खाद्यान्नों की बर्बादी रुके तो भुखमरी भी कम होगी Publish Date : 24/10/2023
खाद्यान्नों की बर्बादी रुके तो भुखमरी भी कम होगी
डॉ0 आर. एस. सेंगर एवं मुकेश शर्मा
‘भोजन और खाद्यान्न की बर्बादी से भुखमरी की समस्या तो पैदा होती ही है, इसके साथ ही अर्थव्यवस्था एवं पर्यावरण पर भी इसके गम्भीर प्रभाव पड़ते है।’
वर्तमान आँकड़ों के अनुसार, पूरी दुनिया में हर वर्ष औसतन प्रति व्यक्ति 74 किलोग्राम खाना व्यर्थ हो जाता है, जो कि एक औसत व्यक्ति के कुल वजन से भी अधिक है। पिछले वर्ष दुनियाभर में लगभग 78 करोड़ लोग भूख के शिकार हुए। प्रति व्यक्ति के दो वक्त के भोजन के आधार पर., जो कि लगभग 600 ग्राम होता है, की गणना करें, तो यह लगभग 200 किलोग्राम प्रतिवर्ष होता है। यानी भोजन की बर्बादी रोकी ली जाए, तो भूख से पीड़ित अधिसंख्य लोगों को भोजन सुलभ हो जाएगा।
खाद्य सामग्रियों के नुकसान एवं बर्बादी से जहां एक ओर भुखमरी के जैसी विकट सामाजिक समस्या जुड़ी हुई है, तो वहीं दूसरी ओर पर्यावरण एवं अर्थव्यवस्था पर भी इसके दूरगामी, वं स्पष्ट दुष्प्रभाव होते हैं। इसे देखते हुए ही संयुक्त राष्ट्र ने 29 सितंबर को खाद्य नुकसान एवं बर्बादी के विरूद्व जागृति हेतु अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाने का निर्णय किया। समूचे विश्व ने आठ वर्ष पूर्व सतत विकास लक्ष्य पर अपनी सहमति व प्रतिबद्धता प्रकट करते हुए अपने विकास के लक्ष्य तय किए थे। उनमें भोजन की बर्बादी को आधा करने का संकल्प भी लिया गया था।
प्रतिवर्ष पूरी दुनिया में लगभग 1,100 करोड़ टन खाद्यान्न का उत्पादन होता है, जबकि उसमें से करीब 30 प्रतिशत बर्बाद हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप जहां आमजन को महंगाई का सामना करना पड़ता है, वहीं पर्यावरण भी इससे गंभीरतम रूप से प्रभावित होता है। एक अनुमान के अनुसार, खाद्य हानि एवं बर्बादी मानव जनित कुल प्रदूषण के एक तिहाई हिस्से के लिए जिम्मेदार होती है, जिसे रोका जा सकता है। प्रत्येक व्यक्ति भोजन व्यर्थ न करने के संकल्प के साथ इस यज्ञ में आहुति दे सकता है। भारत समेत अनेक देशों ने अतिरिक्त भोजन संग्रहण, संकलन कर पुनर्वितरण संबंधी नवाचार किए हैं, किंतु इनमें अभी सीमित सफलता मिल सकी है।
खाद्य बर्बादी पर अंकुश लगाने के लिए फ्रांस और इटली समेत अनेक देशों के द्वारा विगत वर्षों में कानून के जरिये की गई पहल का अनुसरण करने की सभी को जरूरत है। भारत में भी अतिथि नियंत्रण कानून लागू किए गए थे, किंतु कालांतर में ये सभी प्रचलित दिखावे और फूहड़पन की चकाचौंध के चलते नेपथ्य में चले गए। मानवीय संवेदनाओं में भी सामर्थ्यवानों की दृष्टि में भोजन की बर्बादी चिंता का विषय नहीं है।
ऐसे में, एक व्यापक आंदोलन या सामाजिक बहिष्कार जैसे निर्णयों से संभवतया अनावश्यक भोजन बर्बादी को रोक भुखमरी पर काबू पाया जा सकता है। अतिरिक्त खाद्यान्न नुकसान को भी उचित नीति, आधारभूत संरचना और सामुदायिक पहल के द्वारा बहुत हद तक रोका जा सकता है। विक्रय स्थल तक पहुंचने से पूर्व होने वाले खाद्यान्न नुकसान का एक तिहाई हिस्सा फल व सब्जियां हैं, जो पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं, लेकिन आधी से अधिक आबादी की पहुंच से दूर ही बने हैं।
वैश्विक स्तर पर विभिन्न शहरों में फूड बैंक स्थापित कर खाद्यान्न व भोजन की बर्बादी को रोकने के ठोस उपाय किए जा रहे हैं। ग्लोबल फूड बैंकिंग नेटवर्क से जुड़े बैंकुवर फूड बैंक के अध्ययन के माध्यम से प्राप्त जानकारी के अनुसार, उस क्षेत्र के किसान रीफीड जैसी संस्था के माध्यम से खराब होने जा रहे समस्त उत्पाद फूड बैंक को दान कर देते हैं, ताकि उनका सदुपयोग असहाय लोग कर सकें।
भारत में भी इस उद्देश्य के साथ इंडिया फूड बैंकिंग नेटवर्क की स्थापना की गई थी, जिसने हाल ही में दिल्ली की आजादपुर मंडी में प्रायोगिक तौर पर संग्रहण का प्रकल्प प्रारंभ किया है। इसी तरह अन्नक्षेत्र नामक संस्था शादी समारोह में बचे हुए भोजन को श्रमिक जनों तक पहुंचाती है और वर्तमान में यह अभियान देश के अनेकानेक शहरों तक पहुंच गया है।
खाद्यान्न एवं भोजन की बर्बादी इनके उत्पादन में इस्तेमाल किए गए पानी एवं ऊर्जा की भी व्यापक बर्बादी है। आश्चर्यजनक रूप से जल संरक्षण के किसी भी अभियान में खाद्यान्न या भोजन की बर्बादी से हो रहे वृहत क्षरण परं मंथन नहीं किया जाता है। खाद्य की बर्बादी से पर्यावरण भी प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से आहत होता है।
वैश्विक मीथेन आकलन के अनुसार, खाद्यान्न एवं भोजन की बर्बादी पर अंकुश के जरिये इस दशक में कार्बन उत्सर्जन को 45 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है। भोजन एवं खाद्यान्न की बर्बादी अभिशाप का रूप ले, विकास के विभिन्न आयामों को दुष्प्रभावित करे, उससे पूर्व आमजन को संकल्पित होना होगा।
लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।