कीटनाशकों का छिड़काव अब ड्रोन के माध्यम से Publish Date : 30/08/2023
कीटनाशकों का छिड़काव अब ड्रोन के माध्यम से
वर्तमान समय में, ड्रोन आधुनिक कृषि के एक महत्वपूर्ण टूल के रूप में उभरकर सामने आया है, जो किसानों को विभिन्न प्रकार अन्य लाभ भी प्रदान करता है। ऐसे में सटीक कृषि प्रणाली से लेकर पर्यावरणीय लाभ तथा सुरक्षा सुधार तक, ड्रोन देश में खेती करने के तरीकों में व्यापक बदलाव ला रहें हैं। ड्रोन प्रौद्योगिकी के निरंतर एकीकरण के साथ कृषि भविष्य काफी उज्जवल दिखाई दे रहा है।
यदि कोई भी किसान, जो अपने खेतों में कीटनाशकों का छिड़काव ड्रोन की सहायता से करता है, क्योंकि यह कार्य आजकल ड्रोन की सहायता से करना बहुत ही आसान हो गया है। हालांकि इसका उपयोग करने से पूर्व किसानों के लिए यह जानना भी आवश्यक है कि इसका उपयोग करते समय उन्हें क्या-क्या सावधानियाँ बरतनी चाहिए।
ड्रोन, जिसे एक मानव रहित विमान के रूप में भी जाना और पहिचाना जाता है, वह आधुनिक कृषि के एक बहुत ही प्रभावशाली उपकरण के रूप में उभरकर सामने आया है। जबकि भारत सरकार के द्वारा, ड्रोन का प्रयोग बढ़ाने के लिए विभिन्न प्रकार की सुविधाएं भी प्रदान की जा रही है। फलदार वृक्षों तथा गन्ना जैसेी फसलों में इसका उपयोग करने से एक क्रॉन्ति सी ही आ गई है।
इन पर ड्रोन का प्रयोग करना काफी लाभदायक रहा है और किसान इसकी ओर आर्षित भी हो रहे हैं। सम्पूर्ण देश के विभिन्न कृषि विश्वविद्यालय, कृषि विज्ञान केन्द्र और साधन सम्पन्न प्रगतिशील किसान वर्ग इसका समुचित उपयोग कर रहें हैं।
ड्रोन के माध्यम से कीटनाशियों का छिड़काव करते समय, सुरक्षा, प्रभावशीलता और पर्यावरणीय उत्तरदायित्व को सुनिश्चित् करने के लिए विभिन्न सावधानियों के बरतने तथा उनके सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करना भी एक बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य है।
सुरक्षा से सम्बन्धित उपाय
ड्रोन के माध्यम से कीटनाशियों का छिड़काव करने से पूर्व ही यह सुनिश्चित् कर लें कि ड्रोन के ऑपरेटर या आसपास के किसी अन्य कर्मी के द्वारा इन रसायनों के सम्पर्क में आने से बचने के लिए दस्ताने, मॉस्क और चश्में के सहित अन्य उचित सुरक्षात्मक उपाय पूरी तरह से कर लिए गए हैं अथवा नहीं।
मौसम की स्थिति
ड्रोन का उपयोग मौसम की स्थिति के सामान्य रहने पर ही करना उचित रहता है। तीव्र हवा के दिनों में ड्रोन का उपयोग करने से बचना ही उचित रहता है, क्योंकि यह बहाव अथा वर्षा का कारण भी बन सकती है, और कवकनाशियों के कार्य करने से पहले ही यह उनको बहा कर ले जा सकती है।
छिड़काव करने से पूर्व ही करें ड्रोन का परीक्षण
खेत में छिड़काव करने से पूर्व ही ड्रोन का परीक्षण आवश्यक रूप से करना चाहिए। इसके साथ ही यह भी सुनिश्चित् कर लें कि आपका ड्रोन कवकनाशी का छिड़काव समान और सटीक रूप से कर भी रहा है अथवा नही।
नो-फ्लाई जोन का रखें ध्यान
किसान अपने क्षेत्र के नो-फ्लाई जोन अथवा हवाई उड़ान के लिए प्रतिबन्धित क्षेत्र के प्रति सचेत रहें और उनका सही तरीके से पालन करें।
बफर जोन का आंकलन भी करें
प्रदूषण के स्तर को कम करने के लिए उपलब्ध जल-निकायों, आवासीय क्षेत्रों एवं वन्य जीवों के आवास आदि के जैसे संवेदनशील क्षेत्रों के आसपास एक बफर जोन स्थापित करें और स्थान पर छिड़काव करने से बचें। प्रयोग में लाए जा रहे विभिन्न कृषि रसायनों की गणना करें और छिड़काव के क्षेत्र एवं फसल विशेष की आवश्यकता के अनुरूप ही कवकनाशी की आवश्यक डोज की सटीक गणना करें।
ड्रोन के उड़ने की ऊँचाई का निर्धारण करें
विभिन्न प्रकार की बाधाओं से बचते हुए तथा इसके साथ ही सुरक्षा को सुनिश्चित् करते हुए एक समान कवरेज को सुनिश्चित् करने के लिए ड्रोन को उचित ऊँचाई पर ही उड़ाना सुनिश्चित् करें।
बहाव का उचित प्रबन्धन करें
कीटनाशियों के बहाव के प्रति भी सचेत रहें और इनके बहाव को कम करने के लिए नोजल एवं उड़ान की ऊँचाई पर ही ड्रोन को उड़ाएं।
रिकार्ड का रखरखाव करना
ड्रोन को उड़ाते समय, एसकी दिनाँक, मौसम की स्थिति, उपयोग में लाए गए कीटनाशियों की सूची के साथ ही इसके प्रयोग में आने वाली किसी भी समस्या के सहित ड्रोन के प्रयो करने के सम्बन्धित पूरा रिकार्ड विस्तृत रूप से रखें। आपातकालीन प्रतिक्रिया, दुर्घटनाओं या रिसाव की बिस्थति में आपातकालीन योजनाओं को पहले से ही तैयार रखें।
इसमें प्राथमिक चिक्तिस आपूर्ति, रोकथाम करने की सामग्री और घटनाओं की रिपोर्ट के लिए सम्पर्क सूत्र आदि को शामिल करना चाहिए। छिड़काव के बाद, ड्रोन उवं अन्य उपकरणों का निरीक्षण अवश्य करें जिससे कि सुनिश्चित् किया जा सके कि इसमें कोई रिसाव या अन्य प्रकार की क्षति तो नही है, जिसके कारण प्रदूषण हो सकता है।
ऑपरेटर प्रशिक्षण
ड्रोन का उपयोग करने से पूर्व यह सुनिश्चित् कर लें कि ड्रोन ऑपेरटर को ड्रोन एंव कीटनाशी दोनों को ही सम्भालने के लिए उचित प्रशिक्षण दिया गया है अथवा नही। इसके साथ ही एक ड्रोन ऑपेरटर को सम्भावित जोखिमों की समझ होना भी आवश्यक है।
पर्यावरणीय प्रभावों का भी करें आंकलन
कृषि कीटनाशियों का उपयोग करते समय उनके पर्यावरण पर होने वाल प्रभावों तथा उसक दीर्घकालिक परिणामों पर भी भली भाँति विचार करें और जहाँ तक सम्भव हो सके तो किसानों को पर्यावरण के अनुकूल कीटनाशियों के प्रयोग को ही प्राथमिकता प्रदान करनी चाहिए।
स्थानीय नियम एवं कानूनों का करें निष्ठा से पालन
कीटनाशियों के प्रयोग के दौरान स्थानीय, राज्य एवं संघीय नियमों का पालन भी आवश्यक रूप से करें। इसके लिए आवश्यक परमिट / लाईसेंस आदि को भी समय पूर्व ही प्राप्त कर लें।
सामुदायिक जन-जागरण
ड्रोन के प्रयोग के दौरान सामने आने वाली परेशानियों को कम करने के लिए आस-पास के लोगों एवं पड़ोसियों को ड्रोन के छिड़काव के सम्बन्ध में पूर्व में ही सूचित करें और यदि आवश्यक हो तो उन्हें सावधानियाँ बरतने के लिए भी उचित अवसर प्रदान करें। इन सावधानियों का पालन कर, आप मानव के स्वास्थ्य एवं पर्यावरण दोनों के प्रति जोखिमों को कम करते हुए, ड्रोन-आधारित कीटनाशी का छिड़काव सुरक्षित एवं प्रभावी ढंग से कर सकते हैं। ड्रोन आधुनिक कृषि के एक महत्वपूण टूल के रूप में उभरकर सामने आया है, जो किसानों को विभिन्न प्रकार के लाभी प्रदान करते हैं। ड्रोन प्रौद्योगिकी के निरंतर एकीकरण के साथ ही कृषि का भविष्य भी उज्जवल दिखाई दे रहा है।
जैसे-जैसे ही यह ड्रोन अधिक सुलभ होते जा रहे हैं और इसके साथ ही उनकी क्षमताओं में भी विस्तार हो रहा है, ऐसे में वह कृषि के भविष्य को आकार देने और निरंतर बढ़ती हुइ्र वैश्विक आबादी के लिए खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित् करने के लिए एक अहम भूमिका का निर्वहन भी कर सकते हैं।
चालू सदी के अंत तक 100 करोड़ से अधिक गाय हीट स्ट्रेस की चपेट में होंगी
वर्तमान समय में बढ़ते हुए ग्लोबल टेम्प्रेचर (वैश्विक तापमान) और जलवायु परिवर्तन का दौर इसी स्पीड के साथ जारी रहा तो इस सदी के अंत तक पूरे विश्व में 100 करोड़ से अधिक गायों के हीट स्ट्रेस में आने आशंका वैज्ञानिकों के द्वारा जताई जा रही है।
अधिक गर्मी हमारे मवेशियों को भी विभिन्न प्रकार की हानियाँ पहुँचा रही है, और जब गर्मी में विशेष रूप से उच्च स्तर की आद्रता भी मिल जाए। यह स्थिति गायों की प्रजनन क्षमता को कम करती है, उसके बच्चों के विकास को बाधित कर देती है।
इसके कारण गायों की मृत्यु दर में भी वृद्वि हो सकती है। दक्षिण अफ्रीका के क्वजुलु-नटाल विश्वविद्यालय के शोध में कहा गया है कि पूरी दुनिया में 10 में से लगभग आठ गाय पहले से शरीर के उच्च तापमान के चलते बढ़ी हुई श्वसन गति और हांफने का अनुभव कर रही हैं। उक्त समस्त लक्षण भीषण गर्मी के दबाव के साथ ही जुड़े हुए हैं।
उष्णकटिबन्धीय जलवायु से सम्बन्धित क्षेत्रों के लगभग 20 प्रतिशत मवेशी पूरे वर्ष के दौरान इन लक्षणों का समाना करते हैं। यदि अमेजन और काँगो बेसिन में पशु-पालन का विस्तार जारी रहा तो इस संख्या में वृद्वि का भी अनुमान है, जहाँ का तापमान वैश्विक औसत तापमान से भी तीव्र गति के साथ बढ़ रहा है।
यदि ग्रीनहाउस गैसों के उत्पादन पर प्रभावी अंकुश लगाया जाए तो एशिया में हीट स्ट्रेस से पीड़ित गायों की संख्या में 50 प्रतिशत और अफ्रीका में 80 प्रतिशत तक की कमी की जा सकती है।
वर्ष 2022 में दुनिया के सबसे बड़े दुग्ध उत्पादक देश
देश |
दुग्ध उत्पापदन |
यूरोपीय संघ |
14.4 करोड़ मीट्रिक टन |
अमेरिका |
10.3 करोड़ मीट्रिक टन |
भारत |
9.7 करोड़ मीट्रिक टन |
चीन |
3.9 करोड़ मीट्रिक टन |
रूस |
3.2 करोड़ मीट्रिक टन |
पशु-धन विस्तार के लिए बनों की अंधाधुंध कटाई
उक्त शोध में चेतावनी भी दी गई है कि वर्ष 2100 तेक ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, उत्तरी भारत, उत्तरी ऑस्ट्रेलिया एवं मध्य अमेरिका आदि देशों में होने वाला हीट स्ट्रेस वर्ष-भर रहने वाली एक समस्या बन जाएगी।
जबकि पशुधन के विस्तार के कारण उष्णकटिबन्धीय वनों का अविवेकपूण कटान किया जा रहा है, जिससे अनुमान लगयाया जा रहा है कि आने वाले समय में एशिया और लैटिन अमेरिका के अन्दर पशु-पालन लगभग दो गुना और इसी के साथ ही यह अफ्रीका में चार गुना से भी अधिक बढ़ जाएगा।
हालांकि, विशेषज्ञों के अनुसार यह कोई उचित विकास नही कहा जा सकता, क्योंकि इससे जलवायु परिवर्तन की स्थिति निरंतर खराब हो रही है लाखों मवेशी इस भीषण गर्मी की मार को झेलने के लिए विवश हैं।
भारत के समेत विभिन्न देशों के समक्ष होगी कठिनाई
ग्रीन हाउस गैसों का उच्च स्तरीय उत्सर्जन के कारण वर्ष 2050 तक विश्व की कुल दुग्ध आपूर्ति में 1.1 करोड़ टन दुग्ध की कमी आने की आशंका है। बढ़ता हुआ तापमान और आर्द्रता पशु-पालकों को उनके जानवरों के लिए वैन्टिलेशन, जिसमें विद्युत चालित पंखों की व्यवस्था करनी होगी अन्यथा गर्मी-अनुकूलित वाली मवेशी नस्लों का पालन करना होगा, जो कि प्रत्येक स्थान पर सम्भव नही है, जहाँ यह वर्तमान समय में एक प्रमुख व्यवसाय के रूप में किया जा रहा है, विशेष रूप से भारत, ब्राजील, पैराग्वे, उरूग्वे, उत्तर-पूर्वी अर्जेंटीना और अन्य पूर्वी अफ्रीका आदि देशों में।