
कृषि में नमक-सहिष्णु पौधों का उपयोग Publish Date : 24/02/2025
कृषि में नमक-सहिष्णु पौधों का उपयोग
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी
‘‘देश का कच्छ क्षेत्र, गुजरात राज्य का एक हिस्सा है और यह क्षेत्र अपनी विशेष जलवायु और अद्वितीय भूमि की स्थिति के चलते कृषि क्षेत्र में अनेक चुनौतियों का सामना कर रहा है। इस क्षेत्र की भूमि में लवणता अधिक होने के कारण यहां की पारंपरिक फसलों के लिए संघर्ष करना पड़ता है। इससे किसानों को आर्थिक नुकसान भी होता है।
प्रस्तुत लेख में नमक-सहिष्णु पौधों का शुष्क क्षेत्रों में महत्व के साथ ही साथ इनकी विशेषताएं, प्रकार और कृषि में इनके उपयोग पर प्रकाश डाला गया है।
लवण-सहिष्णुता, मृदा सुधार, पौधों की विविध प्रजातियां, सूखा प्रतिरोधक क्षमता, टिकाऊ खेती, आर्थिक व्यवहार्यता और पर्यावरण प्रबंधन के साथ, नमक-सहिष्णु पौधों की खेती कच्छ के किसानों के लिए एक अमूल्य संसाधन साबित हो सकती है। इनकी खेती, यहां की कृषि प्रणाली को सुदृढ़ और सुरक्षित बनाने में सहायता कर सकती है। यह स्थानीय समुदायों की आर्थिक स्थिति के साथ ही पर्यावरण में अपेक्षित सुधार लाने में भी एक प्रमुख भूमिका का निर्वहन कर सकती है।’’
भारत के उत्तर-पश्चिमी भाग में स्थित कच्छ, गुजरात राज्य का सबसे बड़ा जिला है। यह पश्चिम में अरब सागर और उत्तर एवं पूर्व में विशाल नमक की दलदल से घिरा हुआ है। दुनिया के सबसे बड़े नमक रेगिस्तानों में से एक, कच्छ का रण मौसम दर मौसम नाटकीय रूप से बदल जाता है। यहां का क्षेत्र शुष्क महीनों के दौरान सफेद नमक का एक मंत्रमुग्ध कर देने वाला दृश्य पेश करता है। इसके दूसरी ओर मानसून के दौरान यह क्षेत्र उथली दलदली भूमि में बदल जाता है। इस अनूठी भौगोलिक विशेषता ने कच्छ के लोगों के लिए, विशेषकर कृषि के क्षेत्र में चुनौतियां और अवसर दोनों ही प्रस्तुत किए हैं।
नमक-सहिष्णु पौधों का महत्व
यहां की पारंपरिक फसलें अक्सर उच्च लवणता वाली मृदा में संघर्ष करती नजर आती हैं। इससे उपज कम हो जाती है और किसानों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है। इसके दूसरी ओर नमक-सहिष्णु पौधे, पौधों की एक उल्लेखनीय श्रेणी है। इन पौधों में नमक को अवशोषित करने और सहन करने के लिए विशेष तंत्र विकसित होते हैं। यह तंत्र इन्हें उन क्षेत्रों के लिए अमूल्य संसाधन के रूप में पेश करते हैं, जहां मृदा की लवणता एक प्रचलित मुद्दा बना हुआ है। प्रस्तुत लेख में ऐसे ही कुछ लवण सहिष्णु पौधों का उल्लेख किया जा रहा है।
सुएडा न्यूडिफ्रलोरा
इस पौधें को आमतौर पर ‘सरोड’ या ‘सी ब्लाइट’ के नाम से भी जाना जाता है। यह एक बारहमासी लाल रंग का पौधा होता है। यह एक मीटर की ऊंचाई तक बढ़ता और सघन होता है। इसमें छोटी परन्तु मांसल पत्तियों वाली पतली और रसीली शाखाएं होती हैं।
उपयोगः सुएडा न्यूडिफ्रलोरा चारे के रूप में कार्य करता है। इसके अतिरिक्त, इसमें उच्च तेल सामग्री भी पाई जाती है। इसका अनुप्रयोग अधिकतर पादप उपचार और जैव ईंधन के स्रोत के रूप में किया जाता है।
साल्वाडोरा पर्सिका
इस पौधें को ‘दातून का पेड़’ या ‘पीलू’ के नाम से भी जाना जाता है। यह पतली शाखाओं और छोटे हरे पत्तों वाला एक छोटा पेड़ या झाड़ी होती है।
उपयोगः इसका उपयोग अक्सर पवनरोधक और मृदा संरक्षण के लिए किया जाता है। कुछ क्षेत्रों में टहनियां पारंपरिक रूप से दातून के रूप में उपयोग की जाती हैं।
साल्वाडोरा ओलेओइड्स
इस पौधे को ‘खार’ के नाम से जाना जाता है। यह एक पर्णपाती झाड़ी या छोटा पेड़ होता है। आमतौर पर यह 3 से 5 मीटर की ऊंचाई तक बढ़ता है। इसमें पतली शाखाएं और छोटी, अंडाकार पत्तियां होती हैं। इसकी पत्तियों में नमक को जमा करने की क्षमता होती है।
उपयोगः यह चारे का एक मूल्यवान स्रोत है विशेष रूप से शुष्क अवधि के दौरान। इसकी टहनियों में प्राकृतिक जीवाणुरोधी गुण पाए जाते हैं और इसकी बनावट अपघर्षक होती है। इसका पारंपरिक रूप से दातून एवं औषधि के रूप में उपयोग किया जाता है।
यूफोरबिया निवुलिया
इसे ‘सी स्पर्ज (अनथोहार या कटथोहर)’ भी कहा जाता है। यह मांसल तने और पत्तियों वाली एक रसीली बारहमासी जड़ी-बूटी है। अपनी पानी जमा करने की क्षमता के चलते यह शुष्क, खारे और तटीय वातावरण के लिए अनुकूलित है।
उपयोगः इसकी जड़ प्रणाली मृदा के कटाव को रोकने में मदद करती है। पारिस्थितिकी तंत्र बहाली परियोजनाओं में यह मूल्यवान बन जाती है। हालांकि यह चारे का प्राथमिक स्रोत नहीं है। यह लवणीय क्षेत्रों में मृदा की संरचना को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
चुनौतियां और संभावनाएं
चुनौतियां
सीमित फसल विविधताः नमक-सहिष्णु पौध आधारित कृषि में प्राथमिक चुनौतियों में से एक उपलब्ध फसलों की सीमित शृंखला है। यह पौधे नमक-सहिष्णु होते हुए भी स्थानीय आबादी की सभी आहार और आर्थिक जरूरतों को पूरा नहीं कर सकते हैं।
उच्च गुणवत्तायुक्त बीजों की कमीः उच्च गुणवत्ता वाले नमक-सहिष्णु पौधों के बीजों तक पहुंच अक्सर सीमित ही होती है।
आक्रामक क्षमताः कुछ नमक-सहिष्णु पौध प्रजातियां, यदि ठीक से प्रबंधित नहीं की जाती हैं, तो यह आक्रामक भी हो सकती हैं। यह स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र को बाधित कर सकती हैं।
ज्ञान और कौशल का अभावः किसानों के पास नमक-सहिष्णु पौधों की प्रभावी खेती के लिए आवश्यक ज्ञान और कौशल की कमी हो सकती है।
बाजार तक पहुंचः नमक-सहिष्णु पौधों के उत्पादन के लिए टिकाऊ बाजार स्थापित करना एक चुनौती हो सकती है।
संभावनाएं
अनुसंधान और प्रजननः उच्च पैदावार, बेहतर गुणवत्ता और व्यापक अनुकूलनशीलता के साथ उन्नत नमक-सहिष्णु पौध किस्मों को विकसित किया जा सकता है।
एलुरोपस लैगोपोइड्स
यह एक घास जैसा पौधा है, जिसमें महीन, कांटेदार तने और संकीर्ण पत्तियां होती हैं। यह घने गुच्छे बनाता है और ऊंचाई में 50 सें.मी. तक बढ़ती है।
मूल्यवर्धित उत्पादः इन विशिष्ट पौधों से मूल्य संवर्धित उत्पाद जैसे- जैव ईंधन, दवाइयाँ और सौंदर्य प्रसाधन आदि विकसित किये जा सकते हैं।
पारंपरिक फसलों के साथ एकीकरणः नमक-सहिष्णु पौधों को पारंपरिक फसलों के साथ एकीकृत करने के तरीकों का पता लगाने के लिए अनुसंधान करना आवश्यक है।
नीति समर्थनः ऐसी सरकारी नीतियाँ जो नमक-सहिष्णु पौधों की खेती को प्रोत्साहित करें और किसानों को सहायता प्रदान करें, इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। हालांकि चुनौतियों से पार पाना अभी बाकी है। कच्छ में नमक-सहिष्णु पौधों की खेती का भविष्य काफी आशाजनक है। अनुसंधान, विकास और नीति समर्थन के सही संयोजन के साथ नमक-सहिष्णु पौध आधारित खेती में क्षेत्र की कृषि प्रणाली को बदलने की क्षमता है। यह लवण-प्रभावित क्षेत्रों में किसानों के लिए एक स्थायी और लचीला मार्ग प्रदान कर सकती है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।