भारत का पहला परमाणु परीक्षण-पोखरण-1 (वर्ष 1974)      Publish Date : 24/05/2025

   भारत का पहला परमाणु परीक्षण-पोखरण-1 (वर्ष 1974)

                                                                                                                                            प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं अन्य

भारत की स्वतंत्रता के बाद, डॉ. होमी जहांगीर भाभा के नेतृत्व में भारत के वैज्ञानिक समुदाय का मानना था कि परमाणु ऊर्जा भारत की प्रगति के लिए जरूरी है न केवल बिजली उत्पादन के लिए, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी। हालांकि भारत ने परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग को बढ़ावा दिया, लेकिन बढ़ते क्षेत्रीय तनाव और 1964 में चीन के परमाणु परीक्षण ने भारत को अपने परमाणु रुख पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर कर दिया। तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी के नेतृत्व में, भारत ने अपनी परमाणु क्षमता का प्रदर्शन करने का फैसला किया, लेकिन फिर भी परीक्षण को ‘शातिपूर्ण परमाणु विस्फोट (पीएनई) के रूप में प्रस्तुत किया।’

18 मई 1974 को भारत ने राजस्थान के पोखरण रेगिस्तान में एक सुदूर सैन्य अड्डे पर अपना पहला सफल परमाणु परीक्षण करके दुनिया को चौंका दिया। ‘स्माइलिंग बुद्धा’ कोड नेम वाले इस परीक्षण ने भारत के परमाणु काथमें आधिकारिक प्रवेश को चिन्हित किया और यह आत्मनिर्भरता, वैज्ञानिक क्षमता और राष्ट्रीय शक्ति का एक साहसिक बयान था।

भारत का दूसरा परमाणु परीक्षण पोखरण-II (1998)

भारत ने राजस्थान के पोखरण के रेगिस्तान में 11 और 13 मई, 1998 को एक साथ पाँच भूमिगत परमाणु परीक्षण करके दुनिया को एक बार फिस से चौंका दिया, जिसका कोड नेम ‘शक्ति’ था। पोखरण-11 के नाम से ये परीक्षण तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व में किए गए और इसने भारत की फिसन और थर्माेन्यूक्लियर दोनों तरह के हथियार बनाने की क्षमता को प्रदर्शित किया। डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम और डॉ. आर. चिदंबरम जैसे प्रमुख वैज्ञानिकों ने इस ऑपरेशन का नेतृत्य किया, जिसे अत्याधिक एक गोपनीयता के साथ अंजाम दिया गया, यहीं तक कि उन्नत अमेरिकी उपग्रहों से भी इसका पता नहीं चल पाया। इन परीक्षणों ने भारत को परमाणु हथियार संपन्न देश के रूप में आधिकारिक रूप से घोषित किया जिससे अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंध झेलना पड़ा।

इन आलोचनाओं के बावजूद, भारत ने ‘नो फर्स्ट यूज’ नीति और न्यूनतम विश्वसनीय प्रतिरोध सिद्धांत को अपनाते हुए शांतिपूर्ण प्रतिरोध के प्रति अपनी प्रतिबद्धता पर जोर दिया। पोखरण-II भारत की वैज्ञानिक उन्नति और रणनीतिक स्वतंत्रता की यात्रा में एक ऐतिहासिक क्षण बना।

भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र

डॉ. भाभा ने राष्ट्र के लिए परमाणु ऊर्जा के दोहन के प्रयास को तेज करने हेतु भारत के महत्वाकांक्षी परमाणु कार्यक्रम के लिए आवश्यक बहु-विषयक अनुसंधान कार्यक्रम को मूर्त रूप देने के लिए जनवरी 1954 में परमाणु ऊर्जा प्रतिष्ठान, ट्रॉम्बे (एईईटी) की स्थापना की थी। वर्ष 1966 में भाभा के दुखद निधन के बाद, परमाणु ऊर्जा प्रतिष्ठान, ट्रॉम्बे (एईईटी) का नाम बदलकर भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (बीएआरसी) कर दिया गया। परमाणु ऊर्जा अनुसंधान और विकास कार्यक्रम के विस्तार में सहायक मानव शक्ति की जरूरत को पूरा करने के लिए डॉ. भाभा ने भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र प्रशिक्षण विद्यालय की स्थापना की।

भाभा के अनुसार ‘आने वाले कुछ दशकों में जब परमाणु ऊर्जा से बिजली उत्पादन शुरू हो जायेगा, तब भारत में ही इतने विशेषज्ञ मिलेंगे कि हमें इसके लिए विदेश जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। डॉ. भाभा ने परमाणु विज्ञान और इंजीनियरिंग के सभी क्षेत्रों में आत्मनिर्भर बनने पर जोर दिया है।

भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र में रिएक्टर प्रौद्योगिकियों, ईंधन पुर्नसंसाधन और अपशिष्ट प्रबंधन, समस्थानिक अनुप्रयोग, विकिरण प्रौद्योगिकियों और स्वास्थ्य, कृषि और पर्यावरण में उनके अनुप्रयोग, त्वरक और लेजर प्रौद्योगिकी, इलेक्ट्रॉनिक्स, माप-यंत्रण और रिएक्टर नियंत्रण एवं पदार्थ विज्ञान में अनुसंधान और विकास के लिए सक्रिय समूह हैं। विज्ञान के कई प्रमुख विषयों में मूलभूत और अनुप्रयुक्त अनुसंधान पर जोर देने से मूलभूत अनुसंधान और प्रौद्योगिकी विकास के बीच तालमेल संभव हो गया है।

भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र से ही अन्य अनुसंधान एवं विकास संस्थानों जैसे इंदिरा गांधी सेंटर फॉर एटॉमिक रिसर्च, (आईजीसीएआर) राजा रमन्ना सेंटर फॉर एडवांस्ड टेक्नोलॉजी आरआरसीएटी, वेरिएबल एनजी साइक्लोट्रॉन सेंटर बीईसीस आदि का उद्भव हुआ है, जो अग्रणी एवं महत्वपूर्ण कार्य करते हैं।

न्यूक्लियर पावर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड की स्थापना

न्यूक्लियर पावर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (एनपीसीआईएल) की स्थापना 17 सितंबर 1987 को कंपनी अधिनियम 1956 के तहत एक सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम (पीएसई) के रूप में की गई थी, जिसका पूर्ण स्वामित्य भारत सरकार के पास है। यह परमाणु ऊर्जा विभाग (डीएई) के प्रशासनिक नियंत्रण में काम करता है। एनपीसीआईएल का गठन भारत में सभी परमाणु ऊर्जा रिएक्टरों के डिजाइन, निर्माण, संचालन और रखरखाव को संभालने के लिए किया गया था।

एनपीसीआईएल के गठन से पहले वे जिम्मेदारियों सीधे परमाणु ऊर्जा विभाग और भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र द्वारा संभाली जाती थी। इसका उद्देश्य शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए परमाणु ऊर्जा के माध्यम से बिजली उत्पन्न करना, सुरक्षित, पर्यावरण के अनुकूल और आर्थिक रूप से व्यवहार्य परमाणु ऊर्जा को बढ़ावा देना, भारतीय उद्योगों के सहयोग से परमाणु प्रौद्योगिकी के स्वदेशी विकास का समर्थन करना, जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करके भारत की ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करना था।

एनपीसीआईएल वर्तमान में 8 परमाणु ऊर्जा स्टेशनों में 22 परमाणु रिएक्टरों का संचालन करती है, जिनकी कुल स्थापित क्षमता लगभग 7,480 मेगावाट (MW) है, जिनका विवरण निम्नानुसार हैः

यूरेनियम कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड

यूरेनियम कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (यूसीआईएल) की स्थापना 4 अक्टूबर, 1967 को हुई। यूरेनियम कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड, परमाणु ऊर्जा विभाग के अधीन एक सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम है। यूसीआईएल का स्थान नाभिकीय ऊर्जा चक में अग्रणी है। यह दाबित भारी पानी रिएक्टरों के लिए यूरेनियम की आवश्यकता को पूरा करने में भारत के नाभिकीय ऊर्जा उत्पादन कार्यक्रम में यूसीआईएल बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसने अपनी खानों तथा संसाधित संयंत्रों के लिए नवीनतम अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी को अपनाया है।

कम्पनी का खनन प्रचालन झारखंड में बागजाता, जादुगोड़ा, भाटिन, नरवापहाड़, तुरामडीह भूमिगत खान, मोहुलडीह तथा बंडुहुरांग ओपेनकास्ट खान में चल रहा है। कम्पनी का एक खनन प्रचालन एवं संसाधित्त संयंत्र तुम्मतापल्ली के आँध्र प्रदेश में चल रहा है। जादुगोड़ा एवं तुरामडीह में इसका दो संसाधन संयंत्र है। यूसीआईएल का भावी दृष्टिकोण भारत के भविष्य की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करना तथा नाभिकीय ऊर्जा की असीमित संभावना को मूर्त रूप देने के लिए कार्य करना है। इसका लक्ष्य किफायती तकनीकी का प्रयोग कर क्षेत्र के पर्यावरण को संरक्षित रखते हुए पूरेनियम का खनन व संसाधन कर देश में नाभिकीय इंधन की मांग को पूरा करना है।

स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में विकिरण का अनुप्रयोग

सामान्य तौर पर स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में विकिरण और रेडियोआइसोटोप का उपयोग बाह्य बीम थेरेपी, ब्रेकीधेरेपी नाभिकीय दवाओं तथा स्वास्थ्य देखभाल उत्पादों के विकिरण निर्जर्मीकरण के रूप में किया जाता है। परमाणु चिकित्सा तकनीकें रेडियोआइसोटोप द्वारा उत्सर्जित विकिरण का उपयोग करती हैं। इन उत्सर्जनों का पता लगाना और उन्हें छवियों में बदलना परमाणु चिकित्सा तकनीकों का आधार है। वैज्ञानिकों ने ऐसे कई रसायनों की पहचान की है जो विशिष्ट अंगों द्वारा अवशोषित होते हैं।

इस ज्ञान के साथ, कई रेडियोफार्मा स्यूटिकल्स विकसित किए गए हैं। ये ऐसे यौगिक हैं जिन्हें नैदानिक या चिकित्सीय उद्देश्यों के लिए रेडियोआइसोटोप के साथ टैग किया जाता है जिन्हें रोगी के शरीर में इंजेक्ट किया जाता है। एक बार जब कोई रेडियोफार्मास्युटिकल शरीर में प्रवेश करता है, तो यह प्राकृतिक जैविक प्रक्रियाओं में शामिल हो जाता है और सामान्य रूप से उत्सर्जित हो जाता है। जैविक पदार्थों में देसर के रूप में नियमित रूप से 200 रेडियोआइसोटोप का उपयोग किया जाता है। इस तकनीक की गैर-आक्रामक प्रकृति, शरीर के बाहर से काम कर रहे किसी अंग का निरीक्षण करने की क्षमता के साथ, इस तकनीक को एक शक्तिशाली निदान उपकरण बनाती है।

रोगी में इंजेक्ट किए गए रेडियोफार्मास्यूटिकल्स एक संकेत उत्पन्न करते हैं जिसे गामा कैमरे का उपयोग करके देखा जा सकता है- एक उपकरण जो गामा विकिरण का पता लगाता है। सिंगल-फोटॉन एमिशन कम्प्यूटेड टोमोग्राफी (स्पेक्ट) अध्ययन किए जा रहे अंग के कई कोणों से छवियां प्राप्त करने के लिए एक घूमने वाले गामा कैमरे का उपयोग करता है।

उदाहरण के लिए, स्पेक्ट गामा कैमरे से ती गई हृदय की छवियां अब रिकॉर्ड करती हैं कि हृदय की मांसपेशियों के सभी हिस्सों में कितना रक्त बह रहा है। ये छवियां चिकित्सक को हृदय रोग की गंभीरता निर्धारित करने में मदद करती हैं। कम जोखिम वाले रोगियों के लिए, स्पेक्ट उन रोगियों को फिल्टर करके कार्डियक कैथीटेराइजेशन या कोरोनरी एंजियोग्राफी जैसी बहुत महंगी प्रक्रियाओं के लिए अनावश्यक रेफरल से बच सकता है, जिन्हें इन प्रक्रियाओं की आवश्यकता नहीं है।

ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक विकास

परमाणु ऊर्जा बिजली का एक सुसंगत और विश्वसनीय स्रोत प्रदान करती है, जो औद्योगिक विकास, ग्रामीण विद्युतीकरण और शहरी बुनियादी ढांचे के लिए महत्वपूर्ण है। यह कोयला और तेल जैसे आयातित जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करने में मदद करती हैं, जिससे भारत की ऊर्जा संप्रभुता मजबूत होती है। परमाणु ऊर्जा विश्वसनीय, बड़े पैमाने पर बिजली प्रदान करती है, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ अन्य ऊर्जा स्रोत सीमित हैं। यह ग्रामीण विद्युतीकरण का समर्थन करती है जिससे गाँवों और छोटे शहरों को आर्थिक रूप से विकसित होने में मदद मिलती है।

ग्रामीण और क्षेत्रीय विकास

छोटे मॉड्यूलर परमाणु रिएक्टर (एसएमआर) दूरदराज या अविकसित क्षेत्रों में बिजली पहुंचा सकते हैं, जहां बड़े ग्रिड की कनेक्टिविटी मुश्किल है। परमाणु परियोजनाओं से आस-पास के क्षेत्रों में सड़कों, आवास, स्कूलों और अस्पतालों का विकास होता है, जिससे क्षेत्रीय उत्थान में योगदान मिलता है। परमाणु संयंत्र अक्सर दूरदराज या अविकसित क्षेत्रों (जैसे, रावतभाटा, काकरापार, कलपक्कम) में स्थापित किए जाते हैं, जिससे वहीं के बुनियादी ढांचे का विकास तथा स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के अवसर प्राप्त होते हैं तथा उन्हें कौशल विकास और प्रशिक्षण की सुविधा प्रदान की जाती है।

रोजगार सृजन और कौशल विकास

परमाणु क्षेत्र प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार उत्पन्न करता है जिसके लिए वैज्ञानिक, इंजीनियर, तकनीशियन की आवश्यकता होती है। निर्माण, सुरक्षा, और रसद क्षेत्रों में रोजगार का सूजन होता है। बीएआरसी और एनपीसीआईएल प्रशिक्षण प्रदान करता है, जिससे युवाओं को विशेष कौशल हासिल करने में मदद मिलती है।

कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को समर्थन

परमाणु तकनीक फसल पास्ता, कीट नियंत्रण और खाद्य संरक्षण में सुधार करने में मदद करती है। इससे किसानों को सहायता मिलती है, नुकसान कम होता है और आप सुरक्षा सुनिश्चित होती है।

सामरिक और तकनीकी उन्नति

भारत का परमाणु कार्यक्रम विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार में उन्नति को बढ़ावा देता है। यह परमाणु समझौतों (जैसे- रूस, फ्रांस और अमेरिका के साथ) में भागीदारी भारत की वैश्विक स्थिति और तकनीकी सहयोग को चिढ़ाती है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।