
भारत में जल संसाधनों की स्थिति Publish Date : 23/02/2025
भारत में जल संसाधनों की स्थिति
प्रोफसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 वर्षा रानी
मानवीय परिप्रेक्ष्य में जल एक बहु उपयोगी वस्तुओं में से एक है जो मानव जीवन बुनियादी आवश्यकता, और अधिकार है, सुख का साधन और सफाई अभिकर्ता है। सामाजिक कल्याण अर्थात अग्निशमन, अस्पताल के प्रयोग आदि) के लिए उपयोग किया जाता है। विभिन्न प्रकार के आर्थिक कार्यकलापों के लिए भी जल की आवश्यकता होती है ( जैसे कृषि और उद्योग) आदि के लिए। जल हमारे सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक जीवन का एक अभिन्न अंग है और यह एक बहुत ही पवित्र पदार्थ है। साथ ही जल एक साथ ही स्थानीय संसाधन, राज्य संसाधन, राष्ट्रीय संसाधन और क्षेत्रीय प्राकृतिक संसाधन भी है।
एक कृषि प्रधान देश होने के कारण भारत को खेतों की सिंचाई कार्य के लिए बहुत बड़ी मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है, क्योंकि यहां मानसून कोई विश्वसनीय जल स्रोत नहीं हैं। इस प्रकार जल एक साथ ही संसाधन, पण्यवस्तु, आधारभूत अधिकार है। संस्कृति निरूपणकर्ता के साथ साथ इसका भू-राजनीति स्वरूप भी है। भारत का क्षेत्रफल विश्व के कुल क्षेत्रफल का केवल 4 प्रतिशत है, जबकि इसकी जनसंख्या विश्व की जनसंख्या की 16 प्रतिशत है। परन्तु इसके पास कुल उपलब्ध स्वच्छ जल आपूर्ति का केवल 4 प्रतिशत है। इससे जल संरक्षण, विकास और इष्टतम प्रयोग की आवश्यकता सहज ही प्रतिपादित हो जाती है।
भाग्यवश मैक्रो स्तर पर भारत में जल की कमी नहीं है। परन्तु समस्या उसके प्रबंधन में निहित है। इस समस्या की विकरालता आठवीं पंच वर्षीय योजना में किए गए निम्नलिखित प्रेक्षणों द्वारा आंकी जा सकती है।
(1) देश का शायद ही कोई ऐसा शहर हो जो 24 घंटे पेयजल प्राप्त कर पाता हो।
(2) देश की बहुत सी ग्रामीण बस्तियों में, जिन्हें पेयजल योजना के अंतर्गत लाया गया है, अब पुनः पेयजल में आर्सेनिक (शंखिया), नाइटेट, और फ्लोराइड की मात्रा अधिक पाई जा रही है, जो मानवीय स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर खतरा है।
(3) देश के बहुत भागों में जल के अति दोहन के चलते भौमजल का स्तर बहुत तेजी से कम हो रहा है। यह उन किसानों पर अतिरिक्त वित्तीय भार डाल रहा है जो अपने कुंओं को अधिक गहरा करना चाहते हैं और अपने पम्पसेटों को बदलना चाहते हैं। राज्य सरकारों के लिए बिजली की आपूर्ति पर साहाय्य का भार बढ़ना एक आवर्ती समस्या है। जलग्रहण क्षेत्र की कोटि निम्नीकरण और शहरी विकास और कृषि के लिए जल फैलाव मैदानों के प्रयोग से बाढ़ों की तीव्रता में वृद्धि हुई है।
(4) हमारी नदियों और झीलों में जल की गुणवत्ता पीने के लिए तो दूर की बात है, यह स्नान करने के योग्य भी नहीं है। कस्बों और शहरों से अनुपचारित या आंशिक रूप से उपचारित जल और अनुपचारित या अपर्याप्त रूप में उपचारित औद्योगिक बहिःस्राव को नदियों में छोड़ा जाता है जिससे हमारी नदियां भी प्रदूषित हो रही हैं।
(5) प्रदूषित जलाशय भी भौमजल को संदूषित करते हैं। और
(6) जल की गुणवत्ता, धारा के उपरिक्षेत्र बनाम अनुप्रवाह क्षेत्र के उपभोक्ताओं के जल पर अधिकार के बारे में जल विवाद, भौमजल का औद्योगिक प्रयोग और भौमजल स्तर आदि समस्याएं हैं।
भारत के उपलब्ध जल संसाधन
जल संसाधनों को मुख्य रूप से दो प्रकार के स्रोतों में वर्गीकृत किया जाता है, अर्थात् (अ) पृष्ठीय जल और (ब) भौमजल। इसकी माप की इकाई मिलियन घन मीटर (bcm) है। वर्षा से पानी विशाल मात्रा में मिलता है जो अधिकतर बरबाद चला जाता है। इसके अलावा, उपलब्ध जल भी पूरी तरह से प्रयुक्त नहीं किया जाता है, क्योंकि उपयोगिता तो उसके भंडारण और प्रयोग के अपेक्षित स्थानों पर आपूर्ति पर निर्भर है। इस संदर्भ में “प्रयोज्य जल संसाधन क्षमता” को उपलब्ध जल स्रोत से पृथक करना आवश्यक है।
हम भली-भांति जानते हैं कि भारत में ऐसे भाग हैं जहां बाढ़ की पुनरावृत्तिक स्थिति होती है। वैसे ही, अन्य ऐसे भाग भी हैं, जहां जल एक स्थान पर एकत्र किया जाता है और तब उन स्थानों पर नहर से पहुंचाया जाता है जहां समय-समय पर गंभीर सूखा पड़ता है। इसलिए जब तक एक स्थान पर उपलब्ध अतिरिक्त जल एकत्र कर उसे ऐसे स्थान पर नहर से नहीं ले जाया जाता है जहां यह दुर्लभ है, तब तक उपलब्ध जल संसाधनों का भरपूर प्रयोग नहीं हो पाएगा। इसलिए आइए, हम भारत में उपलब्ध/प्रयोज्य जल पर गम्भीरतापूर्वक विचार करें।
प्रयोज्य जल संसाधन क्षमता नीचे दी गई तालिका में भारत में उपलब्ध और प्रयोग योग्य जल संसाधनों का सार प्रस्तुत किया गया है। पृष्ठीय जल की कुल उपलब्धता का अनुमान 1953 bcm लगाया गया है, जिसमें से केवल 35 प्रतिशत का ही उपयोग किया जाता है। परन्तु भौमजल की कुल उपलब्धता (अनुमानतः 432 bcm) में से लगभग 92 प्रतिशत जल का (काफी अधिक) उपयोग किया जाता है। इस प्रकार यह परिदृश्य पृष्ठीय जल क्षमता की तुलना में भौमजल क्षमता का बहुत अधिक उपयोग किए जाने का सूचक है।
यदि जल संसाधनों के दोनों स्रोतों के बारे में बात करें तो वर्तमान उपयोग का प्रतिशत लगभग 46 प्रतिशत है। पृष्ठीय जल संभावना को एकत्र करने और नहर से (या परिवहन) ले जाने के लिए अपेक्षित आधारभूत संरचना के निर्माण की अपर्याप्त उपलब्धि के कारण भौमजल क्षमता की निकासी बहुत अधिक है। इसलिए स्पष्टतः उपलब्ध पृष्ठीय जल क्षमता को काम में लाने पर ध्यान केंद्रित करना आवश्यक है, (जिसके लिए अपेक्षित भंडारण क्षमता निर्माण करना आवश्यक है) प्रयोग जल की कुल उपलब्धता का अनुमान 1086 bcm तक लगाया गया है जो कि वर्ष 2050 तक 1180 bcm की अनुमानित कुल जल की अनुमानित आवश्यकता से कम है।
इस स्थिति में जल संरक्षण और जल प्रबंधन उपायां का गंभीरता पूर्वक अनुसरण करना अनिवार्य है। जबकि यह जल की उपलब्धता/उपयोग की संक्षिप्त विवरण है, इसके उपयोग पर विचार करने का दूसरा तरीका उसकी क्षेत्रीय मांग/आवश्यकता के आधार पर निधारित किया जाता है।
तालिका-1: भारत में जल संसाधन की उपलब्धता (उपलब्धता/उपयोग क्षमता, जल की मात्रा सभी आंकड़े bcm में हैं)।
उपलब्धता/प्रयोजन क्षमता के अनुसार जलस्रोत |
मात्रा/क्षमता |
उपलब्ध पृष्ठीय जल |
1953 |
प्रयोज्य पृष्ठीय जल |
690 (35.3) |
उपलब्ध भौमजल |
432 |
प्रयोज्य भौमजल |
396 (91.7) |
कुल उपलब्ध जल (पृष्ठीय + भौम) |
2385 |
कुल प्रयोग जल (पृष्ठीय + भौम) |
1086 (45.5) |
प्रयोग की अनुमानित वर्तमान मात्रा |
600 |
वर्ष 2050 में अनुमानित कुल जल की आवश्यकता |
973/1180 (निम्न/उच्च मान) |
भारतीय भूसंहति पर वर्षा |
4000 |
स्रोत: राष्ट्रीय सिंचित जल संसाधन विकास आयोग।
नोट: कोष्ठकों के आंकड़े संबंधित योग का प्रतिशत हैं।
तालिका-2: प्रयोग के क्षेत्रानुसार अनुमानित जल मांग - वर्ष 2010 से 2050
सैक्टर |
वर्ष में जल की मांग (bcm में) |
||
2010 |
2025 |
2050 |
|
सिंचाई |
688 (84.6) |
910 (83.2) |
1072 (74.1) |
पेयजल |
56 (6-9) |
73 (6.7) |
102 (7.0) |
उद्योग |
12 (1.5) |
23 (2.1) |
63 (4.4) |
ऊर्जा |
5 (0.6) |
15 (1.4) |
130 (9.0) |
अन्य |
52 (6.4) |
72 (6.6) |
80 (5.5) |
जोड |
813 (100.0) |
1093 (100.3) |
1447 (100.0) |
स्रोत: ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना
भारत में जल के लिए क्षेत्रानुसार मांग पर ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना (2007-12) में सिंचाई के लिए (वर्ष 2025 तक) लगभग 83 प्रतिशत की उच्चतम मांग रखी गई है। जबकि पेयजल जल और सिंचाई संसाधन कृषि और आर्थिक विकास के लिए मांग मोटे तौर पर वैसी ही रहने की आशा व्यक्त की गई है। (वर्ष 2010 से 2050 की अवधि में कुल मांग का लगभग 7 प्रतिशत) “ऊर्जा सेक्टर’’ और ”औद्योगिक सेक्टर’’ को वर्ष 2050 तक उसकी वर्तमान और अनुमानित मांग की तुलना में) अधिक की आवश्यकता होगी।
अतः स्पष्ट है कि जीवन स्तर में सुधारों और बढ़ती हुई जनसंख्या से इन दो सेक्टरों (अर्थात् ऊर्जा और उद्योग) से जल की मांग अधिक होगी। चिंता के क्षेत्र इन सेक्टरों के समानांतर वह क्षेत्र हैं, जो प्रदूषण के स्तर को बढ़ा रहे हैं और इसके परिमाणस्वरूप जल संसाधनों की गुणवत्ता को भी कम कर रहे हैं। इसलिए ये भी ऐसे संवेदनशील क्षेत्र हैं जिन पर उच्च नीति और अनुसंधान की आवश्यकता है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।