
बारानी क्षेत्रों में जोखिम न्यूनीकरण हेतु उन्नत कृषि प्रणालियाँ Publish Date : 17/02/2025
बारानी क्षेत्रों में जोखिम न्यूनीकरण हेतु उन्नत कृषि प्रणालियाँ
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी
बारानी कृषि वह खेती होती है, जो केवल वर्षा पर निर्भर होती है। इसमें सिंचाई के स्रोत या तो बहुत ही सीमित मात्रा में होते हैं या फिर वह होते ही नहीं हैं। इसके कारण किसानों को बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ता हैः वर्षा की अनिश्चितता बारानी क्षेत्रों में बारिश का समय और मात्रा अनिश्चित रहती है। कभी-कभी बारिश पर्याप्त मात्रा में भी होती है, तो कभी-कभी सूखा पड़ जाता है। इस प्रकार की अनिश्चितता फसल उत्पादन पर गहन असर डालती है। जल संसाधनों की कमी बारानी क्षेत्रों में सिंचाई के लिए जल संसाधनों की कमी होती है। इससे फसल का उत्पादन सीमित हो जाता है और किसानों को अतिरिक्त जोखिम का सामना करना पड़ता है। मृदा की गुणवत्ता बारानी क्षेत्रों में मृदा की नमी बहुत कम होती है, जिससे मृदा की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है। इस प्रकार की भूमि पर फसल उगाना मुश्किल हो जाता है।
भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहां कृषि क्षेत्र लाखों किसानों की आजीविका का मुख्य स्रोत है। हालांकि, भारत में अधिकांश कृषि मानसून पर निर्भर है, विशेषकर उन वर्षा-आश्रित क्षेत्रों में जहां सिंचाई के साधनों की कमी के कारण खेती पूरी तरह से बारिश पर आधारित होती है। बारानी कृषि में किसानों को जलवायु परिवर्तन, अनियमित वर्षा, सूखा और अन्य प्राकृतिक आपदाओं से जुड़ी कई चुनौतियों का सामना अक्सर करना पड़ता है। इन परिस्थितियों के कारण खेती में अस्थिरता और जोखिम काफी हद तक बढ़ जाता है।
जलवायु परिवर्तनः जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान में वृद्वि, बेमौसम बारिश और सूखे की घटनाओं में वृद्वि हो रही है। इससे किसानों को अतिरिक्त चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। अतः जोखिम न्यूनीकरण हेतु उन्नत कृषि प्रणालियां बारानी क्षेत्रों में आवश्यक होती हैं, जो किसानों को अनिश्चित जलवायु स्थितियों से निपटने में मदद करती हैं। प्रस्तुत लेख में कुछ प्रमुख उन्नत कृषि प्रणालियां प्रस्तुत की जा रही हैं, जो बारानी क्षेत्रों के लिए अत्यधिक उपयोगी सिद्व हो सकती हैं।
जल-संरक्षण तकनीकें: बारानी कृषि में जल संरक्षण सर्वोपरि है। पानी का समुचित उपयोग और संरक्षण के लिए विभिन्न तकनीकों का उपयोग किया जा सकता है, जैसे कि वर्षा जल संचयन, ड्रिप सिंचाई और मृदा आर्द्रता संवर्धन। वर्षा जल संचयन प्रणाली के माध्यम से बारिश के पानी को संचित करके सिंचाई के लिए उपयोग किया जा सकता है। इससे सूखे की स्थिति में भी फसलों को पानी की आपूर्ति और सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है। बारानी क्षेत्रों के लिए मल्चिंग एक प्रभावी तकनीकी है, जो मृदा की नमी को बनाए रखने और सूखे पेड़ों के मध्य छाया में उगने वाले पौधे सही नीतियों से भरपूर अवसर बारानी कृषि में जोखिम न्यूनीकरण के लिए उन्नत कृषि प्रणालियां अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
फसल चक्रीकरणः फसल विविधीकरण, जल-संरक्षण तकनीकें और सूखा-प्रतिरोधी फसलों का उपयोग करके किसान बारानी परिस्थितियों में भी बेहतर उत्पादन और आय प्राप्त कर सकते हैं। इसके साथ ही, जैविक खेती, मृदा संरक्षण और समेकित कृषि प्रणाली से किसानों की आय और स्थिरता में वृद्वि होती है। सरकार और वैज्ञानिक संस्थानों द्वारा भी इन उन्नत प्रणालियों को क्षेत्र में काफी बढ़ावा दिया जा रहा है।
यह प्रणाली सूखे के दौरान फसलों की वृद्वि को बढ़ावा देने में मदद करती है। यह मृदा के तापमान को नियंत्रित करने, खरपतवारों को रोकने और पोषक तत्वों के संरक्षण में भी सहायक होती है। बार-बार एक ही फसल की खेती से मृदा की उर्वराशक्ति कम होती है और कीट-व्याधियों का प्रकोप बढ़ता है। इसके लिए, फसल चक्रीकरण एक महत्वपूर्ण तकनीक है, जिसके माध्यम से अलग-अलग फसलों की खेती करके मृदा की उर्वराशक्ति को बनाए रखा जा सकता है।
उदाहरण के लिए, दालों और अनाजों की बारी-बारी से खेती करने से मृदा में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाई जा सकती है, जिससे मृदा की गुणवत्ता में सुधार होता है। फसल विविधीकरण बारानी क्षेत्रों में केवल एक फसल पर निर्भर रहने की बजाय, फसल विविधीकरण से जोखिम को कम किया जा सकता है। विभिन्न प्रकार की फसलों की खेती करने से किसानों को एक ही मौसम में कई प्रकार की फसलें प्राप्त हो जाती हैं, जिससे किसी एक फसल के नष्ट होने पर भी किसान को अन्य फसलों से आय प्राप्त हो सकती है। उदाहरण के लिए, अनाज, दलहन, तिलहन और सब्जियों की मिश्रित खेती से जोखिम का स्तर कम होता है।
जैविक कृषि और मृदा स्वास्थ्य संवर्धन जैविक खेती में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के स्थान पर जैविक खादों और प्राकृतिक विधियों का उपयोग किया जाता है। इससे मृदा की जैविक उर्वराशक्ति में वृद्वि होती है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।