कीटनाशकों के अवशेष खेत से थाली तक- ज़िम्मेदारी कौन?      Publish Date : 20/02/2025

      कीटनाशकों के अवशेष खेत से थाली तक- ज़िम्मेदारी कौन?

                                                                                                                                                          प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

वर्तमान में कीटनाशकों के अवशेष खेत से हमारी थाली तक पहुँच रहे है, इसकी ज़िम्मेदारी किसकी है? भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अधीन भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) ने हाल ही में ‘‘खाद्य वस्तुओं में कीटनाशक अवशेषों की निगरानी की चुनौतियाँ’’ के विषय पर एक राष्ट्रीय हितधारक परामर्श बैठक का आयोजन विज्ञान भवन, नई दिल्ली में किया था।

इस बैठक की उपयोगिता को देखते हुए क्रॉप केयर फेडरेशन ऑफ इंडिया (CCFI) ने डॉ. अल्का राव, सलाहकार (विज्ञान, मानक और विनियम), राष्ट्रीय कोडेक्स-SPS संपर्क बिंदु, FSSAI को एक स्थिति-पत्र सौंपा। इस दस्तावेज़ में कीटनाशक उद्योग से जुड़े प्रमुख मुद्दों को उठाया गया था।

कीटनाशक उपयोग के कानूनी प्रावधान

कीटनाशक अधिनियम, 1968 की धारा 38(1) के अनुसार, यह कानून किसी व्यक्ति द्वारा अपनी स्वयं की कृषि भूमि पर कीटनाशकों के उपयोग को विनियमित नहीं करता। इसी प्रकार, खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम (FSS Act) भी किसानों द्वारा अपने खेतों में कीटनाशकों के उपयोग पर कोई कानूनी नियंत्रण लागू नहीं करता है। फिर ऐसे में सवाल उठता है कि अधिकतम अवशेष सीमा (MRL) के अनुपालन की जिम्मेदारी किसकी होगी?

CCFI की कार्यकारी निदेशक, सुश्री निर्मला पथरवाल ने इस मुद्दे पर कानूनी स्पष्टता की मांग करते हुए कहा कि मौजूदा नियामक ढांचा यह साफ़ नहीं करता कि MRL अनुपालन की ज़िम्मेदारी किसानों, व्यापारियों या नियामक एजेंसियों की है। लेकिन जब तक इस पर जवाबदेही तय नहीं होगी, तब तक घरेलू खाद्य सुरक्षा और निर्यात मानक खतरे में ही बने रहेंगे।

प्री-हार्वेस्ट इंटरवल (PHI) की समझ भी आवश्यक

प्री-हार्वेस्ट इंटरवल (PHI) उस न्यूनतम अवधि को दर्शाता है, जो अंतिम कीटनाशक छिड़काव और फसल की कटाई के बीच होनी चाहिए। इससे यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि फसल में मौजूद कीटनाशक अवशेष स्वास्थ्य सुरक्षा मानकों की सीमाओं में ही बने रहें। PHI का सख्ती से पालन करने से निर्यात में अस्वीकृति से भी बचा जा सकता है और वैश्विक बाज़ार में भारतीय कृषि उत्पादों की स्वीकार्यता बनी रहेगी।

सुश्री पथरवाल ने इस विषय पर जोर देते हुए कहा, ‘‘किसानों को च्भ्प् के महत्व के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए। इसका सही क्रियान्वयन कीटनाशक अवशेष उल्लंघन को काफी हद तक कम कर सकता है, जिससे खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित होगी और भारत की कृषि उत्पादों की निर्यात साख मजबूत बनी रहेगी।’’ FSSAI कीटनाशक अवशेषों की निगरानी में क्या भूमिका निभाता है?

खाद्य सुरक्षा और मानक (प्रदूषक, विषाक्त तत्व और अवशेष) विनियम, वर्ष 2011 के तहत कीटनाशक अवशेषों को खाद्य संदूषक के रूप में वर्गीकृत किया गया है। यह ऐसे पदार्थ होते हैं, जो भोजन सामग्री में जानबूझकर नहीं मिलाए जाते, बल्कि कृषि या पर्यावरणीय कारणों से उसमें मौजूद रहते हैं।

इसके अलावा, FSS अधिनियम, 2006 की धारा 18(3) खेती की प्रक्रियाओं, फसलों और कृषि उत्पादों को इसके दायरे से बाहर रखता है। इसका अर्थ यह है कि खेतों में खड़ी फसलें, चाहे वे कटाई से पहले हों या बाद में, खाद्य सामग्री की श्रेणी में नहीं आतीं। इसलिए खाद्य सुरक्षा निरीक्षकों को किसानों के खेतों से सीधे फसल के नमूने लेने का कानूनी अधिकार नहीं है।

CCFI ने केंद्रीय कीटनाशक बोर्ड और पंजीकरण समिति (CIB-RC) तथा FSSAI से मिलकर नियामक खामियों को दूर करने की अपील की है। कई फसलें जैसे पपीता, रागी, सहजन और करी पत्ता आदि अभी तक अधिकारिक रूप से पंजीकृत कीटनाशकों या निर्धारित MRLs के दायरे में नहीं आतीं हैं। इस कारण, जब यह फसलें किसी कीट आक्रमण का शिकार होती हैं, तो किसानों के पास कोई स्पष्ट मार्गदर्शन नहीं होता, जिससे खाद्य सुरक्षा मानकों का उल्लंघन हो सकता है। र्व्ष 2015 में प्रस्तावित फसल समूह पहल (Crop Grouping Initiative) अभी तक लागू की जा सकी है, जिससे MRL निर्धारण भी अधूरा ही रह गया है।

इसके सम्बन्ध में CCFI ने यह भी कहा कि FSSAI को सुनिश्चित करना चाहिए कि स्वच्छता एवं पादप स्वच्छता (SPS) उपायों को घरेलू और आयातित दोनों ही प्रकार की खाद्य/चारा वस्तुओं पर समान रूप से लागू करना चाहिए, जैसा कि WTO के SPS समझौते में उल्लेखित भी है। जबकि यूरोपीय संघ (EU) और अमेरिका नियमित रूप से भारतीय कृषि उत्पादों को MRL उल्लंघन के आधार पर अस्वीकार कर देते हैं, वहीं FSSAI ने अब तक आयातित खाद्य/चारा उत्पादों को MRL उल्लंघन के आधार पर अस्वीकार करने का कोई रिकॉर्ड नहीं बनाया है। इससे नियामकीय असंगति को लेकर भी चिंता बढ़ रही है

CCFI का जागरूकता अभियान

इस परामर्श बैठक के दौरान CCFI ने PHI और MRL के अनुपालन को लेकर सभी हितधारकों को जागरूक करने की आवश्यकता पर बल दिया। बैठक में CCFI के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार, डॉ. जे. सी. मजूमदार और वरिष्ठ सलाहकार, श्री हरीश मेहता भी उपस्थित रहे, जिन्होंने इन अहम मुद्दों को दोहराया था।

अंत में, सुश्री निर्मला पथरवाल ने कहा, ‘‘नीतिगत निर्णयकर्ताओं, नियामकों और उद्योग हितधारकों के बीच सहयोग होना अति आवश्यक है, जिससे कि कीटनाशक अवशेष निगरानी के लिए एक मजबूत, निष्पक्ष और पारदर्शी प्रणाली बनाई जा सके। हमें नियामकीय खामियों को दूर कर उपभोक्ता स्वास्थ्य और किसान हितों की रक्षा करनी होगी।’’

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।