
आयरन डोम प्रणाली राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए क्रांतिकारी तकनीक Publish Date : 26/05/2025
आयरन डोम प्रणाली राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए क्रांतिकारी तकनीक
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं अन्य
भारत में आयरन डोम प्रणाली का विकास डीआरडीओ (डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन) द्वारा किया गया है, जिससे भारतीय सुरक्षा को सशक्त बनाने में मदद मिलेगी। हालांकि आयरन डोम की मूल प्रणाली इज़राइल द्वारा विकसित की गई है जिसे भारत ने अपनी जरूरतों के अनुसार विकसित किया है। इसका उद्देश्य सीमा पार से होने वाले मिसाइल और रॉकेट हमलों से सुरक्षा सुनिश्चित करना है, विशेषकर उन खतरों से जो पाकिस्तान और चीन जैसे पड़ोसी देशों से उत्पन्न हो सकते हैं।
इसके लिए डीआरडीओ ने इजरायल की आयरन डोम प्रणाली की तकनीकी संरचना का अध्ययन किया और उसे भारत की रक्षा जरूरतों के अनुकूल बनाया। इसलिए इसका नाम भी ‘आयरन डोम’ रखा गया है और इसे भारत के रक्षा क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण रक्षा कवच के रूप में देखा जा रहा है।
हाल ही में भारतीय प्रधानमंत्री की अमेरिका बात्रा के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत को अपना सबसे उन्नत तड़ाकू विमान एफ-35 बेचने की पेशकश की थी। इसके बाद देश में यह सवाल उठने लगा है कि भारत को यह विमान खरीदना चाहिए या नहीं। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि रूस ने भी भारत को अपना सबसे उन्नत लड़ाकू विमान सुखोई-57 बेचने का प्रस्ताव दिया है। इस प्रस्ताव में सुखोई-37 के निर्माण का काम भारत में ही किया जाएगा और इसके कलपुर्जों का निर्माण भी भारतीय कंपनियों को सौंपा जाएगा। रूस इस सौदे में भारत को पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान की तकनीक भी देने को तैयार है, जिसमें लड़ाकू जेट इंजन और रडार तकनीक भी शामिल हो सकती है।
लेकिन विडंबना यह है कि भारत में बहस इस बात पर केंद्रित होती है कि किस देश से कौन सा हथियार खरीदा जाए, बजाय इसके कि इस बात पर ध्यान दिया जाए कि यह सौदा भारत की सैन्य क्षमता को किस हद तक मजबूत कर सकता है।
स्वदेशी रक्षा उत्पादन की अनिवार्यता
भारतीय वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल अमर प्रीत सिंह ने हाल ही में स्पष्ट किया कि वायुसेना को पुराने लड़ाकू विमानों की जगह हर साल 35-40 नए लड़ाकू विमानों की जरूरत होगी। उन्होंने स्वदेशी रक्षा उपकरणों के महत्व को भी रेखांकित किया और इस बात पर संतोष जताया कि हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) अगले साल 24 तेजस लड़ाकूविमान बनाएगा। हालांकि, इससे पहले उन्होंने एचएएल द्वारा विमानों की आपूर्ति में देरी पर भी असंतोष जताया था।
वायुसेना प्रमुख बनने के बाद से ही अमर प्रीत सिंह स्वदेशी रक्षा उत्पादन को लेकर न सिर्फ मुखर रहे हैं, बल्कि वायुसेना की जरूरतों से भी परिचित हैं। हाल ही में उन्होंने कहा कि वायुसेना के पास फिलहाल 31 स्क्वाइन हैं, जबकि इसकी वास्तविक जरूरत 42 स्क्वाइन की है। उनके इस रुख से पता चलता है कि वह भविष्य की सुरक्षा चुनौतियों को लेकर पूरी तरह गंभीर हैं और आत्मनिर्भरता को प्राथमिकता दे रहे हैं।
हालांकि अन्य सेनाओं के प्रमुख इस विषय पर सार्वजनिक रूप से इतनी मुखरता नहीं दिखाते, लेकिन यह तथ्य स्पष्ट है कि भारत को रक्षा उपकरणों के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनना ही होगा। केंद्र सरकार ने इस दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं, जिसके परिणामस्वरूप भारत अब कई रक्षा उत्पादों का निर्माण कर रहा है और उन्हें दूसरे देशों को निर्यात भी कर रहा है।
इसका सकारात्मक प्रभाव यह हुआ है कि रक्षा सामग्री का निर्यात लगातार बढ़ रहा है। इसके बावजूद भारतीय सेनाएं अभी भी अपनी कई जरूरतों के लिए विदेशी हथियारों पर निर्भर हैं, जिसके कारण भारत रक्षा उपकरणों का बड़ा आयातक देश बन चुका है। विदेशों से रक्षा सामग्री खरीदने के अपने जोखिम और चुनौतियां हैं। कई बार जरूरी हथियार समय पर उपलब्ध नहीं हो पाते या उनकी कीमत बहुत ज्यादा होती है। साथ ही कई देशों से आयातित रक्षा उपकरणों की उन्नत तकनीक हासिल करना भी मुश्किल होता है।
इन चुनौतियों को देखते हुए जरूरी है कि भारत अपनी रक्षा उत्पादन क्षमताओं को और विकसित करे, ताकि वह न सिर्फ अपनी सुरक्षा जरूरतों को समय पर पूरा कर सके, बल्कि दूसरे देशों को उन्नत रक्षा उपकरण निर्यात भी कर सके। स्वदेशी रक्षा उत्पादन को बढ़ावा देना देश की सुरक्षा और आर्थिक मजबूती दोनों के लिए जरूरी है।
आत्मनिर्भरता की शक्ति
हम जहां इस बहस में उलझे हैं कि पांचवी पीढ़ी के लड़ाकू विमान अमेरिका से खरीदें या रूस से, वहीं चीन ने छठी पीढ़ी के स्वदेशी लड़ाकू विमान का परीक्षण शुरू कर दिया है। दूसरी ओर भारत अभी तक वायुसेना को उसकी जरूरत के मुताबिक चौथी पीढ़ी के स्वदेशी हल्के लड़ाकू विमान तेजस की आपूर्ति नहीं कर पाया है। हाल ही में वायुसेना प्रमुख ने भी इस देरी पर असंतोष जताया था। हालांकि यह भी सच है कि तेजस पूरी तरह स्वदेशी नहीं है और इस पहलू को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।
हमारे सामने रूस का उदाहरण है, जो सैकड़ों प्रतिबंधों और अंतर्राष्ट्रीय दबावों के बावजूद तीन साल से यूक्रेन युद्ध जारी रखे हुए है। इसका सबसे बड़ा कारण हथियार निर्माण क्षमता और ऊर्जा संसाधनों में उसकी आत्मनिर्भरता है। यह आत्मनिर्भरता ही किसी भी देश को सच्ची संप्रभु महाशक्ति बनाती है। इसी क्षमता के कारण ही अमेरिका का नया नेतृत्व अब यह समझ रहा है कि रूस जैसी आत्मनिर्भर शक्ति को निर्णायक रूप से पराजित करना संभव नहीं है, और वे अब रूस के साथ समझौते की ओर बढ़ रहे हैं।
इसलिए भारत को अपने रक्षा उपकरण स्वयं बनाने चाहिए और भले ही उनकी गुणवत्ता विदेशी रक्षा उपकरणों से थोड़ी कमतर हो. लेकिन स्वोजी उत्पादों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
आयरन डोम है क्या?
आयरन डोम इजरायल द्वारा विकसित एक अत्याधुनिक, मोबाइल एयर डिफेंस सिस्टम है। इस सिस्टम को कम दूरी के रॉकेट, मोटार शेल और हवाई खतरों का मुकाबला करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। यह एक तरह का रक्षा कवच है, जो नागरिकों और महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे की रक्षा करने में आवश्यक भूमिका निभाता है। आयरन डोम ने इजरायल को उसके आसपास के खतरों से बचाने में महत्वपूर्ण सफलता हासिल की है और दुनिया भर में सुरक्षा प्रणालियों के क्षेत्र में एक मॉडल बन गया है।
भारत को आयरन डोम की जरूरत क्यों पड़ी?
भारत को आयरन डोम सिस्टम की कई महत्वपूर्ण वजहों से ज़रूरत थी, जिनमें राष्ट्रीय सुरक्षा, सीमा पर बढ़ते खतरे और रक्षा क्षमताओं में सुधार शामिल हैं। खास तौर पर, सीमा पर बढ़ते रॉकेट और मिसाइल हमलों को देखते हुए भारत को एक प्रभावी और मज़बूत रक्षा प्रणाली की जरूरत थी। यहीं कुछ मुख्य कारण दिए गए हैं कि भारत को आयरन डोम सिस्टम की जरूरत क्यों पड़ीः
सीमावर्ती क्षेत्र में बढ़ते खतरे
भारत के लिए एक बड़ा सुरक्षा खतरा पाकिस्तान और चीन के साथ लगातार बढ़ती सीमा झड़पें हैं। पाकिस्तान की ओर से सीमा पार से गोलाबारी, मोर्टार शेल और कम दूरी केरॉकेट हमले आम बात हैं, खासकर जम्मू-कश्मीर और पंजाब जैसे इलाकों में। आयरन डोम जैसी प्रणाली इन हमलों का मुकाबला करने के लिए एक कारगर उपाय साबित हो सकती है।
साथ ही, चीन के साथ सीमाओं पर गतिरोध और संघर्ष के दौरान, किसी भी संभावित मिसाइल हमले या अन्य हवाई खतरे से बचने के लिए एक सुरक्षा कवच की आवश्यकता थी। आयरन डोम को इन सीमाओं पर सुरक्षा प्रदान करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
रॉकेट और मिसाइल हमलों से सुरक्षा
भविष्य में यदि भारत को विभिन्न प्रकार के रॉकेट और मिसाइल हमलों का सामना करना पड़ता है, चाहे वह आतंकवादी संगठनों द्वारा रॉकेट फायर हो या युद्ध की स्थिति में दुश्मन द्वारा बड़े पैमाने पर मिसाइत्त हमले, ऐसे हमले नागरिक क्षेत्रों और सैन्य ठिकानों की गंभीर नुकसान पहुंचा सकते हैं। आयरन डोम प्रणाली में इन खतरों को हवा में ही नष्ट करने की क्षमता है, जिससे महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे और नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
रक्षा क्षमताओं में सुधार और नागरिक सुरक्षा
भारत अपनी रक्षा प्रणाली को आत्मनिर्भर बनाने के लिए लगातार कदम उठा रहा है, और आयरन डोम जैसी आधुनिक तकनीकी प्रणाली इस दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल साबित हो सकती है। विदेशों से रक्षा उपकरणों पर निर्भरता कम करने और स्वदेशी तकनीक विकसित करने के लक्ष्य के तहत, डीआरडीओ (डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन) आयरन होम प्रणाली की तैनाती पर विचार कर रहा है। यह भारतीय सेना की क्षमताओं को और अधिक सुदृढ़ करेगा और देश की सुरक्षा को नई मजबूती देगा।
भारत के सीमावर्ती क्षेत्रों, विशेष रूप से जम्मू-कक्ष्मीर और पाकिस्तान व चीन से लगने बाली सीमाओं पर, नागरिकों का जीवन और संपत्ति निरंतर खतरे में रहती है। आयरन डोम प्रणाली इन नागरिक क्षेत्रों की रक्षा करने में सक्षम है, जिससे जान-माल की हानि को न्यूनतम किया जा सकता है। यह न केवल आम जनता की सुरक्षा सुनिश्चित करेगा, बल्कि सरकारी और निजी बुनियादी ढांचे की भी रक्षा करेगा, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा को एक नई मजबूती मिलेगी।
सामरिक जरूरतें
भारत अपनी सामरिक सुरक्षा को मजबूती देने के लिए हर स्तर पर रक्षा क्षमता बढ़ा रहा है। आयरन डोम एक छोटे रेंज के मिसाइलों और रॉकेटों के खिलाफ रक्षा प्रदान करने में सक्षम है, जो सामरिक दृष्टिकोण से एक महत्वपूर्ण कदम है। इसके अलावा, भारत की सेनाओं को उच्च तकनीकी सुरक्षा प्रणाली से लैस करने की आवश्यकता है ताकि वे किसी भी बाहरी खतरों से निपट सकें।
प्रणालीगत युद्ध और आतंकवाद
भारत की आंतरिक सुरक्षा भी लगातार खतरों का सामना करती है, जैसे आतंकवादी हमले और अन्य शहरी संघर्ष। रॉकेट और छोटी बैलिस्टिक मिसाइलों का इस्तेमाल आतंकवादी समूहों द्वारा भी किया जा सकता है, जो नागरिकों और सैन्य ठिकानों को नुकसान पहुंचा सकते हैं। आयरन डोम जैसी प्रणालियों इन हमलों से बचाव करने और देश में शांति बनाए रखने में मदद करने में सक्षम हैं।
सामरिक गतिशीलता
भारत की रक्षा नीति और सामरिक गतिशीलता भी बदल रही है, जिससे अपनी सीमाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अधिक आधुनिक और प्रभावी रक्षा तंत्र की आवश्यकता है। आयरन डोम इस बदलाव के अनुरूप है, और भारतीय सेना को अधिक सक्षम और आत्मनिर्भर बनाता है।
मूल्य और किफायतीपन
आयरन डोम की एक बड़ी विशेषता इसका किफायती मूल्य है। रॉकेट और मिसाइलों का मुकाबला करने के लिए इस प्रणाली की इंटरसेप्टर मिसाइलें अपेक्षाकृत सस्ती होती है, जिससे भारत को व्यापक सुरक्षा कवच स्थापित करने में मदद मिलती है। यह कई तरह के हमलों को नष्ट करने में सक्षम है और खर्च की दृष्टि से भी कारगर है।
आज आधुनिक युद्ध क्षेत्र में मिसाइल और रॉकेट हमलों से सुरक्षा अत्यंत महत्वपूर्ण हो गई है। इसी आवश्यकता को देखते हुए, इज़राइल ने श्आयरन डोमश् नामक एक अत्याधुनिक वायु रक्षा प्रणाली विकसित की है। यह प्रणाली शत्रु द्वारा दागे गए रॉकेट, तोपखाने के गोले और अन्य हवाई खतरों को नष्ट करने में सक्षम है। भारत भी अपनी वायु रक्षा क्षमताओं को मजबूत करने के लिए ऐसी तकनीकों की ओर देख रहा है।
दरअसल आयरन डोम एक मोबाइल वायु रक्षा प्रणाली है जिसे इज़राइल की रक्षा कंपनी राफेल एडवांस्ड डिफेंस सिस्टम्स और इज़राइल एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज (IAI) द्वारा विकसित किया गया है। यह प्रणाली कम दूरी की मिसाइलों, मोर्टार और रॉकेट हमलों को रोकने और नष्ट करने के लिए बनाई गई है।
मोबाइल वायु रक्षा प्रणाली की मुख्य विशेषताएँ रडार और ट्रैकिंग सिस्टमरू यह प्रणाली अत्याधुनिक रडार और सेंसर तकनीकसे लैस है जो दुश्मन की मिसाइलों और रॉकेटों का सटीक पता लगाती है।
तमिर इंटरसेप्टर मिसाइल: यह मिसाइल आयरन डोम का मुख्य हथियार है जो लक्ष्य की दिशा में भेजी जाती है और उसे हवा में ही नष्ट कर देती है।
मोबाइल और त्वरित प्रतिक्रिया: इसे तेजी से तैनात किया जा सकता है और यह शहरी क्षेत्रों में नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करता है।
सिस्टम की कार्य पद्धति: यह स्वचालित रूप से तय करता है कि कौन से लक्ष्य से खतरा है और किन्हें नजरअंदाज किया जा सकता है।
इज़राइल ने आयरन डोम को पहली बार 2011 में तैनात किया था और तब से इसने हजारों मिसाइलों को हवा में नष्ट किया है। इसकी सफलता दर 90% से अधिक मानी जाती है, जिससे यह दुनिया की सबसे प्रभावी वायु रक्षा प्रणालियों में से एक बन गई है। भविष्य में युद्ध अधिक जटिल और बहु-आयामी होंगे, जिनमें ड्रोन, मिसाइल और साइबर हमले शामिल होंगे। ऐसे में आयरन होम भारत की बहु-स्तरीय रक्षा रणनीति में सहायक हो सकता है।
भविष्य के युद्ध और भारत की बहु-स्तरीय रक्षा रणनीति में आयरन डोम की भूमिका आधुनिक युद्ध तेजी से जटिल और बहु-आयामी होते जा रहे हैं। पारंपरिक युद्ध प्रणालियों के अलावा, अब साइबर हमले, ड्रोन युद्ध, और उच्च-गति वाली मिसाइलों का उपयोग युद्ध के नए आयाम जोड़ रहा है। ऐसे में, किसी भी राष्ट्र की सुरक्षा रणनीति को बहु-स्तरीय और अत्याधुनिक बनाना अनिवार्य हो गया है।
भारत, जो चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों से घिरा है, अपनी रक्षा प्रणाली को लगातार अपग्रेड कर रहा है। इस संदर्भ में, इज़राइल की आयरन डोम प्रणाली भारत की बहु-स्तरीय रक्षा रणनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
आधुनिक युद्ध के बदलते आयाम भविष्य में युद्ध केवल सैनिकों और टैंकों तक सीमित नहीं रहेंगे। जब इसमें शामिल होंगेः ड्रोन युद्ध दुश्मन अब बड़े पैमाने पर डोन हमलों का सहारा ले रहा है। हाल ही में आर्मेनिया-अजरबैजान और यूक्रेन-रूस युद्ध में ड्रोन की अहम भूमिका देखी गई है।
हाइपरसोनिक और क्रूज मिसाइलें: पारंपरिक मिसाइलों की तुलना में हाइपरसोनिक मिसाइलें बहुत तेजी से लक्ष्य पर पहुंचती हैं, जिससे उनका रोकना कठिन हो जाता है।
साइबर हमले: रक्षा प्रणालियों को निष्क्रिय करने के लिए अब साइबर हमले एक बड़ा हथियार बन चुके हैं। स्वार्म टेक्नोलॉजी छोटे होन के झुंड जो समन्वयित रूप से हमले करते हैं. पारंपरिक वायु रक्षा प्रणालियों के लिए एक चुनौती बन रहे हैं।
भारत की बहु-स्तरीय रक्षा रणनीति भारत की वायु रक्षा प्रणाली को मजबूत करने के लिए कई स्तरों पर सुरक्षा उपाय अपनाए जा रहे हैंरू
लंबी दूरी की सुरक्षाः S-400 और स्वदेशी बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस (BMD) सिस्टम लंबी दूरी के मिसाइल हमलों को रोकने के लिए हैं।
मध्यम दूरी की सुरक्षाः आकाश और बराक-8 जैसी मिसाइलें दुश्मन के विमानों और क्रूज मिसाइलों को बीच रास्ते में ही नष्ट करने के लिए तैयार की गई हैं।
निकट क्षेत्र की सुरक्षाः छोटे ड्रोन और रॉकेट हमलों को रोकने के लिए एक ऐसी प्रणाली की जरूरत है जो तुरंत प्रतिक्रिया दे सके। और यही जगह आयरन डोम जैसी प्रणाली के लिए बनती है।
आयरन डोम की भारत में प्रासंगिकता
इज़राइल का आयरन डोम एक प्रभावी रक्षा प्रणाली है जो 4 से 70 किमी की दूरी तक आने वाले रॉकेट और ड्रोन हमलों को नष्ट करने में सक्षम है। यह विशेष रूप से शहरी क्षेत्री और महत्वपूर्ण सैन्य ठिकानों की सुरक्षा के लिए उपयोगी है। भारत में इसे निम्नलिखित रूपों में लागू किया जा सकता है:
1. पाकिस्तान और चीन से सटे सीमावती क्षेत्रों की सुरक्षा के लिए।
2. रणनीतिक सैन्य ठिकानों, परमाणु संयंत्रों और महत्वपूर्ण सरकारी भवनों की रक्षा के लिए। 3. डोन और मिसाइल हमलों से शहरों और औद्योगिक केंद्रों की सुरक्षा के लिए।
भविष्य की संभावनाएं और भारतीय संस्करण
हालांकि आयरन डोम एक प्रभावी प्रणाली है, भारत अपने स्वयं के संस्करण पर भी काम कर रहा है। डीआरडीओ (रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन) ‘एडवांस्ड एयर डिफेंस सिस्टम’ और ‘ड्रोन-रोधी तकनीकों’ पर काम कर रहा है, जो स्वदेशी रक्षा क्षमता की और मजबूत करेगा।
भविष्य के युद्ध बहु-आयामी होंगे, जहां साइबर हमले, ड्रोन झुंड और हाइपरसोनिक मिसाइलें एक साथ इस्तेमाल होंगी। ऐसे में भारत को एक बहु-स्तरीय रक्षा रणनीति अपनानी होगी। आयरन डोम जैसी प्रणालियां इस रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन सकती हैं, जिससे भारत न केवल अपने सीमावर्ती इलाकों की रक्षा कर सकेंगा बल्कि महत्वपूर्ण सैन्य और नागरिक संरचनाओं को भी सुरक्षित रख पाएगा।
आधुनिक युद्ध तेजी से जटिल और बहु-आयामी होते जा रहे हैं। पारंपरिक युद्ध प्रणालियों के अलावा, अब साइबर हमले, ड्रोन युद्ध, और उच्च-गति वाली मिसाइलों का उपयोग युद्ध के नए आयाम जोड़ रहा है। ऐसे में, किसी भी राष्ट्र की सुरक्षा रणनीति को बहु-स्तरीय और अत्याधुनिक बनाना अनिवार्य हो गया है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।