मिट्टी परीक्षण क्यों है आवश्यक      Publish Date : 27/03/2025

                    मिट्टी परीक्षण क्यों है आवश्यक

                                                                                                                प्रोफसेर आर. एस. सेंगर एवं अन्य

मिट्टी परीक्षण के माध्यम से मिट्टी के स्वभाव (प्रकृति) एवं कौन-सा तत्व कितनी मात्रा में उपलब्ध है, इसकी जानकारी प्राप्त होती है, जिसकी सहायता से किसान अपनी विभिन्न फसलों के लिये उर्वरक की संतुलित तथा किफायती मात्रा निर्धारित करना सरल हो जाता है। मिट्टी की जांच के आधार पर उर्वरक की सही मात्रा के उपयोग करने से अधिकतम उपज प्राप्त कर किसान भाई कम से कम लागत पर अधिकतम शुद्ध लाभ अर्जित कर सकते हैं तथा मिट्टी की उपजाऊ शक्ति भी बनी रहती है। हालांकि, मिट्टी परीक्षण के लिये सबसे महत्वपूर्ण और जरूरी बात यह है कि परीक्षण के लिए मिट्टी का नमूना वैज्ञानिक विधि से लिया जाना चाहिए।

क्या है मिट्टी का नमूना लेने की वैज्ञानिक विधि:

                                         

मृदा परीक्षण के लिए प्रत्येक खेत से अलग-अलग नमूना लेना चाहिए। यदि एक ही खेत में फसल की पैदावार में असमानता हो, मिट्टी के रंग अलग हों, खेत में ढलान ऊँचा-नीचा हो, तो ऐसे खेत को विभिन्न भागों में बांट कर प्रत्येक भाग का अलग-अलग मिलाजुला नमूना लेना चाहिए।

नमूना लेने से पहले ऊपरी सतह से घास-फूस और खरपतवार आदि को अच्छी तरह से साफ कर लें। इसके बाद लगभग 9 इंच गहरा गड्ढ़ा बना लें, खुरपी या फावड़े की सहायता से इस गड्ढ़े की दीवार के साथ-साथ पूरी गहराई तक की मिट्टी की एक समान मोटाई की परत इकट्ठा कर लें।

इस प्रकार 15-20 अलग-अलग स्थानों से मिट्टी का नमूना प्राप्त करें, इन नमूनों को अच्छी तरह मिलाकर उसमें से करीब आधा किलो मिट्टी छाया में सुखाकर थैली में भरकर परीक्षण के लिए भेजें।

प्रत्येक नमूने के साथ कुछ जानकारी आवश्यक है, जो नमूने के साथ आवश्यक रूप से भेजी जानी चाहिए- जैसे:

(क)  किसान का नाम एवं पूर्ण पता।

(ख) खेत का सर्वे नंबर या स्थानीय पहचान।

(ग)  सिंचित या असिंचित स्थिति का वर्णन।

(घ)  आगामी बोई जाने वाली फसल का नाम।

(ङ)  पिछले वर्ष ली गई फसल व उसमें दिए गए खाद का विवरण।

(च)  नमूना लेने की तारीख एवं उसकी गहराई।

(छ)  भूमि के संबंधित कोई और समस्या या सूचना।

मिट्टी का नमूना कब लेना चाहिएः परीक्षण के लिए नमूना कभी भी लिया जा सकता है, परन्तु रबी फसल की कटाई के बाद गर्मियों में जब खेत खाली हों, नमूना लेना बेहतर रहता है, क्योंकि इस समय मिट्टी सूखी हुई होती है। साथ-साथ परीक्षण के बाद सिफारिश आने तक के लिये पर्याप्त समय भी मिल जाता है।

                                                 

मृदा का परीक्षण दोबारा कितनी देर बाद करना चाहिए: कम से कम 3-4 साल में एक बार अपनी मिट्टी की जांच अवश्य करा लेनी चाहिए। जबकि साग-सब्जी वाले खेतों की मिट्टी की जांच प्रतिवर्ष करानी चाहिए।

क्या मिट्टी की जांच की कोई फीस लगती हैः जी नहीं, मिट्टी की जांच बिलकुल निःशुल्क की जाती है।

जांच में कितना समय लगता हैः प्रयोगशाला को सामान्यतः नमूना प्राप्त होने से 10-15 दिन में परिणाम भेज दिये जाते हैं।

मिट्टी की जांच हेतु नमूना कहां भेजें: किसान भाई मिट्टी का नमूना क्षेत्रीय ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी, कृषि विकास अधिकारी, विकासखंड कार्यालय अनुविभागीय कृषि अधिकारी को भेजें, जो इन्हें मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला में भेजने की व्यवस्था करेंगे। इसके अलावा आप स्वयं भी मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला में जांच कराने हेतु दे सकते हैं।

प्रयोगशाला में जांच क्यों करते हैं: पी.एच. प्रतिशत, इससे यह पता लगता है कि मिट्टी अम्लीय, सामान्य या क्षारीय प्रकृति की है। पी.एच. 6 से कम होने पर अम्लीय, 6 से 8.5 तक सामान्य और 8.5 से अधिक होने पर मिट्टी क्षारीय कहलाती है। सामान्य पी.एच. की मिट्टी में सभी प्रकार की फसलें अच्छी तरह उगाई जा सकती हैं। उर्वरक के चयन और भूमि सुधारों के प्रयोग के लिये पी.एच. बहुत उपयोगी है।

मृदा लवणता: अच्छी फसल उगाने के लिये यह जरूरी है कि मृदा में घुलनशील लवणों की मात्रा अधिक न हो।

जैविक कार्बन: जैविक कार्बन की मात्रा ज्ञात कर उपलब्ध नत्रजन की मात्रा का अनुमान लगाया जाता है।

उपलब्ध फास्फोरस व उपलब्ध पोटाश की मात्रा यंत्रों की सहायता से ज्ञात की जाती है।

नमूने में उपलब्ध नत्रजन, फास्फोरस एवं पोटाश की मात्रा के आधार पर फसलों को आवश्यक मात्रा की सिफारिश कृषकों को तत्व के रूप में प्रति एकड़ भेजी जाती है, जिससे स्थानीय रूप से उपलब्ध उर्वरक की मात्रा ज्ञात कर प्रसार कार्यकर्त्ताओं के सहयोग से उपयोग कर अधिकतम उत्पादन न्यूनतम लागत पर प्राप्त कर अधिकतम शुद्ध लाभ प्राप्त कर सकते हैं तथा भूमि की उपजाऊ शक्ति भी बनी रहेगी।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।