भारत के समावेशी विकास में परमाणु ऊर्जा और तकनीक की भूमिका      Publish Date : 20/05/2025

भारत के समावेशी विकास में परमाणु ऊर्जा और तकनीक की भूमिका

                                                                                                                                                प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं अन्य

भारत की आजादी के बाद देश की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने में परमाणु ऊर्जा और इससे संबद्ध तकनीकों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारत का परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम पूरे विश्व के लिए एक तकनीकी मिसाल है। परमाणु ऊर्जा और तकनीक ने देखभाल, कृषि, रोजगार सृजन और कौशल विकास जैसे आयामों को सशक्त बनाया है। राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस (11 मई) को दृष्टिगत रखते हुए लेखक ने प्रस्तुत लेख में उपरोक्त विचार बिंदुओं के अंतर्गत अपनी बात साझा की है।

भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती भात अर्थव्यवस्थाओं में से एक है जो अपने शहरों, उद्योगों और ग्रामीण क्षेत्रों को बिजली देने के लिए ऊर्जा की बढ़ती मांग का सामना कर रहा है। ऐतिहासिक रूप से, यह मांग मुख्य रूप से जीवाश्म ईंधन, विशेषतः कोयले के माध्यम से पूरी की जा रही थी, अभी भी इसका उपयोग 50% से अधिक बिजली उत्पादन में किया जाता है। हालांकि, जीवाश्म ईंधन सीमित हैं, अत्यधिक प्रदूषणकारी हैं, और वैश्विक मूल्य में उतार-चढ़ाव के अधीन हैं। भारत ने ऊर्जा सुरक्षा और पर्यावरणीय संरक्षण एवं संधारणीय विकास सुनिश्चित करने के लिए जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करने के उद्देश्य से एक व्यापक परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम विकसित किया है। भारत का परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम बिजली का स्वच्छ, विश्वसनीय और संधारणीय स्रोत प्रदान करके जीवाश्म ईंधन पर देश की निर्भरता को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

जैसे-जैसे भारत का विकास और औद्योगिकीकरण जारी है, ऊर्जा की मांग तेजी से बढ़ रही है और कोयला व तेल जैसे जीवाश्म इंधन न केवल सीमित हैं, बल्कि इनके प्रसंस्करण एवं उपयोग के कारण प्रदूषण और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में भी बढ़ोतरी होती है। दूसरी ओर, परमाणु ऊर्जा संचालन के दौरान लगभग न के बराबर कोई कार्बन उत्सर्जन होता है और यह एक स्थिर, दीर्घकालिक ऊर्जा समाधान प्रदान करती है। भारत अपने तीन-चरणीय परमाणु कार्यक्रम के माध्यम से थोरियम का उपयोग करने की दिशा में भी काम कर रहा है। यह एक ऐसा तत्व जिसका देश में प्रचुर भंडार है, यह आयातित ईंधन की आवश्यकता को भी कम करता है। ऊर्जा मिश्रण में विविधता लाकर, जलवायु लक्ष्यों का समर्थन करके और लगातार बेस-लोड बिजली प्रदान करके, परमाणु ऊर्जा भारत की कोयले और तेल पर अत्यधिक निर्भरता को कम करने में मदद करती है, जबकि संधारणीय विकास और ऊर्जा सुरक्षा का समर्थन करती है।

                                                     

भारत का परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम देश में सबसे सुविचारित और दीर्घकालिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी पहलों में से एक है। यह मुख्य रूप से रणनीतिक, आर्थिक और पर्यावरणीय लक्ष्यों से प्रेरित है जिसका उद्देश्य जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करते हुए ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करना है।

भारतीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के महत्वपूर्ण पड़ाव

भारत के महान वैज्ञानिक डॉ. होमी जहांगीर भाभा को भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम का जनक माना जाता है। उन्होंने एक दूरदर्शी वैज्ञानिक के रूप में भारत की परमाणु ऊर्जा यात्रा को शुरू से ही स्थापित करने और उसका मार्गदर्शन करने में एक आधारभूत भूमिका निभाई। उनकी दूरदर्शिता, नेतृत्व और समर्पण ने आज दुनिया के सबसे महत्वाकांक्षी और आत्मनिर्भर भारतीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम की नींव रखी। डॉ. भाभा का दृढ़ विश्वास था कि परमाणु ऊर्जा भारत के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण है, खासकर ऊर्जा स्वतंत्रता प्राप्त करने और वैज्ञानिक एवं आर्थिक प्रगति का समर्थन करने के लिए। वे विकास हेतु परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग के लिए प्रतिबद्ध थे।

वर्ष 1944 में भाभा ने एक परमाणु अनुसंधान संस्थान की स्थापना की आवश्यकता पर बल दिया। इसके परिणामस्वरूप वर्ष 1945 में टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान (टीआईएफआर) का निर्माण हुआ, जो भारत के परमाणु अनुसंधान का उद्गम स्थल बन गया। तत्पश्चात उन्होंने वर्ष 1948 में परमाणु ऊर्जा आयोग (एईसी) और बाद में 1954 में परमाणु ऊर्जा विभाग (डीएई की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भाभा ने परमाणु प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भरता पर जोरदिया। उन्होंने 1956 में भारत के पहले अनुसंधान रिएक्टर, अप्सरा की स्थापना में अपना योगदान दिया। यह एशिया में अपनी तरह का पहला रिएक्टर था। उन्होंने अन्य रिएक्टरों और परमाणु सुविधाओं की नींव रखी जो आज भी काम कर रही हैं। डॉ. होमी जहांगीर भाभा के प्रयासों ने भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम की आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अपनी दूरदृष्टि, वैज्ञानिक ज्ञान और संस्था निमर्माण के कौशल के माध्यम से उन्होंने भारत को परमाणु प्रौद्योगिकी और ऊर्जा में आत्मनिर्भर बनने के लिए एक मजबूत नींव रखी। उनकी विरासत भारत में परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में हर रिएक्टर, नीति और वैज्ञानिक सफलता में जीवित है।

भारत के पहले परमाणु रिएक्टर ‘अप्सरा’ का निर्माण

भारत के पहले परमाणु रिएक्टर अप्सरा की कहानी, परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में भारत की वैज्ञानिक महत्वाकांक्षा और आत्मनिर्भरता का प्रतीक है। यह न केवल भारत में, बल्कि पूरे एशिया में पहला परमाणु रिएक्टर था, और 1956 में इसका सफल प्रक्षेपण भारत के परमाणु-सक्षम राष्ट्र बनने की यात्रा में एक प्रमुख मील का पत्थर साबित हुआ। भारत में परमाणु रिएक्टर बनाने का सपना जो भारत के परमाणु कार्यक्रम के जनक डॉ. होमी जहांगीर भाभा द्वारा देखा गया था, वह अब तब साकार हुआ था। उनका दृढ़ विश्वास था कि परमाणु ऊर्जा भारत के विकास के लिए महत्वपूर्ण होगी और देश को परमाणु प्रौद्योगिकी के लिए दुनिया के देशों पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। परमाणु ऊर्जा आयोग और परमाणु ऊर्जा विभाग के गठन के बाद, भाभा ने एक शोध रिएक्टर के निर्माण पर जोर दिया, जिसका उद्देश्य भारतीय वैज्ञानिकों को परमाणु भौतिकी, सामग्री और विकिरण का अध्ययन करने में मदद करना था, यह भक्षिय के रिएक्टरों और बिजली संयंत्रों की नींव थी।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।