बनते-बिगड़ते बादलों का राज      Publish Date : 23/05/2025

                    बनते-बिगड़ते बादलों का राज

                                                                                                                                                          प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

बनते-बिगड़ते बादलों का राज सफेद और पतले ‘सिरस’ बादल बनते हैं। जब ये बड़े और मोटे होते हैं, तो फूले हुए ‘क्युम्बलस’ बादल बनते. हैं।

जब बहुत अधिक पानी इकट्ठा हो

                                                 

बच्यो, बादल भले ही तुम्हें आकाश में दिखते हों, लेकिन इनके बनने की कहानी धरती से ही शुरू होती है। असल में, बादल पानी के छोटे-छोटे कणों के गुच्छे होते हैं और यह पानी धरती से ही जाता है। अब तुम सोच रहे होगे कि आसमान से धरती पर वर्षों के रूप में पानी गिरते हुए तो देखा है, लेकिन कभी ऊपर जाते हुए नहीं देखा है। फिर पानी ऊपर कैसे जाता है?

दरअसल, यह पानी सीधे नहीं जाता है। तुमने विज्ञान में पढ़ा होगा कि पानी तीन अवस्थाओं ठोस, द्रव और गैस में पाया जाता है। जब नदियों, समुद्रों, झीलों और तालाबों पर सूर्य की किरणें पड़ती हैं, तो पानी गरम होकर भाप बनने लगता है। इसे वाष्पीकरण कहते हैं। चूंकि, भाप हल्की होती है तो हवा में ऊपर उठने लगती है। जैसे-जैसे यह ऊंचाई पर पहुंचती है तो ठंडी होती जाती है और पानी के छोटे-छोटे कणों में बदलने लगती है। इसे संघनन कहते हैं। पानी के यह छोटे-छोटे कण धूलकणों और हवा में मौजूद गैसों के साथ मिलकर गुच्छे बनाते हैं। यही गुच्छे बादल कहलाते हैं। इस पूरी प्रक्रिया को जल चक्र कहते हैं।

पल-पल बदलता आकार

                                                   

हवा और तापमान के अनुसार, बादलों का आकार बदलता रहता है। जब पानी के कण हल्के और ऊपर होते हैं, तो जाता है, तो गहरे और काले श्निंबोस्ट्रेटसश् बादल बनते हैं। तुमने आसमान में बादलों को तैरते हुए भी देखा होगा। दरअसल, बादल हवा के साथ चलते हैं। ऊंचाई के साथ हवा की दिशा बदलने से बादलों की भी दिशा बदलती रहती है। इससे ही उनका आकार भी बदलता रहता है।

कोहरा भी बादल ही है

हां। कोहरा भी एक तरह का बादल ही होता है और बादलों की तरह ही बनता है। जब रातें सर्द होती हैं तो हवा में मौजूद नमी छोटे-छोटे जलकणों में बदलकर हवा में तैरने लगती है। कोहरा जमीन के बहुत पास बनता है, जबकि बादल धरती से बहुत ऊपर बनते हैं। इसलिए इसे धरती पर उतरा बादल कह सकते हैं।

बारिश और बर्फबारी

जब बादल में बहुत ज्यादा पानी इकट्ठा हो जाता है, तो पानी के कण भारी होकर नीचे गिरने लगते हैं, जिसे हम बारिश कहते हैं। जब हवा बहुत ठंडी श्होती है, तो पानी के कण जम जाते हैं और बर्फ या ओले बनकर धरती पर गिरते हैं।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।