर, डॉ0 रेशु चौधरी एवं मुकेश शर्मा
‘‘सल्फर डाईऑक्साइड (So2) नाइट्रोजन के ऑक्साइड (No) ओजोन (O3), फ्लोराईड (F) और प्रसुप्त कणिकीय तत्व वायु संदूषक हैं जिनका प्रत्यक्ष रूप से वनस्पति की हानि में सबसे अधिक योगदान है। वायु प्रदूषण से होने वाले प्रभाव को दृश्य तथा अदृश्य दो प्रकार की क्षति में विभक्त किया जा सकता है। अन्दरूनी कोशिकीय क्षति के परिणामस्वरूप पत्तियों की सतह पर दाग व धब्बे होते हैं। इस प्रकार की क्षति कृषि उपज के मूल्य को घटा देती है क्योंकि प्रत्यक्ष रूप से आभास महत्वपूर्ण होता है। इसके कारण उपज घट जाती है, जबकि क्षतिपूर्ण पत्ती की सतह के अंश परजीवियों को पौधे में आगमन का रास्ता देते हैं। संदूषक से होने वाली अदृश्य क्षति पौधे की जैव रासायनिक तथा कार्यिकीय प्रक्रम पर प्रभाव डालती है और प्रभावपूर्ण तरीके से वृद्धि तथा उपज में कमी लाती है तथा खाद्यान्न गुणवत्ता को परिवर्तित कर देती है। अधिक संदूषक स्तर का अल्पकालिक अनावरण प्रत्यक्ष क्षति का रूप है जबकि दीर्घकालिक अनावरण या फिर सामान्य रूप से बढ़ा हुआ प्रदूषण अप्रत्यक्ष क्षति के स्वरूप है। प्रत्यक्ष क्षति खेतों में पहचानी जा सकती है जबकि अप्रत्यक्ष क्षति उपज में कमी फसल के अंत में ही जानी जा सकती है।’’
पौधों पर वायु प्रदूषण के प्रभाव को दो भागों में विभाजित किया जा सकता। है- प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष। जीव कोशिकाओं की हानि या बदलाव संदूषित वायु के प्रभाव, वनस्पति पर प्रत्यक्ष प्रभाव का उदाहरण है। सल्फर ऑक्साइड (So2) और ऑक्साइडस ऑफ नाक्स (Nox) का संवेदनशील मिट्टी के अम्लीयकरण में योगदान है, जिसके साथ आधार धनायन का क्षय तथा क्षेत्रीय वनस्पति पर दीर्घकालीन प्रभाव पड़ता है। अमोनिया उत्सर्जन दीर्घकालीन सुपोषण, कुपोषण वाली मिट्टी में बढ़ावा देता है। इसी के साथ अतिरिक्त नाइट्रोजन का जमाव अल्पकालीन तेज पैदावार को बढ़ावा भी देता है। वनस्पति को वायु के विभिन्न प्रदूषणों से प्रतिक्रिया के बारे में ज्ञान की कमी का होना एक हानिकारक संकेत है। वायु संदूषक विभिन्न स्रोतों तथा विभिन्न क्षेत्रों से उत्पन्न होते हैं जैसे उद्योगों, विद्युत संयंत्रों, परिवहन, जैव-दहन आदि। वायु प्रदूषण का वनस्पति पर प्रभाव निम्नलिखित कारकों द्वारा पड़ता हैः
- संदूषक स्रोत से दूरी
- संदूषक की अनावरण अवधि
- वायुमण्डलीय परिस्थितियां
ऐसे पेड़-पौधो पर वायु प्रदूषण का प्रभाव अधिक पाया जाता है जो कि शहरों, हवाई अड्ड़ो, राजमार्गों, विद्युत संयंत्रों, भट्टी एवं कारखानों के समीप पाए जाते हैं। ईंट, मिट्टी के बर्तन, रासायनिक उर्वरकों, सीमेंट, रंगलेप, रासायनिक पदार्थों, कागज की लुग्दी इत्यादि का उत्पादन करने वाले उद्योगों के समीप पाए जाने वाली वनस्पतियों पर भी वायु संदूषको का गहरा प्रभाव पड़ता है। इस क्रम में विभिन्न संदूषकों और फसलों पर पड़ने वाले इनके प्रभावों पर चर्चा करता एक लेख-
सल्फर डाइऑक्साइड (So2)
मानव जनित सल्फर डाइऑक्साइड का मुख्य स्रोत जीवाश्म ईंधसन का दहन है। अन्य स्रोतों में मुख्य रूप से कोयला (निचला दर्जा, अधिक सल्फर मात्रा) और ईंधन तेल (प्राकृतिक गैस, पेट्रोल और डीजल) सामान्य तौर पर सल्फर डाइऑक्साइड (So2) उत्सर्जन का प्रमुख स्रोत विद्युत संयंत्रों में कोयले का दहन है। सल्फर डाइऑक्साइड (So2) एक प्राथमिक संदूषक है, इसलिए इसकी सघनता सीधे तौर से क्षेत्रीय उत्सर्जन फैलाव व उत्सर्जन ऊंचाई से संबंधित है, जैसे कि सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) की अधिक मात्रा औसतन शहरी या औद्योगिक क्षेत्रों से संबंधित है। उद्योगों व विद्युत संयंत्रों की ऊंची चिमनियां प्रभावी रूप से भूतल पर कम सांद्रता में उपयोगी है, भले ही इसके दीर्घकालिक लाभ अल्प हैं। सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) की मात्रा वायुमण्डल में अधिक होती है, जब मौसम विज्ञान संबंधी परिस्थितियां कमजोर विसर्जन (Dispersion) के ही लायक होती हैं।
नाइट्रोजन के ऑक्साइड (NOX)
नाइट्रस ऑक्साइड (NO) और नाइट्राइट (NO2) का प्रभाव वनस्पति पर काफी अच्छे से जाना जाता है। NO2 प्रमुख रूप से माध्यमिक प्रदूषक है, जोकि प्राथमिक प्रदूषक NO और O3 (ओज़ोन) में होने वाली रासायनिक क्रिया के बाद उत्पन्न होता है। NO का NO2 में शीघ्र रूपांतरण वायुमण्डल में NOX (दोनों पदार्थों का मिलान) के भार को बढ़ाता है जिसमें स्रोत की दूरी पर NO2 अधिक होती है। सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) की ही तरह यह संदूषक दहन क्रिया के बाद उत्पन्न होते हैं। SO2 का उत्सर्जन सल्फर की अधिकता से बढाता है, जबकि NO2 का उत्सर्जन अन्य घटकों पर निर्भर करता है। NO का मुख्य स्रोत अधिक तापमान (>1400 डिग्री सेल्सियस) के साथ वायुमण्डलीय नाइट्रोजन (N) और ऑक्सीजन (O) की उपस्थिति में दहन क्रिया है। ईंधन में N का होना भी कुछ हद तक योगदान देता है। स्थिर स्रोतों (ताप तथा विद्युत उत्पादन) और परिवहन में जीवाश्म ईंधन का दहन NO2 के प्रमुख स्रोत हैं।
सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) और O3 की तुलना में उपचर्मीय प्रतिरोध NO2 के लिए कम है जिसके कारण से पौधे की पत्तियों में NO का प्रमुख प्रवेश द्वार रन्ध्र है। NO का जैव रासायनिक प्रभाव काफी अलग है और यह अभी पूर्णतः ज्ञात नहीं है कि इनमें से कौन सा ऑक्साइड अधिक विपैला है। NO की उच्च मात्रा पौधे की वृद्धि को कम करती है, जबकि कम मृदा नाइट्रोजन की स्थिति में थोड़ी मात्रा में NO पौधे की वृद्धि को प्रोत्साहित करता है। हालांकि पौधे की वृद्धि को प्रोत्साहित करता है, परंतु NO2 का अनावरण प्रतिकूल प्रभाव भी डालता है। जैसे कि सूखे, विनाशकारी कीट और पाले के प्रति बढ़ी हुई संवेदनशीलता/पत्तियों पर हरित रोग के साथ ऊतकक्षयी चक्रत्ता उच्च NO2 अनावरण के कारण हो सकती है, जो कि प्रत्यक्ष क्षति का एक असामान्य उदाहरण है। दीर्घकालीन NO अनावरण के कारण पौधे की वृद्धि में कमी आती है, जिसकी वजह प्रकाश संश्लेषण का अवरोधन है। NO और अन्य संदूषकों का संयोजन सह-क्रियाशील प्रभाव दिखाता है, जिसका तात्पर्य संयोजन के बाद संदूषक वनस्पति पर अधिक प्रभाव डालना है। सह-क्रियाशीलता अधिकतर NO2 और SO2 में होती है, परन्तु NO2 और O2 में भी देखी गई है।
ओज़ोन (O3)
दूसरे गैसीय संदूषकों से भिन्न, ओजोन प्राकृतिक तौर पर अधिक साँद्रण में ही अस्तित्व मे आती है। बीसवीं सदी शुरूआत में अब तक आधार ओजोन (O3) तल सांद्रता निरन्तर 10 से 20 पाटर््स/मिलियन (पीपीएम) से बढ़कर 20 से 40 पार्ट्स/मिलियन (पीपीएम) हो गई है। ओजोन (O3) की सांद्रता दो अलग-अलग क्रियाओं के परिणामस्वरूप होती है- समताप मण्डल से क्षोभ मण्डल में O3 का हस्तांतरण और प्रकाश रासायनिक क्रिया। प्रकाश-रासायनिक क्रिया में O3ए NO2 का प्रकाश-अपघटन के साथ परमाणु और आणविक ऑक्सीजन (O) का संयोजन और NO तथा O3 के हास के साथ NO2 का बनना। मूल O3 उत्पत्ति, NO3 और हाइड्रोकार्बन युक्त वायुमण्डल में अधिक O की सहता तक ले जाता है। ऐसी स्थिति में हाइड्रोकार्बन के निम्नीकरण के फलस्वरूप मुक्त रेडिकल निकलता है, जोकि NO के साथ अभिक्रिया से NO, बनाता है और O, की मूल उत्पत्ति को आगे बढ़ाता है। O, की सांद्रता उपनगरीय और देहाती स्थानों पर अधिक होती है क्योंकि NO से होने वाली अभिक्रिया से स्थानीय स्तर की O का हास होता है। प्राथमिक संदूषक के स्रोत से काफी दूरी पर स्थित परितंत्र को O, क्षति पहुंचा सकती है। वाष्पशील हाइड्रोकार्बन का उत्सर्जन प्राकृतिक रूप से जंगल की वनस्पतियों से होता है। शहरी क्षेत्रों में सड़क परिवहन इसका मुख्य स्रोत है। इसी के साथ पेंट और आसंजक में उपयोग होने वाला विलायक महत्वपूर्ण स्रोत है। सड़क परिवहन के उत्सर्जन में ईंधन के वाष्प व बिना जले हुए उत्सर्जन के कण और अधूरे जले हुए हाइड्रोकार्बन के साथ गाड़ी के धुएं का उपचयन उत्पाद होता है।
सारणी-1: मुख्य प्रदूषकों संदूषकों के स्रोत, क्षति और प्रभाव की श्रेणी का संक्षेप
संदूषक |
मुख्य स्रोत |
मुख्य क्षति |
मुख्य प्रभाव की श्रेणी |
SO2
NO
O3
प्रसुप्त कणिकीय तत्व
फ्लोराइड |
विद्युत उत्पादन, उद्योग इकाई, घरेलू व व्यवसायिक, गर्म करने की पद्वति
विद्युत उत्पादन, परिवहन
हाइड्रोकार्बन से बना माध्यमिक संदूषक
परिवहन, विद्युत उत्पादन, उद्योग, घरेलू ताप,
उत्पादन एवं स्मेल्टिंग उद्योग |
प्रत्यक्ष पत्तियों की हानि, पौधों के विकास में बदलाव, शैवाल और ब्रायोफाइट्स का निर्मूलन, जंगलो का क्षरण पौधों के विकास में बदलाव, माध्यमिक तनाव के प्रति परिष्कृत संवेदनशीलता सुपोषण। प्रत्यक्ष पत्तियों की हानि, पौधों के विकास में बदलाव, जंगलों का क्षरण।
पौधों के विकास में बदलाव, माध्यमिक तनाव के प्रति परिष्कृत संवेदनशीलता पौधों के विकास में कमी, चरने वाले पशुओं में फ्लोरोसिस |
स्थानीय
स्थानीय
क्षेत्रीय
स्थानीय
स्थानीय
|
प्रसुप्त कणिकीय तत्व
प्रसुप्त कणिकीय तत्व ठोस तथा द्रव्य में विभाजित होता है जिसकी माप श्रेणी लगभग 0.1-2.5 माइक्रो मीटर व्यास होती है। यद्यपि संदूषक सघनता की माप के लिए सामान्य रूप कणों को मापने के लिए च्ड10 को प्रयोग में लाया जाता है जिसका तात्पर्य है, वायु में उपस्थित कण जिनका व्यास 10 माइक्रोमीटर कम है। इस श्रेणी में अधिकतर कुल कणिकीय तत्व आते हैं। प्रसुप्त कणिकीय तत्व को दो वर्गों में बांटा जा सकता है- प्राथमिक कणिकीय तत्व जो प्रत्यक्ष रूप से उत्सर्जित होता है, जैसे गाड़ियों का धुआं, तथापि माध्यमिक कणिकीय तत्व जो अन्य योगों के पारस्परिक क्रिया से बनते हैं, जैसे कि NO2 के प्रकाशोपचयन से नाइट्रेट की उत्पत्ति। सामान्यतः अधिक मोटे कण (2.5.10 माइक्रोमीटर) प्राकृतिक तथा जैविक कणों से बनते हैं जबकि सूक्ष्म भाग (<2.5 माइक्रोमीटर) मानवीय क्रियाकलापों से उत्पन्न होते है। जिसमें नाइट्रेट और सल्फेट शामिल है। प्रसुप्त कणिकीय तत्व एक नगरीय प्रदूषण परन्तु यह कण के आकार पर निर्भर करता है। प्रसुप्त कणिकीय तत्व के उत्सर्जन के स्रोत विकसित और विकासशील क्षेत्रों में अलग-अलग होते हैं, जैसे कि जंगल की आग, क्षेत्रीय उद्योग और कम विकसित आधारभूत संरचना उल्लेखनीय ढंग से कणीय बहुतायत पर योगदान देती है।
प्रसुप्त कणिकीय तत्व से अनेक प्रकार के प्रभाव वनस्पति जीव तत्व पर पड़ते हैं जो कि अधिकतर कण की रासायनिक संरचना पर आधारित होते है। भारी धातु तथा विषाक्त कण पौधों में पादप आविषालुता तथा उग्र निक्षेपण से होने वाली अपघर्षण प्रक्रिया के फलस्वरूप क्षति पहुंचाते हैं। अधिक मात्रा में कणों का पत्तियों पर जमाव प्रकाश संचरण का हरित लवक तक पहुंचने में अवरोध पैदा करता है जिससे रन्ध्र में अधिधारण तथा गैसीय विनियम क्षमता में कमी आती है। इसके फलस्वरूप वनस्पति में पानी की कमी आती है और अन्य कार्यिकीय प्रक्रिया भी भंग होती है, जैसे कि कोपल का टूटना, परागण तथा प्रकाश के अवशोषण/परावर्तकता में परिवर्तन/कणिकीय अनावरण के कुछ अप्रत्यक्ष प्रभाव भी होते हैं जैसे कि रोगाणुओं से सक्रमण तथा दीर्घकालिक आनुवांशिकीय संरचना में फेर-बदल। कुछ अध्ययनों में यह भी देखा गया है कि कणिकीय अनावरण से कुछ सकारात्मक परिणाम भी समाने आए हैं जिनके कारण वायुमण्डल से पोषक कण का ग्रहण करना तथा प्रयोग करना है।
फ्लोराइड (F)
फ्लोराइड युक्त पदार्थ वायु और कणिकीय संदूषक की तरह जाने जाते हैं. जोकि औद्योगिक इकाइयों से उत्सर्जित होते है। एल्यूमीनियम स्मेलटर व फॉस्फोरस खान का कारखाना इसके प्रमुख उत्सर्जक होते हैं। यह कोयला दहन, स्टील निर्माण, ईट के भट्टों व कांच के कारखानों से भी निकलती है।
गैरसीय और कणीय फ्लोराइड पत्तियों को सतह पर जमा होकर प्रत्यक्ष रूप से पुरानी या क्षीण उपचर्म को भेद लेती है। पत्तियों की सतह पर पानी में घुला हुआ फ्लोराइड विसरण के द्वारा उपचर्म में सोख लिया जाता है। रन्ध्र के द्वारा सोखी गई गई गैसीय फ्लोराइड एपोप्लास्ट में वाष्पोत्सर्जन बहाव से पत्तियों के सिरे और किनारों पर विषाक्त स्तर में एकत्र हो जाती है। पौधों की प्रजातियाँ फ्लोराइड के प्रति अलग-अलग संवेदनशीलता रखती है। जैसे कि तरुण शंकु वृक्ष फ्लोराइड से काफी प्रभावित हो जाते हैं, जबकि चाय और कपास फ्लोराइड संदूषण से प्रभाव शून्य रहती है। एल्यूमीनियम स्मेलटर के उत्सर्जन से कई प्रजातियों की पत्तियों के सिरे और किनारे हरित रोग और ऊतक-क्षयी चक्रता के रूप में क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि फ्लोराइड, अमीनो अम्ल और प्रोटीन के प्रकाश संश्लेषण चयापचयन और श्वसन में कमी लाता है। पत्तियों पर फ्लोराइड के जमाव के कारण चरने वाले पशुओं में फ्लोरोसिस पाया जाता है। ईंट के भट्टे, स्मेलटर, फॉस्फेट उर्वरक उद्योगों के निकट के चरागाहों में चरने वाले पशुओं में फ्लोरोसिस विकसित हो जाता है। इससे पेशी तथा हड्ड़ी तन्त्र में नुकसान हो सकता है, जिसमें दाँत का मुलायम होना, चर्वण में परेशानी, लगड़ापन व चलने में तकलीफ होती है।
ओजोन गैस का प्रभाव
SO2 और NO की तरह O3 का पौधे के पोषक तत्व के रूप में कोई भूमिका न होने के कारण O3 के द्वारा होने वाली विषाक्तता का विश्लेषण जटिल नहीं है। पौधे में पत्ती के उपचर्म द्वारा O3 का स्थानांतरण नगण्य है जबकि लगभग सम्पूर्ण O3 रंध्र के द्वारा पत्तियों में उद्ग्रहण होता है। उपरंध्र छिद्र में O3 के प्रवेश के बाद कोशिका-भित्ति से संबंधित जलीया मैट्रिक्स O3 के साथ क्रिया करके प्लाज़्मा झिल्ली के संवेदनशील संघटकों का उपचयन कर देता है। अल्पकालीन उच्च O3 सांद्रणता का पत्तियों पर अनावरण प्रत्यक्ष क्षति के लक्षणों को दर्शाता है जिसके कारण संभवतः पत्तियों की क्षतिग्रस्त झिल्ली की पारगम्यता को सुधारने या पूर्ति करने में असमर्थता है। O3 की बड़ी पत्तियों पर तीक्षण क्षति के लक्षण हैं-हरित रोग, विरंजन, कांस्यन, धब्बे पड़ना, स्टिपलिंग, ऊतकक्षयी चक्रत्ता। दीर्घकालीन अनावरण में पत्तियों पर दृश्य प्रभाव पड़ना जरूरी नहीं है, परन्तु कभी-कभी हरित रोग, अकाल पत्तियों का गिरना तथा विगलन के कारण यद्यपि दीर्घकालीन अनावरण से पौधों की वृद्धि में कमी के कारण उपज में क्षति भी हो सकती है 14 घण्टे के लिए 0.04 से 1 पार्ट्स/मिलियन (पीपीएम) तक ओजोन का अनावरण संवेदनशीन पौधों में क्षति प्रदर्शित करता है। एक पौधे की विभिन्न प्रजातियां ओजोन के प्रति अतिसंवेदनशीलता में भिन्नता दर्शाती हैं, उदारणतः सेम, आलू, प्याज, पालक, तम्बाकू, मीठी मकई।
इथीलीन (C2H4)
वाहनों के द्वारा निकलने वाली विषाक्त गैसों में इथीलीन भी एक उत्पाद है जो कि वायुमण्डल के लिए हानिकारक होती है। 24 घण्टे के लिए 0.001 पार्ट्स/मिलियन (पीपीएम) पर यह गैस ऑर्किड फूलों के बाह्य को भूरा कर देती है एवं उन्हे मुरझा देती है। टमाटर और काली मिर्च के पौधों में 0.1 पार्ट्स/मिलियन (पीपीएम) पर 6 घण्टे के लिए अनावरण अधेकुंचन का मूल कारण होता है। पौधों में क्षति की सीमा वायुमण्डलीय तापमान, पौधों की प्रजाति और इथीलीन की सांद्रता पर निर्भर करती है।
पारा की वाष्प (Hg)
अन्य संदूषकों की अपेक्षा मर्करी वाष्प का अनावरण पौधों में पत्तियों से अधिक पुष्पों के लिए संवेदनशील होता है। समान्यतः इस गैस के क्षति के लक्षण 24 घण्टे के भीतर प्रकट हो जाते हैं. जो 5 दिनों तक लगातार बढ़ते रहते हैं।
पौधों पर सल्फर डाइऑक्साइड का प्रभाव
पत्तियों में सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) रन्ध्रों के द्वारा प्रवेश करता है. इसी के साथ यह गीली परत पर महत्वपूर्ण दर से एकत्रित होता है। जहाँ पर यह सल्फाइड या बाईसल्फाइड को बनाने के लिए टूटता है और उपचर्म मोम के साथ क्रिया करता है। क्षतिग्रस्त उपचर्म के द्वारा सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) कुछ मात्रा में पत्तियों में प्रवेश कर जाती है। कणिकीय तरल पदार्थ की प्रतिरोधक क्षमता आंतरिक सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) मात्रा का विवेचनात्मक प्रभाव निर्धारित करता है। उच्च वर्गीय पौधों में अंतरकोशिकीय अम्लता और क्षारीयता अनुपात को नियंत्रित करने की क्षमता होती है, जबकि शैवालों में नियंत्रण तन्त्र काफी साधारण होता है। सम्भवतः यही एक कारण है और सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) के प्रभाव से शैवाल अधिक सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) उत्सर्जन क्षेत्रों में ’शैवाल मरूस्थल’ बना देते हैं। सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) से प्रत्यक्ष क्षति को पत्तियों के ऊतक हरित रोग के रूप में देखा जा सकता है जिसमें मरे हुए ऊतक रंग द्रव्य के खण्डित हो जाने के कारण सफेद हो जाते हैं। स्पष्ट तौर से प्रत्यक्ष क्षति न होने पर भी सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) वनस्पति के विकास और पैदावार में कमी लाता है। विशेष मृदा और जलवायु में खाद में बदलाव के साथ सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) उत्सर्जन में कमी कुछ देशों में सल्फर का अभाव लाया है। अप्रत्यक्ष रूप से सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) रोगाणु और कीटों पर प्रभाव डालने के साथ फसलों की उपज में भी बदलाव लाते हैं। सल्फर डाइऑक्साइड की सांद्रता एवं अनावरण अवधि-इन दोनों की वृद्धि वनस्पति में क्षति की मात्रा की वृद्धि का कारण होता है। 4 घण्टे के लिए 0.5 अथवा 8 से 24 घण्टे के लिए 0.25 पार्ट्स/मिलियन (पीपीएम) पर इसका अनावरण संवेदनशील पौधों को क्षति पहुँचाता है। बसंत ऋतु के अंत और जेठ के आगमन के दौरान जब पौधों में पर्याप्त नमी, उच्च आपेक्षिक आर्द्रता, प्रकाशमान सूर्य होता है तब पौधे सल्फर डाइऑक्साइड के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं।
सारणी-2: भारत में वायु प्रदूषण के द्वारा विभिन्न फसलों में आर्थिक हानि का आंकलन (2009)
फसल |
आर्थिक हानि (रूपया/हैक्टर) |
संदूषक |
||
|
SO2 |
NO2 |
O3 |
|
गेहूँ |
23846 1620 1641 14040 5389 5055 12505-17995 4156 11016 8964 1080 5724 13476 |
8 11 11 - - 6.1 18.45 - - - - - 8.5 |
40 20 20 - - 13 28.47 - - - - - 13.5 |
42 45 45 47 47 48 10.15 44 44 44 44 44 29 |
चावल |
1972 |
7.3 |
14.5 |
35 |
सरसों |
7481 8445 3587 1208-5453 |
6.1 6.1 6.1 18.45 |
13 13 13 28.47 |
48 48 48 10.15 |
उड़द |
3096 1135 |
- - |
- - |
51 51 |
सोयाबीन |
9907 7776 |
- - |
- - |
52 52 |
मटर |
19012-30550 7860-13244 5972 |
18.45 13.32 9 |
28.47 12.80 17.5 |
10.15 10.58 59 |
ब्रोमीन (Br2) और आयोडीन (I)
ये गैसे वनस्पतियों के लिए अत्यधिक विषाक्त होती है। तत्परता से हाइड्रोजन आयोडाइड एवं आयोडीन पौधों में अवषोषित और संचित हो जाती है और इसका प्रत्यक्ष क्षति लक्षण सल्फर डाइऑक्साइड के समान ही होता है। 18 घण्टे की अवधि के लिए 0.1 पार्ट्स/मिलियन पर पौधों में क्षति होती है।
कार्बन मोनो-ऑक्साइड (CO)
कार्बन मोनो ऑक्साइड के कारण पौधों में हरित रोग, विघलन और अधोकुंचन की समस्या होती है। एक सप्ताह के लिए 100 पार्ट्स/मिलियन से कम अनावरण पौधों को कोई भी हानि नहीं पहुंचाता है।
हाइड्रोजन सल्फाइड (H2S)
हाइड्रोजन सल्फाइड गैस का अनावरण पौधों में शिथिलता उत्पन्न करता है और लक्षण 48 घण्टों के बाद विकसित होते हैं। 40 पार्ट्स/मिलियन पर 4 घण्टे से नीचे इस गैस का अनावरण वनस्पतियों पर कोई भी हानि नहीं उत्पन्न करता है।
वायु प्रदूषण के कारण कृषि उत्पादकता में 10 से 15 प्रतिशत नुकसान होता है। वायु प्रदूषण में कमी लाने के काफी प्रयास किए जा रहे हैं परन्तु विकास के साथ वायु प्रदूषण जुड़ा हुआ है और इसे पूरी तरह से नहीं हटाया जा सकता है। इस प्रकार शोधों में यह प्रयास किया जा रहा है कि फसलों की तनाव प्रतिरोधी किस्में बनाई जाए, जिससे प्रतिकूल परिस्थितियों में लाभदायक पैदावार संभव हो सके। वर्तमान परिदृश्य में कृषि को वायु प्रदूषण का प्रभावी ढंग से सामना करना है। इसके लिए कई देशों में बचाव प्रक्रिया के क्षेत्र में शोध हो रहे हैं।
लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।