
मृदा की उत्पादकता को बनाये रखने के लिए महत्वपूर्ण जैविक उपाय Publish Date : 10/05/2025
मृदा की उत्पादकता को बनाये रखने के लिए महत्वपूर्ण जैविक उपाय
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं अन्य
यदि हमें अपनी बढ़ती जनसंख्या की भोजन आवश्यकता को पूरा करना है तो हमें अपनी उपलब्ध कृषि योग्य भूमि से अधिकतम उत्पादन प्राप्त करना होगा। एक लंबे समय से कृषि के अंतर्गत रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों का बेहताशा प्रयोग किए जाने के कारण वर्तमान में मृदा की उर्वरा शक्ति बिलकुल क्षीण हो चुकी हैं। ऐसे मेें हमारे पास केवल एक ही रास्ता बचा है कि हम येन केन प्रकारेण भूमि की उत्पादकता को बढ़ाएं। इस विषय पर बात करने के बाद सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय मेरठ, के प्रोफेसर आर. एस. सेंगर बता रहे हैं भूमि की उत्पादकता को बढ़ाने वाले कुछ महत्वपूर्ण जैविक उपाय-
तरल खाद निर्माण
वर्तमान में किसानों के द्वारा अनेक प्रकार के तरल खाद कृषि कार्य हंतु प्रयोग किये जा रहे हैं। जिनमें से कुछ महत्वपूर्ण तथा वृहद् रूप से प्रयोग किये जाने वाले सूत्रों का विवरण लेख में दिया जा रहा है:-
संजीवक
100 कि.ग्रा. गाय का गोबर +100 लीटर गौ-मूत्र तथा 500 ग्रा. गुड़ को 500 ली. क्षमता वाले ड्रम में 300 लीटर जल में मिलाकर 10 दिन हेतु सड़ने के लिए छोड़ दें। मिश्रण के तैयार होने के बाद इसमें 20 गुना पानी मिलाकर एक एकड़ क्षेत्र में मृदा पर स्प्रे करें अथवा सिंचाई जल के साथ इसका प्रयोग करें।
जीवामृत
10 कि.ग्रा.गाय का गोबर, 100 लीटर गौ-मूत्र, 2 कि.ग्रा. गुड़ तथा किसी दाल का आटा 1 कि.ग्रा. जीवंत मृदा को 200 लीटर जल में मिलाकर 5-7 दिनों हेतु सड़ने के लिए रख दें। नियमित रूप से दिन में तीन बार मिश्रण को हिलाते रहें। एक एकड़ क्षेत्र में सिंचाई जल के साथ प्रयोग करें।
अमृत पानी
500 ग्रा. शहद के साथ 10 किलो गाय के गोबर को मिलाकर तब तक फेंटे (एक लकड़ी की सहायता से) जब तक वह लुगदी (पेस्ट) जैसा न हो जाये, इसके बाद इसमें 250 ग्रा. गाय का देशी घी मिलाकर तेजी से मिलाये। इसे 200 लीटर पानी में मिलाकर एक घोल तैयार कर लें। इस घोल को एक एकड़ जमीन पर छिड़क दें या सिंचाई वाले पानी के साथ फैला दें। 30 दिनों के बाद दूसरी खुराक के रूप में पौधों की कतारों के बीच मे छिड़के या सिंचाई वाले पानी के साथ फैला दें।
पंचगव्य
5 किलो गाय का गोबर, 3 लीटर गौ-मूत्र, 2 लीटर गाय का दूध, दही दो लीटर, गाय के दूध से बना मक्खन एक किलो मिलाकर सात दिनों के लिए सड़ने को रख दें और इसे रोज दिन में दो बार हिलाते रहें। सात-आठ दिन में यह तैयार हो जायेगा। तीन लीटर पंचगव्य को 100 लीटर पानी में मिला लें और मृदा पर छिड़क दें। सिंचाई के पानी के साथ मिलाकर 20 लीटर पंचगव्य को प्रति एकड़ के हिसाब से देना चाहिए।
समृद्ध पंचगव्य (या दशगव्य)
आवश्यक चीजें पाँच किलो गाय का गोबर, तीन लीटर गो-मूत्र, दो लीटर गाय का दूध, दही दो लीटर, एक किलो गाय का देशी घी तीन लीटर गन्ने का रस, तीन लीटर कच्चे नारियल का पानी, 12 केलों को मसलकर तैयार पेस्ट एवं ताड़ी या अंगूर का रस दो लीटर, एक पात्र मे गोबर और देशी घी मिलाकर तीन दिनों तक सड़ने के लिए रख दें। बीच-बीच में इसे हिलाते रहना जरूरी है।
चौथे दिन उपरोक्त सभी चीजें इसमें मिला दें और 15 दिनों के लिए (प्रति दिन दो बार हिलाना जरूरी है) सड़ने को रख दें 18 वें दिन यह तैयार हो जाएगा। गन्ने के रस के स्थान पर 500 ग्राम गुड़ 3 लीटर पानी के साथ मिलाकर उपयोग किया जा सकता है या यीस्ट पाउडर को 100 ग्रा. गुड़ और दो लीटर गरम पानी के साथ मिलाकर उपयोग कर सकते है। छिड़काव हेतु 3 से 4 लीटर दशगव्य को 100 लीटर पानी में मिला लें। मृदा (मिट्टी) में डालने हेतु 50 लीटर पंचगव्य एक हेक्टेयर के लिए पर्याप्त है। इसे बीजोपचार हेतु भी उपयोग किया जा सकता है।
तापमान प्रबन्धन
गर्मियों में तापमान अधिक होता है जिसका नियंत्रण करना आवश्यक है। यह नियंत्रण मृदा को मल्च द्वारा ढककर किया जा सकता है। मल्च बिछाने से मृदा की नमी बनी रहती है और जल संग्रहण क्षमता बढ़ जाती है। इक्रीसेट में किए गए दीर्घावधि परीक्षणों के बाद ज्ञात हुआ है कि गर्मी वाले दिन में मल्च को मृदा पर बिछाने से 5 से 10 सें.मी. की गहराई तक मृदा तापमान में 6-5 से 7.30 डिग्री सें.ग्रे. की कमी होती है। तापमान को खेतों की मेंड़ पर विभिन्न प्रकार के पेड़ जैसे नीम, आँवला, इमली, गूलर बेर झाड़ियाँ एवं ग्लिरीसीडिया इत्यादि लगाकर भी नियन्त्रित किया जा सकता है।
समस्त जीवित अवयवों की सुरक्षा
पौध अवशेषों व फसलों एवं खरपतवार से तैयार मल्च के प्रयोग से मिट्टी के विभिन्न जैव स्वरूपों को संरक्षित किया जा सकता है। रसायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों का उपयोग निषिद्ध करने से भी जीवित अवयव सुरक्षित रहते है। विभिन्न जीवित अवयवों का पालन सुनिश्चित करने के लिए मृदा में सूखा, अर्द्ध अपघटित व पूर्ण अपघटित जीवाश्म का होना आवश्यक है। सूखे जैविक तत्त्व छोटे कीट पतंगो और छोटे जानवरों के लिए भोजन है, अल्प विघटित जीवाश्म केंचुओं के भोजन के लिए उपयुक्त है एवं पूर्ण विघटित तत्व सूक्ष्म जीवों का भोजन है।
ये सभी कीट पतंगें, छोटे जानवर केचुएं एवं सूक्ष्म जीव प्राकृतिक रूप से स्वस्थ मृदा के अभिन्न अंग हैं और ये भी मिल जुलकर विभिन्न कार्य करते हैं। छोटे जानवर एवं कीट पतंगे हानिकारक कीटों के लार्वा को खा लेते हैं जिससे कीटों का नियन्त्रण होता है।
केंचुएं अल्प विघटित पदार्थों को खाकर उसे पूर्ण विघटित मल के रूप में बाहर निकालते हैं जो उत्कृष्ट खाद है। केंचुओं की उपस्थिति मृदा के रन्ध्रों को खोलकर उसकी वायुवीय अवस्था में सुधार लाती है। मृदा में उपस्थित जैविक कार्बन जिस पर पर्याप्त मात्रा में उपयोगी सूक्ष्म जीव पलते हैं तथा नत्रजन स्थिरीकरण, अघुलनशील फॉस्फेट को घुलनशील बनाने, प्रकाश संश्लेषण क्रिया में एवं सैल्यूलिटिक प्रक्रिया में सहायक होते है। यह हमेशा सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि मृदा में उपस्थित समस्त जीवित अवयवों की सुरक्षा हर समय सुनिशिचत की जाए।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।