
संसाधनों के अविवेकपूर्ण दोहन करने से बढ़ता धरती का तापमान Publish Date : 08/05/2025
संसाधनों के अविवेकपूर्ण दोहन करने से बढ़ता धरती का तापमान
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
पृथ्ची का निर्माण लगभग 4.6 अरब वर्ष पूर्व हुआ था। पृथ्वी पर जीवन का विकास करीब 460 करोड़ वर्ष पहले हुआ था, परन्तु धरती तो तब से संकट में है, जब से मनुष्य उस पर अपना नाम दर्ज कराकर उसका मालिक बन बैठा है। उसने यह मानने से इंकार कर दिया है कि मनुष्य होने के नाते वह भी इस प्रकृति का ही एक हिस्सा है। मनुष्य और प्रकृति दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं। दोनों का साथ और सहयोग ही पृथ्वी को हरा-भरा और खूबसूरत बना सकता है। लेकिन वर्तमान में हम सभी इसी पूरकता को भूलते जा रहे हैं।
मनुष्य के सहयोग से उपभोग की बढ़ती लालसाओं का ही परिणाम है कि जल, जंगल और जमीन की समस्या आज सभी समस्याओं में केंद्रीय समस्या बनकर उभर रही है। पृथ्वी केवल मनुष्य की नहीं है बल्कि इस जगत में व्यापत सभी प्राणियों की है। इन सभी के सहयोग व सहचर्य के कारण पृथ्वी जीवित है।
आज व्यक्ति के अपने हितो की टकराहट के चलते पृथ्वी ग्रह पर असंतुलन की स्थितियां पनप रही है। आधुनिक जीवनशैली की प्रवृत्तियों ने प्रकृति के साथ हमारे संबंधों को तनावपूर्ण बना दिया है, जिससे स्थिरता में कमी आई है। यह समस्या अब गंभीर हो चुकी है और इसका समाधान यही है कि हम प्रकृति के साथ एक ऐसा संबंध स्थापित करें जो उसके समान संरक्षण एवं संतुलन को बनाए रखे। हमें प्रकृति के साथ शांतिपूर्ण व्यवहार करते हुए ऐसे रहना होगा जैसा कि हम उसका एक साधारण अंश मात्र है।
आधुनिकता के चलते मनुष्य प्रकृति से दूर होता जा रहा है, जिससे कई समस्याएं पैदा हो रही है। वहीं, प्रकृति में रहने से रचनात्मकता बढ़ती है। भारत की बात करे तो हॉलैंड स्थित ‘पूटिलिटी बिडर’ को एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले तीस वर्षों में 6,68,400 हेक्टेयर का जंगल देश ने खो दिया है। वर्ष 1990 से 2020 के बीच बनों की कटाई की दर में भारत दुनिया के दूसरे सबसे बड़े देश के रूप में उभरा है।
‘स्लोवल फारेस्ट वाच’ ने यह भी बताया है कि वर्ष 2013 से 2023 तक 95 प्रतिशत वनों की कटाई प्राकृतिक वनों में हुई है। जैव-विविधता पर अंतर-सरकारी निकाय, (आईपीचीईएस) के अनुसार, पृथ्वी की सतह का तीन-चौथाई हिस्सा पहले ही मानव जाति के लालची उपभोग के कारण काफी हद तक बदल चुका हैं और दो-तिहाई महासागरों का क्षरण हो चुका है।
पहले के मुकाबले 10 गुना ज्यादा तेजी से पिघल रहे है हिमालय के ग्लेशियर, भारत में संकट अधिक गहरा सकते है। जल संकट वेटलैंड इंटरनेशनल के अनुसार भारत की करीब 30 प्रतिशत आर्द्रभूमि पिछले तीन दशकों में विलुप्त हो चुकी है। आर्द्रभूमि (वेटलैंड) हमारा सबसे प्रभावी पारिस्थितिकी तंत्र है। यह कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित कर तापमान कम करने और प्रदूषण को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।