
योग के विविध आयाम Publish Date : 24/06/2025
योग के विविध आयाम
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
योग का उद्देश्य जीवन को भय और मोह के बिना भोजन, निद्रा और दायित्व के कुछ नियमों के आधार पर नैतिक ढंग से जीना है। इसका लक्ष्य हृदय को खोलना, विषाक्त चीजों को बाहर निकालना, अपने शरीर को जानना, मस्तिष्क पर काबू पाना और इसकी व्यापक शक्तियों को समझना तथा कामकाज, व्यवसाय और संबंधों में ज्यादा आनंद लाना है। आप योग अपना कर खुद से प्रेम और स्वयं का सम्मान करने वाले एक बेहतर व्यक्ति के रूप में विकसित होते हैं।
योग स्पष्ट तौर पर विज्ञान है। ध्यान और प्राणायाम इसके अभिन्न अंग है। शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए यह बेहद फायदेमंद है। लेकिन इसके लाभ इस पर निर्भर करते हैं कि आपने योग का कौन-सा मार्ग चुना है तथा विभिन्न आसनों और अभ्यासों से आप किस तरह जुड़ते हैं।
'योग निज की, निज के रास्ते से, निज तक की यात्रा है। -भगवद् गीता
योग लगभग हर भारतीय परिवार की शब्दावली में शामिल हो चुका है। खासतौर पर पिछले लगभग दो दशकों में स्वामी रामदेव, श्री श्री रविशंकर और अभिजात श्रीधर आयंगर समेत विभिन्न योग प्रचारकों ने इसे देश में लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हर साल 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाने की घोषणा के बाद योग पद्धतियों के बारे में जागरूकता में इजाफा हुआ है। यूरोप, अमेरिका और एशिया के विभिन्न देशों में योग की बढ़ती पहुंच प्रकाश में आई है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने 27 सितंबर, 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा के 69वें सत्र में भारत की ओर से अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस का सुझाव रखा था। इस प्रस्ताव को दिसंबर, 2014 में एकमत से मंजूर कर लिया गया। चूंकि 21 जून सबसे लंबा दिन होता है इसीलिए आयुष मंत्रालय ने 2015 में इसी तारीख को नई दिल्ली के राजपथ पर पहले अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस का आयोजन किया। इस आयोजन के दौरान भारत ने दो गिनीज विश्व रिकॉर्ड बनाए। इनमें से एक कीर्तिमान एक स्थान पर सबसे बड़ी योग कक्षा लगाने का था। दूसरा कीर्तिमान एक कक्षा के दौरान सबसे ज्यादा राष्ट्रीयताओं की मौजूदगी का रहा।
बेशक योग का उद्गम वाद-विवाद का मसला है। लेकिन भारत में इसकी शुरुआत कई हजार साल पहले, ईसा पूर्व पांचवी सदी के आसपास हुई थी। आदि योगी भगवान शिव को योग का जनक माना जाता है। उन्होंने मानव-तंत्र की प्रक्रिया का ज्ञानसप्तऋषियों और संतो को दिया। बीसवीं सदी में योग में बदलाव आया। इसमें नए आसन् मुद्राएं और अभ्यास शामिल हुए और इसका पश्चिम की तरफ प्रसार हुआ। आधुनिक योग के जनक महर्षि पतंजलि ने अष्टांग योग का सिद्धांत दिया है जिसमें शामिल सूत्र इस प्रकार है-
1. यमः वे चीजें जो नहीं की जानी चाहिए। इसमें जीवन में अहिंसा, आत्मसंयम, सत्य इत्यादि पर जोर दिया गया है।
2 नियमः पवित्रता, एकाग्रता और दृढ़ता जैसे नियम जिनका नित्य पालन किया जाना चाहिए।
3. आसनः देह को अनुशासित करने के लिए शारीरिक अभ्यास।
4. प्राणायामः जीवन शक्ति के संरक्षण के लिए श्वास का नियमन ।
5. प्रत्याहार संवेदी अंगों के उपयोग को सीमित करना।
6. धारणाः आत्म निरीक्षण।
7. ध्यानः चिंतन-मनन।
8. समाधिः हमारे उच्चतर स्व या ब्रह्मांडीय ऊर्जा से हमारा सम्मिलन।
कुल मिलाकर योग रक्त और ऑक्सीजन की पर्याप्त आपूर्ति कर शारीरिक स्वास्थ्य को सुधारता है। यह अनावश्यक तरंगों को पराजित कर मस्तिष्क को शांति प्रदान करता है।
मस्तिष्क, शरीर और आत्मा को जोड़ने वाले विज्ञान के रूप में योग
साधारण शब्दों में कहें तो योग एक विज्ञान है। इसका उद्देश्य मस्तिष्क, शरीर और आत्मा की जोड़ना है। यह हमारे उच्श्रृंखल मस्तिष्क और बेचैन संवेदकों को अनुशासित करने और भौतिक चीजों से दूर ले जाने का सिद्ध तरीका है। यह हमारे शरीर में सूक्ष्म-शक्तियों के बीच तालमेल बैठाकर उन पर नियंत्रण करता है। ये शक्तियां प्राण ऊर्जा है जो आंखों से दिखाई नहीं देती। मानव इस जीवनशक्ति के बारे में अब तक स्पष्ट नहीं है। योग इस आआंतरिक शक्ति को संतुलित ढंग से विकसित और परिष्कृत करता है। यह पूर्ण आत्मबोध के लिए आध्यात्मिक मार्ग प्रदान करता है।
संस्कृत शब्द योग/युज का शब्दार्थ जोड़ है। यह व्यक्ति की आत्मा की ऊर्जा को परमात्मा की ऊर्जा से जोड़ता है। योग हमें आत्मा के परिपोषण, सभी क्षेत्रों में स्वस्थ रहने और भावनाओं के संतुलन के जरिए जीवन का सक्रिय आनंद लेने के लिए अपने अंदर झांकने का अवसर देता है। इसके सामान्य लाभों में तनाव में कमी, भार प्रबंधन, मनोदैहिक रोगों से छुटकारा और प्रतिरक्षा प्रणाली में मजबूती शामिल है।
योग सार्वभौमिक है। जाति, लिंग, धर्म और क्षेत्र जैसे बंधनों से इसका कोई संबंध नहीं है। यह उच्च चेतना तक पहुंचने की विकास की प्रक्रिया है। शरीर और मस्तिष्क के बीच अनुबंधन को समझने के लिए इसका दैनिक अभ्यास जरूरी है।
दुर्भाग्य से लोग अब भी योग को नीरस और ऐसी विधा समझते हैं जो धार्मिक और बुजुर्ग व्यक्तियों के लिए है। लेकिन इस धारणा में बदलाव आ रहा है तथा नौजवान भी छरहरे और खुश रहने के लिए इसे अपनाने लगे हैं। बॉलीवुड के कई अभिनेता योग के आदर्श के तौर पर काम कर रहे हैं। लेकिन सफलता अब भी सीमित है। सिर्फ चंद शैक्षिक संस्थानों ने ही दैनिक गतिविधि के रूप में योग को बढ़ावा दिया है। आमतौर पर हम कोई रोग होने पर ही योग का सहारा लेते हैं। बहुत कम लोग ही बचपन से इसे स्कूलों में या पारिवारिक परंपरा के रूप में कर रहे हैं। योग गहराई तक जाकर लाभ पहुंचाते हुए शांति और चिरस्थाई प्रसन्नता प्रदान करता है।
योग के मार्ग पर
योग के अलग-अलग मार्गों को मानव की विभिन्न जरूरतों को पूरा करने के लिए बनाया गया है। भक्ति योग मुख्य तौर पर अत्यंत भावुक व्यक्तियों की मदद के लिए है ताकि वे समाज में व्याप्त दोहरेपन से अप्रभावित रह सकें। इस योग में प्रार्थना और उपासना जैसे अभ्यास शामिल हैं जिनसे व्यक्ति प्रेम के प्रतीक ईश्वर से जुड़ता है। जप/मंत्र योग इसका अभिन्न अंग है। इसमें व्यक्ति ईश्वर के नाम के जाप या ओम्, राम और वाहेगुरू जैसे मंत्रोच्चार पर ध्यान केंद्रित करता है। बौद्धिक लोगों के लिए ज्ञान योग बेहद लाभकारी है। इसके पाठ वेदांत दर्शन से लिए गए हैं और यह आत्म निरीक्षण मिखलाता है। यहां आत्म निरीक्षण का मतलब अपनी प्रकृति और अपने आध्यात्मिक अस्तित्व की समझ से है। यह व्यक्ति को विचारों और अहम की पहचान से ऊपर उठना सिखाता है। इस योग में ग्रंथों, संतों और गुरुओं की सीख तथा ध्यान का उपयोग किया जाता है। कर्म योग सामान्य जन के लिए काफी ऊपर की चीज है। लेकिन सक्रिय समझ वाले लोगों के लिए यह बहुमूल्य है। इसमें व्यक्ति फल की चिंता किए बिना निःस्वार्थ भाव से अपने दायित्वों का पूरी निष्ठा के निर्वहन करता है। इस योग में हर चीज को ईश्वरीय शक्ति की सेवा माना जाता है। यह हृदय को शुद्ध ध्यान के लिए खोलने के अलावा अहंकार का नाश करता है। राज/अष्टांग योग में हठ योग (आसन, प्राणायाम) और मौन साधना के गुणों को जोड़ते हुए आध्यात्मिक ऊर्जा की प्राप्ति के लिए मस्तिष्क और काया को वैज्ञानिक ढंग से नियंत्रित किया जाता है। खासतौर से यह योग श्वास कलाओं के बिना अधूरा है।
प्राणायाम योग का एक लोकप्रिय विज्ञान है। यह शरीर में श्वास/प्राणशक्ति को नियमित करता है। श्वास पर नियंत्रण से मस्तिष्क नियंत्रित होता है। प्राणायाम में पूरक (सांस लेना) रेचक (सांस छोड़ना) और कुंभक (सांस रोकना) से संबंधित नाडी-शोधन अनुलोम-विलोम भस्त्रिका और शीतली जैसे विभिन्न अभ्यास शामिल हैं। दिन में कुछ मिनट प्राणायाम करने से भी मस्तिष्क को शांति और तंत्रिकाओं को मजबूती मिलती है। यह तंद्रा को दूर करने के अलावा बेहतर पाचन के लिए जठराग्नि को तीव्रता प्रदान करता है। प्राणायाम योग से नाड़ियों को मिलने वाली पवित्रता कुंडलिनी जागृत करने में मददगार होती है। बुनियादी तौर पर नाड़ी शरीर की वे तंत्रिकाएं/धमनियां हैं जो अदृश्य होने के बावजूद हमें जीवित रखने के लिए प्राण ऊर्जा को समूचे शरीर में प्रवाहित करती हैं। कुंडलिनी हमारी रीढ़ के आधार में सुसुप्त पड़ी प्राथमिक ऊर्जा है। यह श्वास की ऊर्जा है जो नाड़ियों के जरिए एक स्वरूप में प्रवाहित होती है। यह रीढ़ की हड्डी में चक्रों का निर्माण कर खुद को केंद्रित करती है। ये चक्र मूलाधार (गुदा), स्वादिष्ठान (लिंग), मणिपुर (नामि), अनाहत (हृदय), विशुद्ध (कंठ), आज्ञा (मृकुटियों के मध्य) और सहस्रसार (सिर पर चोटी का स्थान) को आच्छादित करते हैं।
लगभग 72000 नाड़ियों में से इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना प्रमुख है। सुषुम्ना मध्य की महत्वपूर्ण नाड़ी है। कुंडलिनी शक्ति इसके जरिए ही आधार से सात चक्रों से गुजरती हुई सिर की चोटी तक पहुंच कर जागृत होती है। कुंडलिनी योग का अभ्यास व्यक्ति को उच्च चेतना की आनंदमय स्थिति तक ले जाता है। नाही के शुद्धीकरण के बाद हठ/राज योग के मामले में प्राणायाम, आसन, मुद्रा और ध्यान तथा भक्ति योग में उपासना, समर्पण और मंत्र जाप के उच्य-स्तर के जरिए कुंडलिनी योग किया जा सकता है। लेकिन चूंकि इसमें काफी मुद्राएं, बंध और ऊर्जा परिवर्तन शामिल है इसलिए इसे विशेषज्ञ के दिशा-निर्देश में ही किया जाना चाहिए। सामान्य आदमी इनका इस्तेमाल करने के बजाय ज्यादातर इडा और पिंगला के बीच ही संघर्ष करता है। ये मध्यवर्ती नाड़ी के बाई और दाहिनी ओर स्थित हैं। इडा मानसिक प्रक्रियाओं को नियंत्रित करने वाली चंद्र नाडी है। यह विश्राम और निद्रा के लिए जिम्मेदार है। दूसरी ओर, स्वभाव से उद्दीप्तिकारी पिगला विकास को बढ़ावा देने वाली सौर नाड़ी है। दिन में विभिन्न समय पर इन दोनों के बीच संपर्क दाहिने और बाएं मस्तिष्क, तर्क और सृजनशीलता इत्यादि के बीच संचलन का अवसर देता है। सुषुम्ना नाही संतुलन का प्रतीक है। यह निष्पक्ष आध्यात्मिक ऊर्जा पैदा करती है। योग सूक्ष्म काया का निर्माण करने वाली नाडियों एवं चक्रों और भौतिक शरीर से इसके संबंध के प्रति जागरूक बनाता है। यह हमें आसन के दौरान इनका इस्तेमाल करना और ध्यान की स्थिति में पहुंचना सिखाता है।
योग से मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार
पारंपरिक योग पद्धतियों में आधुनिक जीवनशैली के अनुरूप बदलाव किए जा रहे है। यहां तक कि बिकित्सक भी अपने मरीजों को दवाएं लेने के साथ ही योग करने की सलाह देते हैं। मौजूदा समय में मधुमेह, हृदय रोग और कैंसर जैसी बीमारियों के बढ़ते जोखिम के कारण चारों तरफ योग आश्रम और स्टूडियो खुल रहे हैं। तनाव हमारे शरीर के अंगों में जकडन पैदा करता है। यहां तक कि किशोरों को भी झुक कर किसी चीज को उठाने और पैर के अंगूठे को छूने में तकलीफ होती है।
योग हमारे शारीरिक स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभदायक है। यह हमारे जकड़े हुए घुटनों और कूल्हों को धीमे-धीमे खोल कर उन्हें लचीला बनाता है। यह हमारी मुद्रा में सुधार लाकर पांवों, पीठ और अन्य अंगों को दर्द से बचाता है। योग हमारी मांसपेशियों और हड्डियों को मजबूती देकर घोट गठिया और कमर दर्द जैसी तकलीफों की आशंका को दूर करने का सबसे भरोसेमंद और सस्ता साधन है। यह अस्थियों को दुरुस्त रख कर हमारे जोड़ों को मजबूती देता है। योग का नियमित अभ्यास हमारे शरीर को सही आकार में रखने के अलावा चेहरे की झुर्रियों को भी दूर करता है जिससे हम ज्यादा जवान और आकर्षक दिखाई देते हैं।
रीढ़ के डिस्क अपने संचलन के बिना सही नहीं रह सकते। धनुरासन, अधोमुख श्वानासन और अर्धमत्स्येन्द्रासन जैसे योग आसन रीढ़ को लंबा और मजबूत बनाने के लिए वरदान हैं। योग शरीर में रक्त के संधार में सुधार लाता है। इससे खून के दबाव को सामान्य रखने और उच्च रक्तचाप को दूर करने में मदद मिलती है। परिणामस्वरूप तनाव पैदा करने वाले हारमोन कॉर्टिसोल में काफी कमी आती है। विटामिन, आयरन और कैल्शियम जैसे खाद्य-पोषण को शरीर में आत्मसात करने के लिए जरूरी डोपामिन और सेरोटोनिन जैसे अच्छे हारमोन पर्याप्त मात्रा में पैदा होने लगते हैं। सूर्य नमस्कार जैसी क्रियाओं से सौर नाड़ी संजाल में संतुलन आने के साथ ही विटामिन डी के स्तर में वृद्धि और पाचन में सुधार आता है। योग शरीर के सभी हिस्सों में खून की आपूर्ति करने के साथ ही कोशिकाओं में ज्यादा ऑक्सीजन प्रेषित करता है। शीर्षासन और सर्वांगासन जैसे आसनों से हृदय और फेफड़ों में रक्त प्रवाह में मदद मिलती है। इससे हृदयघात की आशंका कम होती है और हम खुद को प्रसन्न महसूस करते हैं। योग से रोग प्रतिरोधक प्रणाली को मजबूती मिलती है। इससे हमारा लसीका तंत्र कैंसर से प्रभावित कोशिकाओं और संक्रमण का मुकाबला करने में सक्षम बनता है। कपालभाती और धनुरासन अग्नाशय को सहीं ढंग से काम करने और प्राकृतिक रूप में इंसुलिन बनाने के लिए उत्तेजित करते है। इसलिए योग मधुमेह के इलाज के लिए बहुत ही उपयोगी है। वास्तव में योग से शरीर के सभी महत्वपूर्ण अंगों की रक्षा होती है। परम विश्राम के रूप में योग निद्रा असहजता हटाने और अंदरूनी ताकत पैदा करने में सहायक होता है। योग हमारे तत्रिका तंत्र को विश्राम प्रदान करता है। यह हमारे शरीर से विषाक्त पदार्थों को पसीना और कार्बन-डाई-ऑक्साइड के रूप में बाहर निकालता है। योग के अनेक मानसिक फायदे हैं। प्राणायाम और ध्यान (विपश्यना इत्यादि) मस्तिष्क को शांत कर एकाग्रता की शक्ति को बढ़ाते हैं। ये हमें परेशानियों और तनाव की स्थितियों से लड़नासिखाते हैं और ज्यादा आशावादी बनाते हैं। इससे मुख्य तौर पर छात्रों के मानसिक भटकाव में काफी कमी आती है। योग नशा समेत विभिन्न प्रकार की लतों, प्रलोभनों और ऊंची आकांक्षाओं से निपटने में मदद करता है। वास्तविकता को उसी रूप में स्वीकार करने में सक्षम होने से हमें शांति मिलती है और हम जानने लगते हैं कि हमारे अंदर क्या चल रहा है। इस तरह हम समस्याओं का सही समय पर पता लगा कर उनके समाधान तक पहुंच सकते है। वास्तव में हम योग से जीवन की उन समस्याओं को भी समझ पाते हैं जो संयम और ज्ञान की कमी तथा अहंकार से पैदा हुई हैं। योग हमें इस सच्चाई को समझने में सक्षम बनाता है तथा अपराध-बोध, गुस्सा और जलन के जाल में फंसने से बचाता है। इससे हम अपनी हानिकारक भावनाओं को बेहतर ढंग से नियमित और निर्देशित करने में सक्षम बनते हैं जिससे हमें शांति मिलती है। योग के जरिए हमारे सामने धीमे-धीमे यह स्पष्ट होता है कि मैं कौन हूं और मेरे जीवन का मकसद क्या है।
योग के वास्तविक अर्थ से संयोजन
कई लोगों को योग के वर्षों के अभ्यास के बावजूद मनचाहा फल नहीं मिल पाता। इसका कारण तनाव या बीमारी अथवा अन्य किसी वजह से जबरन योग करना हो सकता है। इससे विश्राम के बजाय थकान ही मिलती है। हम योग को ध्यान से अलग कर सिर्फ व्यायाम के तौर पर देखते हैं। मगर इस स्तर पर भी लोग शायद ही अपने शरीर से संयोजित होते और मुद्रा को महसूस कर पाते है।
हम सबने सुना है कि शरीर मंदिर की तरह होता है। हमें इसी में रहना है इसलिए इसकी पूजा करनी चाहिए। मैं आपको बताना चाहती हूं कि शरीर की अपनी मेधा है जो जानती है कि किस चीज को किस तरह ठीक करना है। हमारा मस्तिष्क लगातार पिछली कहानियों, यादों और अनुभवों को सामने लाकर इसमें बाधा डालता है। चिकित्सक तक इस बात से सहमत हैं। योग इस सच को समझने में हमारी सहायता करता है। वह दिखाता है कि कैसे अपने शरीर के साथ सहानुभूतिपूर्वक संवाद करते हुए इसे तार्किक ढंग से स्वस्थ किया जाए। योग जीवन पद्धति में हमारे विश्वास को बनाता है। योग के हर आसन में सही ढंग से जीने के मूल्यों और जीवन के मकसद की समझ छिपी होती है। मसलन, बालासन और उत्तानासन जैसे आगे झुकने वाले आसनों से चक्रों के स्वस्थ होने के अलावा कई शारीरिक रोग दूर होते हैं। इसके अलावा, ये आसन वर्तमान में रहते हुए अतीत के विरोहण, बदलावों को स्वीकारने, विश्वास विकसित करने और जीवन के प्रवाह में पूरी ताकत के साथ खुद को समर्पित करने की सीख मी देते हैं। ताड़ासन और वृक्षासन जैसे संतुलन वाले आसन हमें सिखाते हैं कि संतुलन और विश्वास पाने के लिए कितना कुछ रखना और कितना छोड़ देना चाहिए। प्राणायाम एक तरह से शरीर और आत्मा को प्रेम और कृतज्ञता का संदेश भेजना है।
पूर्ण योग कक्षा प्रकृक्ति के साथ संचलन को रेखांकित करती है। सबसे पहले हम नया बीज रोपने की तैयारी करते हैं। अभ्यास के दौरान हम पुष्पित होते हैं। इसके बाद हम शाति हासिल कर अपने अंदर झांकने में सक्षम होते हैं। अंत में, शवासन के जरिए हम विश्राम या स्थिरता की अवस्था में आ जाते हैं।
योग का मकसद जीवन को भय और मोह के बिना भोजन, निद्रा और दायित्व के कुछ नियमों के आधार पर नैतिक ढंग से जीना है। इसका लक्ष्य हृदय को खोलना, विषाक्त चीजों को बाहर निकालना, अपने शरीर को जानना, मस्तिष्क पर काबू पाना और इसकी व्यापक शक्तियों को समझना तथा कामकाज, व्यवसाय और संबंधों में ज्यादा आनंद लाना है। आप योग अपना कर खुद से प्रेम और स्वयं का सम्मान करने वाले एक बेहतर व्यक्ति के रूप में विकसित होते हैं।
दिनचर्या में योग का समावेशन
आप किसी भी योग मार्ग से शुरुआत कर सकते हैं। आसन और प्राणायाम सीखने के लिए आप पड़ोस में चलने वाली योग कक्षा में शामिल हो सकते हैं। कुछेक मिनट का ही सही मगर नियमित अभ्यास जरूरी है। बैठकों या सफाई जैसे घर के कामकाज से पहले और उसके दौरान गहरी सांस लें। अलग-अलग ढंग से सांस लेने, रोकने और बाहर निकालने की 4-5-8 और 2-5-7 जैसी गिनती तकनीकों को सीखें। निर्धारित समय से पांच मिनट पहले जागें। सकारात्मक निश्चय करें, मुस्कराएं, मौन साध कर बैठे और मस्तिष्क की कोशिकाओं को पुनर्जीवित करने वाला चिड़ियों का चहकना सुनें। हर रोज पांच से 10 मिनट तक ध्यान करें। समय हो तो कम-से-कम 5-10 मिनट प्राणायाम, 1-2 स्ट्रेच या वार्मअप व्यायाम (इनमें से कुछ को बिस्तर पर ही किया जा सकता है), 1-2 सूर्य नमस्कार तथा कुछेक आगे, पीछे या शरीर को मोडने के आसन जरूर करें। आप समय और जरूरत के मुताबिक हर रोज इनमें से अभ्यासों का सूझबूझ से चयन कर सकते हैं। योग शुरू करने की कोई उम्र नहीं होती। मैंने 40, 50 और 60 वर्ष तक या इससे ज्यादा उम्र के व्यक्तियों को भी अपने नीरस जीवन में परिवर्तन लाने के लिए योग अपनाते देखा है।
आप अब भी सोच सकते हैं कि आपके पास योग के लिए समय नहीं है। या यह कि योग सही मगर व्यस्त जीवन के लिए अव्यावहारिक है। या फिर आप इसे अपनाने लायक अच्छी सूचना मानने के बावजूद इसका पालन नहीं करने का इरादा रख सकते हैं। लेकिन इन स्थितियों में आप जीवन की उस सुंदरता से वंचित रहेंगे जिसे 10 मिनट के दैनिक अभ्यास से हासिल किया जा सकता है। योग का नियमित अभ्यास व्यक्ति को जीवन की खुशियां प्रदान करता है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।