
एग्री-बिजनेस के माध्यम से होगा किसानों का कायाकल्प Publish Date : 18/04/2025
एग्री-बिजनेस के माध्यम से होगा किसानों का कायाकल्प
डॉ0 आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 शालिनी गुप्ता
एग्री-क्लीनिक और एग्री-बिजनेस सेंटर स्थापित करने के लिए सरकार कृषि स्नातकों को निःशुल्क विशेष प्रशिक्षण प्रदान कर रही है। दो माह का यह प्रशिक्षण देश के चुनिंदा संस्थानों के द्वारा ही प्रदान किया जा रहा है, जिसमें उद्यमिता और व्यवसाय प्रबन्धन तथा कौशल सुधार मॉड्यूल शामिल है। प्रशिक्षण प्राप्त उम्मदवारों द्वारा एग्री-बिजनेस उद्यम स्थापित करने हेतु सरकार आसान किस्तों पर ऋण भी उपलब्ध करा रही है।
किसानों के आर्थिक सुदृढ़ीकरण और जीडीपी में कृषि की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए कृषि का व्यवचसायीकरण और औद्योगीकरण किया जाना आवश्यक है। इसके लिए कृषि क्षेत्र में अत्याधुनिक वैज्ञानिक, तकनीकी व यांत्रिकी के प्रयोग सहित विषय एवं विपरीत स्थितियों में भी कृषि उत्पादन बढ़ाने, कृषि उत्पादों को संरक्षित करने, परंपरागत कृषि के स्थान पर कृषि के विविधीकरण को बढ़ावा देने, खाद्य प्रसंस्करण और मूल्य संवर्धन करने, कृषि का वाणिज्यिकरण करने के साथ-साथ कृषि को एक लाभकारी ‘व्यवसाय‘ का दर्जा प्रदान करना होगा। उल्लेखनीय है कि देश की 60-65 फीसदी आबादी कृषि अथवा कृषि-आधारित उद्यमों में संलग्न है। इसके बावजूद देश की अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान मात्र 17 फीसदी है।
एग्रीकल्चर से एग्री-बिजनेस की ओर अग्रसर
कृषि में आधुनिक प्रबन्धकीय और व्यवसायिक तकनीकी का उपयोग कर इसे मुनाफे का सौदा बनाना है, जिसके लिए किसानों को प्रशिक्षित कर आधुनिक यांत्रिकी और तकनीकी के प्रयोग पर बल दिया जाना चाहिए। ‘एग्री-बिजनेस‘ खेती के व्यवसाय को सन्दर्भित करता है। इस शब्द का उपयोग सर्वप्रथम ‘गोल्डबर्ग और डेविस‘ द्वारा वर्ष 1957 में किया गया।
इसके अंतर्गत फसल का व्यवसायिक उत्पादन, कृषि उत्पाद संरक्षण, खाद्य-प्रसंस्करण, कृषि विपणन, आधुनिक मशीनरियों का प्रयोग, जैविक एवं आर्गेनिक फार्मिंग, आधुनिक प्रसंस्कृत बीजों की आपूर्ति, फ्रूट कल्टीवेशन तथा फ्लोरी कल्चर, पशुपालन, मुर्गी पालन एवं फिशरीज इत्यादि सम्मिलत हैं। एग्रीजिनेस द्वारा युवाओं को कृषि क्षेत्र की ओर आकर्षित कर बेरोजगारी की समस्या को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
वर्तमान में अनेक मल्टीनेशनल कंपनियां एग्रीबिजनेस के क्षेत्र में कदम रखकर मोटा मुनाफा कमा रही हैं। निकट भविष्य में एग्रीबिजनेस क्षेत्र में रोजगार के विविध अवसर उपलब्ध होंगे।
औद्योगिक एवं सहकारी कृषि
कृषि क्षेत्र से युवाओं का पलायन रोकने और किसानों को आर्थिक रूप से स्वालंबी बनाने हेतु कृषि का व्यवसायीकरण किया जाना आवश्यक है। अन्य उत्पादों की तुलना में कृषि उत्पादों की मांग बाजार में सदैव बनी रहती है। तेजी से बढ़ती जनसंख्या की भोजन संबधी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु आने वाले समय में कृषि उत्पादों की मांग उसी तेजी के बढ़नी तय है। परिणामस्वरूप, कृषि के क्षेत्र में रोजगार भी तेजी से ही बढ़ेंगे। अतः कृषि क्षेत्र में बढ़ती मांग का सर्वोत्तम लाभ प्राप्त करने के लिए कृषि का वाणिज्यिकरण किया जाना चाहिए।
कृषि जनित उत्पादों की मार्केटिंग, बिजनेस सिद्वांतों के आधार पर कर अच्छा लाभ कमाया जा सकता है। केवल इतना ही नही, कृषि उत्पादों का मूल्य संवर्धन कर, किसानों की अच्छी कमाई हो सकती है। आने वाले समय में प्रोफेशनल व व्यवसायिक कृषि का एक नया ट्रेंड विकसित हो रहा है जिसे औद्योगिक कृषि प्रणाली के नाम से जाना जाता है। इस प्रणाली से अधिकतम लाभ लेने के लिए सहकारी कृषि पद्वति का भी विकास हो रहा है, जिसमें कई लोग संयुक्त रूप से मिलकर किसी एक फसल का व्यवसायिक उत्पादन करते हैं जिससे संयुक्त रूप से मानवीय श्रमशक्ति, आर्थिक सहयोग व वैज्ञानिकता और प्रबन्धकीय मूल्यों का उपयोग कर, मोटा मुनाफा कमाया जा सके और जोखिम प्रबन्धन किया जा सके।
कृषि व्यवसाय प्रबन्धन
कृषि के आर्थिक उन्नयन हेतु, परंपरागत विधा के स्थान पर आधुनिक वैज्ञानिक तकनीकी का प्रयोग कर पैदावार में वृद्वि करने के साथ-साथ, कृषि उत्पादों को लंबे समय तक संरक्षित किया जाना आवश्यक है जिससे किसानों को उनकी उत्पादों का अच्छा मूल्य प्राप्त हो सके और कृषि क्षेत्रों में रोजगार के विविध अवसर पैदा हो सके। फसल उत्पादन में जैव-उर्वरक एवं जैव-प्रौद्योगिकी के बढ़ते अनुप्रयोग और बढ़ती निर्यात की संभावना, कृषि वस्तुओं का एक श्रंखला में उत्पादन, कृषि उत्पादन में भारी वृद्वि, कृषि का आधुनिकीकरण, मृदा परीक्षण, प्रसंस्कृत जिंस का अनुप्रयोग, कृषि उत्पाद का भण्ड़ारण, विपणन, खुदरा बिक्री को बढ़ावा, कृषि क्षेत्र में भारी निवेश द्वारा एग्रीबिजनेस को बढ़ावा देकर किसानों को समृद्व किया जा सकता है।
एग्री-क्लीनिक और एग्री-बिजनेस उद्यम
भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने नाबार्ड के सहयोग से किसानों को आर्थिक रूप से सुदृढ़ बनाने और कृषि कार्यों में आधुनिकतम तकनीकों को अपनाने के लिए एग्री-क्लीनिक एवं एग्री-बिजनेस कार्यक्रम की शुरूआत की है। इस कार्यक्रम का सबसे प्रमुख उद्देश्य किसानों के द्वारा फसल उत्पादन के क्रम में आधुनिक तकनीकों को अपनाने की प्रक्रिया को प्रोत्साहित करना है। इसके अंतर्गत युवाओं को कृषि तकनीकी और मैनेजमेंट तकनीकी के लिए प्रशिक्षित करने के साथ-साथ, स्वयं का एग्री-क्लीनिक तथा एग्री-बिजनेस सेन्टर्स स्थापित करने के लिए सक्षम बनाना है।
इसके अंतर्गत कृषि स्नातकों को बागवान, सोरीकल्चर, चिकित्सा विज्ञान, डेयरी, पोल्ट्री-फार्मिंग और मतस्य-पालन इत्यादि कृषि संबंधित विषयों पर परिशिक्षण प्रदान किया जाता है। सरकार ने कृषि उद्यमों की स्थापना हेतु विशेष स्टार्ट-अप ऋण सहायाता योजना को भी प्रारम्भ किया है। कृषि व्यवसाय केन्द्र, फसलोत्पादन बढ़ाने और किसानों की आय में ये तत्व वृद्वि करने में सहायक है। इन केन्द्रों में किसानों को फसल चयन की सर्वोत्तम विघा, आधुनिक कृषि पद्वतियों, कृषि उत्पादों का मूल्य संवर्धन, बाजार समाचार, जोखिम प्रबन्धन, फसल बीमा, क्रेडिट और इनपुट एक्सेस जैसी जानकारी प्रदान की जाती है।
एगी-क्लीनिक और एग्री-बिजनेस सेन्टर्स स्थापित करने के लिए सरकार कृषि स्नातकों को विशेष एवं निःशुल्क प्रशिक्षण प्रदान कर रही है। दो माह का यह प्रशिक्षण देश के चुनिंदा संस्थानों के द्वारा ही प्रदान किया जा रहा है जिसमें उद्यमिता तथा व्यवसाय प्रबन्धन तथा कौशल सुधार मॉड्यूल शामिल है। प्रशिक्षण प्राप्त अभियर्थियों के द्वारा एग्री-बिजनेस सेंटर स्थापित करने के लिए सरकार व्यक्तिगत परियोजना हेतु 20 लाख रूपये, बेहद सफल व्यक्तिगत परियोजना के लिए 25 लाख रूपये और समूह परियोजना के लिए एक करोड़ रूपये तक का ऋण आसान किश्तों पर उपलब्ध कराया जा रहा है।
एग्री-बिजनेस से संबंधित प्रशिक्षण का संचालन राष्ट्रीय कृषि विस्तार प्रबन्धन संस्थान (मैनेज) द्वारा प्रदान किया जाता है। मैनेज की स्थापना वर्ष 1987 में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार एक स्वायत संस्थान के रूप में हैदराबाद में की गई थी। यह संस्थान कृषि स्नातकों को एग्री-बिजनेस में एमबीए तथा एमएससी जैसे संचालित करता है। मैनेज संस्थान-विविध कृषि विस्तार कार्यक्रम, कृषि की चुनौतियों और पुनर्विकास व आधुनिकीकरण की दिशा में प्रयासशील है। इस संस्थान द्वारा प्रबंधन प्रशिक्षण, कन्सलटेंसी, प्रबन्धन शिक्षा, अनुसंधान एवं कृषि तकनीकों के बारे में प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है।
एग्री-बिजनेस के प्रमुख चरण
खाद्य-प्रसंस्करण एवं मूल्य-संवर्धन
फल और सब्जियों के उत्पादन में भारत का द्वितीय स्थान होने के बावजूद देश के आमजन को पर्याप्त मात्रा में फल एवं सब्जियां उपलब्ध नही हो पाती हैं। सब्जियों एवं फलों को लंबे समय तक संरक्षित रखने के लिए शीतगृहों की व्यवस्था अपूर्ण होने के कारण बड़े पैमाने पर ये फल एवं सब्जियां नष्ट हो जाती हैं जिससे किसानों को बड़े पैमाने पर आर्थिक क्षति होने के साथ-साथ आम जन को भी ये समुचित मूल्य पर उपलब्ध नही हो पाती हैं। एक अनुमान के अनुसार देश में प्रतिवर्ष 30-35 प्रतिशत फल एवं सब्जियां नष्ट हो जाती हैं।
फल एवं सब्जियों के शीघ्रता से खराब अथवा नष्ट होने की प्रकृति के कारण मूल्यों में भी तीव्रता के साथ उतार-चढ़ाव बना रहता है। फल एवं सब्जियों को खाद्य-प्रसंस्करण विधा द्वारा लंबे समय तक संरक्षित किया जा सकता है।
खाद्य प्रसंस्करण एवं मूल्य संवर्धान उद्योग की स्थापना के द्वारा ग्रामीण एवं स्थानीय स्तर लाखों युवाओं को रोजगार उपलब्ध करया जा सकता है, जिससे ग्रामीण क्षेत्र के युवाओं की आर्थिक स्थिति में व्यापक सुधार किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, किसानों को फसलों का समुचित मूल्य प्राप्त होगा और उपभोक्तओं को भी उचित मूल्य पर खाद्य पदार्थ उपलब्ध होंगे।
खाद्य-प्रसंस्करण तकनीकी विधाओं का उपयोग कर कृषि उत्पाद, वन, मतस्य, मीट और मुर्गा इत्यादि को मूल रूप से कैनिंग, टेट्रा पैकिंग, शीत श्रंखला में पैकिंग अथवा भौतिक एवं रासायनिक अवसंरचना का रूपांतरण कर मूल्य संवर्धन करने के साथ-साथ सामान्य तापक्रम पर लंबे समय तक संरक्षित किया जाता है। इसमें अल्पकालिक एवं शीघ्रता से खराब होने तथा गलने-सड़ने वाले कृषि उत्पाद, डेयरी उत्पाद, मांस एवं मीट उत्पाद और फल-सब्जियां इत्यादि को नष्ट करने वाले कारकों को प्रतिबंधित एवं नियंत्रित कर, शेल्फलाइफ बढ़ाकर दीर्घकाल तक संरक्षित किया जाता है।
प्रसंस्करण तकनीकी द्वारा कृषि उत्पादों के जीवाणु तथा कवक आदि को नष्ट कर, उनके प्रजनन व विकास को नियंत्रित करने की प्रक्रिया प्रयुक्त की जाती है। कृषि उत्पादों में ऑक्सीकरण की गति अको कम करने के साथ एंजाइम उपापचय की प्रक्रिया को नियंत्रित किया जाता है। जीवाणु एवं कवक के जीवन के लिए अनुकूल वातावरण एवं परिस्थितियां नमी, पानी और ऑक्सीजन पर नियंत्रण स्थापित कर कृषि उत्पाद को लंबे समय तक संरक्षित रखा जा सकता है।
प्रसंस्करण तकनीकी द्वारा खाद्य उत्पादों का विविधीकरण और व्यवसायीकरण कर उनका मूल्य संवर्धन किया जाता है। प्रसंस्करण में किण्वन, स्प्रेड्राइंग, प्रशीतन, थर्मल प्रसंस्करण, निर्जलीकरण, धूप में सुखाना, नमक में परिरक्षण, शुगर में परिरक्षण, विभिन्न प्रकार से पकाना, रस सांद्रण, हिम शुष्कन, सिरका, साइट्रिक ऐसिड, तेल, कृत्रिम मिठास तथा सोडियम बेंजोएट जैसे परिरक्षकों के द्वारा कवक एवं जीवाणुओं को नष्ट कर फल एवं सब्जियों को संरक्षित किया जाता है।
कृषि उत्पादों की भौतिक एवं रासायनिक अवसंरचना में परिवर्तन कर अचार एवं मुरब्बा जेम, जैली, वेजिटेबिल सॉस, सब्जियों एवं फलों के मूल रूप में नमक/मीठे पानी से कैनिंग प्रणाली के द्वारा अथवा इनका जूस/रस निकाल कर वैक्यूम/टेट्रा पैकिंग द्वारा लंबे समय तक संरक्षित रखा जा सकता है। प्रसंस्करण के प्राकृतिक परिपक्वन को भी नियंत्रित किया जाता है। संरक्षण के लिए खाद्य पदार्थ को उपचार के पश्चात् सीलबंद पैकिंग की आवश्यकता पड़ती है, जिससे संरक्षित खाद्य-पदार्थों को जीवाणुओं द्वारा पुनः दुषित करने से बचाया जा सके।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।